(क्षमावाणी पर्व २१ सितंबर पर खास)
विचारों में क्षमा है तो वाणी में भी आ जाता है क्षमा
- डा. अंजु जैन
वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। क्षमा से धर्म की शुरुआत होती है और उपसंहार भी क्षमा पर होता है। यदि विचारों में क्षमा आए तो वाणी में भी क्षमा आ जाती है। प्राणीमात्र के प्रति दया करुणा के भाव होना ही क्षमा है। गलतियों को भूलकर हम अपनों को ही नहीं, परायों को भी क्षमा करें। पारिवारिक जीवन में एक-दूसरे के सहयोग के बिना हमारा काम चल नहीं सकता तो फिर तकरार क्यों। थोड़ी सी जिंदगी है उसे हम सद्भाव और सहयोग की भावना से जिएं, यही क्षमा है। जैन ग्रंथों में आया है कि स्वयं को साफ करो, जगत को माफ करो और प्रभु व गुरु को याद करो। जब हम हर वस्तु साफ सुथरी उपयोग करते हैं, तो हमें मन को भी साफ रखना होगा, यही क्षमा है। क्षमा वाणी में ही नहीं, प्राणी में आना चाहिए और इस मानी प्राणी को पानी-पानी होना चाहिए। रावण को राम बनकर ही जीत सकते हैं, रावण बनकर नहीं। सामने वाला गलत है तो हम गलत न बनें, सज्जन बनें, यही क्षमा है। सबके साथ मित्रता के भाव से जीवन जिएं, यही क्षमा है। आइये प्रण ले कि क्षमावाणी पर्व पर हम सब एक दूसरे की गलतियां माफ कर क्षमा करेंगे।
(लेखक स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं।)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें