आज जीवित होते, तो सौ साल के रहते !
खेमचंद प्रकाश, गुलाम हैदर, नौशाद, लता मंगेशकर और राजकपूर जिनके पियानो के दीवाने थे !
जयनारायण प्रसाद Jai Narayan Prasad फेसबुक वाल से)
वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)।संगीतकार वी. बालसारा न सिर्फ पियानो में पारंगत थे, बल्कि हारमोनियम और रवींद्र संगीत के भी 'मास्टर्स' थे। आज बालसारा साहेब जीवित होते, तो सौ साल के रहते। उनके वाद्य संगीत के दीवाने खेमचंद प्रकाश, गुलाम हैदर, नौशाद, राजकपूर, लता मंगेशकर और शंकर-जयकिशन तक थे। देशभर में वी. बालसारा के चाहने वालों की लंबी फेहरिस्त हैं और बंगाल में तो कहना ही क्या !
वी. बालसारा की पैदाइश हालांकि बंबई में हुई थीं, लेकिन गुजरे वे कलकत्ता में। रवींद्रनाथ टैगोर के संगीत और बंगाल की संस्कृति उन्हें खींचकर कलकत्ता ले आई थीं। वर्ष 1954 में कलकत्ता आए, तो फिर लौटे नहीं। वी. बालसारा कलकत्ता और बंगाल के होकर रह गए।
बंबई में 22 जून, 1922 को एक संभ्रांत पारसी परिवार में वी. बालसारा का जन्म हुआ था। उनका निधन कलकत्ता में 24 मार्च, 2005 को हुआ। वी. बालसारा के संगीत के दीवानों में वैसे तो अनगिनत हैं, लेकिन एक महेश गुप्ता हैं, जो हर साल बालसारा की याद में संगीत का जलसा आयोजित करते हैं और संगीत के जानकारों को सम्मानित भी करते हैं।
कहते हैं कि वी. बालसारा जब सिर्फ छह साल के थे, तब अपनी मां से हारमोनियम सीखा था। उनकी मां का नाम था- नजामेई। संगीत के परिवेश में बालसारा बड़े हुए, तो उन्हें पहली हिंदी फिल्म मिली 'बादल'। उस्ताद मुस्ताक हुसैन की इस फिल्म में वी. बालसारा सहयोगी संगीतकार थे। लेकिन, वर्ष बीतते न बीतते बालसारा को पहली स्वतंत्र फिल्म मिल गई। इस हिंदी फिल्म का नाम था- 'सर्कस गर्ल', जो वसंत कुमार नायडू ने बनाई थीं। साल था 1943 और इस फिल्म ने बालसारा को शोहरत के मुकाम तक पहुंचाया।
बंबई में 1940 से 1950 तक वी. बालसारा की अच्छी धाक थीं।। वर्ष 1947 में संगीतकार नौशाद के साथ जुड़े। उससे पहले खेमचंद प्रकाश और गुलाम हैदर उनके चाहने वालों में थे। फिर, आरके फिल्म्स के बैनर तले राजकपूर के साथ रहे। गायिका लता मंगेशकर बालसारा के सबसे बड़ी प्रशंसक अब भी हैं। 1952 में संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन ने वी. बालसारा के साथ काम किया। बंबई में रहते हुए बालसारा ने सिने म्यूजिशियन एसोसिएशन की स्थापना की। उद्देश्य था गरीब संगीतकारों की आर्थिक मदद करना। इस संगीत-संस्था के वे सचिव भी रहे।
पियानो, माउथ आर्गन और हारमोनियम में वी. बालसारा सिद्धहस्त थे। रवींद्र संगीत में भी वे पारंगत थे। जाने-माने संगीतकार ज्ञान प्रकाश घोष के आमंत्रण पर वर्ष 1954 में वी. बालसारा कलकत्ता क्या आए- यहीं के होकर रह गए। वर्ष 2005 में वी. बालसारा चल बसे। कलकत्ता में हिंद सिनेमा के पास (वेलिंगटन के नजदीक) अरकू दत्त लेन की दो मंजिला इमारत पर वे रहते थे। अब वहां कोई नहीं रहता।
कलकत्ता में एक महेश गुप्ता हैं, जो वी. बालसारा के पास कभी पियानो सीखने गए थे, सीख तो नहीं पाए लेकिन बालसारा के ऐसे फैन बने कि वी. बालसारा की याद में एक संस्था बना डाली- बालसारा मेमोरियल कमिटी। इस संस्था के बैनर तले हर साल उनकी याद में संगीत का एक बेहतरीन जलसा होता है। इस जलसे में बंगाल के बड़े म्यूजिशियन जुटते हैं और वी. बालसारा को अपने तरीके से याद करते हैं। बालसारा के प्रति उनका समर्पण ऐसा कि सबकुछ अपने पैसे से करते हैं !
(नीचे तस्वीर में संगीतकार वी. बालसारा (बांए) और दाहिनी तरफ महेश गुप्ता। फोटो सौजन्य : महेश गुप्ता)
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