इमाम हुसैन समेत कर्बला के 72 शहीदों कि 'याद' है मोहर्रमVaranasi (dil India live). इमाम हुसैन समेत कर्बला के 72 शहीदों की अनोखी मिसाल मोहर्रम है। कर्बला कि जंग किसी तख्तोताज के लिए नहीं बल्कि हक, इंसानियत और इस्लाम को बचाने के लिए हुई थी। नाना के दीन को बचाने के लिए इमाम हसन इमाम हुसैन ने अपनी शहादत दे दी मगर दीने इसलाम को बचा लिया।
उक्त बाते मौला की मदहाखानी करने वाले सैयद नबील हैदर ने मोहर्रम के सिलसिले से कही। उन्होंने कहा की मोहर्रम इस्लाम धर्म में आस्था रखने वालों का गम का महीना है। इस माह की बहुत विशेषता है, इसी माह मुसलमानों के पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब ने मक्का के पवित्र नगर मदीना में हिजरत किया था।
कर्बला सन 60 हिजरी को यजीद इस्लाम धर्म का खलीफा बन बैठा, वह अपने वर्चस्व को पूरे अरब में फैलाना चाहता था जिसके लिए उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती इमाम हुसैन थे जो किसी भी हालत में यजीद के आगे झुकने को तैयार नहीं थे। जब यजीद के अत्याचार बढ़ने लगे तो इमाम हुसैन अपने परिवार और साथियों के साथ मदीना से इराक के शहर कूफा जाने लगे, रास्ते में ही यजीद की फौज ने हुसैन के काफ़िले को रोक लिया।
यही मोहर्रम का दिन था इमाम हुसैन का काफिला कर्बला की तपती रेगिस्तान पर रुका। हुसैन के काफिले पर पानी की रोक लगा दी थी यजीद ने, इसके बाद भी हुसैन नहीं रुके। यजीद चाहता था कि हुसैन झुके लेकिन हुसैन झुके नहीं और जंग का ऐलान हो गया।
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