सोमवार, 18 मार्च 2024

नवसाधना कला केन्द्र का 25 वाँ दीक्षांत समारोह


राग रागेश्री में मल्लारी संग तिल्लाना की ताल ने किया रोमांचित 

‘नैनन नींद न आवे सजनवा’ से छायी सौंदर्य श्रृंगार की घटा





Varanasi (dil India live)। हृदय उद्भूत संगीत और नृत्य मनुष्य की स्वाभाविक अभिव्यक्ति है। निर्मल कोमल संगीत से ही जीवन में लय आता है। यह कहना है मुख्य अतिथि उदय प्रताप महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. धर्मेंद्र कुमार सिंह का। वह रविवार को शिवपुर-तरना स्थित नवसाधना कला केन्द्र के 25वें दीक्षांत समारोह में कलासाधकों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि संगीत के कारण ही हमें वास्तविक जीवन का अनुभव मिलता है।  

    विशिष्ट अतिथि मुम्बई विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. सुहास पेडनेकर ने कलासाधकों को नृत्य-संगीत के क्षेत्र में निरंतर आगे बढ़ते रहने के कई टिप्स दिए। कहा कि संगीत साधना में गुरु भक्ति और उस पर पूर्ण विश्वास साधक को आगे बढ़ाता है।


अध्यक्षता कर रहे वाराणसी धर्मप्रान्त के धर्माध्यक्ष बिशप यूजिन जोसेफ ने कहा कि कला की साधना कलासाधकों के कला के प्रति रुचि और समर्पण पर निर्भर है। उन्होंने कलासाधकों को संगीत के आध्यात्मिक पक्ष को आत्मसात करने को कहा।

    अतिथियों का स्वागत करते हुए नवसाधना कला केन्द्र के प्राचार्य डॉ. फादर फ्रांसिस डि’सूजा ने कहा कि सच्चा साधक सदैव समर्पित जीवन जीता है। उन्होंने कहा कि यूनिवर्सिटी की टॉपर लिस्ट में हर वर्ष नवसाधना के कलासाधक अपना नाम दर्ज कराते हैं। नवसाधना के गुरुजन और कलासाधकों की कड़ी मेहनत इसे संभव बनाती है। यह गुरु-शिष्य परम्परा के लिए गर्व की बात हैै।

कार्यक्रम का शुभारम्भ दीप प्रज्ज्वलन एवं शोभायात्रा के साथ वृहदारण्यक उपनिषद के श्लोक ‘दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः’ से हुआ। इसे कलासाधक दुर्गा रावत, महिमा, सलीमा, आशीष पीटर, अनुज एवं आशुतोष पाण्डेय ने प्रस्तुत किया। हारमोनियम पर संगत अनिकेत ने और संयोजन प्रो. आशुतोष मिश्र ने किया। दीक्षांत के कलासाधकों ने शिक्षा-दीक्षा को अनवरत जारी रखने और इसे निरंतरता प्रदान करने की शपथ लीं।

शास्त्रीय गायन से किया मुग्ध-

      बीपीए अष्टम सेमेस्टर के कलासाधक सुजाता, पीयूष, लक्ष्मण ने हिन्दुस्तानी संगीत के राग रागेश्री में गायन प्रस्तुत किया।

झपताल में बंदिश ‘गणपति गजाननम् मंगलकारी’ बोलों को खमाज थाट पर आरोह में ऋषभ-पंचम, हीन तथा अवरोह में पंचम वर्ज्य प्रस्तुत कर वाहवाही लूटीं। फिर अद्धा ताल में ‘नैनन नींद न आवे सजनवा’ तथा द्रुत तीन ताल में चतुरंग प्रस्तुत कर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। कलासाधकों ने सौंदर्य श्रृंगार को बखूबी प्रस्तुत कर ढेरों तालियां बटोरीं। तबले पर गुरु अनंग गुप्ता व हारमोनियम पर अनुज ने संगत किया। बंदिश रचना व संगीत संयोजन प्रो. गोविंद वर्मा ने किया।

मल्लारी से तिल्लाना तक थिरके पांव-

      शास्त्रीय नृत्य भरतनाट्यम् की प्रस्तुति संगीतमय नादस्वरम् नृत्य ‘मल्लारी’ से हुई। साधकों ने राग शंकरावर्णम, ताल आदि में विद्यालक्ष्मी और लता इडलवत् के नृत्य संयोजन एवं निखिल रामन्दली के संगीत में निबद्ध मल्लारी को प्रस्तुत किया। नृत्यांगनाओं ने नटराज शिव के मंदिर को जाने वाली शोभा यात्रा में पालकी उठाने वालों के द्वारा उत्पन्न शब्द व करतल ध्वनि में शामिल प्रार्थना और पुष्प वर्षा से प्रत्येक आरम्भ का अभिनंदन कर सभी को हर्ष से भर दिया।

अगली कड़ी ‘शब्दम्’ में नृत्यांगनाओं ने राग कम्बोजी से शुरु कर राग मालिका, ताल मिश्र चापू में निबद्ध तुरयुर राजगोपाल शर्मा के संगीत, शणमुगम के गीत, वीपी धन्नजय व प्रियदर्शिनी गोविंद की मूल नृत्य रचना को प्रस्तुत किया। स्कन्दवन भगवान कार्तिकेय के स्वरुप के श्रंगार के विप्रलंभ तथा उत्तान दोनों रुपों, पल्लवी-अनुपल्लवी, वादी-संवादी व आरोह-अवरोह तथा चरणम् की प्रस्तुति ने सबके मन को मोह लिया।

      इसके बाद सभी ने राग धनाश्री, ताल आदि में ‘वर्णनम्’ प्रस्तुत किया। नृत्यांगनाओं ने पल्लवी, अनुपल्लवी, मुत्तई स्वरम्, चित्तई स्वरम्, चरणम् को प्रस्तुत किया। इसमें त्रिकाल जाति और पूर्वांगम और उत्तरांगम को बखूबी प्रस्तुत किया गया। श्रृंगार और वीर रस से भरे इस नृत्य में नृत्यांगनाओं के पदचलन व अंग संचालन ने सौन्दर्य सृजन करते हुए भावपूर्ण आभामय नृत्याभिनय किया। पापनाशन शिवम् के संगीत और अडयार के. लक्ष्मणम् के नृत्य संयोजन के विस्तार में वात्सल्य, करुणा और वीर तथा

शांत रस की प्रमुखता रहीं।

         इसके बाद कलासाधकों ने राग हिण्डोलम्, ताल चतुश्रय एकम् में तिरु के. के. वैद्यनाथन के संगीत एवं रुक्मिणी देवी अरुण्डेल के नृत्य संयोजन में निबद्ध पल्लवी, अनुपल्लवी और चरणम् के साथ ‘तिल्लाना’ प्रस्तुत किया। तमिलनाडु के अम्मन मंदिर, कांची कामाक्षी देवी के मनोकामना पूर्ति और लागों के दुख-ताप को कम करने के भाव को मुद्राओं के माध्यम से प्रस्तुत कर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।

      अंत में ‘मंगलम्’ प्रस्तुत करते हुए देवताओं के साथ गुरुजनों और दर्शकों को भावांजलि अर्पित कर नृत्य का समापन हुआ। नृत्यांगनाओं की भाव भंगिमा व पद संचालन व नृत्य क्षमता की सभी ने सराहना की।

     नृत्य संयोजन करते हुए नाट्वंगम् पर प्रो. मीरा माधवन, कर्नाटिक गायन में सुश्री एसआर स्वाति, मृदंगम पर प्रो. राकेश एडविन और वायलिन पर हेमंत कुमार ने संगत किया। साधकों में अजय कुमार धीरज, एलिशा रॉय, अलीशा कुजुर, अमरज्योति, अंकिता रावत, बर्नाडेट, जेनिफर, कुमारी मीरा, मधु, मीरा नाग, प्रिया दुलाल मिंज, शालिनी, शिल्पी, सिमरन, श्वेता शामिल थीं।

नृत्य नाटिका से कर्म का संदेश-

     इसके बाद बीपीए के नृत्य साधकों ने ‘मेरा जीवन सूना सूना, तेरे बिना ए खुदा’ गीत के बोलो पर  भरतनाट्यम नृत्य शैली में नाटिका प्रस्तुत कर सभी का मन मोह लिया। इसमें आधे देह की पीड़ा से दुखी अर्द्धांगरोगी को ठीक करने के दृष्टांत को प्रस्तुत कर भक्ति की धारा बहा दीं। फादर सी.आर. जस्टी के निर्देशन और प्रो. प्रार्थना सिंह के नृत्य निर्देशन में बाइबिल की कथा के दृष्टांत को आराधना, प्रीति, विनीता, नेहा, कनिष्का, श्वेता शुक्ला, आरती, रेखा, फ्रांसिस्का, सपना, साक्षी और रोशन ने नृत्य के माध्यम से ईश्वर के आशीर्वाद और समर्पित प्रेम को अभिव्यक्त किया। नृत्य नाटिका ने सभी के मन को उत्साह से भर दिया। गायन रमेश मुरली, संगीत सोबिन सनी, तबला और मृदंगम पर जोमन जोसेफ एवं मिक्सिंग सेवियो पीटी ने किया।

प्रिंटानिया पुरस्कार 2024 -

परंपरागत सर्जनात्मकता के विशेष योगदान हेतु प्रिंटानिया के संस्थापक अल्बर्ट डिसूजा द्वारा लास्य कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स, कन्नूर, केरल की सुप्रसिद्ध कलाकार और गुरु असिस्टेंट प्रो. डॉ. विद्यालक्ष्मी ई. और महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के गायन की विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. संगीता घोष को प्रिंटानिया पुरस्कार-2024 दिया गया। गुरुजनों को बिशप ने और कलासाधकों को मुख्य अतिथि ने सम्मानित किया।

 मंच संचालन प्रो. डॉ. राम सुधार सिंह ने किया। कॉलेज लीडर श्वेता किण्डो ने धन्यवाद ज्ञापित किया। समारोह में प्राचार्य फादर डॉ. फ्रांसिस डि’सूजा, उपप्राचार्य सिस्टर रोज़ली, सिस्टर मंजू, सिस्टर लूसी, डॉक्टर फादर विल्फ्रेड डि’सूजा, डॉ. फादर रोजन सेबास्टियन, फादर सी.आर. जस्टी, प्रो. गोविन्द वर्मा, प्रो. अनंग गुप्ता, प्रो. कामिनी मोहन, प्रो. राकेश एडविन, प्रो. प्रार्थना सिंह, प्रो. मीरा माधवन, समेत सभी कलासाधक मौजूद रहे।

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