रविवार, 9 मई 2021

शबे कद्र :रोजेदार कर रहे जाग कर इबादत

हज़ार रातों में अफज़ल है शबे कद्र की एक रात

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। रमज़ान महीने के आखरी अशरे के दस दिनों में पांच रातें ऐसी होती हैं जिन्हें ताक रातें कहा जाता है। ये हैं रमज़ान की 21, 23, 25, 27 व 29 वीं की शब। इममें से कोई एक शबेकद्र की रात होती है। यह रात हजार महीनों से बेहतर मानी जाती है। यही वजह है कि इन पांचों रातों में मुस्लिम मस्जिदों व घरों में अल्लाह की कसरत से इबादत करते हैं। 21, 23 व 25 की शबे कद्र बीत गई है। आज 27 वीं मुकददस रात है। यही वजह है कि मर्द ही नही महिलाएं और बच्चे भी घरों में रात जागकर इबादत करते दिखाई दिये। इसके बाद 29 वी की शब इस रमज़ान की आखिरी शबे कद्र की रात होगी। मौलाना हसीन अहमद हबीबी कहते हैं कि रब कहता है कि तुम्हारे लिए एक महीना रमजान का है, जिसमें एक रात है जो हजार महीनों से अफजल है। उस रात का नाम शबे कद्र है।यानी यह कद्र वाली रात है कि जो शख्स इस रात से महरूम रह गया वो भलाई और खैर से दूर रह गया। जो शख्स इस रात में जागकर ईमान और सवाब की नीयत से इबादत करता है तो उसके पिछले सभी गुनाह माफ कर दिए जाते हैं। उन्होंने कहा कि यह रात बड़ी बरकतों वाली रात होती है। इस रात को मांगी गई दुआ हर हाल में रब कुबूल करता है।


ईद का पैग़ाम -02 (09-05-2021)

जो रमज़ान के इम्तेहान में पास हुआ उसी की ईद

वाराणसी(दिल इंडिया लाइव)। जो रमज़ान के इम्तेहान में पास हुआ उसी को ईद मनाने का हक है। दरअसल मज़हबे इस्लाम में सब्र और आजमाइश को आला दर्जा प्राप्त है। कहा जाता है कि रब वक्त-वक्त पर हर बंदों का इम्तेहान लेता है और उन्हें आज़माता है। ईद की कहानी भी सब्र और आज़माइश का ही हिस्सा है। यानी माह भर जिसने कामयाबी से रोज़ा रखासब्र कियाभूखा रहाखुदा की इबादत कीवो रमज़ान के इम्तेहान में पास हो गया और उसे रब ने ईद कि खुशी अता फरमायी। दरअसल ईद उसकी है जो सब्र करना जानता होजिसने रमज़ान को इबादतों में गुज़ारा होजो बुरी संगत से पूरे महीने बचता रहा होमगर उस शख्स को ईद मनाने का कोई हक़ नहीं है जिसने पूरे महीने रोज़ा नहीं रखा और न ही इबादत की। नबी-ए-करीम (स.) ने फरमाया कि रमज़ान वो मुकदद्स महीना है जो लोगों को यह सीख देता है कि जैसे तुमने एक महीना अल्लाह के लिए वक्फ कर दियासुन्नतों और नफ़्ल पर ग़्ाौर कियाउस पर अमल करता रहावैसे ही बचे पूरे साल नेकी और पाकीज़गी जारी रखो। यह महीना इस बात की ओर भी इशारा करता है कि अगर एक महीने की इबादत के बाद ईद की खुशी बंदों को रब देता है तो 12 महीने अगर इबादतों में गुज़ारा जाये तो जिन्दगी में हर दिन ईद जैसा और हर रात रमज़ान जैसी होगी। रमज़ान महीने की इबादत इसलिए भी महबूब है क्यों कि ये अल्लाह का महीना है और इस महीने के पूरा होते ही खुदा ईद का तोहफा देकर यह बताता है कि ईद की खुशी तो सिर्फ दुनिया के लिए ह। इससे बड़ा तोहफा कामयाब रोज़ेदारों को आखिरत में जन्नत के रूप में मिलेगा। पूरी दुनिया में यह अकेला ऐसा त्योहार है जिसमें कोईभी पुराने या गंदे कपड़ों में नज़र नहीं आता। अगर एक महीने की इबादत के बाद ईद मिलती है तो हम साल के बारह महीने इबादत करें तो हमारा हर दिन ईद होगा। तो हम क्यों न हर दिन हर महीना अपना इबादत में गुज़ारे।



             आतिफ मोहम्मद खालिद

(शिक्षक, कमलापति त्रिपाठी इंटर कालेज वाराणसी)

 

शनिवार, 8 मई 2021

ईद का पैगाम-1(08-05-2021)

 सबको खुशियां बांटने का नाम है ईद

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। रमज़ान के बाद जब ईद आये तो इस बात का पता करो कहीं कोई रो तो नहीं रहा हैकोई ऐसा घर तो नहीं बचा है जहां ईद के लिए सेवईयां न हो। कोई पड़ोसी भूखा तो नहीं है। अगर ऐसा है तो उसकी मदद करना हर साहिबे नेसाब पर वाजिब है।

अरबी में किसी चीज़ के बार-बार आने को उद कहा जाता है उद से ही ईद बनी है। ईद का मतलब ही वो त्योहार है जो बार-बार आये। यानी जिसने रोज़ा रखा है उसके लिए ईद बार-बार आएगी। ईद तोहफा है उनके लिए जिन्होंने एक महीना अपने आपको अल्लाह के लिए वक्फ कर दिया। यही वजह है कि रमज़ान और ईद एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। अगर रमज़ान होता और ईद न होती तो हमें शायद इतनी खुशी न होती। खासकर छोटे-छोटे बच्चे जिन्हें किसी से कोई लेना देना नहीं होता मगर वो इसलिए खुश होते हैं कि रमज़ान खत्म होते ईद आयेगीईदी मिलेगी। इसे ईद-उल-फित्र भी कहते हैं क्यों कि इसमें फितरे के तौर पर किलों 45 ग्राम गेंहू जो हम खाते हो उसके दाम के हिसाब से घर के तमाम सदस्यों को सदाका-ए-फित्र निकालना होता है। दरअसल ईद उसकी है जिसने रमज़ान भर इबादत किया और कामयाबी से रमज़ान के पूरे रोज़े रखे। नबी-ए-करीम (स.) ईद सादगी से मनाया करते थे। इसलिए इस्लाम में सादगी से ईद मनाने का हुक्म है। एक बार नबी (स.) ईद के दिन सुबह फज्र की नमाज़ के बाद घर से बाज़ार जा रहे थे कि आपको एक छोटा बच्चा रोता हुआ दिखाई दिया। नबी (स.) ने उससे कहा आज तो हर तरफ ईद की खुशी मनायी जा रही है ऐसे में तुम क्यों रो रहे होउसने कहा यही तो वजह है रोने कीसब ईद मना रहे हैं मैं यतीम हूंन मेरे वालिदैन है और न मेरे पास कपड़े और जूते-चप्पल के लिए पैसा। यह सुनकर नबी (स.) ने उसे अपने कंधों पर बैठा लिया और कहा कि तुम्हारे वालिदैन भले नहीं हैं मगर मैं तुम्हे अपना बेटा कहता हूं। नबी-ए-करीम (स.) के कंधे पर बैठकर बच्चा उनके घर गया वहां से तैयार होकर ईदगाह में नमाज़ अदा की। जो बच्चा यतीम था उसे नबी-ए-करीम (स.) ने चन्द मिनटों में ही अपना बेटा बनाकर दुनिया का सबसे अमीर बना दिया। इसलिए ईद आये तो सभी में आप भी खुशियां बांटेसबको खुशी देंसही मायने में तभी आपकी ईद होगी। अल्लाह ताला सभी को रोज़ा रखने की तौफीक दे ताकि सभी की ईद हो जाये..आमीन।

                      


                      डा. मो. आरिफ

{लेखक मुस्लिम मामलो के जानकार व इतिहासकार हैं

शुक्रवार, 7 मई 2021

इन छात्रों ने बना डाला 'ऑक्सीजन कांसट्रेटर'


तो उत्तर प्रदेश में खत्म होगी ऑक्सीजन की समस्या




लखनऊ (प्रताप बहादुर सिंह/दिल इंडिया लाइव)। जहाँ एक ओर पूरे देश मे कोरोना महामारी की दूसरी लहर में ऑक्सिजन के लिए हाहाकार मचा हुआ है, उसमे लखनऊ, मोहनलालगंज के तिरुपति कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के छात्रों ने इस कमी को पूरा करने के लिए जरूरी 'ऑक्सीजन कांसट्रेटर' का निर्माण कर एक बार फिर से अपना लोहा मनवाया है। कॉलेज के इलेक्ट्रिकल विभाग एवं कॉलेज प्रबंधन द्वारा पिछले 20 दिनों से प्रोजेक्ट ''प्राणवायु'' पर काम चल रहा था, जिसे पूरा कर लिया गया है।

कॉलेज द्वारा बनाये गए ऑक्सीजन कांसट्रेटर की क्षमता 10 लीटर प्रति मिनट की है। इस मशीन को पीएसए (प्रेसर स्विंग एब्सॉर्प्शन) तकनीक पर बनाया गया है जिसकी मदद से यह मशीन वायुमंडल से ऑक्सीजन और नाइट्रोजन को अलग कर के 43 से 45 फीसदी शुद्ध ऑक्सीजन देता है। खास बात यह है कि इसे पूर्णतया स्वदेशी तकनीक पर बनाया गया है जिसका वजन मात्र 16 किलो है। 

ज्ञातव्य हो कि इस समय देश मे ऑक्सीजन कांसट्रेटर की मांग बहुत ज्यादा है,परंतु उस सापेक्ष निर्माण बिल्कुल नही है। ऐसे में यदि सरकारी संस्थाएं और गैर सरकारी संस्थाएं तिरुपति द्वारा विकसित किये गए ऑक्सीजन कांसट्रेटर में रुचि दिखाते है तो उत्तर प्रदेश के हालात सामान्य होने में काफी मदद मिल सकती है। कॉलेज की प्रबंधक श्रीमती मोनिका शर्मा ने बताया कि इस प्रोजेक्ट प्राणवायु को ख्यात चिकित्सक डॉ. डी.एन. शर्मा एवं चैयरमैन डॉ. प्रभात त्रिपाठी की देखरेख में पूरा किया गया है। प्रोजेक्ट गाइड निदेशक आशुतोष शर्मा एवं अध्यापक राजेन्द्र दीक्षित के निर्देशन में फार्मेसी अंतिम वर्ष के छात्र आदित्य तिवारी एवं इलेक्ट्रिकल अंतिम वर्ष के छात्र आदर्श विक्रम सिंह ने प्रोजेस्ट प्राणवायु को अंतिम स्वरूप प्रदान किया।

मोनिका शर्मा ने यह भी बताया कि इसकी लागत बाजार में मिलने वाले चीन के ऑक्सीजन कांसट्रेटर से लगभग आधी है, यदि सरकार का सहयोग मिला तो यहाँ के छात्र प्रतिदिन 20 ऑक्सीजन कांसट्रेटर का निर्माण कर सकते है।

बताते चले कि महामारी की पहली लहर के दौरान भी तिरुपति के छात्रों ने ही सबसे पहली बार डिसिन्फेक्टिव टनल एवं सेन्सरयुक्त हैंड सेनेटाइज़ेशन मशीन बनाई थी। वही पानी से चलने वाली बाइक का निर्माण कर यहाँ के छात्र पहले ही अपना लोहा तकनीक के क्षेत्र में मनवा चुके है।

गुरुवार, 6 मई 2021

अलविदा अलविदा माहे रमजान अलविदा.....


...तेरे आने से दिल खुश हुआ था

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)

 कल्बे आशिक है अब पारा पारा,

अलविदा अलविदा माहे रमजान।

तेरे आने से दिल खुश हुआ था,

और ज़ोके इबादत बडा था,

आह,अब दिल पे है गम का गलबा,

अलविदा अलविदा माहे रमजान।

नेकिया कुछ न हम कर सके हे,

अह इस्सियाहे में दिन कटे है,

हाय गफलत में तुझको गुज़ारा,

अलविदा अलविदा माहे रमजान।

कोई हुस्न अमल न कर सका हूँ,

चाँद आसू नज़र कर रहा हूँ

यही है मेरा कुल असासा,

अलविदा अलविदा माहे रमजान।

जब गुज़र जायेंगे माह ग्यारा,

तेरी आमद का फिर शोर होगा,

है कहा ज़िन्दगी का भरोसा,

अलविदा अलविदा माहे रमजान।

बज्मे इफ्तार सजती थी कैसी,

खूब सहेरी कि रोनक भी होती,

सब समां हो गया सुना सुना,

अलविदा अलविदा माहे रमज़ा।

याद रमजान की तड़पा रही है

आंसू की जरहे लग गयी है,

कह रहा है हर एक कतरा,

अलविदा अलविदा माहे रमज़ा।

तेरे दीवाने सब के सब रो रहे है,

मुज़्तरिब सब के सब रो रहे है,

कौन देगा इन्हें अब दिलासा,

अलविदा अलविदा माहे रमज़ा।

में बदकार हूँ मैं हूँ काहिल,

रह गया हूँ इबादत में गाफिल,

मुझसे खुश होके होना रवाना,

हमसे खुश होके होना रवाना,

अलविदा अलविदा माहे रमज़ा।

वास्ता तुझको प्यारे नबी (स.अ.व.) का,

हशर में मुझे मत भूल जाना,

हशर में हमें मत भूल जाना,

रोज़े महशर मुझे बकशवाना,

रोज़े महशर हमें बकशवाना,

अलविदा अलविदा माहे रमज़ा।

तुमपे लाखो सलाम माहे रमज़ा।

तुमपे लाखो सलाम माहे गुफरान।

जाओ हाफिज खुदा अब तुम्हारा,

अलविदा अलविदा माहे रमज़ा।

अलविदा अलविदा माहे रमज़ा।

अलविदा अलविदा माहे रमज़ा....।

अलविदा जुमा कल

कल रमज़ान का आखिरी जुमा यानी अलविदा जुमा है। कोविड 19 के चलते पिछली बार की तरह इस साल भी मसजिदो में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए केवल मसजिदों में रहने वालों को ही नमाज अदा करने की इजाज़त दी गई है। आम मुसलमान के लिए घर ही मसजिद होगी वो घर पर ही अलविदा के दिन ज़ोहर की नमाज़ अदा करेगा। मसजिदो में इमाम साहब खुतबे में, यह कलाम पढ़ेगे, अलविदा अलविदा माहे रमज़ा...। इसी के साथ कोरोना महामारी के खात्मे की दुआ भी होगी।

कोविड ने छीन लिया काम तो नाडर ने जाने क्या किया

4 दशक से थे ट्रैवल एजेंट अब बन गये किसान 

गाड़िया बेच खरीदी जमीन, खेती को बनाया पेशा

वाराणसी(दिल इंडिया लाइव)। कोविड-19 महामारी में बहुत लोग आपदा को अवसर में बदलने में जहां लगे हैं वही कुछ ऐसे भी लोग हैं जो कारोबार में नुकसान होने या कारोबार टूटने के बाद नये विकल्प तलाश कर खुद को स्थापित करने में लगे है। इसी फेहरिस्त में शामिल हैं वाराणसी के प्रमुख ट्रैवल एजेंट जो अब किसान बन गये हैं। हम बात कर रहे हैं ट्रैवल एजेंट के रूप में चार दशक से स्थापित रोनाल्ड बेंजामिन नाडर की। नाडर अब किसान बन गये हैं।

वो बताते हैं कि कोविड-19 के चलते मार्च 2020 में लाक डाउन घोषित किए जाने के बाद बनारस ही नही देश दुनिया का पर्यटन उद्योग चौपट हो गया, ऐसे में 5 महीने के इंतजार और कोई काम नहीं करने के बाद, मैंने रामनगर और चुनार में गंगा नदी के किनारे कृषि भूमि के लिए 5 साल के पट्टे समझौते पर हस्ताक्षर करने का फैसला किया। आज मैं हरी मटर, सरसों, दलहन यानी अरहर, उड़द, चना, सब्जियों और गेहूं की फसल की जैविक खेती कर रहा हूं। ईश्वर की कृपा से मुझे अच्छी नकदी फसल की प्राप्ति हुई है। नाडर बताते हैं कि मैं अपने पुराने टैक्सी वाहनों को बेचकर खुद को वित्त पोषित करता हूं, बिना काम किए खड़े रहने की अपनी मूल्यह्रास लागत के कारण।

कोई शक नहीं कि लेबर एक समस्या है, लेकिन मशीनों को लिए जाने से मुझे राहत मिली है और इसके अलावा मेरे दोस्त राजन तिवारी को एक बड़ा समर्थन मिला है, जो आउटबाउंड ट्रैवल इंडस्ट्री से भी हैं। नाडर कहते हैं कि मुझे अब खेती और कृषि पसंद आने लगी है और मैं इसे अपना मुख्य व्यवसाय बना चुका हूं। पर्यटन को अपने दूसरे विकल्प के रूप में मैं रख चुका हूँ। 

बहरहाल नाडर का कृषि की ओर लौटना एक नई उम्मीद है उनके लिए भी जो अपनी खेती और गांव की माटी छोड़ कर सुदूर शहरो में जा बसे हैं जीविका के लिए। नाडर ऐसे लोगों के लिए रोल माडल भी हो सकते हैं जो गांव की ओर खासकर कृषि को फिर से आपनाना चाहते हैं।





गरीबो, किसानों के मसीही अजीत सिंह का जाना




लोकदल के अगुवा चौधरी अजित सिंह पंचतत्व में विलिन

गुरुग्राम (दिल इंडिया लाइव)। राष्ट्रीय लोकदल के अगुवा व पूर्व केन्द्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह का अंतिम संस्कार कोविड-19 प्रोटोकॉल की गाइडलाइन के चलते गुरुग्राम में गुरूवार को किया गया। मदनपुरी स्थित रामबाग श्मशान घाट में हुए अंतिम संस्कार में बेटे जयंत चौधरी ने उन्हे मुखाग्नि दी। चौधरी अजीत सिंह गरीबो और किसानों के नेता के तौर पर जाने जाते थे। एक समय उन्होने भारतीय किसान कामगार पार्टी भी बनायी थी, जो लोकदल बनने के बाद स्वतः खत्म हो गयी।

22अप्रैल से थे अस्पताल में भर्ती

हम बता दे कि रालोद अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह को 22 अप्रैल को  कोरोना के कारण गुरुग्राम के आर्टिमिस अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनकी तबीयत कई दिन से खराब चल रही थी। फेफड़ों में संक्रमण बढ़ने के कारण पिछले तीन दिन से वे वेंटिलेटर पर थे। आज गुरुवार सुबह ही उनका निधन गया। 

कोविड प्रोटोकॉल के कारण उनका अंतिम संस्कार गुरुग्राम में करने का फैसला किया गया। उनके पुत्र रालोद उपाध्यक्ष जयंत चौधरी ने मुखाग्नि दी। दुख के इस क्षण में चौधरी अजीत सिंह की पुत्रवधू चारु चौधरी, दामाद विक्रम आदित्य सिंह और शैलेंद्र अग्रवाल मौजूद रहे। चौधरी अजित  सिंह के निधन पर हर तरफ शोक की लहर है।

सभी ने जताया अफसोस

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, पीएम मोदी, कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी, सपा प्रमुख अखिलेश यादव, सीएम योगी आदित्य नाथ समेत तमाम दलों के नेताओं ने श्रद्धांजलि अर्पित की है। सोशल मीडिया पर लोग उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं। देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बेटे चौधरी अजित सिंह उत्तर प्रदेश के बागपत से सात बार सांसद रहे और केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री भी रह चुके हैं। उत्तर प्रदेश ही नहीं देश की राजनीत में उनका दुनिया से जाना बड़ी क्षति है। लोकदल वाराणसी के पूर्व महानगर अध्यक्ष व एआईआईएम के प्रदेश सचिव परवेज़ कादिर खां ने अजीत सिंह के निधन पर ग़हरा अफसोस जताया है। उन्होंने कहा कि अजीत सिंह गरीबो और मजलूमो के नेता थे, उनके जाने से गरीब बेसहारा और किसानो को झटका लगा है।

'हमारी फिक्र पर पहरा लगा नहीं सकते, हम इंकलाब है हमको दबा नहीं सकते'

'बेटियां है तो घर निराला है, घर में इनसे ही तो उजाला है....' डीएवी कॉलेज में मुशायरे में शायरों ने दिया मोहब्बत का पैगाम Varanasi (d...