महासप्तमी पर काशी के मंदिरों में उमड़े भक्त
Varanasi (dil India live).21.10.2023. काशी में दशहरा जैसे जैसे नजदीक आ रहा है उत्साह और उल्लास देखते ही बन रहा है। तरह तरह के पंडाल अलग-अलग थीम पर तैयार हो चलें हैं। जिन्हें बंगाल, गुजरात आसाम और बिहार के कारीगर अब अंतिम रूप देने में जुटे हुए हैं। वहीं सातवें दिन भी देवी मंदिरों में भक्तों का हुजूम दर्शन पूजन करने उमड़ा। शारदीय नवरात्र की महासप्तमी को मां काली की आराधना में भक्त उमड़े हुए थे। दरअसल शुंभ, निशुंभ के साथ रक्तबीज का विनाश करने के लिए देवी ने कालरात्रि का रूप धारण किया था। हाथ में खप्पर, तलवार और गले में नरमुंड की माला धारण करने वाली मां का स्वरूप संकट से उबारने वाला माना जाता है। इसलिए महासप्तमी की पूजा करने वाराणसी स्थित दक्षिणेश्वरी काली मंदिर में भोर से ही व्रती महिलाओं और पुरुषों ने हाजिरी लगाई। हाथों में प्रसाद, माला, फूल के साथ भक्तों का रेला मंदिर में उमड़ा हुआ था। खासकर श्री काशी विश्वनाथ गली में मां काली और भोजूबीर पंचक्रोशी परिक्रमा मार्ग पर मां दक्षिणेश्वरी काली के प्राचीन मंदिर में दर्शन पूजन करने श्रद्धालुओं का हुजूम सुबह से ही नज़र आया।
मान्यता है कि श्रीमार्कंडेय पुराण और श्रीदुर्गा सप्तशती के अनुसार काली मां की उत्पत्ति जगत जननी मां अंबा के ललाट से हुई थी। दुर्गा के नौ रूपों में सातवां रूप हैं देवी कालरात्रि का।इसलिए नवरात्र के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा होती है। शत्रुओं से मुक्ति और कष्ट निवारण के लिए मां काली की आराधना फलदायी है। श्री काशी विश्वनाथ गली में मां काली और भोजूबीर पंचक्रोशी परिक्रमा मार्ग पर मां दक्षिणेश्वरी काली का प्राचीन मंदिर विराजमान है। मां कालरात्रि की पूजा गृहस्थ लोगों को मां की शास्त्रीय विधि से पूजा करना चाहिए। देवी की पूजा में नीले रंग का उपयोग किया जाता है। माता के इस रूप को गुड़ का भोग अति प्रिय है। रात रानी या गेंदे के फूल अर्पित कर घी का दीपक लगाया गया और दुर्गा सप्तशती का पाठ किया गया।
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