सिंधी साहित्य के शैदाई दयाराम नागवाणी
शान्तिमोर्चा हिंदी दैनिक,अयोध्या के सम्पादक ज्ञानप्रकाश टेकचंदानी ' सरल ' ने 'अदबी सिंधी संगत,उ.प्र.' नाम से ह्वाट्सएप समूह का गठन किया है। इसका मुख्य उद्देश्य सिंधी साहित्यकारों,संस्कृति कर्मियों, शिक्षकों व पत्रकारों की अकादमिक यात्रा के बारे में सभी सिंधियों को परिचित कराना है।
सरल सर ने मुझे बुजुर्ग सिंधी साहित्य सेवी दयाराम नागवाणी के अकादमिक योगदान को सबके सामने लाने की जिम्मेदारी सौंपी। वाराणसी में उनका आवास मेरे घर से कुछ मिनटों की दूरी पर ही था। मैं उनसे फ़ोन पर अनुमति लेकर उनके निवास पर गई और सिंधी साहित्य के शैदाई से बहुत कुछ जानने और सीखने का अवसर मिला।
श्री दयाराम नागवाणी का जन्म 05 जून सन् 1949 ई. में महाराष्ट्र के उल्हासनगर में हुआ था।1952 ई. में उनका परिवार वाराणसी आकर बस गया। उन्होंने यहाँ अंग्रेज़ी विषय में स्नातकोत्तर करने के साथ बीएड की पढ़ाई पूर्ण की।सन् 1969 ई.में बीएचयू के सेंट्रल हिंदू कॉलेज में अंग्रेज़ी के प्रवक्ता पद पर नियुक्त हुए और वहीं से सन्.... में अवकाश ग्रहण किया।
श्री नागवाणी जी को अंग्रेज़ी के अतिरिक्त सिंधी,पंजाबी व उर्दू भाषाओं का भी ज्ञान है।
श्री नागवाणी जी मूलत अंग्रेज़ी विषय के विद्वान हैं। किंतु मातृभाषा सिंधी होने के कारण उनका सिंधी भाषा - साहित्य के प्रति विशेष लगाव है।यही कारण है कि वे सिंधी साहित्य का निरंतर अध्ययन-मनन करते रहते हैं। उन्होंने सिंधी भाषा में अनेक फुटकर लेख लिखे जो विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं प्रकाशित होते रहे हैं। उनमें से उल्लेखनीय हैं : अयोध्या से प्रकाशित सिंधी - हिंदी पाक्षिक 'सिंधु गर्जना' में प्रकाशित उनका लेख 'इएं कोन थींदी काइमु सिंधियत' जिसमें वे सिंधी भाषा के अस्तित्व पर मंडराते ख़तरे पर चिंता करते हुए उसके संरक्षण की बात करते हैं और अपनी मातृभाषा सिंधी में ही बात करने पर बल देते हैं।
सिंधी युवा समिति,वाराणसी की 'समर्पण' में प्रकाशित उनका लेख ' सिंधु जी सुञाणप ' सिंधियों के इष्टदेव झूलेलाल पर केंद्रित है। वाराणसी से ही प्रकाशित एक अन्य वार्षिक स्मारिका 'सेवा' में संत कँवरराम पर आधारित प्रकाशित उनका लेख 'कलावंत कंवर' उनके लेखन की भाषा - शैली का उत्कृष्ट परिचय देता है। है।
वाराणसी से ही प्रकाशित मासिक पत्रिका 'सिंधु चेतना' में उनके सिंधी लतीफे भी छपते रहते थे।जो उनकी बहुगुणी प्रतिभा का दर्शन कराते हैं।
हिंदी दैनिक 'आज' समाचार पत्र में सिंधी भाषी महापुरुषों के चरित्र को सर्व समाज के समक्ष प्रकाश में लाने के उद्देश्य से हेमू कालाणी,भगत कँवरराम,साधु बेला आश्रम आदि विषयों पर इनके अनेक लेख प्रकाशित होते रहे हैं।
यद्यपि उनका मौलिक लेखन तो गौण है परंतु सिंधी की अरबी - फ़ारसी लिपि में प्रकाशित पुस्तकों का देवनागरी लिपि में लिप्यंतरण का कार्य उल्लेखनीय है जिनमें से एक पुस्तक प्रकाशित भी हो चुकी है। इस पुस्तक का शीर्षक है 'आदर्श जीवन या शंकर प्रकाश' जिसके लेखक द्वारिकाप्रसाद रोचीराम शर्मा हैं।यह पुस्तक सिंध के बहुत बड़े संत महाराज शंकरलाल शर्मा के जीवन पर केंद्रित है जो बाद में काशी में आकर बस गए थे। इसके अतिरिक्त नागवाणी जी कई अन्य पुस्तकों के लिप्यंतरण का कार्य भी कर रहे हैं।उनमें महत्वपूर्ण हैं मोहम्मद पुनहल ड॒हर द्वारा लिखित 'भग॒त कंवरराम साहिब : मुसलमाननि जी निगाह में' पुस्तक का देवनागरी लिप्यंतरण कार्य प्रगति पर है।यह पुस्तक कुल 256 पृष्ठों की है।इस पुस्तक में संत कंवरराम के विषय में 10 मुसलमान लेखकों के विचारों का संग्रह है।दूसरी पुस्तक ताज जोयो लिखित 'शहीद भगत कंवरराम: सिंधी सभ्यता जो मजस्म रूप' का भी लिप्यंतरण का कार्य प्रगति पर है। यह पुस्तक कुल 300 पृष्ठों की है।
श्री नागवाणी जी द्वारा किया गया लिप्यंतरण का कार्य अत्यंत ही प्रशंसनीय है क्योंकि आजकल के सिंधी युवा अपनी मातृभाषा सिंधी पढ़ना ही नहीं जानते हैं। सिंधी पुस्तकें देवनागरी लिपि में उपलब्ध होने से उनको भी लाभ मिल सकेगा और इस तरह से वे भी सिंधी साहित्य- संस्कृति से परिचित हो सकेंगे।
श्री दयाराम नागवाणी जी से भेंट के मध्म हुई बातचीत में सिंधी साहित्य के प्रति उनका अगाध प्रेम परिलक्षित हो रहा था। संत कँवरराम के प्रति उनके मन में विशेष आदर का भाव है। उनके पास संत कँवरराम से संबंधित अनेक पुस्तकों का संग्रह है।26 अप्रैल, 2010 में संत कँवरराम की 125 वीं जयंती के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटील के करकमलों से विमोचित भगत कँवरराम स्मारक डाक टिकट आज भी उन्होंने सहेज कर रखा है।अंग्रेज़ी,सिंधी
और हिंदी भाषा की अनेक पुस्तकों के अतिरिक्त सिंधी की पत्र - पत्रिकाएँ उनकी अलमारी की शोभा बढ़ा रहे हैं।बीच-बीच में बातों ही बातों में वे सिंधी भाषा के प्रति युवा पीढ़ी की उदासीनता पर चिंता भी व्यक्त कर रहे थे। नागवाणी जी इन दिनों कुछ अस्वस्थ हैं फिर भी सिंधी की सेवा के लिए निरंतर कार्य कर रहे हैं।उन्होंने मुझे भेंट स्वरूप एक पुस्तक भी दी। मैं आभार प्रकट करती हूं आदरणीय सरल सर जी का कि जिनके कारण मुझे एक स्तरीय साहित्यसेवी दयाराम नागवाणी जी से मिलने का सुअवसर दिया।
(लेखक बीएचयू में शोध छात्रा है)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें