Varanasi (dil India live). कुर्बानी, त्याग व बलिदान का global fastival ईद-उल-अजहा भाईचारे व सौहार्द के बीच देश-दुनिया में अकीदत के साथ संपन्न हो गया। ईदगाहों व मस्जिदों में ईद-उल-अजहा की ख़ास नमाज के साथ शुरू हुआ तीन दिनी पर्व बकरीद एक दूसरे को गले मिला कर, कुर्बानी के लिए हर स्तर पर तैयार रहने कि हिदायत के साथ अगले साल तक के लिए सम्पन्न हो गया। इस दौरान तीन दिन में छोटे बड़े लाखों जानवर अल्लाह कि राह में कुर्बान किए गए। इसमें भेड़, बकरे, भैंस व दुमबा आदि जानवर शामिल था। मौलाना हाफिज शफी अहमद बताते हैं कि यह महीना बहुत ही मुबारक महीना है। असल में यह महीना हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की यादगार है। जिनकी पूरी जिन्दगी कुर्बानी में ही गुजरी। खुदा ने हजरत इब्राहिम से उनके बेटे की कुर्बानी मांगी। खुदा का हुक्म पाते ही हजरत इब्राहिम अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने को रवाना हुए। हजरत ने बेटे से कहा कि मैंने ख्वाब देखा है कि मुझे खुदा की राह में तुम्हारी कुर्बानी देनी है। बेटे ने कहा कि अगर खुदा की यही रजा है तो मैं तैयार हूं और आप मुझे सब्र करने वालों में सबसे आगे पाइयेगा। इस तरह खुदा ने हजरत इब्राहिम का इम्तहान लिया था और इस्माइल की जगह की दुंबा की कुर्बानी से खुदा ने हजरत इब्राहिम की कुर्बानी कबूल फरमाई। मो. आजम कहते हैं कि कुर्बानी इश्क व मुहब्बत की एक निशानी है जो इब्राहिम व इस्माइल की याद में मानाया जाता है। यह मोमीन का तकबा और अपने मौला को राजी करने का एक जज्बा है। अबुल कलाम कहते हैं कि बकरीद गरीबों की मदद का पैगाम देता है। कुर्बानी का गोश्त इसी लिये तीन हिस्सों में तकसीम किया जाता है। नियम है कि पहला हिस्सा अपना, दूसरा हिस्सा रिश्तेदारों व दोस्तों का और तीसरा हिस्सा गरीबों के लिये होता है। मो.जसीम का कहना है कि कुर्बानी का असल मायने ऐसे त्याग से है जो दूसरों के लिये किया गया हो। जानवर की कुर्बानी तो एक प्रतीक भर है।
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