रविवार, 16 जुलाई 2023

...अपनी नज़रों से पिलाओ तो कोई बात बने

एक शाम 'अदब' के नाम में पेश हुए कलाम




Varanasi (dil India live)। न्यू सेन्ट्रल पब्लिक स्कूल रामनगर कैम्पस में एक शाम अदब के नाम  मुशायरा एवं कवि सम्मलेन का आयोजन व्योवृद्ध शायर व कवि (सीबीएसई उत्तर प्रदेश जोन के पूर्व निदेशक) अनिल सिंह की अध्यक्षता में किया गया। मुख्य अतिथि डा. कमालुद्दीन थे। स्कूल के मैनेजर मुख़्तार अहमद ने गुलदस्ता पेश कर मेहमानों का खैरमखदम किया तो संचालन समर गाजीपुरी ने किया।

मुख्य अतिथि डा. कमालुद्दीन ने अपने व्याख्यान में कहा की डा. इशरत जहां की स्व. रचित कविताओं का संग्रह नादानियां की वो ग़ज़लें जो सामाजिक ताने बनें से बुनी गयी हैं चौंका देती हैं साथ ही  उनकी शायरी में घर आँगन के खुबसूरत घटनाओं के साथ-साथ  रूमानियत की भी मौजूदगी देखी जा सकती है। डा. इशरत जहां नें अपने ख्यालात का इज़हार करते हुए कहा की शायरी जिसने हर ज़माने के बुरे वक्तों में दुनिया की रहबरी व मानवता का नेतृत्व किया है अब वक़्त आ गया है कि एक बार फिर हम इस तरह की महफ़िलें आरास्ता कर के इस तबाह होती दुनिया में इंसानियत भाईचारगी और इल्मो अमल के चिराग रौशन करें। 

इस मौके पर चंदौली की प्रतिनिधि शायरा डा. इशरत जहां का नवीन कविताओं का संग्रह  ‘नादानियां’ का  विमोचन हुआ। इस मौके पर मुशायरे में डा. कमाल जौनपूरी ने कलाम पेश किया...अहले गुलशन के जख्मी बदन हो गये, अच्छे मौसम भी अब बदचलन हो गये तो, अहमद आज़मी ने सुनाया, दोस्ती के परदे में दुश्मनी भी देखी है, आस्तीन में खंज़र देर तक नहीं रहता...। वहीं ज़मज़म रामनगरी ने सुनाया, वो बेवफा है मगर उससे दिल लगाना है, नमक से ज़ख्म का रिश्ता बहुत पुराना है। आलम बनारसी का कलाम, शायद तुमको लज्जते गम का अब एहसास हुआ है जो हमसे किस्सा पूछ रहे हो जो फुरक़त के एक–एक पल का...। ऐसे ही शमीम गाज़ीपुरी ने सुनाया, सबके चेहरे की रौनक पलट आएगी, मुस्कुराने में क्या आपका जायेगा...,  डा. इशरत जहां का कलाम, दयारे गैर में कैसे तुझे सदा देते, तू मिल भी जाता तो आखिर तुझे गवां देते...भी पसंद किया गया। अजफर अली ने सुनाया, अदब से बात करो और एहतेराम करो, जो घर से निकलो तो माँ बाप को सलाम करो...। झरना मुखर्जी ने, ज़िन्दगी एक बहता पानी है, चार दिन की ये जिंदगानी है व समर गाज़ीपुरी ने सुनाया, यकीन बिछड़ने का खुद को दिला सका भी नहीं, निशानी अहदे वफ़ा की मिटा सका भी नहीं...पसंद किया गया। नेज़ाम बनारसी ने पेश किया, जामो मीना या सुराही की ज़रुरत क्या है, अपनी नज़रों से पिलाओ तो कोई बात बने...। इसके अतिरिक्त डा० नसीमा जहाँ और डा० सविता सौरभ ने अपनी गज़लें पेश की।

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