गुरुवार, 27 जुलाई 2023

Moharram 8: आज निकलेगा दुलदुल, पेश होगा आंसुओं का नजराना

निकला मेहंदी का जुलूस, पेश हुआ दर्द भरा नौहा


Varanasi (dil India live)। कर्बला के शहीद hazrat kasim की याद में चौहट्टा लाख खां के इमामबाड़े से अंजुमन आबिदया के जेरे इंतेज़ाम बुधवार को मेहंदी का मशहूर जुलूस निकाला गया। इस मौके पर तमाम अंजुमनों ने दर्द भरे नौहों के बोल पर मातम का नजराना पेश किया। नौहे सुनकर सभी की आंखें नम हो गई। 

इस मौके पर पहला जुलूस मरहूम अच्छन छत्तन के इमामबाड़े से शाम 7 बजे निकला तो दूसरा रात 9.30 बजे जस्टिस सर फजले अली (पूर्व राज्यपाल आसाम) के इमामबाड़े से उठाया गया। अंतिम जुलूस चौहट्टा लाल खां में दानिश रिजवी, शामिल रिजवी, के इमाबाड़े से उठाया गया। जुलूस विभिन्न स्थानों से होकर लाट सरैयां स्थित सदर इमामबाड़े पर पहुंच कर समाप्त हुआ। 

मोहर्रम कि 8 वी तारीख आज ही के दिन भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ चांदी की शहनाई से नौहा बजाकर आसुंओ का नज़राना पेश करते थे। आज उन्ही की रिवायत को बिस्मिल्लाह खाँ साहब के पौत्र आफाक हैदर खाँ और उनके साथी फातमान  में रात्रि के 10 बजे शहनाई से आसुंओ का नज़राना पेश करेगेl यह जानकारी कार्यक्रम संयोजक शकील अहमद जादूगर ने दी  है।

ऐसे ही आठवीं मोहर्रम का तुर्बत व अलम का जुलूस अपनी पुरानी परंपराओं के अनुसार चाहमामा स्थित ख्वाजा नब्बू साहब के इमामबाड़े से सायं 8 बजे उठेगा l जिसमें अब्बास मूर्तज़ा शम्सी मजलिस पढ़ेंगे, जुलूस उठने पर लियाकत अली खां व उनके साथी सवारी पढ़ेंगे l जुलूस चाहमामा होते हुए दालमंडी  स्थित हकीम साहब के अज़ाख़ाने पर पहुंचेगा फिर वहाँ  से अंजुमन हैदरी चौक बनारस नौहाख्वानी व मातम करेगी। जुलूस दालमंडी, खजुर वाली  मस्जिद, नई सड़क, फाटक शेख सलीम, काली महल, पितरकुंड, मुस्लिम स्कुल होते हुए लल्लापूरा स्थित फ़ातमान पहुंचेगा। पूरे रास्ते उस्ताद फतेह अली खां व भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के पौत्र नासिर अब्बास, आफाक हैदर व  उनके साथी शहनाई पर आंसुओं का नज़राना पेश करेंगे l फ़ातमान से जुलूस पुनः वापस मुस्लिम स्कुल, लाहंगपूरा , रांगे की ताज़िया, औरंगाबाद, नई सड़क कपड़ा मंडी, कोदई चौकी सर्राफा बाजार  टेढ़ी नीम बांस फाटक कोतवालपूरा, कुंजीगर टोला, चौक, दालमंडी, चाहमामा होते हुए इमामबाड़े में समाप्त होगा l

अंर्दली बाजार में दुलदुल, अलम का जुलूस 

सैय्यद जियारत हुसैन के अंर्दली बाजार तार गली स्थित आवास से 8 वीं मोहर्रम  गुरुवार को दुलदुल अंलम, ताबूत का  जुलूस 27 जुलाई  को रात्रि 9 बजे  उठेगा। जुलूस अपने कदीमी (पुराने) रास्ते से होकर उल्फत बीबी हाता स्थित स्व.मास्टर जहीर साहब के  इमामबाङा पर  समाप्त होगा। जुलूस में अंजुमन  इमामिया नौहा व मातम करेंगी। यह जानकारी इरशाद हुसैन "शद्दू"  ने दी है।

नाना के दीन को हुसैन ने बचा लिया 

काली महाल के जेपी टावर में सलमान हैदर के अजाखाने में मजलिस हुई तो दूसरी ओर मोहतरमा नुजहत फातिमा ने शेख सलीम फाटक में मजलिस को खिताब किया। उन्होंने कहा कि इमाम हसन के बेटे व इमाम हुसैन के भतीजे जनाब-ए-कासिम महज 13 साल की उम्र में शहीद हो गए। कर्बला वालों ने हक़ और दीन के लिए अपनी शहादत देकर नाना के दीन इसलाम को बचा लिया। 

आज इमामबाड़े पहुंचेगा दुलदुल 

 छठी मोहर्रम यानी मंगलवार को अंजुमन जव्वादिया के संयोजन में कच्ची सराय इमामबाड़ा से निकला दुलदुल का कदीमी जुलूस बीती रात दरगाहे फातमान पहुंचा। वहां से सुबह फजर की नमाज के बाद फिर जुलूस जैतपुरा, बड़ी बाजार, नक्कीघाट होते हुए रात करीब 9 लौट सरैया पहुंचा। इस दौरान अंजुमनें नौहा मातम करती चल रही थी। आज गुरवार को वापस कच्चीसराय पहुंच कर जुलूस सम्पन्न होगा।

उधर लोहता में सुन्नी लोगों ने बुधवार कि शाम अलग-अलग मुहल्ले से अलम सद्दा का जुलूस निकाला। जुलूस विभिन्न मार्गो से होते हुए लोहता चौमुहानी पहुंचा। जुलूस में फन-ए-सिपाहगिरी का मुजाहिरा करते हुए अखाड़े भी शामिल थे। जुलूस को चौमहानी कुछ देर रुकने के हरपालपुर गांव ठंडा किया गया। 

मंगलवार, 25 जुलाई 2023

Bunkar कारोबार मंदी से जूझ रहा: इदरीस अंसारी

बुनकर सरदार इदरीस अंसारी का हुआ स्वागत 


Varanasi (dil India live). शाह वेलफेयर सोसाइटी के प्रदेश उपाध्यक्ष मास्टर अज़ीज़ुल इस्लाम के औरंगाबाद आवास पर बुनकर बिरादराना तंज़ीम बारहवें के नए सरदार इदरीस अन्सारी का इस्तकबाल किया गया. इस मौके मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए सरदार इदरीस अन्सारी ने कहा कि जिस उम्मीद के साथ लोगों ने मुझे जिम्मेदारी दी है और ऐसे समय में मिली है कि पावरलूम बुनकरों के उपर,मानो संकट के पहाड़ टूट पड़ा है कारोबार पूरी तरह मंदी से जूझ रहा है महंगाई चरम सीमा पार कर चुकी है. सरकार द्वारा नए शासनादेश जारी कर पावरलूम बुनकरों कि कमर तोड़ दिया है. ऐसे संकट में बुनकर समाज को मुझसे जो उम्मीद है उसे पूरी करने के लिए संघर्ष, करने से पीछे नहीं हटूंगा. जिस तरह से बुनकर समाज ने मुझ पर भरोसा किया है उसी तरह से मुझे भी अपने बुनकर भाइयों पर भरोसा है, जब उनकी जरूरत पड़ेगी तो वह भी मेरे साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर मेरा साथ देने को तैयार रहेंगे.

इस मौके पर मौजूद लोगों में मुख्य रूप से अज़ीज़ुल इस्लाम शाह शमशेर शाह निजामुद्दीन शाह सलीम शाह गुलजार अहमद मुस्तकीम अन्सारी कमरुद्दीन अंसारी मकबूल अहमद जैनुद्दीन अंसारी मुम्ताज़ अहमद अख्तर खान आदि लोग मौजूद थे

6 moharram को निकला ‘दुलदुल’ का जुलूस

कच्चीसराय का यह जुलूस 40 घंटे तक चलेगा लगातार 

  • जुलूस कि जियारत को उमड़ रहे अकीदतमंद 



Varanasi (dil India live)। विश्व प्रसिद्द 40 घंटे तक लगातार चलने वाला ‘दुलदुल’ का जुलूस कच्ची सराय (दालमंडी) इमामबाड़े से उठाया गया। मुतवल्ली सैयद इकबाल हुसैन एडवोकेट के जेरे इंतेजाम निकाले गए इस जुलूस में हाथी, घोड़ा, ऊंट के साथ कई मशहूर बैंड भी मौजूद रहता था जो मातमी धुन बजाते हुए चल रहा था। यह जुलूस कच्चीसराय से उठकर नई सडक, काली महाल, माताकुंड, पितरकुंडा होकर लल्लापुरा स्थित दरगाह फातमान जाएगा। उसके बाद वापस आकर चौक होता हुआ मुकीमगंज, प्रह्लादघाट, कोयला बाजार, चौहट्टा होते हुए लाट सरैया जाता है और फिर वहां से 8 मोहर्रम की सुबह वापस आकर कच्ची सराय के इमामबाड़े में ही समाप्त होगा। यह जुलूस 6 से 8 मोहर्रम तक लगातार चलता ही रहता है। जुलूस में अंजुमन जववादिया बनारस ने नौहाख्वानी व मातम का नजराना पेश किया।

Teliabagh church 167 वर्ष पहले आज ही हुआ था स्थापित






Varanasi (dil India live). सीएनआई चर्च तेलियाबाग का 167 वां तीन दिवसीय स्थापना दिवस समारोहपूर्वक मनाया गया। आयोजन का आगाज़ बाइबिल पाठ से हुआ। पहले दिन मध्यप्रदेश कटनी से आए मशहूर भक्ति सिंगर पास्टर जय मोसेस ने संगीतमय आराधना करायी। उन्होंने कई मसीही गीतों से लोगों को प्रभु कि भक्ति में लीन कर दिया। 3 दिनों तक चले चर्च के स्थापना दिवस पर चर्च कमेटी के सचिव विशाल न्यूक ने बताया कि 25 जुलाई 1856 को इस चर्च की स्थापना कि गई। तभी से यह आराधना के लिए खुला हुआ है। यह चर्च लंदन मिशनरी सोसायटी की सेवा का परिणाम है।

तेलियाबाग चर्च का इतिहास 

सीएनआई चर्च तेलियाबाग अपने भीतर उस दौर कि यादें समेटे हुए है। यूं तो चर्च का वर्तमान भवन 25.07.1856 से आराधना के लिए शुरू किया गया था मगर चर्च कि बुनियाद का पत्थर तकरीबन तीन दशक पूर्व ही पड़ गया था। कमेटी के सचिव विशाल ल्यूक ने दिल इंडिया लाइव के संपादक अमन से चर्च कि यादें साझा की। विशाल कि माने तो यह चर्च लंदन मिशनरी सोसाइटी की सेवा का परिणाम है, जिनके प्रथम मिशनरी के रूप में रेव्ह० मैथ्यू थॉमसन एडम अगस्त 1820 में बनारस आये, किन्तु यह मात्र एक-डेढ़ वर्ष ही बनारस में रहे। 1826 में रेव्ह० जेम्स राबर्टसन के आगमन के बाद बनारस में लंदन मिशन सोसाइटी का काम आरम्भ हुआ। जिसमें रेव्ह विलियम बायर्स 1832 के आरम्भ में जुड़े, किन्तु 15 माह उपरान्त ही रेव्ह० जेम्स राबर्टसन हैजे के कारण दूर हो गये और रेव्ह० विलियम बायर्स और उनकी पत्नी एलिजाबेथ द्वारा सेवा को आगे बढ़ाया गया। 1834 के आरम्भ में रेव्ह० जे० ऐ० शरमन और रेव्ह० राबर्ट सी० माथर इनसे जुड़ गये, 1838 में रेव्ह डब्लू०पी० लियोन भी इनसे जुड़ गये और सेवा का कार्य सक्रिय रूप से चलने लगा। 1837-38 का अकाल भारत में स्वतंत्रता के पूर्व युग की प्रमुख घटनाओं में एक है। इनके द्वारा इस अकाल से प्रभावित अनाथ बच्चों और उजड़ गये लोगों के लिए खाने रहने, चिकित्सा और शिक्षा की व्यवस्था की गयी। इन सेवा कार्यों में श्रीमती बायर्स की भूमिका अग्रणी रहीं जो महिलाओं और अनाथ बच्चियों के आवास भोजन आदि की व्यवस्था में लगी रहीं। इसी मध्य रेव्ह० डब्लू०पी० लियोन अस्वस्थता के कारण बनारस से चले गये। रेव्ह० व श्रीमती बायर्स सेवाकार्य में लगे रहे. 03.09.1857 को गम्भीर डायरिया के कारण श्रीमती बायर्स का निधन हो गया, जिनके बारे में एक शिलापट्ट यहां मौजूद है। 1839 में रेव्ह० जेम्स कैनेडी बनारस आये और अपनी पुस्तक "Life and work in Benares and Kumaon 1839-1877 के तीसरे अध्याय में तेलियाबाग चर्च की सेवा का संक्षिप्त वर्णन मिलता है। 1839 में ही रेव्ह० लियोन बनारस से चले गये। रेव्ह० बायर्स, रेव्ह० शरमन, रेव्ह0 केनेडी व अन्य इस सेवा को उस समय बढ़ाते रहे और इस छोटे चैपल ने 25 जुलाई 1856 को एक चर्च का रूप ले लिया, तत्समय रेव्ह० एम०ए० शैरिंग जो 1852 में बनारस आये, चर्च की सेवा कार्य में लगे थे और चर्च निर्माण में उपस्थित थे। यह एक विद्वान मिशनरी थे और एम०ए० एल०एल०बी० थे, इनके द्वारा कई पुस्तकें लिखी गयीं। जिनके बारे में एक शिलापट्ट यहां मौजूद है, अगस्त 1880 में इनकी मृत्यु हुई। रेव्ह जॉन मुलेट का द्वारा 1882-83 में इस चर्च में सेवा प्रदान किये। 24.11.1970 को 6 चर्चेज के संविलियन के बाद से यह चर्च, चर्च ऑफ नार्थ इण्डिया लखनऊ डायसिस के अधीन अपनी सेवा प्रदान कर रहा है। वर्तमान में शशि प्रकाश चर्च के पादरी के रूप में कार्यरत हैं। इससे पहले पादरी आदित्य कुमार, पादरी अखिलेश माथुर, पादरी एम.ए. दान भी यहा बतौर पादरी अपनी सेवाएं दे चुके हैं।

दिखा उल्लास और उत्सव 

चर्च स्थापना के 167 वर्ष पर मसीही समाज ने बढ़चढ़ कर भागीदारी की और तीन दिनों तक उल्लास और उत्सव मनाया। इस दौरान यहां आराधना व स्तुति गीत प्रस्तुत किये गये। मुख्य वक्ता जय मोसेस द्वारा खूबसूरत गीतों से समां बांध दिया और यीशु मसीह के शान्ति प्रेम व भाईचारे के संदेश को प्रसारित किया। कार्यक्रम का संचालन सचिव विशाल ल्यूक द्वारा किया गया, कार्यक्रम में विजय दयाल, पादरी संजय दान, कुशल प्रकाश, पृथ्वीराज सिंह, लाजर लाल, निर्मय स्वरूप, सुदेश प्रकाश, श्वेता पाठक, संगीता ल्यूक, एकता रोजारियो, कंचन ल्यूक, अनुराग, खुशी, श्रेया, विरल, अभिषेक, सनी, रवि, सना, शालोम, नेहा डेविड ने अपना सहयोग प्रदान किया।

Post office ने जनजातीय उत्पाद 'कत्था' पर जारी किया विशेष आवरण

जनजातीय उत्पादों के विशेष आवरण से देश-दुनिया में होगी कत्था कि ब्रांडिंग 



Varanasi (dil India live). आजादी का अमृत महोत्सव 2.0 के तत्वावधान में भारतीय डाक विभाग द्वारा पूरे देश में जनजातीय उत्पादों पर 75 विशेष आवरण जारी किये जा रहे हैं। इसी क्रम में वाराणसी परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने वाराणसी के प्रगतिशील किसान पद्मश्री श्री चंद्रशेखर सिंह और प्रवर डाक अधीक्षक राजन राव संग जनजातीय उत्पाद 'कत्था' पर विशेष आवरण व विरूपण का विमोचन प्रधान डाकघर, वाराणसी में आयोजित एक कार्यक्रम में किया। इस विशेष आवरण पर अंतर्राष्ट्रीय श्री अन्न वर्ष पर जारी डाक टिकट लगाकर इसका विरूपण किया गया। 

पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने विशेष आवरण जारी करते हुए कहा कि विभिन्न जनजातीय क्षेत्रों के आदिवासी अपने हस्तशिल्प और जैविक व  प्राकृतिक उत्पादों के माध्यम से न सिर्फ विरासतों को सहेज रहे हैं बल्कि कृषि अर्थव्यवस्था की अभिवृद्धि में भी अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। कत्था खरवार जनजाति का उत्पाद है। इस जनजाति ने सबसे पहले इसके अर्क को अपने व्यवसाय के रूप में एकत्र करना शुरू किया था। लाल कत्थे का इस्तेमाल पान में तो सफ़ेद कत्थे का इस्तेमाल औषधीय रूप में किया जाता है। मनोदैहिक और चिकित्सीय गुणों के कारण प्राचीनकाल से ही भारत में कत्थे का प्रयोग किया जाता है।


पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि डाक टिकट और विशेष आवरण अतीत को वर्तमान से जोड़ते हैं। एक जिला-एक उत्पाद, जीआई उत्पादों से लेकर जनजातीय उत्पादों तक पर जारी विशेष आवरण देश-दुनिया में इनकी ब्रांडिंग कर प्रचार-प्रसार बढ़ाते हैं और समावेशी विकास के तहत 'वोकल फॉर लोकल' एवं 'आत्मनिर्भर भारत' की संकल्पना को मूर्त रूप देते हैं। फिलेटली को हॉबी के रूप में अपनाकर युवा वर्ग भी डाक टिकटों और विशेष आवरणों के माध्यम से तमाम जानकारियां प्राप्त कर ज्ञान में रचनात्मक अभिवृद्धि कर सकेंगे।विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रगतिशील किसान पद्मश्री श्री चंद्रशेखर सिंह ने कहा कि डाक विभाग अपने विशाल और विश्वसनीय नेटवर्क के माध्यम से समाज के हर वर्ग तक पहुँचकर उन्हें सरकारी योजनाओं से जोड़ रहा है। कृषि से लेकर जनजातीय समाज से जुड़े उत्पादों, विरासतों, विभूतियों और विभिन्न पहलुओं पर डाक टिकट और विशेष आवरण जारी कर उन्हें नई पहचान दे रहा है। प्रवर डाक अधीक्षक राजन राव ने बताया कि उक्त विशेष आवरण मय विरूपण 25 रुपए में फिलेटलिक ब्यूरो, वाराणसी प्रधान डाकघर में उपलब्ध होगा। 

इस अवसर पर प्रवर डाक अधीक्षक राजन, डाक अधीक्षक विनय कुमार, सीनियर पोस्टमास्टर एसपी राय, सहायक अधीक्षक अजय कुमार, दिलीप सिंह यादव, आइपीपीबी मैनेजर सुबलेश सिंह, डाक निरीक्षक सर्वेश सिंह, श्रीकांत पाल, दिलीप पांडेय, श्रीप्रकाश गुप्ता, दीपमणि, जगदीश सडेजा, सुशांत सिंह सहित तमाम अधिकारी, कर्मचारी, फ़िलेटलिस्ट इत्यादि उपस्थित रहे।

सोमवार, 24 जुलाई 2023

Moharram 5: छत्तातले से निकला कदीमी जुलूस, उमड़ा जनसैलाब

...जब नहर पर आदा ने अलमदार को मारा




Varanasi (dil India live)। वक़्फ मस्जिद व इमामबाड़ा मौलाना मीर इमाम अली व मेहंदी बेगम गोविंदपूरा छत्तातले से कदीमी पांचवी मोहर्रम का जुलूस अपनी पुरानी परंपराओं के अनुसार मुतवल्ली सैयद मुनाज़िर हुसैन 'मंजू' के ज़ेरे एहतमाम उठाl जुलूस उठने से पूर्व मजलिस को खिताब करते हुए मौलाना ने कर्बला के शहीदों के मसायब बयान किए। जुलूस उठने पर नजाकत अली खां व उनके साथियों ने सवारी शुरू की-जब नहर पर आदा ने अलमदार को मारा… l जुलूस गोविंदपूरा, राजा दरवाजा, नारियल बाजार, चौक होते हुए दालमंडी स्थित हकीम काजिम के अज़ाख़ाने पर पहुंचा जहां से अंजुमन हैदरी चौक बनारस ने नौहाख्वानी शुरू कि- मुझको जन्नत ये अज़ाख़ाने लगे… l जिसमें वफा बुतुराबी, शराफत हुसैन, लियाकत अली खां, साहब ज़ैदी, शफाअत हुसैन शोफी ने नौहाख्वानी कीl दर्द भरे नौहों के बो सुनकर तमाम लोगों ने मातम का नजराना पेश किया। जुलूस दालमंडी, खजुर वाली  मस्जिद, नई सड़क, फाटक शेख सलीम, काली महल, पितरकुंड, मुस्लिम स्कुल होते हुए लल्लापूरा स्थित दरगाहे फ़ातमान पहुंचाl पूरे रास्ते उस्ताद फतेह अली खां व उनके साथियों ने शहनाई पर आंसुओं का नज़राना पेश किया l फ़ातमान से जुलूस पुनः वापस मुस्लिम स्कुल, लाहंगपूरा, रांगे की ताज़िया, औरंगाबाद, नई सड़क कपड़ा मंडी, दालमंडी नया चौक होते हुए अजाखाने में आकर देर रात समाप्त हुआ। इससे पहले चार मोहर्रम को ताजिये का जुलूस शिवाला में सै. आलीम हुसैन रिजवी के अजाखाने से गौरीगंज स्थित मशहूर पत्रकार काजिम रिजवी के इमामबाड़े पर जाकर समाप्त हुआ। वहीं चार मोहर्रम को ही चौहट्टालाल खां में इम्तेयाज हुसैन के मकान से 2 बजे दिन में जुलूस उठकर इमामबाड़े गया। चौथी मुहर्रम को ही तीसरा जुलूस अलम व दुलदुल का चौहट्टा लाल खां इमामबाड़ा से रात 8 बजे उठकर अपने कदीमी रास्तों से होता हुआ सदर इमामबाड़ा पहुंचकर समाप्त हुआ। जुलूस में अजादार दर्द भरे नौहों पर मातम का नजराना पेश करते हुए चल रहे थे।

मंदिर नहीं अजाखाना ''कुम्हार'' का है दिल


Varanasi (dil India live). भीतर से देखने में पूरी तरह मंदिर, मगर है अजाखाना (इमामबाड़ा) कहते हैं ये उस नन्हें कुम्हार का दिल है जिससे इस अजाखाने के निर्माण कि कहानी जुड़ी हुई है। बात हो रही है हरिश्चंद्र घाट स्थित एक ऐसे अजाखाने की जिसकी बुनियाद की कहानी एक हिंदू कुम्हार की अकीदत से जुड़ी है। कुम्हार के अटूट विश्वास के कारण ही इस अजाखाने का नाम कुम्हार का अजाखाना पड़ा। इसमें एक ओर जहां शिया मुस्लिम मजलिस करते हैं तो वहीं हिंदू हाथ जोड़कर अकीदत से फूल चढ़ाते हैं। शहर ही नहीं बल्कि दुनिया का लगभग हर अजाखाना गुंबदनुमा होता है, जो मस्जिद या मकबरे की सूरत में नजर आता है। वहीं हरिश्चंद्र घाट के कुम्हार का अजाखाना मंदिर की तरह दिखता है। मुहर्रम आते ही यहां के हिंदू इसकी साफ-सफाई और रंग-रोगन का काम कराते हैं।

तवारीखी अजाखाने कि कहानी 

हरिश्चंद्र घाट स्थित कुम्हार का अजाखाना लगभग डेढ़ सौ वर्ष से भी पुराना है। इसकी देखरेख एक हिंदू कुम्हार परिवार कर रहा है, तो वहीं सरपरस्ती शिया वर्ग के हाथ है। अजाखाना के मुतवल्ली सैयद आलिम हुसैन रिजवी बताते हैं कि डेढ़ सौ वर्ष पहले इमामबाड़े के पास ही एक हिंदू कुम्हार परिवार रहता था। कुम्हार का एक बेटा था, जो हर वर्ष मुहर्रम पर मिट्टी की ताजिया बनाया करता था। पिता ने पहले तो बच्चे को ताजिया बनाने से मना किया। जब वह नहीं माना तो उसकी खूब पिटाई की। पिटाई के बाद बच्चा इतना बीमार हुआ कि वैद्य, हकीम भी काम न आए। बेटे को लेकर पिता की चिंता बढ़ने लगी। मंदिर, मस्जिद, मजार पर उसने हाजिरी लगाई, लेकिन कोई फायदा न हुआ। फिर एक दिन कुम्हार ने सपने में देखा कि एक बुजुर्ग उसके सामने खड़े हैं। वह कह रहे हैं कि तेरा बेटा मुझसे अकीदत रखता है। तुमने उसे ताजिया बनाने से रोक दिया, तो वह बीमार पड़ गया है। अगर तुम्हें उससे मोहब्बत नहीं है तो मैं उसे अपने पास बुला लेता हूं। कुम्हार ने स्वप्न में ही अपनी गलती मानते हुए कहा कि बस एक बार आप मुझे माफ करके मेरे बच्चे को ठीक कर दें। इस पर बुजुर्ग ने कहा कि नींद से उठकर देख, तेरा बच्चा खेल रहा है। आलिम हुसैन अपने बुजुर्गो की जुबानी बातों को याद करते हुए बताते हैं कि नींद से जगकर कुम्हार ने देखा कि जो बच्चा गंभीर रूप से बीमार था, वह न केवल पूरी तरह स्वस्थ था, बल्कि बच्चों के साथ खेल रहा था।

हिंदू कुम्हार की आस्था के कारण ही अजाखाने के निर्माण के समय इसको मंदिर जैसा रूप दिया गया और नाम भी कुम्हार का अजाखाना रखा गया। उसी समय से आस-पास के हिंदू भाइयों की आस्था अजाखाने से जुड़ गई। मुहर्रम में जब भी अजाखाना खुलता है, वहां दोनों मजहब के लोग जुटते हैं। इसके अलावा 9 वीं व 10 वीं मुहर्रम का विश्व प्रसिद्ध दूल्हे का जुलूस यहा सात बार सलामी देता है। आलिम हुसैन बताते हैं कि उन दिनों अवध के नवाब शहादत हुसैन अपने वालिद से नाराज होकर बनारस आ गए थे। उन्हीं की वंशज बाराती बेगम ने कुम्हार के बेटे का इमाम हुसैन के प्रति लगाव देख यह अजाखाना बनवाया। इसकी देख रेख युद्ध-कौशल की शिक्षा देने वाले सैयद मीर हसन के परिवार को सौंपी गई। सैयद आलिम हुसैन और उनका कुनबा उन्हीं का वंशज हैं।

ताज़िया, अलम व दुलदुल की ज़ियारत को उमड़ा हुज़ूम 

Varanasi (dil India live). ४ मुहर्रम को गमे imam Hussain के सिलसिले से चौहाट्टा लाल खां और शिवाले से ताज़िया अलम दुलदुल आदि के जुलूस उठाये गए। इस दौरान शिवाला में सैयद आलिम हुसैन रिज़वी के अजाखाने से ताजिये का जुलूस उठाया गया जो अन्जुमने गुलज़ारिया अब्बासिया के ज़ेरे इंतेज़ाम अपने क़दीमी रास्तो से होता हुआ गौरीगंज में मशहूर वरिष्ठ पत्रकार काजिम रिज़वी के आजाखने पर जाकर समाप्त हुआ। रास्ते मे ज़ियारत करने वालों की भीड़ मौजूद थी। चौहट्टा लाल खां  में दो जुलूस उठाये गए। दिन मे ताबूत का जुलूस इम्तियाज़ हुसैनके इमामबाड़े से अंजुमन आबिदिया ने उठाया, वहीं रात का जुलूस चौहट्टे के इमामबाड़े से अंजुमन आबिदिया के ज़ेरे इंतेज़ाम उठाया गया। जुलूस नोहा मातम करते हुऐ सदर इमामबाड़े पहुंचा। कज़्ज़ाक़पुरा से लेकर जलालीपुरा तिराहा से सदर इमामबाड़े जाने में अज़ादारों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। गड्ढों और कीचड़ से भरी सड़को पर चलते हुऐ जुलूस वालों को इस कदर परेशानी हुईं कि तमाम अजादारों ने कहा कि इस मार्ग को दुरुस्त करने कि मांग लम्बे समय से कि जा रही थी मगर प्रशासन ने समय रहते इसे ठीक नहीं किया।

हज़रत अली समिति के सचिव हाजी फरमान हैदर ने बताया की इस रास्ते को ऐसा बनाया जाए कि कम से कम चलने जैसा हो जाए। क्यों कि ३१ जुलाई तक दर्जनों जुलूस में लाखों लोग जिसमें महिलाएं और बच्चे भी होंगे। इसी  रास्ते से गुज़रेंगे। प्रशासन को इसका संज्ञान लेना चाहिए । ५ वी मुहर्रम को भी आधा दर्जन जुलूस विभिन्न इलाकों में आज उठाये जायेंगे।

Hazrat Imam Zainul abedin इस्लाम की पहचान, इबादतों की शान

हज़रत जैनुल आबेदीन की जयंती पर सजी महफिलें, गूंजे कलाम Varanasi (dil India live). शाहीदाने कर्बला इमाम हुसैन के बेटे, इबादतों की शान चौथे हज...