गुरुवार, 11 अगस्त 2022

Azadi ka Amrit mahotsav:निडर की निडरता से अंग्रेज भी थे कांपते

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉ. ब्रजमोहन सिंह निडर की कहानी


महेंद्र बहादुर सिंह
Varanasi (dil india live). आजादी के इस अमृत महोत्सव के राष्ट्रीय पर्व पर चंद्रशेखर आजाद के साथी, क्रांतिकारी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉक्टर बृज मोहन सिंह निडर का नाम काशी वासियों की ज़ुबां पर आना लाजमी है। भला इन्हें याद भी कोई क्यों न करे। दरअसल इनकी क्रांतिकारी गतिविधियों से तंग आकर हुकुमते बरतानिया ने इन्हें जिंदा या मुर्दा पकड़ने पर 1000 रूपये का इनाम जो रखा था। स्वर्गीय निडर काशी वासियों में अंग्रेजों के विरुद्ध चेतना जगाने के लिए रणभेरी की तर्ज पर खौलता हुआ खून, समाचार पत्र का संपादन करते रहे। इस पत्र के प्रकाशन का कार्य काशी के मणिकर्णिका घाट स्थित शिव मंदिर के तहखाने से होता था। निडर के नेतृत्व में खौलता हुआ खून पत्र को गंगा के किनारे मुख्य चौराहे पर चस्पा करने का काम किया जाता था। इस पत्र को पढ़ने के लिए काशीवासियों की अच्छी खासी भीड़ इकट्ठा होती थी। जो अंग्रेजों के विरुद्ध उनकी भुजाओं को फड़काने का काम करती थी। खौलता हुआ खून मैं उद्धृत कुछ पंक्तियां  निम्नवत है:- जब तक भुजाओं में है बल और जब तक है इस तन में दम, बिना सुराज लिए हरगिज खामोश नहीं बैठेंगे हम...।
हम शेर भी कसे गुलामी की जंजीर में झटके खाते हैं अफसोस न भारत माता की खातिर कुछ कर ना दिखाते हैं ।
निडर विशिष्ट स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने के साथ ही साथ एक अच्छे तांत्रिक, हठयोगी तथा मां काली के  उपासक थे। स्थानीय उदय प्रताप डिग्री कॉलेज मैं बतौर शारीरिक प्रशिक्षक के पद पर रहते हुए इन्होंने खुले मंच पर आंख से देखकर बेहोश करने, तत्कालीन प्रधानाचार्य स्वर्गीय डॉक्टर राजनाथ सिंह को नंगे पैर आग के अंगारे पर चलाने, आंख में पट्टी बांधकर शब्दभेदी बाण चलाने इत्यादि अनेक अभूतपूर्व क्रियाओं का सफल प्रदर्शन भी किया था। 
आज के इस भौतिकवादी युग में तांत्रिक क्रियाओं के माध्यम से शक्ति का साक्षात्कार किया जा सकता है, जो इनको बखूबी प्राप्त था। इतना ही नहीं 2 वर्ष पूर्व ही अपने मृत्यु की तारीख को भी इन्होंने बता रखा था। 31 दिसंबर सन 2003 में काशी का यह अभूतपूर्व सितारा सदा सदा के लिए ब्रह्मलीन हो गया।उनके पार्थिव शरीर को राजकीय सम्मान के साथ अश्रुपूर्ण वातावरण के साथ अंतिम रूप से विदाई दी गई। मैं पुत्र महेंद्र बहादुर सिंह हर साल हीरापुरा, जालपा देवी रोड पर उनके द्वारा स्थापित विद्या केंद्र के सभागार में उनकी जयंती व पुण्य तिथि मनाई जाती है। इस दौरान देश को आजाद कराने में उनके अभूतपूर्व योगदान पर चर्चा होती है। मैं सभी से यही कहूंगा कि हम लोग उनके बताए और दिखाएं हुए मार्ग पर चलें। यही उनके प्रति हम सबकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

Adhikar सेना करेंगी पार्टी का विस्तार

विजय गौतम के परिजनों से मिले अमिताभ, नूतन ठाकुर


Varanasi (dil india live).अधिकार सेना पार्टी के संयोजक अमिताभ ठाकुर और उनकी पत्नी डॉ नूतन ठाकुर आज वाराणसी आए.उन्होंने प्रातः 09.30 बजे  बीएचयू गेट, थाना लंका स्थित मालवीय जी की मूर्ती पर माल्यार्पण किया. इसके बाद उन्होंने राजेंद्र विहार कॉलोनी में अधिकार सेना की बैठक की, जिसमें पार्टी के कार्यकर्ताओं ने भाग लिया, जिसमें पार्टी के विस्तार और नगर निकाय चुनाव पर चार हुई।

वे थाना कपसेटी क्षेत्र के सुइलरा गाँव गए जहाँ पप्पू राम के 14 वर्षीय पुत्र विजय कुमार गौतम को गांव के दबंग लोगों ने आम और चार किलो चावल चोरी का आरोप लगाते हुए पिटाई की थी, जिससे उनकी मौत हो गयी।

गांव में मृतक की माँ तथा गांव वालों ने बताया कि जहां दबंगों ने उसे मार डाला वहीं इस मामले में पुलिस पूरी तरह लीपापोती कर रही है. पहले तो मृतक पक्ष को ही 151 में जेल भेजा गया, उसके बाद आज तक अभियुक्तों की गिरफ्तारी नहीं की गई है। उल्टे पुलिस पीड़ित पक्ष को ही धमका रही है। पीड़ित पक्ष ने कहा कि उन्हें लगातार दबंगों द्वारा धमकाया जा रहा है। 

अमिताभ ने मामले मे न्याय दिलाने की बात कही। उनसे साथ वाराणसी के वरुण उपाध्याय तथा मनीष श्रीवास्तव थे। प्रेस वार्ता में अमिताभ ठाकुर ने वाराणसी की ट्रैफ़िक व्यवस्था पर कड़ा प्रहर किया. उन्होंने कहा कि उन्होंने स्वयं देखा कि वाराणसी से कपसेठी के 30 किलोमीटर की दूरी तय करने में पौने दो घंटे लगे। उन्होंने कहा कि वाराणसी की ट्रैफ़िक की स्थिति पहले से भी खराब हो गई है। इसके बाद वे सड़क मार्ग से गाजीपुर के लिए प्रस्थान कर गए।

बुधवार, 10 अगस्त 2022

Muharram 11th: चुप का डंका बजाते हुए निकला लुटा हुआ काफिला

सलाम और कलाम पढ़ता फातमान पहुंचा काफिला

Varanasi (dil india live). ग्यारहवीं मोहर्रम पर बुधवार को दालमंडी से लुटे हुए काफिले का जुलूस पूरी अकीदत के साथ चुप का डंका बजाते हुए निकला। यह कदीमी जुलूस हकीम मोहम्मद काजिम के दालमंडी स्थित निवास से निकाला गया। इससे पूर्व उलेमा ने नूरानी तकरीर पेश की। तकरीर में जब उन्होंने लुटे हुए काफिले का मंजर बयान किया तो लोग जारोकतार रो पड़े। जुलूस का संयोजन अंजुमन हैदरी के सदस्य डा. मुज्तबा जाफरी ने किया।

नई सड़क चौराहे पर सैयद फरमान हैदर ने सैकड़ों की भीड़ में कलाम पेश किया ...अशरे को भी शब्बीर का जो गम नहीं करते, वो पैरवी-ए-सरवरे आलम नहीं करते, हिम्मत हो तो महशर में पयंबर से भी कहना, हम जिंदा-ए-जावेद का मातम नहीं करते। जुलूस नई सड़क से आगे बढ़ा। काफिले सलाम और कलाम पढ़ता हुआ दरगाहें फातमान पहुंचा।

दरअसल हज़रत इमाम हुसैन की शहादत के बाद यजीदियों ने काफिले लूट लिए थे। खेमे जला दिए गए थे। यही नहीं जो लोग बच गए थे उन्हें कैदी बना लिया गया था। इसी की याद में ग्यारहवीं मोहर्रम को निकलने वाले जुलूस को लुटे हुए काफिले का जुलूस कहते हैं।

ख्वातीन की हुई मजलिस

दुलदुल और अलम का जुलूस उठने के बाद हकीम मोहम्मद काजिम के इमामबाड़े में ही ख्वातीन की मजलिस हुई। यहां खिताब करते हुए नुजहत फातमा ने कहा कि ये मजलिसें जनाबे जैनब की यादगार हैं, इमाम हुसैन का पैगाम है, करबला के शहीदों की याद है और इंसानियत के लिए बहुत बड़ा तोहफा है। दुनिया की हर ख्वातीन को जनाबे जैनब से सीख लेकर जुल्म का सामना करना चाहिए।

शहीदों का तीजा कल

इमाम हुसैन और उनके 71 साथियों का गुरुवार को तीजा मनाया जाएगा। घरों में और इमाम चौक पर तीजे की फातिहा दिलाई जाएगी और मजलिसें भी होंगी। सभी इमाम चौक से अलम सद्दे का जुलूस उठेगा।

मंगलवार, 9 अगस्त 2022

Muharram 2022:खूबसूरत ताजियों की यहां करें जियारत

यौमे आशूरा पर शहर भर से एक एक से एक खूबसूरत ताजियों का जुलूस इमाम चौक से कर्बला की तरफ जाता दिखाई दिया। क्या कोई हिंदू क्या मुस्लिम ताजियों की जियारत के लिए सभी अकीदतमंद पलकें बिछाए नज़र आए। ताजिया कर्बला में जाकर जहां ठंडी हुई इसकी जियारत के लिए हुजुम सड़कों पर नज़र आया। कुल मिलाकर शांतिपूर्ण ढंग से दसवीं मोहर्रम का जुलूस सम्पन्न हो गया। इससे जिला व पुलिस प्रशासन ने भी राहत की सांस ली। यहां देखें शहर की प्रमुख ताजिया...












 

Raksha Bandhan2022:अमेरिका, ब्रिटेन, सिंगापुर तक डाकघरों से भेजी गई राखियाँ

राखी के धागों की अहमियत बरकरार

विदेशों में भी भाईयों के लिए  बहनें डाकघरों से भेज रही राखियां 


Varanasi (dil india live) रेशम के धागों ने सोशल मीडिया पर चल रही वर्चुअल राखियों को बौना साबित कर दिया है। वाट्सएप, फेसबुक, स्काइप, टेलीग्राम जैसे बड़े सोशल प्लेटफॉर्म को छोडकर बहनें, भाईयों की कलाइयाँ सजाने के लिए डाक से रंग-बिरंगी राखियाँ भेजना पसंद कर रही हैं । डाक विभाग भी इसके लिए मुस्तैद है और तमाम तैयारियाँ किए हुये है। वाराणसी परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि वाराणसी परिक्षेत्र से अब तक लगभग 50 हजार राखियॉं विभिन्न डाकघरों से देश-विदेश में भेजी गईं। रक्षाबंधन के दिन भी डाक वितरण के विशेष प्रबंध किए गए हैं, ताकि किसी भाई की कलाई सूनी न रहे।

राखी का क्रेज देश से बाहर विदेशों में भी खूब है। पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि वाराणसी से विदेशों के लिए भी स्पीड पोस्ट और रजिस्टर्ड डाक द्वारा राखियाँ भेजी जा रही हैं। लगभग 800 राखियाँ वाराणसी के डाकघरों द्वारा विदेशों के लिए बुक की गईं। इनमें ज्यादातर राखियाँ संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, सिंगापुर, संयुक्त अरब अमीरात, जर्मनी, फ़्रांस, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, कनाडा इत्यादि देशों में भेजी गई हैं। वहीं विदेशों में रह रही बहनें भी वाराणसी में अपने भाईयों को राखी भेज रही हैं, जो डाक विभाग के माध्यम से तुरंत वितरित हो रही हैं। विदेशों में राखियाँ भेजने के लिए बहनें पहले से ही तैयारी करने लगती हैं, ताकि सही समय पर भाईयों को राखी पहुँच जाये और उनकी कलाई सूनी न रहे। 

पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि डाक विभाग ने राखी डाक की बुकिंग के साथ-साथ स्पेशल सॉर्टिंग और इनके त्वरित वितरण हेतु डाकघरों से लेकर रेलवे मेल सर्विस और नेशनल सॉर्टिंग हब तक में विशेष प्रबंध किये गए हैं। चिट्ठियों के माध्यम से खुशियां बिखेरते रहने वाले डाक विभाग ने रिश्तों के इस त्यौहार को भी एक नया आयाम दिया है।

Muharram10th: या हुसैन...या हुसैन... की सदाओं संग कर्बला में दफन हो रही ताजिया

कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में निकला ताजिए का जुलूस












Varanasi (dil india live). यौमे आशुरा यानी दसवीं मुहर्रम पर मंगलवार को शहर से लेकर गांव तक या हुसैन,या हुसैन... अलविदा या हुसैन... की सदाएं गूंजती रहीं। तकरीबन एक हजार से अधिक छोटे-बड़े ताजिये इमाम चौक से उठाए गए। इन ताज़िए को जुलूस की शक्ल में दरगाहें फातमान, सदर इमामबाड़ा लाट सरैया, तेलियानाला घाट व शिवाला घाट समेत ग्रामीण इलाकों की कर्बला में पहुंच कर ठंडा करने का दौर समाचार लिखे जाने तक चलता रहा। इस दौरान अलम व ताजिया के साथ फन-ए-सिपहगिरी का मुजाहिरा भी हो रहा था। शिया वर्ग के शहर भर में अर्दली बाजार, दालमंडी, बेनिया, गौरीगंज, शिवाला से निकले जुलूस में मातमी अंजुमनों ने दर्द भरे नौहों संग जोरदार मातम का नज़ारा पेश किया। 

शहर के दालमंडी, नयी सड़क, लल्लापुरा, पीलीकोठी, पठानी टोला, चौहट्टा लाल खां, बड़ी बाजार, दोषीपुरा, कज्जाकपुरा, काजी सादुल्लाहपुरा, अर्दली बाजार, नदेसर, शिवाला, गौरीगंज, बजरडीहा, साकेत नगर, हुकुलगंज आदि से निकले ताजिया के जुलूस में भारी हुजूम उमड़ा हुआ था। इस दौरान चपरखट की ताजिया, रांगे की ताजिया, पीतल की ताजिया, ज़री की ताजिया, नगीने व काठ की ताजिये के साथ लोगों का हुजूम दिखाई दिया। बोल मोहम्मदी, या हुसैन..या हुसैन व नारे तकबीर अल्लाह हो अकबर…. की सदाएं भी बुलंद होती रहीं। कोनिया में हिन्दुओं ने ताजिये को कंधा देकर पास कराया। इससे यहां गंगा जमुनी तहजीब को बल मिलता दिखाई दिया। 

रास्ते भर ताजिया और जुलूस देखने के लिए भी भारी भीड़ उमड़ी रही। अर्दली बाजार, दालमंडी, नई सड़क, मदनपुरा, बजरडीहा आदि इलाकों से ताजिया दरगाहे फातमान की ओर रवाना हुईं। यहां बुर्राक, पीतल, रांगे, शीशम, चपरखट, मोतीवाली, हिंदू लहरा आदि प्रमुख ताजिया लोगों के आकर्षण का केंद्र रहीं। तमाम जायरीन इनकी जियारत करते दिखाई दिए।

शिवाला घाट पर गौरीगंज, शिवाला, बाबा फरीद, छिपपीटोला, नवाबगंज आदि की ताजिया वह भवनिया पहुंच कर ताजिया दफन किया। ऐसे ही हनुमान फाटक, कोयला बाजार, छिततनपुरा, पठानी टोला, कोनिया आदि की ताजिया कज्जाकपुरा, जलालीपुरा होते हुए सरैया स्थित कर्बला में पहुंच कर दफ्न हुई। 

Karbala ki kahani: हर कौम पुकारेगी हमारे हैं हुसैन

...इस्लाम जिंदा होता है कर्बला के बाद


Varanasi (dil india live). 

इंसान को बेदार तो हो लेने दो हर कौम पुकारेगी हमारे हैं हुसैन...।

मजहबे इस्लाम को दुनिया में फैलाने के लिए, पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्ललाहो अलैहि वसल्लम ने जितनी कुर्बानियाँ दीं, उसे उनके नवासे हजरत इमाम हसन, हज़रत इमाम हुसैन ने कभी फीका नहीं पड़ने दिया, बल्कि नाना के दीने इस्लाम को बचाने के लिए अपने साथ अपने कुनबे को भी कर्बला के मैदान में शहीद कर दिया।

इस्लाम की बुनियाद के लगभग 50 साल बाद दुनिया में जुल्म का दौर अपने शबाब पर था। मक्का से दूर सीरिया के गर्वनर य़जीद ने खुद को खलीफा घोषित कर दिया, उसके काम करने का तरीका तानाशाहों जैसा था, जो इस्लाम के बिल्कुल खिलाफ था। उस दौर के तमाम लोग उसके सामने झुक गए, वो चाहता था कि नबी के नवासे हजरत इमाम हुसैन भी उसकी बैयत (अधिनता) करें मगर हजरत इमाम हुसैन ने इस्लाम के खिलाफ काम करने वाले य़जीद को खलीफा मानने से इन्कार कर दिया। इससे नाराज य़जीद ने अपने गर्वनर वलीद विन अतुवा को फरमान लिखा और कहा कि 'तुम हुसैन को बुलाकर मेरे आदेश का पालन करने को कहो, अगर वह नहीं माने तो उनका सिर काटकर मेरे पास भेजो।'

वलीद विन अतुवा ने इमाम हुसैन को य़जीद का फरमान सुनाया तो इमाम हुसैन बोले। 'मैं एक तानाशाह, मजलूम पर जुल्म करने वाले और अल्लाह-रसूल को न मानने वाले य़जीद की बेअत करने से इन्कार करता हूँ।' इसके बाद इमाम हुसैन मक्का शरीफ पहुँचे, जहाँ य़जीद ने अपनी फौज के सिपाहियों को मुसाफिर बनाकर हुसैन का कत्ल करने के लिए भेज दिया। इस बात का पता हजरत इमाम हुसैन को चल गया और खून-खराबे को रोकने के लिए हजरत इमाम हुसैन अपने कुनबे के साथ इराक चले आ गए। मुहर्रम महीने की 2 तरीख 61 हि़जरी को इमाम हुसैन अपने परिवार के साथ कर्बला में थे। 

पानी पर पहरा, फिर भी हुसैन ने ह़क से मुँह न फेरा

वह 2 मुहर्रम का दिन था, जब इमाम हुसैन का काफिला कर्बला के तपते रेगिस्तान में ठहरा था। यहाँ पानी के लिए सिर्फ एक फरात नदी थी, जिस पर य़जीद की फौज ने 6 मुहर्रम से हुसैन के काफिले पर पानी के लिए रोक लगा दी थी। य़जीद की फौज की इमाम हुसैन को झुकाने की हर कोशिश नाकाम होती रही और आखिर में जंग का ऐलान हो गया।

दुश्मन देते थे हुसैन की हिम्मत की गवाही

9 तारीख तक य़जीद की फौज को सही रास्ते पर लाने के लिए मौका देते रहे, लेकिन वह नहीं माना। इसके बाद हजरत इमाम हुसैन ने कहा 'तुम मुझे एक रात की मोहलत दो ताकि मैं अल्लाह की इबादत कर सकूँ' इस रात को ही आशूरा की रात कहा जाता है।

इस्लामिक इतिहास कहता है कि य़जीद की 80 ह़जार की फौज के सामने इमाम हुसैन के 72 जाँनिसारों ने जिस तरह जंग की, उसकी मिसाल खुद दुश्मन फौज के सिपाही एक-दूसरे को देने लगे। इमाम हुसैन ने अपने नाना और वालिद के सिखाए हुए ईमान की मजबूती और अल्लाह से बे-पनाह मोहब्बत में प्यास, दर्द, भूख और अपने 6 माह के बेटे अली असगर के साथ पूरे खानदान को खोने तक के दर्द को जीत लिया। दसवें मुहर्रम के दिन तक हुसैन अपने भाइयों और साथियों की मैयत को दफनाते रहे। लड़ते हुए जब नमाज का वक्त करीब आ गया तो उन्होंने दुश्मन फौज से अस्र की नमाज अदा करने का वक्त माँगा। यही वक्त था जब इमाम हुसैन सजदे में झुके तो दुश्मन ने धोखे से उन पर वार कर उन्हें शहीद कर दिया। मक्का में इमाम हुसैन की शहादत की खबर फैली तो हर तरफ मातम छा गया। दुनिया ने सोचा कर्बला के बाद इस्लाम खत्म हो जाएगा, इमाम हुसैन के नाना के दीन और धर्म का कोई नामोनिशान नहीं होगा मगर हुआ इसका ठीक उल्टा। कर्बला के बाद इस्लाम न सिर्फ जिन्दा हो गया बल्कि समूची दुनिया में फैल गया। आज इमाम हुसैन और शहीदाने कर्बला का नाम लेने वाला पूरी दुनिया में है मगर यजीद का कोई नाम लेवा नहीं है तभी तो कहा गया है, इस्लाम जिंदा होता है कर्बला के बाद...।

38000 Students को राहत देने की टीचर्स एसोसिएशन मदारिसे अरबिया की मांग

कामिल व फाज़िल मदरसा छात्रों को ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती विश्वविद्यालय से सम्बद्ध किया जाए-हाजी दीवान साहेब ज़मा - मदरसा नियमावली से अगे बढ...