विश्व परिवारिकता के अभ्युदयके लिए चतुर्थ स्वबोध कुम्भ की हुई पुर्णाहुति
पीठाधीश्वर स्वबोध मंत्रद्रष्टा प्रज्ञा-पुरुष आनंद प्रभु के संयोजन व केंद्रीय संचालिका डा. सरोजिनी मां ने की अगुवाई
Varanasi (dil India live). 08.11.2023. विश्व परिवारिकता के अभ्युदयके लिए चतुर्थ स्वबोध कुम्भ की पुर्णाहुति हुई। बुधवार को नेपाल, अमेरिका समेत देश दुनिया से आए भक्तों व श्रद्धालुओं की विदाई की गई। इस दौरान एक सौ ग्यारह हवन कुण्ड में बुराई और अहंकार को स्वाहा किया गया। कोईराजपुर स्थित स्वबोध आश्रम में आयोजित ११ दिवसीय स्थितप्रज्ञ भगवान नागा बाबा के ५१ वें परिनिर्वाण पर्व पर चतुर्थ स्वबोध कुम्भ में स्वबोध मंत्र द्रष्टा प्रज्ञा पुरुष आनन्द प्रभु ने १० दिनों तक अपने साधकों, शिष्यों को विश्व धर्म जागरण के आध्यात्मिक अनुष्ठान में अतत्व वेद का तत्व, विश्व धर्म जागरण का आधात्मिक अनुष्ठान, अथर्वेद पदार्थ विज्ञान एवं एटीएम विज्ञान आदि का समग्र सन्देश दिया। आश्रम परिसर में बने १११ विशाल हवन कुंडों में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ ११ देशों के संत साधकों, शिष्यों स्थानीय भक्तजनों ने अपने सभी बुराई एवं अंधकार का स्वाहा बोलकर पूर्णाहुति में आहुति दी। श्री आनन्द प्रभु ने अपने प्रबंधक एवं शिष्या आचार्य सरोजिनी माँ को महाआचार्य की उपाधि से महिमामण्डित किया, जिस पर सन्तजनों समेत भक्तों ने सम्मान सहित उद्घोष कर स्वागत किया। स्थित प्रज्ञ स्मृति महोत्सव में प्रथम दिन पूर्णिमा महोत्सव, द्वितीय दिन उद्घाटन प्रबोधन और शेष दिवस समाधि दर्शन यात्रा, वेद प्रबोध एवं सत्संग, दीक्षांत समारोह, पूर्णाहुति संत सहभोज (भंडारा) का आयोजन सम्पन्न हुआ। विश्व धर्म संस्थापना के लक्ष्य की सिद्धि के लिए समर्पित इस अमृत कुम्भ में सवा लाख दीपों से अखंड श्री गुरु ज्योति' की अर्चना के पावन संकल्प में प्रतिदिन ग्यारह हजार दीपों से ज्योतिरारचन किया गया। जो ज्ञान, भक्ति और कर्म की त्रिवेणी में स्नान कर जीवन को धन्य किया। अपने सम्बोधन में वक्ताओं ने कहा कि आज जब हमारा मानव समाज धर्म के नाम पर पांथिकता और जातीयता के आग्रह से ग्रस्त परस्पर संघर्षरत है। ऐसे में विश्व धर्म प्रचेता प्रज्ञा पुरुष ऊँ श्री आनंद प्रभु के देवी मार्ग दर्शन में धरती पर विश्व परिवारिकता के अभ्युदय के लिए जन-जन के आराध्य परम पावन स्थित प्रज्ञ भगवान् श्री नागा बाबा (सईतापट्टी-गाजीपुर) के परिनिर्वाण पर्व पर प्रति बारहवें वर्ष 'स्वबोध कुम्भ की एक नवीन संयोजना का शुभारम्भ किया गया।
प्रज्ञा-पुरुष ॐ श्री आनंद प्रभु ने कहा कि ई.सन् १९७२ आश्विन शरद पूर्णिमा की रात्रि में बाबा के देह त्याग के पश्चात् सन १९८५ में भगवान् श्रीनागा बाबा स्मारक सेवा समिति के सौजन्य से स्वबोध आश्रम काशी के द्वारा स्वबोध कुम्भ की प्रथम धर्म-परिषद संपन्न हुई थी। जिसके ग्यारह दिवसीय ज्ञान यज्ञ में 'पाषाण-मंथन से प्रकटी यज्ञमय 'श्री गुरु ज्योति' आज भी विश्वधर्म संचेतना-प्रसार की केन्द्रीय धर्म स्थली 'स्वबोध आश्रम श्रीज्योतिर्धाम काशी में सर्वज्योतियों की ज्योति सच्चिदानंद परमात्मा श्री गुरु के साक्षात् विग्रह रूप में अनवरत ज्योतित है। इसी अखंड गुरु ज्योति के सानिध्य में यह चतुर्थ धर्म-परिषद 28 अक्टूबर को आयोजित की गयी जिसकी 07 नवंबर मंगलवार को पुर्णाहुति हुई। "सर्व आत्माओं की परम आत्मा 'परमात्मा' ज्योतियों की भी परम ज्योति है। वे प्रकृति रूप अज्ञानान्धकार से अत्यन्त परे बोध स्वरूप हैं। जो सबके हृदयों में विशेष रूप से विराजमान, ज्ञान द्वारा प्राप्य और ज्ञान के परम लक्ष्य हैं, जिनसे बढ़कर और दूसरा जानने योग्य नहीं। 'स्वबोध कुम्भ अपने ही हृदयवासी आत्म प्रभु को जानने जीने और उन्हें अपना जीवन बना लेने के लिए सक्रिय 'विश्वधर्म प्रवर्तन का अमृत संदेश है। यह धर्म-परिषद् 'जीवन सत्य' के प्रत्येक जिज्ञासु के लिये अमृत का कुम्भ लेकर उपस्थित हुए। धन्यभागी थे वे जो इस ज्ञानामृत का पान कर सकें। यहां सभी पंथ, जाति, मत विशेष के मानने वाले, सभी गुरु-परम्परा के मानने वाले लोग ग्यारह दिनों तक देश-विदेश से पहुंच कर यहां जुटे रहे और 'धर्म के सनातन सत्य को जाना साथ ही दीपदान का पावन संकल्प विश्वधर्म संस्थापना के महान लक्ष्य की सिद्धि के लिए समर्पित इस अमृत कुम्भ में सवा लाख दीपों से अखण्ड श्रीगुरु ज्योति की अर्चना का पावन संकल्प लिया। जिसके लिए प्रति दिन ग्यारह हजार दीपों से ज्योतिरार्चन किया गया। अपने घर-परिवार-देश और निशा जीवन के मांगल्य के लिए अपने हाथों से ज्योतिर प्रभु के लिए एक दीप सभी ने अर्पित किया। इस दीपदान के साथ ग्यारह दिनों के लिए इस कुम्भ के कल्पवासी होकर ज्ञान, भक्ति और कर्म की त्रिवेणी में स्नान कर जीवन को धन्य किया।
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