Varanasi (dil India live). भीतर से देखने में पूरी तरह मंदिर, मगर है अजाखाना (इमामबाड़ा) कहते हैं ये उस नन्हें कुम्हार का दिल है जिससे इस अजाखाने के निर्माण कि कहानी जुड़ी हुई है। बात हो रही है हरिश्चंद्र घाट स्थित एक ऐसे अजाखाने की जिसकी बुनियाद की कहानी एक हिंदू कुम्हार की अकीदत से जुड़ी है। कुम्हार के अटूट विश्वास के कारण ही इस अजाखाने का नाम कुम्हार का अजाखाना पड़ा। इसमें एक ओर जहां शिया मुस्लिम मजलिस करते हैं तो वहीं हिंदू हाथ जोड़कर अकीदत से फूल चढ़ाते हैं। शहर ही नहीं बल्कि दुनिया का लगभग हर अजाखाना गुंबदनुमा होता है, जो मस्जिद या मकबरे की सूरत में नजर आता है। वहीं हरिश्चंद्र घाट के कुम्हार का अजाखाना मंदिर की तरह दिखता है। मुहर्रम आते ही यहां के हिंदू इसकी साफ-सफाई और रंग-रोगन का काम कराते हैं।
तवारीखी अजाखाने कि कहानी
हरिश्चंद्र घाट स्थित कुम्हार का अजाखाना लगभग डेढ़ सौ वर्ष से भी पुराना है। इसकी देखरेख एक हिंदू कुम्हार परिवार कर रहा है, तो वहीं सरपरस्ती शिया वर्ग के हाथ है। अजाखाना के मुतवल्ली सैयद आलिम हुसैन रिजवी बताते हैं कि डेढ़ सौ वर्ष पहले इमामबाड़े के पास ही एक हिंदू कुम्हार परिवार रहता था। कुम्हार का एक बेटा था, जो हर वर्ष मुहर्रम पर मिट्टी की ताजिया बनाया करता था। पिता ने पहले तो बच्चे को ताजिया बनाने से मना किया। जब वह नहीं माना तो उसकी खूब पिटाई की। पिटाई के बाद बच्चा इतना बीमार हुआ कि वैद्य, हकीम भी काम न आए। बेटे को लेकर पिता की चिंता बढ़ने लगी। मंदिर, मस्जिद, मजार पर उसने हाजिरी लगाई, लेकिन कोई फायदा न हुआ। फिर एक दिन कुम्हार ने सपने में देखा कि एक बुजुर्ग उसके सामने खड़े हैं। वह कह रहे हैं कि तेरा बेटा मुझसे अकीदत रखता है। तुमने उसे ताजिया बनाने से रोक दिया, तो वह बीमार पड़ गया है। अगर तुम्हें उससे मोहब्बत नहीं है तो मैं उसे अपने पास बुला लेता हूं। कुम्हार ने स्वप्न में ही अपनी गलती मानते हुए कहा कि बस एक बार आप मुझे माफ करके मेरे बच्चे को ठीक कर दें। इस पर बुजुर्ग ने कहा कि नींद से उठकर देख, तेरा बच्चा खेल रहा है। आलिम हुसैन अपने बुजुर्गो की जुबानी बातों को याद करते हुए बताते हैं कि नींद से जगकर कुम्हार ने देखा कि जो बच्चा गंभीर रूप से बीमार था, वह न केवल पूरी तरह स्वस्थ था, बल्कि बच्चों के साथ खेल रहा था।
हिंदू कुम्हार की आस्था के कारण ही अजाखाने के निर्माण के समय इसको मंदिर जैसा रूप दिया गया और नाम भी कुम्हार का अजाखाना रखा गया। उसी समय से आस-पास के हिंदू भाइयों की आस्था अजाखाने से जुड़ गई। मुहर्रम में जब भी अजाखाना खुलता है, वहां दोनों मजहब के लोग जुटते हैं। इसके अलावा 9 वीं व 10 वीं मुहर्रम का विश्व प्रसिद्ध दूल्हे का जुलूस यहा सात बार सलामी देता है। आलिम हुसैन बताते हैं कि उन दिनों अवध के नवाब शहादत हुसैन अपने वालिद से नाराज होकर बनारस आ गए थे। उन्हीं की वंशज बाराती बेगम ने कुम्हार के बेटे का इमाम हुसैन के प्रति लगाव देख यह अजाखाना बनवाया। इसकी देख रेख युद्ध-कौशल की शिक्षा देने वाले सैयद मीर हसन के परिवार को सौंपी गई। सैयद आलिम हुसैन और उनका कुनबा उन्हीं का वंशज हैं।
ताज़िया, अलम व दुलदुल की ज़ियारत को उमड़ा हुज़ूम
Varanasi (dil India live). ४ मुहर्रम को गमे imam Hussain के सिलसिले से चौहाट्टा लाल खां और शिवाले से ताज़िया अलम दुलदुल आदि के जुलूस उठाये गए। इस दौरान शिवाला में सैयद आलिम हुसैन रिज़वी के अजाखाने से ताजिये का जुलूस उठाया गया जो अन्जुमने गुलज़ारिया अब्बासिया के ज़ेरे इंतेज़ाम अपने क़दीमी रास्तो से होता हुआ गौरीगंज में मशहूर वरिष्ठ पत्रकार काजिम रिज़वी के आजाखने पर जाकर समाप्त हुआ। रास्ते मे ज़ियारत करने वालों की भीड़ मौजूद थी। चौहट्टा लाल खां में दो जुलूस उठाये गए। दिन मे ताबूत का जुलूस इम्तियाज़ हुसैनके इमामबाड़े से अंजुमन आबिदिया ने उठाया, वहीं रात का जुलूस चौहट्टे के इमामबाड़े से अंजुमन आबिदिया के ज़ेरे इंतेज़ाम उठाया गया। जुलूस नोहा मातम करते हुऐ सदर इमामबाड़े पहुंचा। कज़्ज़ाक़पुरा से लेकर जलालीपुरा तिराहा से सदर इमामबाड़े जाने में अज़ादारों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। गड्ढों और कीचड़ से भरी सड़को पर चलते हुऐ जुलूस वालों को इस कदर परेशानी हुईं कि तमाम अजादारों ने कहा कि इस मार्ग को दुरुस्त करने कि मांग लम्बे समय से कि जा रही थी मगर प्रशासन ने समय रहते इसे ठीक नहीं किया।
हज़रत अली समिति के सचिव हाजी फरमान हैदर ने बताया की इस रास्ते को ऐसा बनाया जाए कि कम से कम चलने जैसा हो जाए। क्यों कि ३१ जुलाई तक दर्जनों जुलूस में लाखों लोग जिसमें महिलाएं और बच्चे भी होंगे। इसी रास्ते से गुज़रेंगे। प्रशासन को इसका संज्ञान लेना चाहिए । ५ वी मुहर्रम को भी आधा दर्जन जुलूस विभिन्न इलाकों में आज उठाये जायेंगे।
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