चांद के दीदार संग शुरू हुआ इस्लामिक नया साल
-नौहों मातम से गूंजे अजाखाने
Varanasi (dil India live)। शिया मुस्लिमों के लिए बुधवार का चांद गम और मातम का पैग़ाम लेकर आया है। मुस्लिम कैलेंडर का पहला महीना मुहर्रम बुधवार कि शाम चांद के दीदार के साथ शुरू हो गया। इसी के साथ इस्लामिक नये साल का आगाज़ भी हो गया।जुमेरात को मुहर्रम कि पहली तारीख होगी। पहली मोहर्रम का जुलूस सदर इमामबाड़ा लाट सरैया में निकाला जायेगा जिसमें अंजुमनों द्वारा नौहाखवानी व मातम किया जाएगा।
इससे पहले बुधवार की शाम चांद के दीदार के साथ ही सुन्नी मस्जिदों में जहां दस दिनी जलसा व तकरीर का आगाज़ हुआ, वहीं शिया मुस्लिमों के घर अजाखाने में बदले नज़र आए। शिया ख़्वातीन ने हाथों की चूड़ियां तोड़ दी, सारे साजों-श्रृंगार मिटा दिए। इस दौरान मर्द व ख़्वातीन ने काला लिवास धारण कर लिया। हर आंख हजरत इमाम हुसैन की याद में डूब गई। चांद निकलते ही अजाखानों से दर्द भरे नौहों के बोल फिज़ा में बुलंद हो उठे, चांद निकला है माहे अजा का...व, जैदी दरे हुसैन पर झुकती है कायनात...। इन नौहों के बोल पर देर रात तक मातम का नजराना पेश हो रहा था।
क्यों मनाया जाता है मोहर्रम
सन् 61 हिजरी 10 मोहर्रम को इराक़ के कर्बला में नबी के नवासे इमाम हुसैन समेत 71 हुसैनियों की शहादत हुई थी। उस अजीम शहादत कि याद में शहर बनारस के गौरीगंज, शिवाला, दालमंडी, मदनपुरा, बजरडीहा, दोषीपुरा, चौहट्टा, मुकीमगंज, प्रहलाद घाट, सरैया शहर और आसपास का हर आंगन मातम में डूब गया।
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