बुधवार, 15 सितंबर 2021

अंग्रेजी के बढ़ते चलन से हिंदी की हो रही है अनदेखी



फिरोज़ व अकील को सुल्तान ने किया सम्मानित



वाराणसी15 सितंबर (दिल इंडिया लाइव)। सामाजिक संस्था"सुल्तान क्लब" की ओर से हिंदी दिवस के अवसर पर  एक गोष्ठी का आयोजन, कोविड गाइड लाइन का पालन करते हुए रसूलपुरा स्थित कार्यालय में हर्षोल्लास के वातावरण में किया गया। 

इस अवसर पर नेशनल इंटर कॉलेज पीलीकोठी के हिंदी प्रवक्ता फिरोज अहमद अंसारी और मदरसा मतलउल उलूम कमनगढ़ा के अध्यापक मोहम्मद अकील अंसारी को मुख्य अतिथि ज्ञानवापी शाही मस्जिद ईदैन के इमाम मौलाना अब्दुल आखिर नोमानी ने अपने हाथों से स्मृति चिह्न व  प्रशस्ति व अंगवस्त्रम देकर सम्मानित किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्थाध्यक्ष डा. एहतेशमुल हक़ ने व संचालन महासचिव एच. हसन नन्हें ने किया। 

              इस अवसर पर मुख्य अतिथि फिरोज़ अंसारी ने कहा कि आजादी के बाद भी देश में अंग्रेजी के बढ़ते चलन और हिंदी की अनदेखी को रोकने के लिए हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। आजादी मिलने के 2 साल बाद 14 सितंबर 1949 ई0 को संविधान सभा में एकमत से हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया,तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय पंडित जवाहरलाल नेहरू ने हिंदी के महत्व को देखते हुए सन 1953 ई0 से इसे प्रत्येक वर्ष मनाने का निर्णय किया तब से आज तक यह दिन हिंदी दिवस के रूप में मनाते चले आ रहे हैं। इस भाषा की खास बात यह है कि इसमें जिस शब्द को जिस प्रकार से उच्चारित किया जाता है उसे लिपि में भी उसी प्रकार लिखा जाता है। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान राष्ट्रभाषा हिंदी का स्वाभिमान लोगों में समा चुका था लेकिन आजादी के बाद संविधान में हिंदी की विचित्र स्थिति के कारण दुर्भाग्य से यह भाव पहले की अपेक्षा कमजोर ही हुआ यद्यपि सेना अर्धसैनिक बल रेलवे बैंक बीमा और राज्य व केंद्र सरकार के विभिन्न कार्यालयों आदि के माध्यम से हिंदी देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने में बड़ा योगदान दे रही है लेकिन आर्थिक उन्नति और रोजगार के लिए हिंदी किस प्रकार से उपयुक्त है प्रायः ऐसे प्रश्न खड़े किया किए जाते रहे हैं।

       विशिष्ट अतिथि मुहम्मद अकील अंसारी ने कहा कि राष्ट्र भाषा हिन्दी मात्र एक भाषा ही नहीं बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाने का एक माध्यम है।यह हमारे चिंतन, मनन ,राष्ट्रगौरव और स्वाभिमान के साथ जुड़ी हुई है।राजभाषा हिंदी अब अंतरराषट्रीय भाषा बनने की ओर अग्रसर है ,फेसबुक और व्हाट्स ऐप भी बिना हिंदी से तालमेल बैठाए आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं,हिंदी भाषा में इंटरनेट संचालित करने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है,हमें गर्व करना चाहिए कि हम हिन्दी भाषी हैं ।

           मौलाना अब्दुल आखिर नोमानी ने कहा कि हमें उर्दू के साथ साथ हिंदी की तरक्की के लिए प्रयासरत रहना चाहिए,हमें उर्दू और हिंदी दोनों से प्यार है।जब हम अपनी बातचीत मे कुछ संस्कृत के शब्दों का प्रयोग करते है तो वो हिंदी हो जाती है और जब बातचीत मे फ़ारसी के अल्फाज़ का इस्तेमाल करते हैं तो वो उर्दू हो जाती है।हक़ीक़त मे ये दोनों हिंदुस्तानी भाषा है।अध्यक्षीय सम्बोधन में डॉ एहतेशामुल हक ने कहा कि हिंदी और उर्दू ये हिंदुस्तान की ऐसी ज़बान है जैसे लगता है कि दो सगी बहने हैं। हिंदी एक ऐसी ज़बान है जिसने बहुत सी ज़बानो के अल्फाज़ को अपने अंदर समाहित करके अपनी विशालता को और बढ़ाया है।हिंदी के विकास के लिए मेरा विचार है कि उच्च शिक्षा मे भी सभी विषय यथा विज्ञान, कला, वाणिज्य, अर्थशास्त्र, चिकित्सा को हिंदी मे पढ़ाया जाना चाहिए। जब उर्दू के साथ हिंदी का विकास होगा तभी सबका विकास होगा।कार्यक्रम की शुरुआत हाफिज मुनीर ने कुरआन की तिलावत से किया।

              इस अवसर पर अध्यक्ष डाक्टर एहतेशामुल हक,उपाध्यक्ष अजय कुमार वर्मा,महबूब आलम,महासचिव एच हसन नन्हें,सचिव मुस्लिम जावेद अख्तर,कोषाध्यक्ष शमीम रियाज़,प्रधानाचार्य मुसर्रत इस्लाम,प्रधानाचार्य अबुल वफ़ा अंसारी,अब्दुर्रहमान, ज़फ़रअंसारी,मौलाना अब्दुल्लाह, रिजवानुल्ला, हाफ़िज़ मुनीर, मुख़्तार अहमद, मुहम्मद इकराम, सुलेमान अख्तर, जुल्फिकारअली, शाहिद अंसारी, जफर अंसारी, असलम खलीफा, हसीन अहमद, हाफिज मुहम्मद अहमद, हाजी इकबाल, गुलाम मुनीर, फैयाज, इरफ़ान इत्यादि मौजूद थे।

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