गुरुवार, 2 जून 2022

Hazrat waliullah shah: आज मनाया जा रहा बाबा का उर्स

हरदाम शाह बाबा के उर्स में जुटें हैं मन्नती, हो रही दुआएं 


Varanasi (dil India live)। हज़रत सैय्यद वलीउल्लाह शाह बाबा रहमतुल्लाह अलैह (हरदाम शाह बाबा) के सालाना उर्स में अकीदतमंदों का हुजूम आज मगरिब की नमाज़ के बाद उमड़ेगा। बाबा का उर्स पूरी अकीदत के साथ भूवनेश्वर नगर कालोनी स्थित आस्ताने में फजर की नमाज़ के बाद से मनाया जा रहा है। इस दौरान बाबा से अकीदत रखने वाले दोनों मज़हब के जायरीन मन्नतें वह मुराद मांगने जुटें हुए हैं। 
बाबा के खादिम साबिर खान जायरीन का खैरमकदम कर रहे थे। उन्होंने बताया कि बाबा के दर पर गुसल, फातेहा, गुलपोशी, चादरपोशी के साथ ही मुल्क में अमन और मिल्लत व कौम की भलाई के लिए दुआएं भी कुल शरीफ के दौरान मांगी जाएगी।

मंगलवार, 31 मई 2022

मेरे बाबा....और उनकी प्यारी बीड़ी



Lucknow (dilindialive)। यदि याददाश पर जोर देकर यह याद करने की कोशिश ही जाए बचपन में कपड़े की गुड़िया से खेलती मैं हाड़ मांस की अपने बाबा की दुलारी गुड़िया। गुड़िया नाम मेरे बाबा ने रखा था। अक्सर अपनी गोदी पर उठाकर बाहर मिट्टी के चबूतरे में बैठकर शाम को गपशप मारने वाले मेरे बाबा। 6 फुट लंबी कद काठी थी गोरा चिट्टा शरीर, धोती कुर्ता और कंधे में गमछा लिए अपनी छोटी सी दुनिया में अपनों के हीरो मेरे बाबा। निश्चित रूप से गांव में मनोरंजन के साधनों का अभाव होता है आपसी गपशप, छोटी मोटी चौपाले , खड़ंजे,मेड और नाली की लड़ाई में व्यस्त पूरा ग्रामीण समाज कहीं कौड़िया, लकड़ी, तो कहीं ताश के पत्ते फेटते भोले-भाले ग्रामीण।

     अपनी दिनचर्या में कठोर मेहनत करने वाले सुबह जल्दी उठकर और रात को जल्दी सोने वाले मेहनतकश किसान। हल और बैलों की जोड़ी से पूरे खेत का सीना चीर कर सोना उगाने वाले गांव के किसान ,जो अपनी उम्र से कुछ ज्यादा ही दिखाई देते हैं मटमैला कुर्ता , कांछ वाली धोती और कंधे पर एक गमछा।

    इन सब में सबसे बड़ी विशेषता है आपसी मेल मिलाप होने पर बीड़ी की एक कश लगाना, तंबाकू जब बनती तो अकेले नहीं खाई जाती, बैठ कर खुद खाना और अपने साथियों को भी खिलाना ।यदि कुछ बड़ी चौपाल हुई तो हुक्के की गड़गड़ाहट और चिलम की सुगबुगाहट भी महसूस कर आपसी प्रेम और सौहार्द को बढ़ाने की भावना का विकास करती दिखती। हाथ में बनी हुई तंबाकू, जात–पात, बड़े –छोटे का भेदभाव मिटाती भी गांव वालों को एक दूसरे से जोड़ने का बहुत ही आसान साधन हुआ करता था और शायद आज भी हमें गांव की अर्थव्यवस्था में यह देखने को मिल ही जाता है ।

           इन सभी के बीच मेरे बाबा इन सभी गुणों से संपन्न । निश्चित रूप से उनका प्यार और दुलार हम बच्चों में आज भी याद किया जाता है होली और दीपावली में टोकरी भर भर की मिठाई, आम के सीजन में भूसे में पकाए हुए आमों को निकालकर सभी बच्चा पार्टी को बैठा कर खिलाना। यदि इस आयोजन में बड़े लोग शामिल हो जाएं तो फिर क्या कहना आम की खुमारी के साथ तंबाकू के नशे और बीड़ी की धुए में कजरी ,फाग भजनों का आयोजन होना आम बात है।

       अपने कई नाती और पोतो के बीच मुझे अकेली गुड़िया को अपने पास पाकर बाबा काफी खुश होते थे । गांव की मिट्टी में खेलती उनकी गुड़िया यदि गंदी होती तो बड़े प्यार से  अपने गमछे से मुंह हाथ साफ़ करते अन्य को घर से साफ करा आने को कहते। अपने कंधे पर बैठाकर आधे गांव की यात्रा कराना हर शाम का एक प्रिय कार्य हुआ करता था। अपने साथ गांव के वरिष्ठ लोगों के पास ले जाना और एक छोटी सी टोकरी में चना देकर अपने इर्द-गिर्द ही बैठा कर रखने की उनकी अदा।  अक्सर ध्यान देते थे कि उनकी गुड़िया उनकी आंखों से ओझल ना हो जाए,कहीं किसी पड़ोसी के घर खेलने ना चली जाए इसीलिए एक मिट्टी की गाड़ी खरीदी और एक ढपाली भी और उसे अक्सर अपनी छोटी गुड़िया के हाथों में बांध देते हैं ताकि वह जब चलकर दूर जाने लगती तो गाड़ी में लगा हुआ छोटा सा डमरु  बजने लगता और पता चल जाता  था उनको। निश्चित रूप से यह चिंता थी, प्रेम था , स्नेह था....... प्यारी गुड़िया कुछ बड़ी हुई शहर में रहने लगी पर गर्मियों की छुट्टियों में जब बाबा दादी के घर जाते तो उनका प्रेम और स्नेह माथे से लेकर गालों से लेकर हथेलियों को कई बार  चूमना और काफी देर तक अपने प्यार से भरे हुए स्नेह और हृदय से लगा कर रखना वाकई अविस्मरणीय अनुभव था।

        निश्चित रूप से उनके मटमैले से में ले कुर्ते में एक अजीब सी बदबू होती है पर उस प्रेम और स्नेह के आगे सब कुछ बेकार। शहर से आए हुए बच्चों को अपने पास बैठा कर नहा धोकर पूजा करते हुए उनको आने वाले मंत्रों को बच्चों को भी सिखाना भोजन करने से पहले भोजन मंत्र और आचरण करने के तरीके बच्चों को बताना बिना नहाए हुए कुछ ना खाने का गांव के कोने से निकला और अपने नाती पोतों को सिखाया गया उनका नियम।

        समय बीतता गया।गांव की दिनचर्या के बीच सब होता पर साथ बीड़ी की लम्बी कश जरूर... एक बीड़ी से सुलगा हुआ धुआं, एक बंडल बीड़ी और फिर कई बंडल बीड़ी में जाकर अभी रुकने का नाम नहीं ले रहा था। और इसी क्रम में शुरू हुआ  खांसी का छोटे-छोटे टुकड़ों में शुरू खेल, एक लंबी अनवरत खांसी ने ले लिया । गांव के नीम हकीम डॉक्टर अक्सर खांसी की दवा दे देते, बीड़ी के साथ वह दवा भी पी ली जाती और कुछ राहत मिलती समय बीतता गया। 

          जब मैं कक्षा 5 में पढ़ती थी तब एक बार बाबा शहर है उनका इलाज बनारस के एक नामी अस्पताल में कराया गया विभिन्न जांचों से पता चला कि साधारण सी दिखती खांसी टीवी के उच्च स्तर में पहुंच चुके हैं। टीवी क्या होती है तब शायद मुझे नहीं पता था।

    खांसी तेज हो रही थी खांसी के साथ बलगम की मात्रा बढ़ रही थी और शरीर टूट रहा था जो कभी, लंबा सुडौल था अब पतला होता जा रहा था। बीड़ी की तलब परिवार वालों के मना करने के कारण कुछ कम तो होती थी पर शायद तलब ज्यादा हावी थी और बाबा एक बार फिर गांव चले गए।

            बहुत समझाया गया , लड़ाई झगड़ा करके मनाया गया पर वह ना माने फिर वही दवा का क्रम कभी टूटता तो कभी जुड़ता.... टीवी का इलाज बीच में रुक रुक कर चलता। खांसी के कई सीरप पी लिए जाते पर बीड़ी का मोह ना छूटता। दादी ने भी बहुत आग्रह किया.... ठीक है नहीं पीऊगा कहते तो, घर पर नहीं तो बाहर दोस्तों के साथ एक आद कश होने लगी ।जो व्यक्ति 60 साल का अनवरत जीवन जी सकता था वह अपनी आधी उम्र में टीवी की वजह से शरीर में सिर्फ हड्डियों का ढांचा मात्र बचा, कभी कबार उल्टी से भी खून आता।

          और एक दिन सभी औरतें अपने करवा चौथ के व्रत की पूजा की तैयारी कर रही थी तभी गांव से सूचना आई कि बाबा नहीं रहे ....मैं भी गई मैंने भी उन्हें देखा वह जो अपने हाथों से हमेशा अपनी गुड़िया का माथा चुमने के लिए खड़े रहते थे आज जमीन पर लेटे थे। हड्डियों का एक कंकाल जो आपने शायद प्रैक्टिकल लैब में देखा होगा पर साक्षात मैंने तब देखा....रात भर मैं उनके पार्थिव शरीर के पास बैठकर सोचती रही तंबाकू की क्रूरता....।

                 तब पता चला कि शायद तंबाकू रूपी जहर कितना भयानक है, हंसता खेलता है व्यक्ति हमेशा दूसरों की केयर करने वाला व्यक्ति ,तमाखू से जुड़ी हुई लत से, खुद को अलग ना कर सका , बीड़ी के धूंवे में ऐसा उड़ा कि आज सब कुछ होते हुए भी जमीन पर सफेद हड्डियों के ढांचे के रूप में निढाल था। गर्मियों की छुट्टियों के बाद हमारे शहर लौटने पर अपनी नम आंखों से हमें प्यार के साथ विदा करने वाला अब कोई नहीं था। खुशियां, हंसी, खेल, अपनों का प्यार, अपनों का दुलार और अपनों के लिए शायद कभी कम नहीं किया जा सकता है। नशे से दूर रहकर अपनों का प्यार और प्रगाढ़ता को और बढ़ाया जा सकता है। जो प्यार माता-पिता, बाबा दादी, भाई बहन, पति पत्नी, पिता पुत्र अपनों को कर सकते हैं वह शायद दुनिया में कोई नहीं कर सकता। 

        यह एक छोटी सी कहानी रूपी संस्मरण है पर शायद इसके शब्दों में वह प्रेम  आप को दिख रहा होगा जो मुझे फिर कभी नहीं मिला। आज भी 6 फुट की लंबी काया हाथ में लाठी धोती कुर्ता और गमछे के साथ किसी को देखती हूं तो मेरे प्यारे बाबा हमेशा याद आते हैं काश उन्होंने तंबाकू के नशे से दूरी बना ली होती तो आज हम उस दुख के क्षण से ,जानलेवा बीमारी से अपने प्रिय बाबा को ना खोते। संपूर्ण विश्व तंबाकू के नशे से मुक्त हो सके आइए विभिन्न माध्यमों से बच्चों को नशे से दूर रहने की मुहिम से जोड़े, अपने साथियों को बड़े बुजुर्गों को जागरूक करें। सिगरेट और बीड़ियो तंबाकू के पैकेट में बने हुए खतरनाक चित्रों से डरे।

 विश्व तंबाकू उन्मूलन दिवस विरोध से ज्यादा, एक जागरूकता अभियान है।आइए मिलकर दूरी नहीं आपस में जोड़ने का अभियान बनाएं। देश को तमाखू के नशे से दूर भगाएं। टीवी, कैंसर, लिवर सिरोसिस जैसी जानलेवा बीमारियों से अपनो को बचाएं।

रीना त्रिपाठी (लेखक सामाजिक कार्यकत्री हैं)

सोमवार, 30 मई 2022

एडवांस हस्ताक्षर कर गैर हाजिर मिले प्रभारी चिकित्सा अधिकारी

सीएमओ ने एपीएचसी कादीपुर का किया औचक निरीक्षण

वार्ड व्वाय व फार्मासिस्ट के अलावा अन्य कर्मचारी भी रहे गैरहाजिर


Varanasi (dil India live)। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. संदीप चौधरी ने सोमवार को पीएचसी कादीपुर का औचक निरीक्षण किया। इस दौरान वहां भारी गड़बड़ियां मिली। निरीक्षण में पता चला कि प्रभारी चिकित्सा अधिकारी एक दिन का एडवांस हस्ताक्षर कर गैर हाजिर है। यहीं नहीं एक वार्ड व्वाय व एक फार्मासिस्ट के अलावा अन्य कर्मचारी भी गैरहाजिर मिले।

 मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. संदीप चौधरी सोमवार की सुबह 8ः25 बजे अतिरिक्त प्रा०स्वा०केन्द्र कादीपुर पहुंचे। निरीक्षण के समय राजेन्द्र प्रसाद फार्मासिस्ट तथा धनंजय सिंह वार्डव्वाय को छोड़ अन्य सभी कर्मचारी अनुपस्थित पाये गये। उन्होंने अनुपस्थित कर्मचारियों से स्पष्टीकरण मांगने के साथ ही उनका उक्त दिवस का वेतन अदेय करने का निर्देश दिया। निरीक्षण में पता चला कि प्रभारी चिकित्सा अधिकारी डा. अभिमन्यु सिंह उपस्थित पंजिका में एक दिन पूर्व ही हस्ताक्षर किये थे और ड्यूटी पर भी मौजूद नहीं थे। यह देख सीएमओं ने नाराजगी जतायी और कहा कि यह शासकीय नियमो का घोर उल्लधंन एवं अपने कर्तव्यों की प्रति उदासीनता हैं। उन्होंने इस मामले में उनसे जवाब तलब किया है। निरीक्षण के दौरान लेवर रूम का टेबिल टूटा मिला और सभी सामान अव्यवस्थित थें जिससे यह प्रतीत हो रहा था कि वहां पर प्रसव का कार्य सम्पादित नहीं किया जाता। सीएमओं ने निर्देशित किया कि तत्काल लेबर रूम का टेबल का मरम्मत कराये तथा सभी सामान व्यवस्थित कर प्रसव का कार्य सम्पादित करायें। दवा काउन्टर पर फार्मासिस्ट द्वारा सभी दवाये अव्यवस्थित रूप से रखा हुआ था उसे व्यवस्थित रखने हेतु निर्देशित किया गया। लैब में सभी समान पूरी तरह से अव्यवस्थित था और सफाई संतोषजनक नहीं था तथा कोई भी रजिस्टर नहीं बनाया गया था जिससे कि यह देखा जा सके कि कौन सी जाँच कब की गयी हैं और कौन का सैम्पल कब का हैं। इस सम्बंध में एल०ए०को निर्देशित किया जाय कि लैंब को साफ रखें तथा एक रजिस्टर बनाकर उसमे प्रतिदिन क्या-क्या जाँच हुई और किसका सैम्पल लिया गया, उसका सही अंकन करें ।

सोनभद्र में बनेगा विरसा मुंडा केंद्र

नजरिया बदलें तभी आदिवासियों का कल्याण : फादर एक्का



Varanasi (dil India live) । नजरिया बदले बिना आदिवासी समाज का कल्याण असंभव है. आदिवासियों को समझने के लिए आदिवासी नजरिया होना जरूरी है। बिना इसके आदिवासी समाज का निर्माण नहीं हो सकता।

तरना स्थित नवसाधना केन्द्र में 'प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण' कार्यक्रम के अंतिम दिन नई दिल्ली स्थित भारतीय सामाजिक संस्थान के फादर  विनसेंट एक्का ने उक्त बाते कही। उन्होंने कहा कि देश में 705 आदिवासी समुदाय है लेकिन यह इस समाज का दुर्भाग्य है कि उनकी पूरी गिनती तक नहीं है। देश में आदिवासी समाज करीब 20 फीसदी है पर सरकारी गणना में सिर्फ़ 8.02 फीसदी ही बताया जाता है।

उन्होंने कहा कि आज आदिवासियों के स्वशासन का मुद्दा सबसे अहम है। विडम्बना देखिए कि साल 1996 में उनके विकास और उत्थान के लिए बना कानून आज तक लागू नहीं हो सका है। फादर एक्का ने कहा आदिवासियों के बीच डिलिस्टिंग का मुद्दा सबसे अहम होता जा रहा है। देश के कई राज्यों में अपनी पहचान बचाए रखने के लिए आदिवासी समाज आंदोलनरत है।हमेशा से सरकार और आदिवासी समाज में एक दूसरे को समझने को लेकर मतभेद रहा है। सरकार जिसे आवश्यक समझती है वह इस समाज को गैरजरूरी लगता है। ऐसे में आवश्यकता इस बात की है कि हम इस समाज के विकास के लिए अपना नजरिया बदले।

राइज एंड एक्ट और  सेंटर फार हार्मोनी एंड पीस व भारतीय सामाजिक संस्थान की तरफ़ से आयोजित इस शिविर में बदली परिस्थिति में 'सामाजिक कार्यकर्ताओं की क्या भूमिका हो' इस पर समूह चर्चा हुई। चर्चा में आशा ट्रस्ट के वल्लभाचार्य पांडेय ने तकनीक का इस्तेमाल करते हुए राष्ट्रीय एकता, शांति और न्याय के मुद्दों को उठाने पर बल दिया। प्रतिभागियों में असम के वरिष्ठ पत्रकार सैयद रबिऊल हक, एके लारी, उड़ीसा की पुष्पा, यूपी के अंकेश कुमार, अर्शिया खान, शमा परवीन, हरिश्चन्द्र, राम किशोर और विकास मोदनवाल आदि ने अपने-अपने विषय पर विचार व्यक्त किये।

समारोह में देश के अन्य राज्यों से आये प्रतिभागियों का यूपी चैप्टर की तरफ की तरफ से अंगवस्त्रम देकर सम्मानित किया गया। साथ ही सभी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र और पुस्तकें देकर सम्मानित किया गया। समारोह का संचालन आयोजक डा.मुहम्मद आरिफ़ ने किया। 'प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण' कार्यक्रम के अंतिम दिन ये तय हुआ कि जनपद सोनभद्र में डेढ़ एकड़ भूमि पर  विरसा मुंडा के नाम पर एक अध्ययन केंद्र बनाया जाएगा। केन्द्र का शिलान्यास 15अगस्त को होगा।

इस बात की जानकारी देते हुए आयोजक डा.मुहम्मद आरिफ़ ने बताया कि सोनभद्र जनपद के नगवा ब्लॉक के ग्राम तेनुडाही के रहने वाले रामजतन खरवार ने विरसा मुंडा के लिए जमीन देने का फैसला किया है. उन्होंने बताया कि केन्द्र का निर्माण वहां रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता रामजनम ,अयोध्या और कमलेश कुमार की देखरेख में किया जाएगा।

उन्होंने बताया सेन्टर फार हारमोनी एंड पीस की तरफ से  संजय सिंह के संपादन में जनपद  कुशीनगर के कसया से साझी विरासत की प्रतिनिधि पत्रिका 'सदभावना सागर' का प्रकाशन जल्द ही शुरू किया जाएगा।

Bishop Varanasi: 2015 में आज ही बिशप बने थे बिशप यूजीन जोसेफ

बिशप बनने के सात वर्ष पूरा होने पर सभी दे रहे हैं बधाई

वाराणसी धर्म प्रांत के तीसरे धर्माध्यक्ष हैं बिशप यूजीन जोसेफ 

Varanasi (dil India live)। आज ही के दिन 30 मई 2015 में पोप फ्रांसिस ने फादर यूजीन जोसेफ को वाराणसी का नया बिशप नियुक्त किया था। इस घोषणा के बाद जहां वाराणसी धर्म प्रांत को तीसरा बिशप मिल गया था वहीं फादर यूजीन जो बिशप राफी मंजली के इलाहाबाद तबादले के बाद से प्रशासक के अस्थाई पद पर आसीन थे। वो फादर से बिशप यूजीन हो गये थे।

जी हां आज वही दिन है जब  वैटिकन से घोषणा हुई थी कि वाराणसी के नये धर्माध्यक्ष बिशप यूजीन बना दिए गए हैं। तब नई दिल्ली स्थित देश के कैथोलिक बिशप सम्मेलन के मुख्यालय व वाराणसी के बिशप हाउस में इसकी सूचना मिलते ही खुशी की लहर दौड़ गई थी। आज उन्हें बिशप बनाए जाने के सात वर्ष पूरा होने पर न सिर्फ मसीही समुदाय बल्कि सभी उन्हें विश कर रहे हैं।

कौन हैं बिशप यूजीन जोसेफ

बिशप का जन्म 31 जुलाई, 1958 को राजकमंगलम, नागरकोइल, तमिलनाडु में हुआ था। कार्मेल स्कूल, नागरकोइल से स्कूली शिक्षा के बाद, उन्होंने सेंट थेरेसा के माइनर सेमिनरी, अजमेर और फिर सेंट चार्ल्स सेमिनरी, नागपुर, महाराष्ट्र से शिक्षा लिया। उन्हें 10 अप्रैल 1985 को वाराणसी सूबा के लिए एक पुजारी नियुक्त किया गया था। उन्होंने महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय, वाराणसी से अंग्रेजी में मास्टर डिग्री और टाउनसेंड स्कूल ऑफ बिजनेस, न्यूयॉर्क, संयुक्त राज्य अमेरिका से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन एंड मैनेजमेंट में मास्टर्स की शिक्षा प्राप्त किया। वह अंग्रेजी, हिंदी और तमिल के जानकार है।

एक पुरोहित के रूप में वे सेंट थॉमस पैरिश, शाहगंज में सहायक पादरी और सेंट थॉमस इंटर कॉलेज में थे, माइनर सेमिनरी के वाइस-रेक्टर। वह सेंट जॉन इंटर-कॉलेज के प्रिंसिपल भी थे, अवर लेडी ऑफ लूर्डेस पैरिश, गाजीपुर के पुरोहित भी रहे। वे क्षेत्रीय ग्रामीण केंद्र के निदेशक और नव साधना कॉलेज, वाराणसी के प्राचार्य, सेंट मैरीज अस्पताल, वाराणसी के निदेशक और डायोसीज़ के एजुकेशन सोसाइटी के विक्टर महासचिव व वाराणसी के सेंट मैरी स्कूल ऑफ नर्सिंग के संस्थापक निदेशक समेत  विभिन्न पदों पर रहने के बाद 2015 में वाराणसी धर्म प्रांत के बिशप बनाते गये। वो 2016 में रोम की यात्रा पर गए तो उन्हें ईसाई धर्म के दुनिया के सबसे बड़े धर्म गुरु पोप फ्रांसिस से मुलाकात करने और उनका आशीष पाने का सुअवसर प्राप्त हुआ।

रविवार, 29 मई 2022

World yoga: योग करने जुटे बेसिक स्कूल के बच्चे

योग प्रशिक्षण शिविर: बेहतर जीवनचर्या के लिए योग पर ज़ोर 


Varanasi (dil India live)। बेसिक शिक्षा परिषद जनपद वाराणसी द्वारा आयोजित योग प्रशिक्षण शिविर में आज प्राथमिक विद्यालय ठठरा (प्रथम ) सेवापुरी वाराणसी के प्रांगण में प्रधानाध्यापिका रेनू गुप्ता की देख रेख में योग शिविर का आयोजन किया गया। योग ट्रेनर स्वप्ना कपूर और स्कूल की अध्यापिकाका नीलम केशरी ने बहुत ही बेहतरीन योग ट्रेनिंग का संचालन किया।

स्वप्ना कपूर ने बताया कि हमारे व्यस्त दैनिक जीवन और गलत खानपान की वजह से हमें अनेक प्रकार की बीमारियां घेर लेती है। जिसका एकमात्र और सटीक उपचार हम योग के माध्यम से कर सकते हैं। हमें नियमित आधा घंटा समय योग के लिए निकालना चाहिए जिससे हमारा तन और मन दोनों शुद्ध और निरोग बनेंगे। कुल 560 छात्र-छात्राओं तथा अभिभावकों ने इस योग प्रशिक्षण शिविर का लाभ उठाया। प्रशिक्षण के उपरांत स्कूल की हेड मास्टर ने सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र प्रदान किया।प्रशिक्षण में राजेश कुमार मौर्य, गोपी वर्मा, अनवरुद्दीन अंसारी, अमृता वर्मा, सीमा यादव, ईशा केशरी, खुशी केशरी, शिवानंद दुबे, रोशनी, तन्नू विश्वकर्मा, आंचल, मधु आदि उपस्थित रहे।

शनिवार, 28 मई 2022

Urs hazrat mukhtar ali shah

हज़रत लाटशाही बाबा के उर्स में उमड़ा जनसैलाब 

कोरोना काल के बाद उर्स में झूम के पहुंचे जायरीन 



Varanasi (dil India live)। सर्किट हाउस स्थित दरगाह हज़रत सैय्यद मुख्तार अली शाह उर्फ लाटशाही शहीद बाबा (रह.) के तीन दिवसीय उर्स में शनिवार को अकीदत का सैलाब उमड़ पड़ा। सुबह से देर रात तक बाबा के दर पर अपनी अकीदत लुटाते दिखाई दिए। आलम यह था कि सर्किट हाउस, कचहरी के साथ सड़क पर पांव रखने भर की भी जगह नहीं थी। इससे पूर्व शाम को उल्फत बीबी के हाते से चादर-गागर का जुलूस निकला, जो कदीमी रास्ते से होता हुआ बाबा के आस्ताने पर पहुंचा। यहां बाबा की मजार पर चादरपोशी कर अकीदतमंदों ने मुल्क की सलामती व खुशहाली की दुआएं मांगी। तीन दिवसीय उर्स के दौरान कुरानख्वानी, फातेहा व लंगर का दौर चलता रहा। उर्स के मौके पर प्रशासनिक अधिकारियों संग बंगाल, बिहार, हरिद्वार, दिल्ली, अजमेर सहित पूर्वाचल भर से हजारों अकीदतमंदों ने बाबा के दर पर हाजिरी लगाकर दुआएं मांगी। उर्स के दौरान जहां दोनों वर्गों के लोगों का हुजूम उमड़ा हुआ था वहीं उर्स को देखते हुए लगे मेले में सभी ने अस्थाई दुकानों से खरीदारी की। बच्चे झूला वह चरखी का लुत्फ उठाते दिखाई दिए।

राजा चेतसिंह के थे सिपहसालार 

हज़रत लाटशाही शहीद बाबा (रह.) का असली नाम सैय्यद मुख्तार अली शाह था। बाबा फतेहपुर के रहने वाले थे। हज़रत लाटशाही बाबा 1742 में बनारस आए। आप काशी नरेश के शिवपुर परगना के शहर काजी थे। राजा चेतसिंह ने बाबा के इंसाफ और बहादुरी के चलते अपनी सल्तनत में सिपहसालार बनाया। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ 1782, 1784 व 1786 में राजा चेतसिंह की ओर से जंग लड़ी। जंग में अंग्रेजों ने अपनी हार मानते हुए संधि की। इसके बाद अंग्रेजों की ओर से दूसरा गवर्नर भेजा गया। 1798 में उसने धोखे से जंग छेड़ दी। इस जंग में अंग्रेजों से लोहा लेते हुए सैय्यद मुख्तार अली शाह लापरवाही बाबा शहीद हो गए। राजा चेतसिंह की ओर से उन्हें लार्ड गवर्नर नियुक्त होने के कारण इनका नाम बाद में लाटशाही बाबा पड़ गया। आज बाबा को मानने वाले देश दुनिया में फैले हुए हैं।

मझवा से पहले SP मुखिया अखिलेश यादव का बनारस में जोरदार स्वागत

Varanasi (dil India live). सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव रविवार को बनारस पहुंचे। बनारस के लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट ...