अज़ीज़ो ने लगाई अपनों की कब्रों पर हाज़िरी
सोशल डिस्टेंसिंग के साथ शबे बरात
वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। सोशल डिस्टेंसिंग के साथ शबे बरात पर इतवार को अपनों व बुजुर्गो की क्रबगाह पर अज़ीजों ने चिरागा किया, उनके नाम पर शमां रौशन किया।:इस दौरान फातेहा पढ़ कर अज़ीज़ो कि मगफिरत की दुआएं मांग कर उन पर सवाब पहुंचाया गया। इस दौरान देर रात तक घरों में भी तमाम लोगो ने इबादत क फातेहा किया व दुआए मगफिरत मांगी। शहर के प्रमुख बुजुर्गो के रौज़ों, आस्तानों और मस्जिदों में ज़ायरीन का हुजुम इस बार दिखाई दिया, लोग देर रात तक इबादत करते दिखे। इबादत गुज़ार रात भर इबादत के बाद सोमवार को सहरी करके नफ्ल रोज़ा रखेंगे।
यहाँ लगाई हाज़िरी, किया ज़ियारत
बनारस शहर के प्रमुख कब्रिस्तानों में तमाम लोग अपने पुरखो कि कब्रगाह पर हाज़िरी लगाई, कब्रो कि ज़ियारत कि खास कर टकटकपुर, हुकुलगंज, भवनिया कब्रिस्तान गौरीगंज, बहादर शहीद कब्रिस्तान रविन्द्रपुरी, बजरडीहा का सोनबरसा कब्रिस्तान, जक्खा कब्रिस्तान, सोनपटिया कब्रिस्तान, बेनियाबाग स्थित रहीमशाह, दरगाहे फातमान, चौकाघाट, रेवड़ीतालाब, सरैया, जलालीपुरा, राजघाट, अलईपुरा समेत बड़ी बाजार, पीलीकोठी, पठानीटोला, पिपलानी कटरा, बादशाहबाग, फुलवरिया, लोहता, बड़ागांव, रामनगर आदि इलाक़ों की कब्रिस्तानों और दरगाहों में लोगों ने हर साल पहुच कर शमां रौशन की। पिछ्ली बार लाक डाउन के चलते इन जगहो पर सन्नाटा पसरा था, लोगो ने घरो में फातेहा पढ़कर अज़ीज़ों की बक्शीश के लिए दुआएं मगफिरत मांगी थी। घरो में शबे बरात पर रौशनी का भी खास इंतेज़ाम किया गया था।
घरों में लौटती है पुरखों की रूह
मर्द ही नही घरों में ख्वातीन ने भी शबे बरात की रात इबादत की। इबादत में छोटे-छोटे बच्चे भी शामिल थे। सुबह से शाम तक घरों में ख्वातीन हलवा व शिरनी बनाने में जुटी हुई थी। शाम में वो भी इबादत में मशगूल हो गयी, शबे बरात से ही रुहानी साल शुरू होता है। इस रात रब फरिश्तों की डय़ूटी लगाता है। लोगों के नामे आमाल लिखे जाते हैं। किसे क्या मिलेगा, किसकी जिंदगी खत्म होगी, किसके लिये साल कैसा होगा, पूरे साल किसकी जिन्दगी में क्या उतार-चढ़ाव आयेगा। ये इसी रात लिखा जाता है साथ ही पुरखों की रूह अपने घरों में लौटती है जिसके चलते लोग घरों को पाक साफ व रौशन रखते हैं।
हलवे की हुई घरों में फातेहा
शबे बरात पर मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में इस बार चहल-पहल दिखाई दी। सूरज डूबते ही घरों में लज़ीज़ हलवों, शर्बत, शिरनी की फातेहा का जो दौर शुरू हुआ वो मगरिब की नमाज़ के बाद से इशा की नमाज़ तक चलता रहा। फातेहा के बाद लोगों ने सदका निकाला, गरीबों और मिस्कीनों को खैरात निकाला और तबरुक लोगों में तकसीम किया। शबे बरात का सबसे ज्यादा उत्साह बच्चों में दिखाई दे रहा था। सुबह से शाम तक घरों में ख्वातीन हलवा व शिरनी बनाने में जुटी हुई थी। शाम में वो भी इबादत में मशगूल हो गयी, यह दौर दे रात तक चलता रहा।