- बाल विवाह से मिली ‘मुक्ति’, अब बनेगी दूसरों की ‘शक्ति’
सखी केन्द्र के प्रयासों से शादी शून्य घोषित करने का हुआ फैसला
वाराणसी, 12 सितम्बर(दिल इंडिया लाहव)। अपने मां-बाप को वह समझाती रही कि वह अभी नाबालिग है, लिहाजा उसकी शादी न करें। उसने यह भी बताया कि नाबालिग की शादी कानूनन जुर्म है। फिर भी उस किशोरी की जबरन शादी कर उसे ससुराल भेज दिया गया। ससुराल में भी उसने अपने साथ हो रहे अत्याचार के खिलाफ विरोध जारी रखते हुए सखी केन्द्र (वन स्टाप सेंटर) से मदद मांगी। सखी केन्द्र के प्रयास से यह शादी ‘शून्य’ घोषित हुई। साथ ही ससुराल वालों ने दहेज में मिले सामान और नकदी भी वापस किया। न्याय पाने के बाद अब इस किशोरी ने बाल विवाह के खिलाफ लोगों को जागरूक करना अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया है।
चौबेपुर क्षेत्र की रहने वाली संगीता (परिवर्तित नाम) आगामी नवम्बर माह में 18 वर्ष (बालिग) होगी। इस बीच उसकी इच्छा के विरुद्ध उसके परिवार वालों ने उसकी शादी रोहनियां निवासी युवक से तय कर दी। संगीता को जब यह पता चला तभी उसने इसका विरोध किया। माता-पिता को उसने यह समझाने की कोशिश किया कि अभी उसके पढ़ने -लिखने की उम्र है। वैसे भी उसकी उम्र 18 वर्ष की नहीं हुई है। इससे कम उम्र में शादी करना कानूनन जुर्म है, लिहाजा वह लोग ऐसा अपराध न करें। लेकिन उसके सारे तर्को की अनदेखी करते हुए गत चार जून को उसकी शादी कर उसे जबरन ससुराल भेज दिया गया। बकौल संगीता ‘ नाबालिग शादी का उसने ससुराल में भी विरोध जारी रखा। वह पूरे रात-दिन अपने आप को कमरे में बंद रखती थी। केवल भोजन अथवा नित्यकर्म जैसे जरूरी कार्यो के लिए ही कमरे से बाहर निकलती थी। उसने फोन कर नाते-रिश्तेदारें से मदद मांगी लेकिन मदद के लिए कोई तैयार नहीं हुआ। इस बीच सोशल मीडिया के जरिए उसे सखी केन्द्र के बारे में जानकारी मिली और हेल्पलाइन का नम्बर मिला। अनचाही शादी से मुक्ति के प्रयासों को हौसला तब और बढ़ा जब उसे ‘मिशन शक्ति’ अभियान की जानकारी मिली। भरोसा हो गया कि हेल्पलाइन पर वह कॉल करेगी तो मदद मिलेगी। हुआ भी ऐसा।
सखी केन्द्र (वन स्टॉप सेंटर) की प्रभारी रश्मि दुबे बताती हैं कि 14 अगस्त को संगीता की मिली शिकायत को गंभीरता से लेते हुए कार्रवाई शुरू कर दी गयी। संगीता के माता-पिता के साथ ही उसके ससुराल वालों को भी सेंटर में बुलाया गया। उन्हें बताया गया कि संगीता का बालविवाह कर दोनों पक्षों ने अपराध किया है। ऐसे में संगीता की इच्छा मुताबिक या तो वह लोग इस रिश्ते को तोड़ दें अथवा कानूनी कार्रवार्इ के लिए तैयार रहें। तब संगीता के माता-पिता और उसके ससुराल वालों को अपनी गलती का एहसास हुआ। ससुराल वालों ने संगीता से रिश्ता खत्म करने के साथ ही दहेज में मिले सामान व नकदी वापस करने की बात मान ली। सखी केन्द्र की प्रभारी रश्मि दुबे बताती है कि वैसे तो इस रिश्ते तोड़ने का संगीता के मायके और ससुराल वालों ने केन्द्र में लिखित समझौता किया लेकिन उसकी शादी को ‘शून्य’ घोषित करने की कानूनी औपचारिकताएं भी पूरी करा दी गयी है ताकि भविष्य में उसे किसी भी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े।
बाल विवाह के खिलाफ करेगी जागरूक
संगीता अब अपने माता-पिता के साथ ही रहती है । वह कहती है कि अब वह अपनी पढ़ार्इ पूरी करने के साथ ही अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती है। ताकि समाज में अपना योगदान दे सके। वह बताती है कि अब उसने तय किया है कि वह बाल विवाह के खिलाफ लोगों को जागरूक करेगी ताकि उसके जैसी और कोर्इ किशोरी इसका शिकार न बने।
क्या है बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम
किसी भी बालक का विवाह 21 साल एवं बालिका की 18 साल की उम्र होने के बाद ही शादी की जा सकती है। यदि कोई भी व्यक्ति इस निर्धारित उम्र से काम उम्र में शादी करता है तो उसे बाल विवाह करार दिया जायेगा। भले ही वह सहमति से ही क्यों न किया गया हो। सहमति से किया गया बाल विवाह भी कानूनी रूप से वैध नहीं होता। ऐसे बाल विवाह को किसी भी एक व्यक्ति द्वारा ‘शून्य’ घोषित करवाया जा सकता है। बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम -2006 के अंतर्गत बाल विवाह होेने पर दो वर्ष की सजा अथवा एक लाख का जुर्माना अथवा दोनों का प्राविधान है।
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