गुरुवार, 13 मई 2021
आज के हालात पर देखिये आमीर क्या कह रहे हैं
बनारस में आज भी ईद कल भी ईद
सोशल डिस्टेंसिंग के साथ मस्जिदों में अदा की गयी ईद की नमाज़
वाराणसी (सरफराज अहमद/दिल इंडिया लाइव)। बनारस में आज भी ईद मनाई गई और कल भी ईद होगी। बनारस में शहर क़ाज़ी गुलाम यासीन साहब के एलान के बाद शहर बनारस में मस्जिदों में गुरुवार को ईद की नमाज़ कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए अदा की गयी। इस दौरान मस्जिदों के बाहर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था का इंतज़ाम किया गया था। यही नहीं कल भी ईद का ऐलान किया गया है। इज़्तेमाई रुयते हेलाल कमेटी बनारस ने बुधवार को एलान किया था कि ईद का चाँद नहीं दिखा लिहाज़ा ईद अब जुमे को मनायी जाएगी। इस ऐलान के कुछ ही देर बाद शहर क़ाज़ी गुलाम यासीन नूरी के लेटर पेड पर एक ऐलान हुआ जिसमे कहा गया कि चाँद देखा गया गया है, लिहाज़ा जुमेरात (गुरुवार) को ईद होगी। इस एलान पर शहर बनारस में अहले सुन्नत की दो ईद हो गई गवाहों का वीडियों भी रात से ही वायरल होता रहा जिसमें उन लोगों ने चांद की शहर काज़ी के यहां तस्दीक की। तस्दीक के दौरान शहर के मायनाज़ उलेमा भी मौजूद थे। बस यहीं से दो ईद हुई।
गुरूवार को शहर काज़ी से इत्तेफाक रखने वालो ने मस्जिदों में ईद की नमाज़ अदा की और एक दुसरे को ईद की मुबारकबाद दी। सिगरा थानाक्षेत्र की 20 से 30 फीसद मस्जिदों में ईद की नमाज़ आज हुई वहीँ भेलूपुर थानाक्षेत्र कि 80 मस्जिदों में से तकरीबन 40 से50 में आज ईद की नमाज़ अदा की गयी। ईद की नमाज़ के दौरान वाराणसी कमिश्नरेट पुलिस के जवान हर मस्जिद के बाहर मुस्तैद रहे। ऐसे ही अलग अलग इलाको में नमाज़े हुई। जो इश्तेमाई रूइयते हेलाल कमेटी से इत्तेफाक रखते हैं उन्होंने आज रोज़ा रखा वो कल ईद मनायेंगे। इस तरह बनारस में दो ईद हो गई।
बुधवार, 12 मई 2021
बनारस के गोविन्द्रपुरा में सबसे पहले मनायी गयी थी ईद
सन् 2 हिजरी में पहली बार मनायी गयी थी ईद कि खुशियां
वाराणसी (अमन/दिल इंडिया लाइव)। ईद मिल्लत और मोहब्बत का त्योहार है। सभी जानते हैं कि हफ्ते भर चलने वाले इस महापर्व से हमें खुशी और एकजुटता का पैगाम मिलता है, मगर कम लोग जानते हैं कि ईद का ऐतिहासिक पक्ष क्या है। इस्लामिक विद्वान मौलाना अज़हरुल क़ादरी ने ईद की तवारीखी हैसियत पर रौशनी डालते हुए बताया कि सन् 2 हिजरी में सबसे पहले ईद मनायी गयी। पैगम्बरे इस्लाम नबी-ए-करीम हज़रत मोहम्मद (स.) का वो दौर था। उन्होंने सन् 2 हिजरी में पहली बार अरब की सरज़मी पर ईद की नमाज़ पढ़ी और ईद की खुशियां मनायी। उसके बाद से लगातार आज तक पूरी दुनिया में ईद की नमाज़े अदा की जाती है और लोग इसकी खुशियों में डूबे नज़र आते हैं।
जहां तक बनारस में ईद के त्योहार का सवाल है, इतिहासकार डा. मोहम्मद आरिफ तथ्यो को खंगालने के बाद बताते हैं कि बनारस में गोविन्द्रपुरा व हुसैनपुरा दो मुहल्ले हैं जहां सबसे पहले ईद मनायी गयी थी। वो बताते हैं कि हिन्दुस्तान में मुसलमानों के आने के साथ ही ईद मनाने के दृष्टांत मिलने लगते हैं। जहां तक बनारस की बात है यहां मुस्लिम सत्ता की स्थापना से पूर्व ही मुस्लिम न सिर्फ आ चुके थे बल्कि कई मुस्लिम बस्तियां भी बस गयी थी। दालमंडी के निकट गोविन्दपुरा और हुसैनपुरा में ईद की नमाज़ सबसे पहले पढ़े जाने का संकेत तवारीखी किताबों से ज़ाहिर है।
काशी के सौहार्द ने किया था कुतुबुद्दीन को प्रभावित
इतिहासकार डा. मोहम्मद आरिफ बताते हैं कि जयचन्द की पराजय के बाद बनारस के मुसलमानों की ईद को देखकर बादशाह कुतुबुद्दीन ऐबक को उस दौर में आश्र्चर्य हुआ था कि ईद की नमाज़ के बाद बनारस में जो सौहार्दपूर्ण माहौल दिखाई दिया था उसमें उन्हें हिन्दू-मुसलमान की अलग-अलग पहचान करना मुश्किल था। यह बनारसी तहज़ीब थी जो देश में मुस्लिम सत्ता की स्थापना के पूर्व ही काशी में मौजूद थी। जिसने एक नई तहज़ीब, नई संस्कृति हिन्दुस्तानी तहज़ीब को जन्म दिया। तब से लेकर आज तक ईद की खुशियां बनारस में जितने सौहार्दपूर्ण और एक दूसरे के साथ मिलकर मनाया जाता है उतना अमनों-सुकुन और सौहार्दपूर्ण तरीके से दुनिया के किसी भी हिस्से में ईद नहीं मनायी जाती।
ईद का इस्लामी पक्ष
प्रमुख इस्लामी विद्धान मौलाना साक़ीबुल क़ादरी कहते हैं कि ईद रमज़ान की कामयाबी का तोहफा है। वो बताते हैं कि नबी का कौल है कि रब ने माहे रमज़ान का रोज़ा रखने वालों के लिए जिंदगी में ईद और आखिरत के बाद जन्नत का तोहफा मुकर्रर कर रखा है। यानि रमज़ान में जिसने रोज़ा रखा है, इबादत किया है नबी के बताये रास्तों पर चला है तो उसके लिए ईद का तोहफा है।
दूसरों को खुशिया बांटना है पैगाम
आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खां फाजिले बरेलवी पर रिसर्च करने वाले प्रमुख उलेमा मौलाना डा. शफीक अजमल की माने तो ईद का मतलब केवल यह नहीं कि महीने भर जो इबादत करके नेकियों की पूंजी एकत्र किया है उसे बुरे और बेहूदा कामों में ज़ाया कर देना बल्कि ईद का मतलब है कि दूसरों को खुशियां बांटना। अपने पड़ोस में देखों कोई भूखा तो नहीं है, किसी के पास पैसे की कमी तो नहीं है, कोई ऐसा बच्चा तो नहीं जिसके पास खिलौना न हो, अगर इस तरह की बातें मौजूद है तो उन तमाम की मदद करना फर्ज़ है।
मौलाना शफी अहमद कहते हैं कि दूसरो की मदद करना ईद का सबसे बड़ा मकसद है तभी तो रमज़ान में जकात, फितरा, खैरात, सदका बेतहाशा निकालने का हुक्म है ताकि कोई गरीब, मिसकीन, फकीर नये कपड़े से महरुम न रह जाये। ईद की खुशी में सब खुश नज़र आयें। यही वजह है कि ईद पर हर एक के तन पर नया लिवास दिखाई देता है।
वर्तमान में ग्लोबल फेस्टिवल बना ईद
एक माह रोज़ा रखने के बाद रब मोमिनीन को ईद कि खुशियो से नवाज़ता है, आज वक्त के साथ वही ईद ग्लोबल फेस्टीवल बन चुकी है जो टय़ूटर, वाट्स एप, स्टेलीग्राम से लेकर फेसबुक तक पर छायी हुई है।
8 साल के यासीन ने रखा पूरे माह रमज़ान का रोजा
ये कहानी है नन्हें रोजेदार की (12-05-2021)
वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। हजारों साल नर्गिस अपनी बे नूरी पे रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा...। यह लाइन इस मासूम बच्चे पर बहुत ही ठीक बैठती है। जो एक रमज़ान से अब तक पूरा रोज़ा रखने में कामयाब रहा हैं। फिरोज आलम के लख्ते जिगर इस नन्हें रोजेदार ने लोगों के दिलों को जीत लिया। इतनी कम उम्र में पूरे एक माह का रोज़ा रख कर नमाज़ की पाबंदी के साथ दुआ का भी एहतमाम करता है।
काज़ी सादुल्लाह पूरा के रहने वाले 8 साल का यासीन, गुलिस्तां इंग्लिश स्कूल में दर्जा एक में पढ़ता है। कोरोना काल में भी पढ़ाई घर पर करने से नहीं भा
गता, मां बाप के लाख मना करने पर पिछले 2 वर्ष से पूरे माह का रोज़ा रखता चला आ रहा है।15 घंटा दिन भर भूखा प्यासा रहकर अपने मासूम हाथों से खुदा से दुआ मांगता है कि इस वबाई कोरोना मर्ज को ऐ अल्लाह हमारे मुल्क से दूर कर दे और सभी को सेहत व तंदुरुस्ती दे, हमे इल्म की रौशनी से मालामाल कर दे...आमीन।
मंगलवार, 11 मई 2021
आखिरी शबे कद्र पर इबादत में डूबे रोज़ेदार
शबे कद्र में नाज़िल हुई थी पाक कुरान
वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। इस माहे रमज़ान की आज आखिरी शबे कद्र पर रोज़ेदारों ने जाग कर इबादत की। इस दौरान शहर में कई जगहों पर शबीने का भी एहतमाम किया। पाक कुरान की आयतें फिज़ा में देर रात तक बुलंद हो रही की थी।
शबे कद्र के बारे में अल्लाह तआला फरमाता है कि बेशक हमनें कुरआन को शबे कद्र में उतारा। शबे कद्र हजार महीनों से बेहतर है यानी हजार महीना तक इबादत करने का जिस कदर सवाब है उससे ज्यादा शबे कद्र में इबादत का सवाब है। जो आदमी इस एक रात को इबादत में गुजार दे उसने गोया 83 साल 4 माह से ज्यादा वक्त इबादत में गुजार दिया। हाफिज तहसीन रज़ा ने बताया कि पैगंबर-ए-आजम हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया शबे कद्र अल्लाह तआला ने मेरी उम्मत को अता की है। यह पहली उम्मतों को नहीं मिली। हजरत आयशा रदियल्लाहु अन्हा से मरवी है कि पैगंबर-ए-आजम ने फरमाया शबे कद्र को आखिरी अशरा की ताक रातों में तलाश करो यानी रमजान की 21, 23, 25, 27, 29 में तलाशो।
ईद ज़रूरतमंदों का ख़याल रखने का नाम
ईद का पैग़ाम-4 (11-05-2021)
घरों में ही मनाएं ईद की ख़ुशियां
वाराणसी(दिल इंडिया लाइव)। ईद ज़रुरतमंदों का ख्याल रखने का नाम है। इस वक्त कोरोना महामारी का दौर है। लोगों का कारोबार रसरकार द्वारा लगाए गए कोरोना कर्फ्यू की वजह से बंद पड़ा है। मुसलमानों को इस सबसे बड़े त्यौहार को घर पर ही रह कर मनाना है। ऐसे में अगर हम सब एक दूसरे का ख्याल रखें तो सभी की ईद हंसी खुशी मन जायेगी।
इस वक्त अल्लाह हम सब का कड़ा इम्तिहान ले रहा। कारोबार से लेकर बहुत सारी ज़रूरी काम-काज़ बंद है। नमाज़ व अन्य ज़रूरी इबादत भी अपने-अपने घरों में अदा कर रहे हैं, देश व दुनिया के अंदर आई महामारी के कारण इस साल भी पिछले साल की तरह ही अलग प्रकार की ईद मनाने को हम सब बेबस हैं। सब को यह पता है कि इस बीमारी से बचने का एक ही उपाय है कि हम सब अपने-अपने घरों में रहें और सोशल डिस्टेन्स का पालन करें। बहुत ज़रूरी हो तभी घर से निकले वो भी मास्क लगाकर। ईद के दिन उलेमाओं के हिसाब से अपने घरों में ही अच्छी नीयत व मजबूत इरादों के साथ नमाज़ पढ़ें, अल्लाह से ख़ूब दुआएं करें जिससे कि इस कोरोना महामारी से निजात भी मिले और हमसब फिर से पहले की तरह सेहतमंद रहें व अपने हाल-कारोबार में तरक्की भी कर सकें। अपने आस-पास ज़रूरतमंदों का हर हाल में ख्याल रखना है जिससे ईद की खुशियों में हर शख्स शामिल हो सके।
डॉ. इफ्तिखार अहमद जावेद
(पूर्व सदस्य, सेण्ट्रल हज कमेटी)
तेरे दीदार से होगी चाहने वालो कि ईद
चांद रात कल, दीदार की रहेगी सभी को बेताबी
वाराणसी
(दिल इंडिया लाइव)। रमज़ान की 29 वीं तारीख बुधवार चांद रात है। अगर चांद का दीदार हो जाता है तो हिजरी कलैंडर के 10 वें महीने शव्वाल का आगाज़ हो जायेगा और मुस्लिम ईद की खुशियां जुमेरात को मनायेंगे। इस दौरान चांद देखने के लिए लोगों में बेताबी रहेगी। चांद देखने के लिए घरों, मस्जिदों-इबादतगाहों की छत और मैदान में रोज़ेदार जुटेगे। अगर चांद देखे जाने की तस्दीक हो जाती है तो जुमेरात को ईद मनायी जायेगी, अगर चांद नहीं दिखाई देता है, तो जुमेरात चांद रात होगी और जुमे को ईद मनायी जायेगी।
चांद दिखे तो यहां करें इत्तेला
अगर आपने 29 वीं रमज़ान का चांद देखा है तो आपकी जिम्मेदारी है इसकी जानकारी उलेमाओं या फिर चांद कमेटी को दें। ताकि ईद का सही ऐलान किया जा सके। क्यों कि उलेमा आपकी तस्दीक पर ही ईद का ऐलान करते हैं। मर्द हो या ख्वातीन ईद का चांद जरूर देखे।
नबी के दौर से है चांद की रवायत
चांद देखने की रवायत इस्लाम में सैकड़ों साल कदीमी है। जब नबी-ए-करीम (स.) ने मक्का से मदीना हिजरत किया और अपने नबी होने का ऐलान किया था। तभी हिजरी सन् की शुरुआत चांद देखकर हुई। इसलिए चांद के दीदार से ही इस्लामी हिजरी महीने का आगाज़ होता है। चांद देखने का सवाब भी है। नबी-ए-करीम (स.) फरमाते हैं कि पांच महीने का चांद देखना वाजिबे केफाया है। इसमें शाबान, रमज़ान, शव्वाल, ज़ीकादा और जिल्हिज्जा शामिल है। यानी जिसने, इन महीनों का चांद देखा उसके नाम और आमाल में नेकिया लिखी जायेगी। हिजरी माह 29 या 30 का होता है। इस्लाम में 28 या 31 तारीख का कोई वजूद नहीं है। इसलिए हर साल अंग्रेजी कलैंडर से तकरीबन 10 दिन कम हो जाता है और ईद कभी गर्मी में तो कभी बरसात और सर्दी में पड़ती है।
इन्हें दें चांद दिखने की जानकारी
मरकज़ी रुइयते हेलाल कमेटी के सदर, शहर काज़ी मौलाना गुलाम यासीन साहब: 9453311784
इश्तेमाई रुइयते हेलाल कमेटी के संयोजक मो. अशरफ एडवोकेट 9935638218
मुफ्ती बोर्ड के सेक्रेटरी मौलाना हसीन अहमद हबीबी 9026118428, 9450349400।
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