बुधवार, 5 मई 2021

सदका-ए-फित्र नहीं अदा किया तो जाने क्या होगा?

                 रमज़ान का पैग़ाम (05-05-2021)

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। सदका-ए-फित्र ईद की नमाज़ से पहले हर हाल में मोमिनीन अदा कर दे ताकि उसका रोज़ा रब की बारगाह में कुबुल हो जायेअगर नहीं दिया तो तब तक उसका रोज़ा ज़मीन और आसमान के दरमियान लटका रहेगा जब तक सदका-ए-फित्र अदा नहीं कर देता।

हिजरी कलैंडर का वां महीना रमज़ान वो महीना जिसके आते ही जन्नत के दरवाज़े खोल दिये जाते हैं और रब जहन्नुम के दरवाजे बंद कर देता हैं। फिज़ा में चारों ओर नूर छा जाता हैमस्जिदें नमाज़ियों से भर जाती हैं। लोगों के दिलों दिमाग में बस एक ही बात रहती है कि कैसे ज्यादा से ज्यादा इबादत की जाये। फर्ज़ नमाज़ों के साथ ही नफ्ल और तहज्जुद पर ज़ोर रहता हैअमीर गरीबों का हक़ अदा करते हैं पता ये चला कि रमज़ान हमे जहां नेकी की राह दिखाता है वही यह मुकद्दस महीना गरीबोमिसकीनोंलाचारोंबेवाऔर बेसहरा वगैरह को उनका अधिकार भी देता है। यही वजह है कि रमज़ान का आखिरी अशरा आते आते हर साहिबे निसाब अपनी आमदनी की बचत का ढ़ाई फीसद जक़ात निकालता है तो दो किलों 45 ग्राम वो गेंहू जो वो खाता है उसका फितरा।

रब कहता है कि 11 महीना बंदा अपने तरीक़े से तो गुज़ारता ही हैतो एक महीना माहे रमज़ान को वो मेरे लिए वक्फ कर दे। परवरदिगारे आलम इरशाद फरमाते है कि माहे रमज़ान कितना अज़ीम बरकतों और रहमतो का महीना है इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि इस पाक महीने में कुरान नाज़िल हुआ।इस महीने में बंदा दुनिया की तमाम ख्वाहिशात को मिटा कर अपने रब के लिए पूरे दिन भूखा-प्यासा रहकर रोज़ा रखता है। नमाज़े अदा करता है। के अलावा तहज्जुदचाश्तनफ्ल अदा करता है इस महीने में वो मज़हबी टैक्स ज़कात और फितरा देकर गरीबों-मिसकीनों की ईद कराता है।अल्लाह ने हदीस में फरमया है कि सिवाए रोज़े के कि रोज़ा मेरे लिये है इसकी जज़ा मैं खुद दूंगा। बंदा अपनी ख्वाहिश और खाने को सिर्फ मेरी वजह से तर्क करता है। यह महीना नेकी का महीना है इस महीने से इंसान नेकी करके अपनी बुनियाद मजबूत करता है। ऐ मेरे पाक परवर दिगारे आलमतू अपने हबीब के सदके में हम सबको रोज़ा रखनेदीगर इबादत करनेऔर हक की जिंदगी जीने की तौफीक दे ..आमीन।

      मौलाना साक़ीबुल क़ादरी
निदेशक, मदरसातुन नूर, वाराणसी।

मंगलवार, 4 मई 2021

रमज़ान जा रहा, रुखसती पर तड़प रहे खुदा के नेक बंदे

रमज़ान का पैग़ाम (04-05-2021)

काश रमज़ान कुछ दिन और होता तो इबादत का और मौका मिलता

वाराणसी (अमन/दिल इंडिया लाइव)। मुकद्द्स रमज़ान जैसे-जैसे रुखसत होने लगता है। रातों की इबादतें बढ़ जाती है। खुदा के नेक बंदे उन इबादतों में तड़प उठते हैं। कि काश रमज़ान कुछ दिन और होता तो इबादत का और मौका मिल जाता। पता नहीं अगले रमज़ान में इसका मौका मिले या न मिले। एक तरफ ईद की तैयारियां चल रही होती है। लोग बाज़ारों का रुख करते हैं मगर खुदा के नेक बंदे रब से यही दुआ करते हैं कि काश मेरे रब जिंदगी में रमज़ान की नेयमत और मिल जाती तो इबादत का और मौका मिलता। दुआ करते-करते वो बेज़ार होकर रो पड़ते हैं। दिल इण्डिया कि एक रिपोर्ट..।

रमज़ान जैसे-जैसे रुखसत होने लगता है। रातों की इबादतें बढ़ जाती है। खुदा के नेक बंदे उन इबादतों में तड़प उठते हैं। कि काश रमज़ान कुछ दिन और रुक जाता तो थोड़ा और इबादत का मौका मिल जाता। पता नहीं अगले रमज़ान में इबादत का मौका मिले या न मिले। हम हयात में हों न हो। एक तरफ ईद की तैयारियां चल रही है। लोग बाज़ारों का रुख कर रहे हैं। बंदा पूरे महीने कामयाबी से रोज़ा रखने के बाद अपनी कामयाबी की उनमें खुशी तलाश रहा हैवहीं कुछ ऐसे भी खुदा के नेक बंदे हैं जो इन दुनियावी मरहले से दूर होकर अपने रब से रमज़ान के आखिरी वक्त तक दुआएं मांगता है। लोगों की मगफिरत के लिए पूरी-पूरी रात जागकर इबादत करता है। इस्लामी मामलों के जानकार मौलाना अमरुलहुदा कहते हैं रमज़ान का आखिरी अशरा रोज़ेदारों के लिए खासी अहमीयत रखता है। इसमें ताक रातों में खूब इबादत मोमिनीन करते है ताकि उनकी मगफिरत तो हो ही साथ ही जो लोग दीन से भटक गये हैंजो रोज़े और नमाज़ की अहमीयत नहीं समझ सके वो नादान भी सही राह पर आ जायें।

रोने-गिड़गिड़ाने वाला खुदा को बेहद पसंद 

छोटी मस्ज़िद औरंगाबाद के इमाम मौलाना निज़ामुद्दीन चतुर्वेदी कहते हैं कि खूब इबादत के बाद भी खुदा के नेक बंदे सिर सजदे में और हाथ इबादत में उठाये खुदा से यही दुआ करते हैं कि इस बार इबादत ज्यादा नहीं कर पाया ऐ मेरे रब जिंदगी में रमज़ान की नेयमत और मिल जाये ताकि और इबादत का मौका मिले। वो बताते हैं कि दुआओं के दौरान ज़ार-ज़ार रोने और गिड़गिड़ाने वाला खुदा के नज़दीक बेहद पसंद किया जाता है। इसलिए खुदा के नेक बंदे रमज़ान की रुखसती पर दुआ के वक्त रो पड़ते हैं।

रोज़ा न रखने वाले पर अज़ाब नाज़िल होगा

मदरसा फारुकिया के कारी शाहबुददीन कहते हैं हममें से कई ऐसे भी बंदे हैं जो रमज़ान महीने की अहमीयत नहीं समझ पायेरात की इबादत तो दूर दिन में ही वो चाय खाने और पान की दुकानों को आबाद किये रहते हैं। हदीस और कुरान में आया है कि ऐसे लोगों पर खुदा का अज़ाब नाज़िल होगा। 

हाफिज तहसीन रज़ा ग़ालिब कहते है कि जिन लोगों ने रब के महीने की अहमीयत नहीं समझी। जो दिन रोज़े व रात इबादत में गुज़रनी चाहिए उसे ज़ाया किया। शर्म आती है ऐसे लोगों पर जो खुद को मुसलमान तो कहते हैं मगर उनमें मोमिन की कोई 

पहचान नहीं नज़र आती। रमज़ान में मोमिनीन ऐसे लोगों के लिए भी दुआएं करते हैं। उधर शिया जामा मस्ज़िद के प्रवक्ता सैयद फरमान हैदर रोज़दारों को सुझाव देते हैं कि जो कुछ भी नेकिया रमज़ान में कमाया है उसे ईद में लूटा न देंक्यों कि रमज़ान की नेकियां ही साल भर इंसान को बुरे कामों और बुराईयों से बचाती हैं। रमज़ान में कमाई नेकियों को संजो कर रखे।

सोमवार, 3 मई 2021

इमाम जाग रहा है ज़माना सोता है…

हज़रत अली की शहादत पर हुई मजलिसें

वाराणसी(दिल इंडिया लाइव)। खुदा के सजदे में साजिद शहीद होता हैइमाम जाग रहा है ज़माना सोता हैकुछ ऐसे ही मिसरे फिज़ा में बुलंद हुए। मौका था शेरे खुदा मुश्किलकुशा हज़रत अली की शहादत की याद में शहर भर में हुई मजलिस का। कोविड के चलते विभिन्न इलाकों से उठने वाला ताबूतअलम का जुलूस इस बार नहीं निकाला गया, मगर सोश्ल डिस्टेंसिंग के साथ लोगों ने घरों में मजलिस का एहतमाम किया। शाम में अंजुमन ज़ाफरियाअंजुमन अज़ादारे हुसैनी, दोषीपुराअंजुमन नसीरुल मोमीनीनअंजुमन आबिदिया चौहट्टालाल खां की ज़ेरे निगरानी इस बार जुलूस नहीं निकला। हर बार यह जुलूस तेलियानालामुकीमगंजजलालीपुरा आदि इलाकों से होकर सदर इमामबाड़ा लाट सरैया पहुंचता था तो शिवाला स्थित मस्जिद डिप्टी जाफर बख्त से ताबूत का जुलूस उठाया जाता था जो शिवाला घाट पहुंच कर सम्पन्न होता था। जुलूस की ज़ियारत करने के लिए जगह-जगह लोगों का मजमा जुटता था।

दर्द भरे नौहों के बोल पर हुआ मातम

मजलिस में शामिल लोगों ने दर्द भरे नौहों के बोल पर मातम का नज़राना पेश किया। मजलिस में उलेमा ने कहा कि मौला अली वो शक्सीयत थे जिन्होंने अपनी शहादत के वक्त भी कहा कि मैं कामयाब हो गया। क्यों कि वो काबा में पैदा हुए और मस्जिद में शहीद हुए।

काली महाल मस्जिद में मजलिस को खेताब करते हुए शिया जामा मस्जिद के प्रवक्ता सैयद फरमान हैदर ने कहा कि अली बहादुरीशुजातइबादतशहादतसब्रइल्म और खुद्दारी का नाम है। हज़रत अली कहा करते थे कि दुश्मन को उतनी ही सजा दो जिसका वो हक़दार है। यही वजह है कि जब उन पर हमला करने वाला कातिल उनके सामने लाया गया तो उन्होंने हजरत इमाम हसन से कहा कि हसन इसकी रस्सी खोल दो और जो शर्बत उनके लिये लाया गया था उसे उन्होंने अपने दुश्मन को दे दिया।

शबे कद्र की है रात, जाग रहे रोज़ेदार

पूरी रात होगी इबादत, मांगी जायेगी खुसूसी दुआएं

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। आज शबे कद्र की रात है, आज पूरी रात इबादत होगी, रोज़ेदार पूरी रात जागकर इबादत में मशगूल रहेंगे। दरअसल माहे रमजान के आखिरी दस दिनों की पांच रातों में से कोई एक रात शबे कद्र की रात होती है। इस रात में लोग जागकर रब की इबादत करते हैं। इस्लाम में इस रात को हजार रातों से अफजल बताया गया है। इसलिए रोजेदार ही नहीं बल्कि हर कोई इस रात में इबादत कर अल्लाह से खुसूसी दुआ मांगता है।

हज़ार रातों से अफज़ल है शबे कद्र की रात

रमज़ान महीने के आखरी अशरे के दस दिनों में पांच रातें ऐसी होती हैं जिन्हें ताक रातें कहा जाता है। ये हैं रमज़ान की 21, 23, 25, 27, 29 शब। इममें से कोई एक शबेकद्र की रात होती है। यह रात हजार महीनों से बेहतर मानी जाती है। इस रात में मुस्लिम मस्जिदों व घरों में अल्लाह की कसरत से इबादत करते हैं। इसमें महिलाएं और बच्चे भी घरों में इबादत करते दिखाई देते हैं। मौलाना निज़ामुददीन चतुर्वेदी कहते हैं कि कुरान में बताया गया है कि तुम्हारे लिए एक महीना रमजान का है, जिसमें एक रात है जो हजार महीनों से अफजल है। कहा कि जो शख्स इस रात से महरूम रह गया वो भलाई और खैर से दूर रह गया। जो शख्स इस रात में जागकर ईमान और सवाब की नीयत से इबादत करता है तो उसके पिछले सभी गुनाह माफ कर दिए जाते हैं। उन्होंने कहा कि यह रात बड़ी बरकतों वाली रात होती है। यह रात बड़ी ही चमकदार होती है व सुबह सूरज बिना किरणों के ही निकलता है। इस रात को मांगी गई दुआ हर हाल में कुबूल होती है।

दो अशरा हुआ पूरा

रमज़ान महीने को तीन अशरों में बांटा गया है। पहले अशरा रहमत, दूसरे को मगफिरत व तीसरे अशरे को जहन्नुम से आजादी का अशरा कहा जाता है। प्रत्येक अशरा दस दिन का होता है। आज 20 रोज़ा पूरा होने के साथ ही दूसरा अशरा मगफ़िरत का भी मुकम्मल हो गया और तीसरा अशरा जहन्नुम से आज़ादी का शुरु हो गया।



ये है ज़कात देने का सही वक्त



                    रमज़ान का पैग़ाम (03-05-2021)

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। इस्लाम में जकात फर्ज हैं। जकात पर मजलूमों, गरीबों, यतीमों, बेवाओं का ज्यादा हक है। इस वक्त दुनिया कोरोना महामारी की चपेट में है। ऐसे में जल्द से जल्द हकदारों तक ज़कात पहुंचा दें ताकि वह रमजान व  ईद की खुशियों में शामिल हो सकें। ये ज़कात देने का सही वक्त है। जकात फर्ज होने की चंद शर्तें है। मुसलमान अक्ल वाला हो, बालिग हो, माल बकदरे निसाब (मात्रा) का पूरे तौर का मालिक हो। मात्रा का जरुरी माल से ज्यादा होना और किसी के बकाया से फारिग होना, माले तिजारत (बिजनेस) या सोना चांदी होना और माल पर पूरा साल गुजरना जरुरी हैं। सोना-चांदी के निसाब (मात्रा) में सोना की मात्रा साढ़े सात तोला (87 ग्राम 48 मिली ग्राम ) है जिसमें चालीसवां हिस्सा यानी सवा दो माशा जकात फर्ज है।

सोना-चांदी के बजाय बाजार भाव से उनकी कीमत लगा कर रुपया वगैरह देना जायज है। जिस आदमी के पास साढ़े बावन तोला चांदी या साढ़े सात तोला सोना या उसकी कीमत का माले तिजारत हैं  और यह रकम उसकी हाजते असलिया से अधिक हो। ऐसे मुसलमान पर चालीसवां हिस्सा यानी सौ रुपये में ढ़ाई रुपया जकात निकालना जरुरी हैं। दस हजार रुपया पर ढ़ाई सौ रुपया, एक लाख रुपया पर ढ़ाई हजार रुपया जकात देनी हैं। सोना-चांदी के जेवरात पर भी जकात वाजिब होती है। तिजारती (बिजनेस) माल की कीमत लगाई जाए फिर उससे सोना-चांदी का निसाब (मात्रा) पूरा हो तो उसके हिसाब से जकात निकाली जाए। अगर सोना चांदी न हो और न माले तिजारत हो तो कम से कम इतने रूपये हों कि बाजार में साढ़े बावन तोला चांदी या साढ़े सात तोला सोना खरीदा जा सके तो उन रूपर्यों की जकात वाजिब होती है।


-इन्हें दी जा सकती हैं जकात

"ज़कात" में अफ़ज़ल यह है कि इसे पहले अपने भाई-बहनों को दें, फ़िर उनकी औलाद को, फ़िर चचा और फुफीयों को, फ़िर उनकी औलाद को, फ़िर मामू और ख़ाला को, फ़िर उनकी औलाद को, बाद में दूसरे रिश्तेदारों को, फ़िर पड़ोसियों को, फ़िर अपने पेशा वालों को। ऐसे छात्र को भी "ज़कात" देना अफ़ज़ल है, जो "इल्मे दीन" हासिल कर रहा हो। ऊपर बताये गये लोगों को जकात तभी दी जायेगी जब सब गरीब हो, मालिके निसाब न हो।
जकात का इंकार करने वाला काफिर और अदा न करने वाला फासिक और अदायगी में देर करने वाला गुनाहगार  हैं। मुसलमानों को चाहिए कि जल्द से जल्द जकात की रकम निकाल कर गरीब, यतीम, बेसहारा मुसलमान को दें दे ताकि वह अपनी जरुरतें पूरी कर लें। जकात बनी हाशिम यानी हजरते अली, हजरते जाफर, हजरते अकील और हजरते अब्बास व हारिस बिन अब्दुल मुत्तलिब की औलाद को देना जाइज नहीं। किसी दूसरे मुरतद बद मजहब और काफिर को जकात देना जाइज नहीं है। सैयद को जकात देना जाइज नहीं इसलिए कि वह भी बनी हाशिम में से है। कम मात्रा यानी चांदी का एतबार ज्यादा बेहतर हैं कि सोना इतनी कीमत का सबके पास नहीं। नबी के जमाने में सोना-चांदी की मात्रा मालियत के एतबार से बराबर थीं। अब ऐसा नहीं हैं। गरीब के लिए भलाई कम निसाब (मात्रा) में हैं।
 अगर आप "मालिके निसाब" हैं, तो हक़दार को "ज़कात" ज़रुर दें, क्योंकि "ज़कात" ना देने पर सख़्त अज़ाब का बयान कुरआन शरीफ में आया है। जकात हलाल और जाइज़ तरीक़े से कमाए हुए माल में से दी जाए। क़ुरआन शरीफ में हलाल माल  को खुदा की राह में ख़र्च करने वालों के लिए ख़ुशख़बरी है, जैसा कि क़ुरआन में अल्लाह तआला फ़रमाता है कि... "राहे ख़ुदा में माल ख़र्च करने वालों की मिसाल ऐसी है कि जैसे ज़मीन में किसी ने एक दाना बोया, जिससे एक पेड़ निकला, उसमें से सात बालियां निकलीं, उन बालियों में सौ-सौ दाने निकले। गोया कि एक दाने से सात सौ दाने हो गए। अल्लाह इससे भी ज़्यादा बढ़ाता है। जिसकी नीयत जैसी होगी, वैसी ही उसे बरकत देगा"।
   
       डा. एम. एम. खान
              चेयरमैन
मुग़ल एकेडमी, लल्लापुरा, वाराणसी

रविवार, 2 मई 2021

रो पड़ा बनारस का सिख समुदाय

नहीं रहे गुरुद्वारा प्रबंध कमेटी के अध्यक्ष सब्बरवाल

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। गुरुद्वारा प्रबंध कमेटी, वाराणसी के अध्यक्ष जसबीर सब्बरवाल का मेदांता अस्पताल में निधन हो गया। उनका पार्थिव शरीर सोमवार की सुबह बनारस पहुँचेगा। उनके निधन की खबर से बनारस का सिख पंथ शोक में डूब गया। वे अपने पीछे पत्नी, दो पुत्र व एक पुत्री का भरा परिवार छोड़ गये हैं।



जसबीर सब्बरवाल 2010 से लगातार बनारस के गुरुद्वारा प्रबंध कमेटी के अध्यक्ष थे। आज ही मेदांता में ह्रदय गति रुकने से उनका निधन हो गया। सोमवार को उनका पार्थिव शरीर निवास पहुँचेगा जहां से गुरुद्वारा गुरुबाग व गुरुद्वारा नीचीबाग ले ज़ाया जायेगा। इसके बाद उनका अंतिम संस्कार होगा। 

रमज़ान के रोज़े को तीन तरह से समझे

रमज़ान का पैग़ाम

(02-05-2021)

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। रमज़ान की नेमतों और रहमतों का क्या कहना। रमज़ान तमाम अच्छाइयां अपने अंदर समेटे है। रमज़ान का रोज़ा रोज़ेदारों के लिए रहमत व बरकत का सबब बनकर आता है। इसमें तमाम परेशानियां और दुश्वारियां बंदे की दूर हो जाती हैं। नेकी का रास्ता ऐसे खुला रहता है कि फर्ज़ और सुन्नत के अलावा नफ्ल इबादत और मुस्तहब इबादतों की भी बंदा कसरत करता है। रोज़ा कितनी तरह का होता है इसे कम ही लोग जानते हैं। तो रमज़ान के रोज़े को तीन तरह से समझे। मसलन पहलाआम आदमी का रोज़ा: जो खाने पीने और जीमाह से रोकता है। दूसरा खास लोगों का रोज़ा: इसमें खाने पीने और जीमाह के अलावा अज़ा को गुनाहों से रोज़ेदार बचाकर रखता हैमसलन हाथपैरकानआंख वगैरह से जो गुनाह हो सकते हैंउनसे बचकर रोज़ेदार रहता है। तीसरा रोज़ा खवासुल ख्वास का होता है जिसे खास में से खास भी कहते हैं। वो रोज़े के दिन जिक्र किये हुए उमूर पर कारबन भी रहते हैं और हकीकतन दुनिया से अपने आपको बिलकुल जुदा करके सिर्फ और सिर्फ रब की ओर मुतवज्जाह रखते हैं। रमज़ान की यह भी खसियत है कि जब दूसरा अशरा पूरा होने वाला रहता है तो, 20 रमज़ान से ईद का चांद होने तक मोमिनीन मस्जिद में खुद को अल्लाह के लिए वक्फ करते है। जिसका नाम एतेकाफ है। एतेकाफ सुन्नते कैफाया है यानि मुहल्ले का कोई एक भी बैठ गया तो पूरा मुहल्ला बरी अगर किसी ने नहीं रखा तो पूरा मुहल्ला गुनाहगार। पूरे मोहल्ले पर अज़ाब नाज़िल होगा। रमज़ान में एतेकाफ रखना जरूरी। एतेकाफ नबी की सुन्नतों में से एक है। एतेकाफ का लफ्ज़ी मायनेअल्लाह की इबादत के लिए वक्फ कर देना। हदीस और कुरान में है कि एतेकाफ अल्लाह रब्बुल इज्ज़त को राज़ी करने के लिए रोज़ेदार बैठते है। एतेकाफ सुन्नते रसूल है। हदीस व कुरान में है कि हजरत मोहम्मद रसूल (स.) ने कहा कि एतेकाफ खुदा की इबादत में रोज़ेदार को मुन्हमिक कर देता है और बंदा तमाम दुनियावी ख्वाहिशात से किनारा कर बस अल्लाह और उसकी इबादतों में मशगूल रहता है। इसलिए जिन्दगी में एक बार सभी को एतेकाफ पर बैठना चाहिए। या अल्लाह ते अपने हबीब के सदके में हम सबको रोज़ा रखने और दीगर इबादतों को पूरा करने की तौफीक दे।..आमीन।

       

  मौलाना डा. शफीक अजमल

(लेखक मुसलिम मामलों के जानकार)

'हमारी फिक्र पर पहरा लगा नहीं सकते, हम इंकलाब है हमको दबा नहीं सकते'

'बेटियां है तो घर निराला है, घर में इनसे ही तो उजाला है....' डीएवी कॉलेज में मुशायरे में शायरों ने दिया मोहब्बत का पैगाम Varanasi (d...