रात रूकना है यहाॅ, सुबह चले जाना है...
वाराणसी (प्रताप बहादुर सिंह/दिल इंडिया) डीएवी पीजी काॅलेज के हिन्दी विभाग के छात्र मंच ‘पल्लव‘ के तत्वावधान में गुरूवार को नवांकुर कवियों ने मौलिक कविताओं के जरिये सामाजिक कुरीतियों पर कटाक्ष किया, वहीं नारी वेदना को भी काव्यपाठ में अभिव्ययक्त किया। आनलाइन आयोजित हुई काव्य गोष्ठी मेंं दो दर्जन से अधिक युवा कवियों ने सहभागिता की। छात्र आयुष पाण्डेय ने स्त्री शक्ति पर आधारित ‘हे नारी, तू काली है, तू दूर्गा है, तू नारायणी है, जगदम्बा है, तू इतनी पावन जैसे कृष्णा की मुरली, हे नारी, तू अबला नही सबला है, जैसे झांसी की रानी‘ प्रस्तुत किया। छात्रा गीतांजली यादव ने ‘ पहनावे से आंकना चरित्र स्त्री का किसने दिया तुम्हे अधिकार इसका ? पहनावे की बेड़ी लगा कभी बढ़ते कदम को न रोकना‘ सुनाया। निर्मल एहसास ने ‘ हमने अपनी प्यास बंेच दी गीतो को, कब तक दरिया दरिया मारे मारे फिरते.....‘ सुनाया। दुर्गादत्त पाण्डेय ने ‘लाचार नही है नारी, कभी सुना है आपने ? उस देवी के बारे में जो हर वक्त, जिम्मेदारियों तले खुद को, समर्पित किए है‘ आदि हृदयस्पर्शी कविताओं के जरिये सामाजिक व्यवस्था पर टिप्पणी की।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डाॅ. राकेश कुमार द्विवेदी ने ‘जिस्म और रूह दोनों किनारें है, जिसमें जीवन के सब तराने है, पानी दुनिया है ये, मंजिल कहाॅ ठिकाना है। रात रूकना है यहाॅ और सुबह चले जाना है‘ सुनाकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। छात्र विद्या वैभव भारद्वाज ने ‘चिन्ता नही चिन्तन करें, अब खुद को ही दर्पण करें‘ सुनाया। कार्यक्रम संयोजक डाॅ. राकेश कुमार राम ने स्वागत, धन्यवाद ज्ञापन डाॅ. समीर कुमार पाठक ने दिया। संचालन छात्र विद्या वैभव भारद्वाज एवं राजन कुमार एवं तकनीकी सहयोग उज्ज्वल सिंह ने किया। कार्यक्रम में डाॅ. अस्मिता तिवारी, वन्दना मिश्रा, रक्षित राज, रवि रंजन, प्रतिक्षित शुभम, द्रविड़ कुमार, अभिजीत कुमार, प्रेम शंकर, दियांशु पाठक आदि ने भी काव्य पाठ किया।
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