रविवार, 1 अगस्त 2021
आखिर क्यों चिंता में हैं नज़ीर और कबीर के वंशज
वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। बुनकर बिरादराना तंजीम बाईसी, चौदहो, पांचों के सभी सरदार साहेबान की एक खास बैठक चौदहो के सरदार मकबूल हसन अंसारी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई। बैठक में सभी सरदार साहिबान ने वाराणसी से बुनकरों के पलायन करने पर जहां चिंता जतायी वहीं बुनकरों पर कमर तोड़ महंगाई व बेरोजगारी से जो असर हो रहा है उस पर आर्थिक तंगी के समय बुनकरों का बुरा हाल है। तमाम बिजली बकायों के चलते बुनकर बनारस से दूसरे जगहों को पलायन कर रहे हैं। बुनकर को रोकने के लिए सरकार ने कोई ठोस योजना नहीं बनाई तो बनारस से बनारसी सनद बर्बाद हो जाएगी। सभी सरदार साहिबान ने इसके लिए प्रदेश और केंद्र सरकार से मिलकर बुनकरों के लिए ठोस कदम उठाये, जिससे बुनकरों की समस्या का हल हो सके। बैठक में सरदार एकरामुद्दीन, बाईसी, सरदार मकबूल हसन अंसारी चोदहो, सरदार हाजी अली अहमद, तंजीम पांचों, सरदार हाजी जिÞयाउल हसन तंजीम पांचो, हाजी अब्दुल वहीद, मौलाना अब्दुल अजीज, अब्दुल्लाह अंसारी, हाजी अब्दुल हमीद, हाजी सैयद हसन अंसारी, हाजी रिजवानुल्लाह, मौलाना नईम, हाजी रहमतुल्लाह आदि उपस्थित थे। बैठक का संचालन इसरत उस्मानी ने किया।
शनिवार, 31 जुलाई 2021
जातिवाद, क्षेत्रवाद से परे समूचे राष्ट्र के उन्नायक रहे लोकमान्य तिलक - शैलेष तिलक
डीएवी में वेबिनार में तिलक के प्रपौत्र ने ररवा विचार
वाराणसी, 31 जुलाई(दिल इंडिया लाइव)। डीएवी पीजी कॉलेज के इतिहास विभाग के तत्वावधान में महान क्रांतिकारी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की 100 वीं पुण्यतिथि पर उनके जीवन एवं विचारों पर एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता लोकमान्य तिलक के प्रपौत्र शैलेष श्रीकांत तिलक ने कहा कि उनके दैहिक अवसान के सौ वर्ष बाद भी तिलक के विचार उतने ही प्रांसगिक है जितने ब्रिटिश साम्राज्य मे थे। अंग्रेजी शिक्षा पद्धति से अलग राष्ट्र के प्रति जागृति लाने वाली शिक्षा नीति की बुनियाद उन्होंने ही सबसे पहले रखी। उनका मत था कि लोकशिक्षा के जरिए ही समाज में बदलाव लाया जा सकता है। उनकी पत्रकारिता ने भी लोगों के दिल में क्रांति का बीजारोपण किया। उनकी मुखर लेखनी अंग्रेजी हुकुमत की ऑखों में सदैव किरकिरी बनी रही। शैलेष तिलक ने यह भी कहा कि तिलक जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद से परे समूचे भारत राष्ट्र के वह उन्नायक है जिन्होंने सिर्फ समाज के लिए जीवन समर्पित किया।
विशिष्ट वक्ता महाराष्ट्र के वरिष्ठ पत्रकार अरविन्द गोखले ने कहा कि तिलक के जीवन को किसी सीमा से बांध कर नही देखा जा सकता है। तिलक ध्यान योगी और कर्म योगी दोनों ही रहे। समाज में व्याप्त कुरितियों के खिलाफ उनकी लड़ाई में विधवा लड़कीयों को शिक्षित कर उन्हें स्वावलम्बी बनाने की सोच उनके विराट व्यक्तित्व की गवाही देता है। उन्होंनें कहा कि काशी उनके लिए श्रद्धास्थल के समान रही और 1906 के राजघाट के कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने वह यहॉ आये।
अध्यक्षीय सम्बोधन में प्राचार्य डॉ. सत्यदेव सिंह ने कहा कि लोकमान्य तिलक अपने विचारों, कार्यो, सर्मपण और त्याग की भावना से देहावसान के 100 वर्ष बाद भी सबके विचारों में जिन्दा है। तिलक ने जिस प्रकार से स्वराज को अपना जन्मसिद्ध अधिकार बतलाया वह आज भी हमारे अन्दर आत्मचेतना की भावना जागृत करती है। महात्मा गांधी से पूर्व तिलक ही राष्ट्रीय एकता के ध्वजवाहक रहे, उनके द्वारा शुरू किया गया गणपति पूजन और उनकी पत्रकारिता ने सदैव देश को एकता के सूत्र में पिरोने का कार्य किया।
इस अवसर पर प्रो. आर.पी.पाठक, प्रो. बिन्दा परांजपे, प्रो. मानवेन्द्र पुण्डीर, डॉ. राजकुमार, डॉ. घनश्याम दूबे, डॉ. सतीश कुमार ंिसंह आदि प्रबुद्धजनों ने भी तिलक के जीवन दर्शन पर विचार व्यक्त किया। संयोजन डॉ. विनोद कुमार चौधरी, संचालन डॉ. शोभनाथ पाठक, डॉ. प्रतिभा मिश्रा एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. संजय कुमार सिंह ने दिया।
राष्ट्रीय आयुष मिशन का प्रशिक्षण
भारतीय चिकित्सा पद्धति को आगे बढ़ाने के लिए प्रचार-प्रसार पर जोर
गाजीपुर (दिल इंडिया लाइव)। राष्ट्रीय आयुष मिशन स्थानीय समुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर आशा एवं ए एन एम प्रशिक्षण की शुरुआत भदौरा ब्लॉक के स्वास्थ अधीक्षक डा. हारून के कर कमलों द्वारा कराया गया। चिकित्सा अधिकारी डा. राकेश रोशन ने प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति को आगे बढ़ाने के लिए प्रचार प्रसार पर करने पर जोर दिया उन्होंने आशा कार्यकर्ताओं को आयुर्वेद एवं योग में स्वास्थ्य की अवधारणा मधुमेह का रोकथाम एवं नियंत्रण सामान्य औषधीय पौधे एवं उनके प्रयोग के बारे में जानकारी दी, साथ ही उनको प्रशिक्षित करते हुए गांव गांव कस्बे मोहल्लों में जाकर भारतीय परंपरा योग के द्वारा खास तौर पर मधुमेह संचारी गैर संचारी रोगों के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी जो दी गई है उसे लोगों के बीच इस जानकारी को बांटे और उन्हें जागरूक करें।
जिला समन्वयक परितोष अवस्थी ने कहा कि हमारा उद्देश्य हर ब्लॉक पर आशा और एएनएम को जागरूक कराना और उन के माध्यम से दूर-दराज गांवों की जनता को योग एवम आयुर्वेद के माध्यम से किस प्रकार स्वस्थ रखा जा सकता है यह प्रयास किया जा रहा है इस मौके पर डॉ सुजीत कुमार डॉ बीके यादव इंटिको लखनऊ से सौरभ श्रीवास्तव आदि उपस्थित थे।
शुक्रवार, 30 जुलाई 2021
अंतरराष्ट्रीय मानव तस्करी विरोधी दिवस पर जाने क्या उठी मांग
मानव तस्करी रोकथाम बिल हर हाल में पारित हो
बंधुआ मजदूरी से पायी मुक्ति, अब बनेंगे दूसरों की शक्ति
बंधुआ मजदूरी से मुक्त तीन सौ युवाओं के समूह ने सांसदों को भेजा ज्ञापन
वाराणसी 30 जुलाई (दिल इंडिया लाइव)। बंधुआ मजदूरी से मुक्त लगभग तीन सौ युवाओं के समहू ‘आजाद शक्ति’ ने अंतरराष्ट्रीय मानव तस्करी विरोधी दिवस पर शुक्रवार को सांसदों को ज्ञापन भेज कर उनसे अनुरोध किया कि वह उनकी पीड़ा को संसद तक पहुंचाने के साथ ही प्रस्तावित मानव तस्करी रोकथाम बिल का समर्थन करें, ताकि उनके जैसा और काई भी व्यक्ति बंधुआ अथवा बाल मजदूरी का शिकार न बने। मानव तस्करी हर हाल में रुके और ऐसा करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो।
‘आजाद शक्ति’ ऐसे तीन सौ युवाओं का समूह है जो कभी बंधुआ मजदूर थे। इस अभिशाप से मुक्त होने के बाद अब वह वाराणसी, चंदौली, मिर्जापुर, जौनपुर व संतरविदासनगर भदोही में बाल, बंधुआ मजदूरी व मानव तस्करी के खिलाफ लड़ार्इ लड़ रहे हैं। प्रस्तावित मानव तस्करी रोकथाम बिल के समर्थन में इस संगठन से जुड़े लोगों ने शुक्रवार को अंतराष्ट्रीय मानव तस्करी विरोधी दिवस पर अपने-अपने जिलों में सांसदों के नाम सम्बोधित ज्ञापन उनके प्रतिनिधियों को सौंपा। आजाद शक्ति के कल्लू वनवासी और बाबूलाल के नेतृत्व में वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय कार्यालय में ज्ञापन सौंपा गया। चंदौली में देवेन्द्र कुमार, चन्द्रीका व भदोही में मुनीबजी, वीरेन्द्र के नेतृत्व में, जौनपुर में पन्ना वनवासी, हरिकेश व मिर्जापुर में रामआसरे, लालफुल के नेतृत्व में समूह के लोगों ने सांसद प्रतिनिधियों को ज्ञापन सौंप कर उनसे अपनी पीड़ा संसद तक पहुंचाने की मांग की। कहा कि वह प्रस्तावित ’मानव तस्करी रोकथाम विधेयक’ हर हाल में संसद में समर्थन करें।
क्या है मानव तस्करी रोकथाम विधेयक
प्रस्तावित विधेयक के मसौदा के अनुसार, मानव तस्करी के दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति को कम से कम सात साल की जेल होगी, जिसे 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है। दोषी पर कम से कम एक लाख रुपये का और अधिकतम पांच लाख रूपये तक का जुर्माना लगाया जा सकेगा। मानव तस्करी के अवैध व्यापार से अर्जित धन प्राप्त संपत्ति को भी विस्तृत प्रावधानों के साथ जब्त किया जा सकेगा। इसके अलावा, तस्करी के गंभीर रूप में वर्गीकृत अपराधों के लिए कड़ी सजा का प्रस्ताव किया गया है।
विधेयक का उद्देश्य
इसका उद्देश्य व्यक्तियों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों की तस्करी पर अंकुश लगाना है। पीड़ितों को उनके अधिकारों का सम्मान करते हुए देखभाल, सुरक्षा और पुनर्वास प्रदान करने और उनके लिए एक सहायक कानूनी, आर्थिक और सामाजिक वातावरण बनाने पर जोर देना इसका मुख्य उद्देश्य है।
आज भी प्रासंगिक हैं मुंशी प्रेमचन्द के साहित्यिक व सामाजिक विमर्श
डाककर्मी के पुत्र ने लिखी साहित्य की नई इबारत: पीएमजी कृष्ण कुमार यादव
वाराणसी 30 जुलाई (दिल इंडिया लाइव)। हिन्दी साहित्य के इतिहास में उपन्यास सम्राट के रूप में प्रसिद्ध मुंशी प्रेमचंद के पिता अजायब राय श्रीवास्तव लमही, वाराणसी में डाक मुंशी (क्लर्क) के रूप में कार्य करते थे। ऐसे में प्रेमचंद का डाक-परिवार से अटूट सम्बन्ध था। मुंशी प्रेमचंद को पढ़ते हुए पीढ़ियाँ बड़ी हो गईं। उनकी रचनाओं से बड़ी आत्मीयता महसूस होती है। ऐसा लगता है मानो इन रचनाओं के पात्र हमारे आस-पास ही मौजूद हैं। प्रेमचंद जयंती (31 जुलाई) की पूर्व संध्या पर उक्त उद्गार चर्चित ब्लॉगर व साहित्यकार एवं वाराणसी परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने व्यक्त किये।
पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि लमही, वाराणसी में जन्मे डाककर्मी के पुत्र मुंशी प्रेमचंद ने साहित्य की नई इबारत लिखी। आज भी तमाम साहित्यकार व शोधार्थी लमही में उनकी जन्मस्थली की यात्रा कर प्रेरणा पाते हैं। हिंदी कहानी तथा उपन्यास के क्षेत्र में 1918 से 1936 तक के कालखंड को 'प्रेमचंद युग' कहा जाता है। प्रेमचंद साहित्य की वैचारिक यात्रा आदर्श से यथार्थ की ओर उन्मुख है। मुंशी प्रेमचंद स्वाधीनता संग्राम के भी सबसे बड़े कथाकार हैं। श्री कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि, प्रेमचंद की स्मृति में भारतीय डाक विभाग की ओर से 30 जुलाई 1980 को उनकी जन्मशती के अवसर पर 30 पैसे मूल्य का एक डाक टिकट भी जारी किया जा चुका है।
पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि, प्रेमचन्द के साहित्यिक और सामाजिक विमर्श आज भूमंडलीकरण के दौर में भी उतने ही प्रासंगिक हैं और उनकी रचनाओं के पात्र आज भी समाज में कहीं न कहीं जिन्दा हैं। प्रेमचंद ने साहित्य को सच्चाई के धरातल पर उतारा। प्रेमचन्द जब अपनी रचनाओं में समाज के उपेक्षित व शोषित वर्ग को प्रतिनिधित्व देते हैं तो निश्चिततः इस माध्यम से वे एक युद्ध लड़ते हैं और गहरी नींद सोये इस वर्ग को जगाने का उपक्रम करते हैं। श्री यादव ने कहा कि प्रेमचन्द ने अपने को किसी वाद से जोड़ने की बजाय तत्कालीन समाज में व्याप्त ज्वलंत मुद्दों से जोड़ा। उनका साहित्य शाश्वत है और यथार्थ के करीब रहकर वह समय से होड़ लेती नजर आती हैं।
(चित्र में : मुंशी प्रेमचंद की जन्मस्थली लमही, वाराणसी में पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव)
गुरुवार, 29 जुलाई 2021
हस्ताक्षर अभियान के माध्यम से स्वास्थ्य के अधिकार की उठी मांग
सूचना, शिक्षा, भोजन की तरह स्वास्थ्य का अधिकार भी मिले
वाराणसी 29 जुलाई (दिल इंडिया लाइव)। विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ताओं ने काशी से देश में स्वास्थ्य के अधिकार कानून की मांग की है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मुख्य द्वार पर स्वास्थ्य का अधिकार अभियान के तत्वावधान में हस्ताक्षर अभियान का आयोजन करके इस मांग के पक्ष में समर्थन जुटाया गया। इस मौके पर राष्ट्रपति को संबोधित 12 सूत्रीय ज्ञापन एवं बैनर पर लोगों के हस्ताक्षर लिए गये। अभियान से जुड़े कार्यकर्ताओं ने कहा कि कोरोना संकट के दौरान यह स्पष्ट रूप से सामने आया कि आम नागरिक को निकटतम दूरी पर न्यूनतम खर्च में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिलनी चाहिए तभी हम अपने देश को विकसित देश की श्रेणी में ला पायेंगे। देश में स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतरी के लिए स्वास्थ्य के अधिकार कानून बने। जिसके तहत प्रत्येक व्यक्ति को सामान्य स्वास्थ्य सुविधाये न्यूनतम खर्च और निकटतम दूरी पर मिलने का अधिकार हो और यह सुविधा न मिलने पर दोषियों को दंड और प्रभावित नागरिक को क्षतिपूर्ति मिलने का प्रावधान हो। अभियान की तरफ से मांग की जा रही है कि देश में स्वास्थ्य सेवाओं का पूर्ण सरकारीकरण किया जाए एवं स्वास्थ्य का राष्ट्रीय बजट तीन गुना किया जाय। प्रत्येक एक हजार की जनसंख्या पर निश्चित मानदेय पर ‘जन स्वास्थ्य रक्षक’ की नियुक्ति हो जो स्थानीय आशा कार्यकर्त्री और आंगनबाड़ी के साथ मिल कर सामान्य स्वास्थ्य सेवायें उपलब्ध कराए, तापमान, रक्तचाप, मधुमेह एवं अन्य सामान्य जांच की सुविधा इस स्तर पर सुलभ होनी चाहिए। प्रति बीस हजार की जनसंख्या पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, पचास हजार की जनसंख्या पर उच्चीकृत स्वास्थ्य केंद्र एवं एक लाख की जनसंख्या पर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र होना सुनिश्चित किया जाय, जहाँ विभिन्न प्रकार की आवश्यक जांच सुविधा के साथ ही अन्य सभी स्वास्थ्य सेवायें उपलब्ध हो,
इसके साथ ही ग्राम पंचायत स्तर पर मातृ शिशु कल्याण केंद्र होना सुनिश्चित हो। ग्रामीण एम्बुलेंस सेवा को और बेहतर और सुलभ बनाया जाय। अभियान की मांगो में यह भी शामिल है कि प्रदेश और केंद्र स्तर पर स्वतंत्र ‘स्वास्थ्य अधिकार आयोग’ का गठन हो जो सभी स्वास्थ्य सेवाओं और सुविधाओं से सम्बन्धित शिकायतों पर सुनवाई करे और दोषियों को दंडित करे. आयुष (आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध, सोवा-रिग्पा और होम्योपैथी) का बजट बढाते हुए इसे और व्यापक और सुलभ किया जाए. विभिन्न संक्रामक बीमारियों से बचाव सम्बन्धी जागरूकता, नियमित स्वास्थ्य जांच सम्बन्धी जागरूकता, टीकाकरण अभियान सम्बन्धी जागरूकता जैसे कार्यक्रमों को और प्रभावी तथा सघन किया जाय। अभियान के संयोजक वल्लभाचार्य पाण्डेय ने कहा कि सभी प्रकार की विकास निधियों जैसे सांसद निधि, विधायक निधि, जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायत, ग्राम सभा आदि की न्यूनतम 20 प्रतिशत राशि अपने क्षेत्र की स्वास्थ्य सेवाओं एवं संसाधनों की वृद्धि के लिए व्यय किया जाना अनिवार्य किया जाना चाहिए।
हस्ताक्षर अभियान के दौरान कोरोना संक्रमण से बचाव सम्बन्धी पर्चे भी वितरित किये गये. कार्यक्रम में प्रमुख रूप से से डॉ. ओमशंकर वल्लभाचार्य पाण्डेय, धनञ्जय त्रिपाठी, इन्दू पांडेय, प्रदीप कुमार सिंह, राजकुमार पटेल, महेंद्र राठौर, विनय सिंह, सूरज पाण्डेय, रामजनम भाई चौधरी राजेन्द्र, प्रज्ञा सिंह,दिवाकर,राज अभिषेक,जागृति राही, अजय पटेल,ओम शुक्ला, अनूप श्रमिक,छेदी लाल निराला,मनीष सिन्हा,राहुल, नीरज,शांतनु आदि का योगदान रहा।
बच्चे अब्दुल कलाम को बनायें अपना आइडियल
वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। मिसाइल मैन, देश के पूर्व राष्ट्रपति डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की छठी पुण्यतिथि हनुमान फाटक स्थित जावेद के आवास पर सुफिया-ए-हिंद फाउंडेशन ने मनाते हुए उनकी जिन्दगी और कार्यो पर रौशनी डाली। इस मौके पर शफीक अहमद मुजददीदी ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि समाज को शिक्षा के प्रति जागरूक करना बहुत ही जरूरी है। बच्चों को अब्दुल कलाम साहब जैसी शक्सीयत को अपना आइडियल बनाना होगा। हम अपने लक्ष्य को अगर वक्त पर प्राप्त करना चाहते हैं तो इसलिए हमें देश के प्रति समर्पित होकर कलाम साहब की शिक्षा को अपनाना होगा। ठीक वैसे ही जैसे देश का नाम अब्दुल कलाम साहब ने रौशन किया। वैसे ही उनके जीवन से प्रेरित होकर युवा वर्गों को अपना सपना साकार करना चाहिए। तमाम दुख और कठिनाईयां झेलते हुए एपीजे अब्दुल कलाम उस मुकाम पर पहुंचे थे जहां पहुंचने का सपना हर इंसान देख और सोच भी नहीं पाता। भारत रत्नअब्दुल कलाम साहब के निधन से सभी ने अपना एक अनमोल रत्न खो दिया, जिसकी भरपायी बहुत ही मुश्किल है। इस कार्यक्रम मौलाना अब्दुल मुट्टलिब, शाहिद जमाल अंसारी, जावेद अंसारी, शिवम चौरसिया, रवि कुमार राय, मनीष, हैदर अली, मोहम्मद जावेद, निसार अहमद, मकबूल अहमद, नोमान अख्तर आदि मौजूद थे।
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