बनारस में दिखा बिहार सा नजारा, छठी मईया से मांगी लम्बी उम्र, स्वास्थ्य, सुख और समृद्धि
Varanasi (dil India live).20.11.23. बनारस के गंगा, वरुणा और अस्सी नदियों व घाटों समेत तालाबों, कुंडो व सरोवरों पर भगवान भास्कर को उदीयमान अर्घ्य देने के लिए श्रद्धालुओं का रेला सोमवार की अलसुबह उमड़ पड़ा। आस्था के महापर्व छठ पूजा के अंतिम दिन बड़ी संख्या में व्रतियों ने सूर्य देव को ‘सूर्योदय अर्घ्य’ चढ़ाया। अर्घ्यदान के बाद महिलाओं ने एक-दूसरे को सिंदूर लगा कर उनके अमर सुहाग की कामना की। परिवार के साथ ही घाट पर पहुंचे अपने आसपास के स्थानीय लोगों को टीका लगाकर प्रसाद दिया। इससे पहले शहर से लेकर गांव तक की सड़कें आधी रात के बाद से ही गुलजार हो गई थीं। भोर होते ही छठ मइया के गीत गाए जाने लगे तो साथ ही ढोल बजने लगे। हालांकि रात में मौसम ठंडा था, लेकिन लोगों ने नदियों, कुंडो, तालाबों व सरोवरों में स्नान किया और वस्त्रों को धारण किया। व्रतियों ने सूर्य के लिए गीत गाए। इस दौरान काशी के गंगा घाटों पर अद्भुत नजारा देखने को मिला। व्रती महिलाओं के साथ बच्चे और परिवार के लोग थे। सभी के पास पूजा का सामान था। महिलाएं छठ मइया के भजन गा रही थीं। इस दौरान गंगा नदी और सरोवरों में दीपदान ने अद्भुत छटा बिखेरी। सूर्योदय का समय नजदीक आने के साथ घाटों पर भीड़ बढ़ती गई। लग रहा था समूचा जनमानस घाटों पर ही जमा हो गया हो। अर्घ्य के लिए समय से पहले लोग दूध की व्यवस्था में जुट गए थे, तो वहीं कुछ स्थानों पर पूजा कमेटियों ने मुफ्त दूध की व्यवस्था की थी। इससे पहले घाटों पर पहुंचकर व्रती महिलाओं ने अपनी बेदी के पास रंगोली बनाया, सूप में एक दिन पहले चढ़ाए गए ठोकवा, पुआ आदि को बदलकर ताजा रखा। अर्घ्यदान के बाद परिचित महिलाओं ने एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर उनके अमर सुहाग की कामना की। बनारस की तरह ही समूचे पूर्वांचल में छठ पूजा धूमधाम से मनाई गई।
सूर्योपासना का यह पर्व कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी से सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है। इस वर्ष छठ पर्व की शुरुआत 17 नवंबर को स्नान यानी नहाय-खाय के साथ हुई। इसके बाद व्रतियों ने ‘खरना’ का प्रसाद ग्रहण किया। ‘खरना’ के दिन व्रती उपवास कर शाम को स्नान के बाद विधि-विधान से रोटी और गुड़ से बनी खीर का प्रसाद ग्रहण करते हैं। इसी के साथ व्रती महिलाओं का दो दिवसीय निर्जला उपवास शुरू हो गया था। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, छठी मैया को ब्रह्मा की मानसपुत्री और भगवान सूर्य की बहन माना गया है। छठी मैया निसंतानों को संतान प्रदान करती हैं। संतानों की लंबी आयु के लिए भी यह पूजा की जाती है। वहीं यह भी माना जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे का वध कर दिया गया था। तब उसे बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा को षष्ठी व्रत (छठ पूजा) रखने की सलाह दी गई थी।
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