गुरुवार, 21 मार्च 2024

रमजान का मुक़द्दस रोज़ा और तरावीह की पाबंदी


Varanasi (dil India live). मुकद्दस रमजान में पूरे महीने जिस तरह से मोमिन को रोज़ा रखना ज़रूरी है वैसे ही उसे तरावीह की नमाज़ भी अदा करना ज़रुरी होता है। रोज़ा फर्ज़ है और तरावीह सुन्नत। इसके बावजूद तरावीह अदा करना इस्लाम में बेहद ज़रूरी करार दिया गया है, इसलिए कि तरावीह नबी-ए-करीम को बेहद पसंद थी। 

रमज़ान को इबादत का महीना माना जाता है और इस महीने की बहुत अहमियत है। इस मुकददस महीने में मुसलमान महीने भर रोजे (व्रत) रखता है। पांच वक्त की नमाज और नमाजे-तरावीह अदा करता हैं। कुछ मस्जिदों में तरावीह 4 दिन कि तो कहीं 6 दिन तो कहीं 15 दिन में अदा की जाती है। उलेमा कहते हैं कि अगर किसी ने 4 दिन की तरावीह या 15 दिन की तरावीह मुकम्मल कर ली तो वो ये न सोचे कि तरावीह उसकी हो गई। उलेमा कहते है कि तरावीह पूरे महीने अदा करना ज़रूरी है। तरावीह चांद देखकर शुरू होती है और चांद देखकर ही खत्म होती है। तरावीह में पाक कुरान सुना जाता है। अगर किसी ने 4 दिन, 7 दिन या 15 दिन या जितने भी दिन की तरावीह मुकम्मल की हो उसे सुरे तरावीह महीने भर यानी ईद का चांद होने तक अदा करना चाहिए।

दुआएं होती है कुबुल  

रमज़ान में देश दुनिया में अमन के लिए दुआएं व तरक्की के लिए दुआएं मांगी जाती है। दरअसल रमजान का पाक महीना इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना होता है। इस पाक महीने में लोग इबादत करके अपने रब का जहां शुक्रिया अदा करते हैं वहीं इस महीने में दुआएं कुबुल होती है।

क्या होती है तरावीह

 रमजान में मोमिन दिन में रोज़ा रखते हैं और रात में तरावीह की नमाज़ अदा करते है। यह नमाज़ बीस रिकात सामूहिक रुप से अदा की जाती है। इस नमाज को कम से कम 3 दिन ज्यादा से ज्यादा 30 दिन में पढ़ा जाता है जिसमें एक कुरान मुकम्मल की जाती है। खुद पैगंबर हुजूर अकरम सल्लललाहो अलैह वसल्लम ने भी नमाज तरावीह अदा फरमाई और इसे पसंद फरमाया।।

हाफिज नसीम अहमद बशीरी 

(प्रिंसिपल मदरसा हाफिज जुम्मन साहब)

जानिए कैसे रोज़ा रहते थे नबी और नबी के घरानै वाले


Varanasi (dil India live).हजरत अली के घर में सबने रोजा रखा। हजरत फातिमा ने भी रोजा रखा, दो बच्चे है उनके अभी छोटे है पर रोजा रखा हुआ है। मगरिब का वक़्त होने वाला है, इफ्तारी का वक़्त होने वाला है, सबके सब मुसल्ला बिछा कर रो-रोकर दुआ मांगते हैं। हजरत फातिमा दुआ खत्म करके घर में गयी और चार (4) रोटी बनाई, इससे ज्यादा उनके घर में अनाज नही है। हजरत फातिमा चार रोटी लाती है। पहली रोटी अपने शौहर अली के सामने रख दी! दूसरी रोटी अपने बड़े बेटे हसन के सामने! तीसरी रोटी छोटे बेटे हुसैन के सामने रख दी! ओर एक रोटी खुद रख ली। 

मस्जिद-ए-नबवी में आजान हो गयी, सबने रोजा खोला, सबने रोटी खाई। मगर दोस्तो...अल्लाह की कसम वो फातिमा थी जिसने आधी रोटी खाई ओर आधी रोटी को दुपट्टे से बांधना शुरू कर दिया। ये मामला हजरत अली ने देखा और कहा के फातिमा तुझे भूख नही लगी, एक ही तो रोटी है उसमे से आधी रोटी दुपट्टे में बांध रही हो? फातिमा ने कहा!! ऐ अली हो सकता है मेरे बाबा जान(नबी पाक)को इफ्तारी में कुछ ना मिला हो, वो बेटी कैसे खायगी जिसके बाप ने कुछ खाया नही होगा?


फातिमा दुपट्टे में रोटी बांध कर चल पड़ी है उधर हमारे नबी मगरिब की नमाज़ पढ़ा कर आ रहे हैं हजरत फातिमा दरवाजे पर है देखकर हुजूर कहते हैं ऐ फातिमा तुम दरवाजे पर कैसे, फातिमा ने कहा ए अल्लाह के रसूल मुझे अंदर तो लेके चले। हजरत फातिमा की आंखों में आंसू थे, कहा जब इफ्तार की रोटी खाई तो आपकी याद आ गयी कि शायद आपने खाया नही होगा इसलिए आधी रोटी दुपट्टे से बांध कर लाई हूँ।

रोटी देखकर हमारे नबी की आंखों में आंसू आ गए और कहा, ए फातिमा अच्छा किया जो रोटी ले आई वरना चौथी रात भी तेरे बाबा की इसी हालात में निकल जाती। दोनों एक दूसरे को देखकर रोने लगते हैं। अल्लाह के रसूल ने रोटी मांगी, फातिमा ने कहा बाबा जान आज अपने हाथों से रोटी खिलाऊंगी ओर चौडे चोड़े टुकड़े किये और हुजूर को खिलाने लगी। रोटी खत्म हो गयी और हजरत फातिमा रोने लगती है। हुजूर पाक ने देखा और कहा के फातिमा अब क्यों रोती हो? कहा अब्बा जान कल क्या होगा? कल कोन खिलाने आयगा? कल क्या मेरे घर मे चुहला जलेगा ? कल क्या आपके घर में चुहला जलेगा? नबी ने अपना प्यारा हाथ फातिमा के सर पर रखा और कहा कि फातिमा तू भी सब्र करले ओर मैं भी सब्र करता हूँ। हमारे सब्र से अल्लाह उम्मत के गुनाहगारों के गुनाह माफ करेगा! अल्लाहु अकबर ये होती है मोहब्बत जो नबी को हमसे थी, उम्मत से थी। ये गुनाहगार उम्मती हम ही है जिनके लिए हमारे नबी भूखे रहे, नबी की बेटी भूखी रही! और आज हमलोग क्या कर रहे हैं, उनके लिए। कल कयामत के दिन मैं ओर आप क्या जवाब देंगे?

साभार 

बुधवार, 20 मार्च 2024

गुरुवाणी विविध धर्मो के संतों फकीरों की साँझी वाणी - जगजीत कौर




Varanasi (dil India live)। भक्ति व्यक्ति के जीवन से प्रारंभ होकर मृत्यु तक चलने वाली प्रक्रिया है, बिना भक्ति के जीवन अधूरा है। उक्त विचार बुधवार को डीएवी पीजी कॉलेज में चल रहे दो दिवसीय 'हिन्दी भक्ति कविता और पंजाबी का गुरमति साहित्य : प्रभाव एवं अंतः सम्बन्ध' विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी में गुरुनानक खालसा स्कूल की निदेशिका श्रीमती जगजीत कौर अहलूवालिया ने समापन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि कही। हिन्दी विभाग एवं उत्तर प्रदेश पंजाबी अकादमी, लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित संगोष्ठी में जगजीत कौर ने कहा कि गुरुग्रंथ साहिब सिख धर्म मे 11 वें गुरु के रूप में स्थापित है। गुरुग्रंथ साहिब एक साँझी बाणी है जो किसी खास को नेतृत्व देने के बजाए सबको नेतृत्व प्रदान करती है। उन्होंने बताया कि गुरुबाणी में हिन्दी भक्ति के कवियों के साथ साथ विभिन्न मतावलंबियों की बाणी भी शामिल है। कबीर, रविदास, रामदेव, रामानन्द, जयदेव, बाबा फरीद जैसे संतो फकीरों की साझी बाणी के रूप में संकलित है। 

   उन्होंने यह भी बताया कि सिख धर्म का काशी से गहरा संबंध रहा है, पहली उदासी के दौरान लगभग 530 वर्ष पूर्व प्रथम गुरु गुरुनानक देव काशी आये, आज उसी स्थान पर गुरुबाग गुरुद्वारा स्थापित है। नौंवे गुरु तेग बहादुर सिंह भी 7 महीने 18 दिन तक काशी के नीचीबाग में रह चुके है।

विशिष्ट वक्ता उत्तर प्रदेश पंजाबी अकादमी के जनसंपर्क अधिकारी डॉ. अरविन्द नारायण मिश्र ने कहा कि गुरुग्रंथ साहिब में उत्तर प्रदेश के पाँच संतो को स्थान मिला है, जिसमे रामानंद ने निर्गुण भक्ति साधना की बात कही है। उनके सिद्धांत समानता के अधिकार की बात कहते है, यही इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। अध्यक्षता करते हए महाविद्यालय के कला संकाय प्रभारी प्रो. मिश्रीलाल ने कहा कि भक्ति कविता और गुरमति साहित्य दोनों ही व्यक्ति के जीवन को परिवर्तित करने की शक्ति रखते है। भक्ति काल की कविताओं का उदय लोकमंगल की भावना से ही हुआ। इसके अलावा विभिन्न सत्रों में सुश्री मांजना शोधार्थी पंजाब ने बाबा फरीद की भक्ति कविता, शोधार्थी विवेक कुमार तिवारी ने भक्ति कविता और पंजाब, हिंदू कन्या महाविद्यालय, सीतापुर की डॉक्टर पल्लवी मिश्रा ने पंजाब में सूफी कविता एवं डॉ. राकेश पांडे ने गुरु ग्रंथ साहिब में भक्ति कविता के संदर्भ में व्याख्यान दिया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. राकेश कुमार द्विवेदी, स्वागत प्रोफेसर समीर कुमार पाठक, रिपोर्ट प्रस्तुति डॉ. नीलम सिंह एवं धन्यवाद ज्ञापन प्रोफेसर राकेश कुमार राम ने दिया। इस अवसर पर मुख्य रूप से प्रोफेसर ऋचारानी यादव, प्रोफेसर मधु सिसोदिया, डॉ. सीमा, डॉ. संजय कुमार सिंह, डॉ. सोमनाथ पाठक, डॉ. अस्मिता तिवारी, डॉ.विश्वमोली सहित अन्य विभागों के प्राध्यापक उपस्थित रहे।

कल मुकम्मल होगा रमजान का पहला अशरा


रहमत का अशरा पूरा होते शुरू होगा मगफिरत का दूसरा अशरा


Varanasi (dil India live)। मुकद्दस रमज़ान का पहला अशरा रहमत का कल मुकम्मल हो जाएगा। रमजान का रहमत का सफर पूरा होने के साथ ही इस माहे मुबारक का दूसरा अशरा मगफिरत शुरू हो जाएगा।

दरअसल रब ने रमजान को तीन अशरो में बांटा है। पहला अशरा रहमत का, दूसरा आशरा मगफिरत और तीसरा अशरा जहन्नुम से आजादी का होता है। अशरा दस दिन को कहते हैं। कहा जाता है कि रहमत के पहले दस दिन रोज़ादारो पर रब अपनी रहमत बरसाता है। फिर दस दिन मगफिरत का होता है जिसमें अल्लाह रोज़ेदारों की गुनाह माफ कर देता है यानी मगफिरत फरमाता है। इसके बाद रमज़ान के आखिरी अशरे में अल्लाह रोज़ेदारों को जहन्नुम से आज़ाद कर देता है।

यानी जो रमजान का पूरा रोजा रखेगा, तीसो दिन रोजा रखने में कामयाब रहेगा। उसे जहन्नम की आग नहीं खा पाएगी और उसे जन्नत में दाखिल किया जाएगा। रोजेदारों के लिए जन्नत में एक खास दरवाजा बाबे रययान होगा, जिसमें से केवल रोजेदार ही जन्नत में दाखिल होंगे। रमजान के तीन अशरो को जिसने भी कामयाबी से पूरा किया, जैसा कि रब चाहता है तो वो रोज़ेदार जन्नत का हकदार होगा। रब उसे जहन्नुम से आजाद कर देगा।

होली की मुस्कान में महिलाओं ने बांटी खुशियां



Varanasi (dil India live). अखिल भारतीय वैश्य महिला महासम्मेलन एवं स्माइल मुनिया संस्था के तत्वाधान में होली की मुस्कान कार्यक्रम हर्षोल्लास के साथ मौर्या भवन में फूलों की होली खेल सम्पन्न हुआ। संस्थापिका एवं अध्यक्ष ने सभी को रंगों के पर्व की बधाई देते हुए कहा कि फागुन में आपसी प्रेम सहयोग से हम सब जरूरतमंद बच्चों के साथ खुशियां बाटे तो पर्व का आनंद दुगना हो जाता। होली गीत जयंती, प्रीति, निशा, रेखा, इरा ने प्रस्तुत किए। उषा, ममता ने नृत्य प्रस्तुत किया। रुचि, निशा अग्रवाल ने होली पर आधारित मजेदार खेल खिलाए। इस दौरान अस्सी क्षेत्र के 15 बच्चों को त्यौहार के उपलक्ष् में नए वस्त्र, मिठाई ,रंग, टोपी इत्यादि वितरित कर उनके चेहरे पर मुस्कान लाने का प्रयास किया गया। नीलू,ममता एवं विनीता ने संचालन एवं धन्यवाद सचिव सुशीला जैसवाल ने किया।

आजादी के संघर्ष में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण रही है : जागृति राही


तीन राज्यों के कार्यकर्ताओं को सामाजिक कार्य का दिया गया प्रशिक्षण 

उत्प्रेरक जैसी होनी चाहिए सामाजिक कार्यकर्ता की भूमिका : वल्लभाचार्य पाण्डेय



Varanasi (dil India live)। सामाजिक संस्था आशा ट्रस्ट के तत्वावधान में भंदहा कला (कैथी) ग्राम स्थित संस्था के प्रशिक्षण केंद्र पर आयोजित युवाओं का तीन दिवसीय कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर मंगलवार को सम्पन्न हुआ। 17 से 19 मार्च तक आयोजित शिविर में उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश से आये कुल 30 प्रतिभागी सम्मिलित हुए। शिविर में प्रशिक्षिका के रूप में बोलते हुए सामाजिक कार्यकर्त्री जागृति राही ने कहा कि एक सामाजिक कार्यकर्ता को जाति, धर्म, संप्रदाय, लिंग, आर्थिक स्थिति जैसे अवरोधों को त्यागते हुए समाज के मुद्दों पर अपनी समझ बनानी चाहिए उसके बाद क्रमशः सामूहिक कोशिश से समस्याओं का समाधान खोजने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। उन्होंने आजादी के संघर्ष से लेकर संविधान निर्माण तक में महिलाओं के योगदान पर चर्चा करते हुए कहा कि आधुनिक भारत के निर्माण में महिलाओं ने बड़ा त्याग किया है।

आशा ट्रस्ट के समन्वयक वल्लभाचार्य पाण्डेय ने कहा कि समाज के विभिन्न वर्गों में बंटे हुए लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, न्याय और सम्मान जैसे मुद्दों पर संगठित करने के लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं को बड़ी भूमिका लेनी होगी जिससे सभी का जीवन खुशहाल हो. एक सामाजिक कार्यकर्ता को एक उत्प्रेरक की भूमिका निभानी चाहिए और लोगों को जागरूक करना चाहिए।

लोक चेतना समिति के सुरेन्द्र सिंह ने कहा कि आज युवा पीढ़ी दिग्भ्रमित है उनकी समाज के प्रति कुछ कर्तव्य और जिम्मेदारियां है जिनका निर्वहन करने के लिए उन्हें अपने अधिकारों के साथ साथ कर्तव्यों को भी समझना पड़ेगा। दखल संगठन की डॉ इंदु पांडेय ने महिलाओं को राजनीति में सक्रिय भागीदारी के लिए आगे आने को प्रेरित करने का सुझाव दिया और कहा कि राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से उन पर होने वाले अत्याचारों में स्वाभाविक रूप से कमी आएगी।

प्रतिभागियों ने शिविर के दौरान चिरईगांव, चोलापुर और आराजीलाइन विकास खंड के कुछ गांवों में भ्रमण करके पंचायती राज द्वारा कराये गये विकास कार्यों का भी अवलोकन किया।

शिविर में सूचना का अधिकार कानून, शिक्षा का अधिकार कानून, मनरेगा, खाद्य सुरक्षा कानून, आंगन बाड़ी, आशा कार्यकर्त्री, स्वयं सहायता समूह, विद्यालय प्रबंध समिति, भूमि अधिग्रहण कानून, पंचायती राज, असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए सरकारी योजनाओं, महिलाओं के अधिकार जैसे मुद्दों पर विशेष रूप से चर्चा की गयी। इस दौरान गंगा किनारे सफाई अभियान भी चलाया गया। प्रशिक्षण शिविर के आयोजन में रोहन, प्रदीप सिंह, अवंतिका, धनञ्जय नीरज, दीन दयाल सिंह आदि मौजूद थे।

मंगलवार, 19 मार्च 2024

सहरी छोड़ने वाले नबी की एक अज़ीम सुन्नत से हो जाते हैं महरूम


Varanasi (dil India live)। जिस महीने में सवाब ही सवाब और बरकतें ही बरकत अल्लाह बंदे पर निछावर करता है। उस मुकद्दस बेशुमार खूबियों वाले महीने को रमज़ान कहा जाता है। रमज़ान महीने का एक और सुन्नतों भरा तोहफा खुदा ने हमें सहरी के रूप में अता किया है। रोज़े में सहरी का बड़ा सवाब है। सहरी उस गिज़ा को कहते हैं जो सुब्ह सादिक से पहले रोज़ेदार खाता है। सैय्यदना अनस बिन मालिक फरमाते हैं कि ‘‘नबी-ए-करीम (स.) सहरी के वक्त मुझसे फरमाते कि मेरा रोज़ा रखने का इरादा है मुझे कुछ खिलाओ। मैं कुछ खजूरें और एक बर्तन में पानी पेश करता।’ इससे पता यह चला कि सहरी करना बज़ाते खुद सुन्नत है और खजूर व पानी से सहरी करना दूसरी सुन्नत है। नबी ने यहां तक फरमाया कि खजूर बेहतरीन सहरी है। नबी-ए-करीम (स.) इस महीने में सहाबियों को सहरी खाने के लिए खुद आवाज़ देते थे। अल्लाह और उसके रसूल से हमें यही दर्स मिलता है कि सहरी हमारे लिए एक अज़ीम नेमत है। इससे बेशुमार जिस्मानी और रुहानी फायदा हासिल होता है। इसलिए ही इसे मुबारक नाश्ता कहा जाता है। किसी को यह गलतफहमी न हो कि सहरी रोज़े के लिए शर्त है। ऐसा नहीं है सहरी के बिना भी रोज़ा हो सकता है मगर जानबूझ कर सहरी न करना मुनासिब नहीं है क्यों कि इससे रोज़ेदार एक अज़ीम सुन्नत से महरूम हो जायेगा। यह भी याद रहे कि सहरी में खूब डटकर खाना भी जरूरी नहीं है। कुछ खजूर और पानी ही अगर बानियते सहरी इस्तेमाल कर लें तो भी काफी है। रमज़ान वो मुकदद्स महीना है जो लोगों को यह सीख देता है कि जैसे तुमने एक महीना अल्लाह के लिए वक्फ कर दिया सुन्नतों और नफ़्ल पर ग़्ाौर किया, उस पर अमल करते रहे वैसे ही बचे पूरे साल नेकी और पाकीज़गी जारी रखो। नबी-ए-करीम (स.) ने फरमाया ‘‘तीन चीज़ों को अल्लाह रब्बुल इज्ज़त महबूब रखता है। एक इफ्तार में जल्दी, सहरी में ताखीर और नमाज़ के कि़याम में हाथ पर हाथ रखना।’ नबी फरमाते हैं कि इस पाक महीने को जिसने अपना लिया, जो अल्लाह के बताये हुए तरीकों व नबी की सुन्नतों पर चल कर इस महीने में इबादत करेगा उसे जन्नत में खुदावंद करीम आला मुक़ाम अता करेगा। यह महीना नेकी का महीना है। इबादत के साथ ही इस महीने में रोज़ेदार की सेहत दुरुस्त हो जाती है। रोज़ेदार अपनी नफ्स पर कंट्रोल करके बुरे कामों से बचा रहता है। ये महीना नेकी और मोहब्बत का महीना है। इस पाक महीने में जितनी भी इबादत की जाये वो कम है क्यों कि इसका सवाब 70 गुना तक अल्लाहतआला बढ़ा देता है, इसलिए कि रब ने इस महीने को अपना महीना कहा है। ऐ पाक परवरदिगार तू अपने हबीब के सदके में हम सबको रमज़ान की इबादत, नबी की सुन्नतों पर चलने की व रोज़ा रखने की तौफीक अता फरमा..आमीन।

     हाफिज मौलाना शफी अहमद

{सदर, अंजुमन जमात रजाए मुस्तफा, बनारस}

मझवा से पहले SP मुखिया अखिलेश यादव का बनारस में जोरदार स्वागत

Varanasi (dil India live). सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव रविवार को बनारस पहुंचे। बनारस के लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट ...