शुक्रवार, 15 जनवरी 2021

जाने इज्तेमा में क्या बताया गया

कैसे करेंगे मोआशरे की इस्लाह


वाराणसी(दिल इंडिया)। दावते इस्लामी की ओर से मसिजद अली रज़ा में एक नूरानी इज्तेमा का आयोजन जुमे की रात किया गया। इस इज्तेमा में सोशल डिस्टेंसिंग के साथ इस्लामी भाईयों ने भी न सिर्फ शिरकत की बाल्कि उन्होंने सीखा कि किस तरह से वो अपना और अपने मोआशरे की इस्लाह कर सकते हैं। कैसे इस्लाम के दायरे में रहते हुए हम दुनियावी काम के साथ ही पांच वक्त की नमाज़ की पाबंदी करें और किस तरह लोगों को नमाज़ और दीगर इबारतों की दावत दें। इस दौरान डा. साजिद ने कहा कि अपनी जिन्दगी को अगर सवारना चाहते हो तो इस्लाम के सीधे सच्चे रास्ते पर लौट आओ। यह आयोजन नबी पर सलाम और मुल्क में अमन व मिल्लत की दुआये मांगी मई।

भारत विकास परिषद काशी प्रांत जाने क्या करने जा रहा

वाराणसी शाखा में मनेगा बालिका सप्ताह

वाराणसी (दिल इंडिया)। भारत विकास परिषद काशी प्रांत की “वाराणसी शाखा”  द्वारा महिला एवं बाल विकास के लिए नव वर्ष 2021 में नई पहल की गई, 16 जनवरी से 21 जनवरी  तक राष्ट्रीय बालिका सप्ताह मनाया जाएगा। कार्यक्रम का उद्देश्य भारत विकास परिषद द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बालिकाओं के विकास एवं स्वास्थ्य के लिए ( एनीमिया मुक्ति के लिए) कार्य करना एवं लोगों को प्रेरित करना है। शाखा की महिला संयोजिका मृदु मेहरोत्रा ने बताया कि 17  जनवरी से 21 जनवरी तक के कार्यक्रम चलेगा। इसकी पूरी रूपरेखा तैयार कर ली गई है। इस क्रम में प्रथम दिन 17 जनवरी को 10 से 18 वर्ष की बालिकाओं का हीमोग्लोबिन टेस्ट करवाया जायेगा। द्वितीय दिन 18 जनवरी को, लोहे की कढ़ाई तथा गुड़ चना एवं उपयोगी स्टेशनरी का वितरण किया जायेगा। तृतीय दिन 19 जनवरी को, बच्चियों से नृत्य नाटिका, प्रहसन व व्याख्यान होगा। जिसका विषय रहेगा, संस्कारित बेटियां महकता घर आँगन, राष्ट्र के उत्थान में बेटी बढ़ाओ बेटी पढ़ाओ, शिक्षित  कन्या है वरदान। 20 जनवरी को ऊनी वस्त्रों का वितरण किया जायेगा। तो पांचवें दिन 21 जनवरी को शाखा के सप्ताह समापन दिवस को संस्कार शाला के रूप में मनाया जाएगा।

            

National Girl Child Week

भारत विकास परिषद का 24 को राष्ट्रीय बालिका दिवस

वाराणसी (दिल इंडिया)। भारत विकास परिषद् की महिला एवं बाल विकास प्रकल्प की ओर से राष्ट्रीय बालिका सप्ताह का आयोजन (National Girl Child Week) 16 से 21 तारीख तक किया गया है। साथ ही 24 जनवरी को महिला एवं बाल विकास प्रकल्प का एक राष्ट्रीय आभासीय आयोजन बेटी है तो सृष्टि है, मनाया जायेगा। परिषद की डा. शिप्रा धर ने बताया कि 
राष्ट्रीय बालिका सप्ताह (National Girl Child Week) में प्रत्येक दिन सभी शाखाओं में कुछ न कुछ कार्यक्रम होगा। कार्यक्रम का आगाज सभी शहरों में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस या प्रेस रिलीज के माध्यम से होगा।
17 को हमारे आसपास की स्लम में रहने वाली जितनी बच्चियां है या अगर किसी शाखा ने कोई गांव या बच्चों को गोद लिया है तो उस स्थान पर जाकर बच्चियों का हीमोग्लोबिन टेस्ट हो जाए ताकि हमारा पहला संकल्प एनीमिया मुक्त भारत पूरा हो सके।बच्चियों की उम्र 10 वर्ष से 18 वर्ष तक होनी चाहिए इस दौरान18/1/2021 को बच्चियों द्वारा एक स्किट या नृत्य नाटिका या भाषण का आयोजन किया जायेगा। इसका विषय है...

1- संस्कारित बेटियां महकता घर आंगन

2- राष्ट्र के उत्थान में बेटी बढ़ाओ बेटी पढ़ाओ

3- शिक्षित कन्या है वरदान

 डा शिप्रा ने बताया कि ये कार्यक्रम हमारे आसपास की जो बस्तियां हैं उनकी बच्चियां या फिर जिन शाखाओं ने बच्चियों या फिर किसी गांव को गोद लिया है उनकी बच्चियों के बीच ही कराया जायेगा, ताकि उनके मन में भी समाज के प्रति उत्तरदायित्व की भावना जागृत हो सके। 19/1/2021 को बच्चियों को स्टेशनरी  सामग्री, लोहे की कढ़ाई और गुड़ चना, का वितरण होगा। बच्चियों और उनके परिजन को थोड़ा एनीमिया और कुपोषण के बारे में बताया जाएगा। 20/1/2021 को ऊनी वस्त्रों का वितरण किया जायेगा।21/1/2021 को एक संस्कारशाला का आयोजन हैं जिसमें बच्चियों को  good touch bad touch, menstrual hygiene health, बच्चियां अपने परिवार को कैसे संगठित और सुव्यवस्थित रख सकती हैं। इस पर एक कार्यशाला का आयोजन किया जाएगा।

डा शिप्रा ने कहा कि हमारी कोशिश रहेगी कि हमारे उपरोक्त सभी कार्यक्रम में बच्चियों के साथ-साथ उनके परिजन भी आएं ताकि उन्हें भी यह समझ में आए कि भारत विकास परिषद् एक ऐसी संस्था है जो एक स्वस्थ, समर्थ और संस्कारित भारत का निर्माण करने का निरंतर प्रयास कर रही हैं और अपने इन प्रयासों द्वारा हम कुछ एक परिवारों में ,हो सकता है कि दूरगामी कुछ सुधार ला सकें। इस बहाने इतने और  परिवारों से हमारा संपर्क बढ़ेगा। हो सकता है हमारे इन छोटे-छोटे प्रयासों से देश में एक क्रांतिकारी परिवर्तन भी आ सके। सभी कार्यक्रमों का कोलाज बनाकर उसे 24 तारीख के कार्यक्रम में दिखाया जाएगा । जो कार्यक्रम परिषद् के अलावा किए गए बच्चों द्वारा होंगे इसे वरीयता दी जाएगी। प्रत्येक शाखा कम से कम दो बच्चियों को गोद लेगी। जिस भी बच्ची को गोद लिया जाएगा उसे तब तक सहायता देनी है जब तक कि वह स्वयं आत्मनिर्भर ना हो जाए।

गुरुवार, 14 जनवरी 2021

श्रद्धालुओं ने लगायी पुण्य की डुबकी



मकर संक्रांति के साथ माघ मेले का आगाज

प्रयागराज (दिल इंडिया)। मकर संक्रांति से शुरू होकर महाशिवरात्रि तक चलने वाला आस्था का मेला माघ मेला कोरोना महामारी के बीच गुरुवार को संगम के निकट शुरू हो गया। संक्रमण और ठंड व कोहरे पर आस्था भारी पड़ रही है। इस मौके पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ पुण्य की डुबकी लगाती नजर आयी।
माघ मेला के पहले स्नान पर्व यानी मकर संक्रांति पर संगम सहित गंगा तथा यमुना के सभी स्नान घाटों पर ब्रह्म मुहूर्त से ही श्रद्धालुओं के स्नान का सिलसिला शुरू हो गया। सुबह के समय संगम व आसपास के घाटों पर श्रद्धालु कम नजर आए। लेकिन सुबह सात बजे के बाद से श्रद्धालुओं की संख्या लगातार बढ़ती गई। संगम के अलावा गंगा के अक्षयवट, काली घाट, दारागंज, फाफामऊ घाट पर भी स्नान चलता रहा। सूर्य सुबह 8.30 बजे उत्तरायण हुआ और मकर राशि में प्रवेश कर गया। 

माघ मेले के दौरान होंगे 6 स्नान

माघ मेले के दौरान छह प्रमुख स्नान होंगे। इसकी शुरूआत मकर संक्रांति से आज हो गई है। इस दौरान श्रद्धालु कोरोना महामारी से बेफिक्र नजर आ रहे थे। हाड़मास कपा देने वाली सर्दी के बावजूद पहले स्नान पर्व पर श्रद्धालुओं का उत्साह देखने लायक था। मेला क्षेत्र में साधु संतों के पंडाल में भजन पूजन का दौर भी शुरू हो गया है। वैसे माघ मेला 27 जनवरी के आसपास रंग में आएगा। 28 जनवरी को पौष पूर्णिमा है और इस दिन से एक महीने का कल्पवास शुरू हो जाता है।
प्रशासन का अनुमान है कि इस बार साढ़े तीन करोड़ श्रद्धालु प्रयागराज आएंगे। मेला क्षेत्र में कोरोना की गाइडलाइन को पूरा कराने के लिए सभी तैयारियां की गई है। सभी तीर्थ पुरोहितों से आने वाले कल्पवासियों का ब्योरा लेकर इसे वेबसाइट पर अपलोड किया गया है।

माघ मेला में कोविड-19 गाइडलाइन के चलते इनकी संख्या पिछले स्नान पर्व से कम है पर, आस्था में कहीं कोई कमी नहीं दिखी। उधर, इसी तरह कानपुर, वाराणसी, फरुर्खाबाद और गढ़मुक्तेश्वर में भी श्रद्धालु सुबह से ही पुण्य की डुबकी लगाने स्नान घाटों पर पहुंचने लगे।

मेले भर रहेगा व्यापक इंतेज़ाम

मेले में हर साल की तरह इस बार 5 पांटून ब्रिज, 70 किमी चेकर्ड प्लेटें बिछाई गई है। कोरोना को देखते हुए 16 पॉइंट्स बनाये गए है। हर जगह पर्याप्त मात्रा में पुलिस बल तैनात है। मेले में बिजली, पानी और स्वच्छता के व्यापक इंतजाम किए गए हैं। मेलाधिकारी विवेक चतुर्वेदी के अनुसार, मेले में हर तरह से तैयारी पूरी है। सुरक्षा व्यवस्था के व्यापक इंतजाम हैं। कोविड संक्रमण को देखते हुए तैयारी और बेहतर की गई है। सभी को गाइडलाइन जारी की गई है।
नहीं होगा मंगालिक कार्य
14 जनवरी के बाद मलमास के कारण रूके हुए मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। इस बार गुरु शुक्र अस्त के चलते विवाह आदि मांगलिक कार्य अप्रैल से होंगे। 

बुधवार, 13 जनवरी 2021

पर्व मनाने से पहले जाने ये बड़ी बाते

क्या है मकर संक्रांति 

गीता में लिखे मकर संक्रांति के तीन रहस्य भी जाने

गाजीपुर (हिमांशु राय/दिल इंडिया)। संक्रांति में मकर सक्रांति का महत्व ही अधिक माना गया है। माघ माह में कृष्ण पंचमी को मकर सक्रांति देश के लगभग सभी राज्यों में अलग-अलग सांस्कृतिक रूपों में मनाई जाती है। आइए यहां हम जानते हैं कि मकर संक्रांति में क्या क्या है महत्वपूर्ण और क्या है इसके रोचक तथ्‍य।

मकर संक्रांति का अर्थ : मकर संक्रांति में 'मकर' शब्द मकर राशि को इंगित करता है जबकि 'संक्रांति' का अर्थ संक्रमण अर्थात प्रवेश करना है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। एक राशि को छोड़कर दूसरे में प्रवेश करने की इस विस्थापन क्रिया को संक्रांति कहते हैं। चूंकि सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है इसलिए इस समय को 'मकर संक्रांति' कहा जाता है।

वर्ष में होती है 12 संक्रांतियां : 

पृथ्वी साढ़े 23 डिग्री अक्ष पर झुकी हुई सूर्य की परिक्रमा करती है तब वर्ष में 4 स्थितियां ऐसी होती हैं, जब सूर्य की सीधी किरणें 21 मार्च और 23 सितंबर को विषुवत रेखा, 21 जून को कर्क रेखा और 22 दिसंबर को मकर रेखा पर पड़ती है। वास्तव में चन्द्रमा के पथ को 27 नक्षत्रों में बांटा गया है जबकि सूर्य के पथ को 12 राशियों में बांटा गया है। भारतीय ज्योतिष में इन 4 स्थितियों को 12 संक्रांतियों में बांटा गया है। इसमें से 4 संक्रांतियां महत्वपूर्ण होती हैं- मेष, तुला, कर्क और मकर संक्रांति।

इस दिन से सूर्य होता है उत्तरायन : 

चन्द्र के आधार पर माह के 2 भाग हैं- कृष्ण और शुक्ल पक्ष। इसी तरह सूर्य के आधार पर वर्ष के 2 भाग हैं- उत्तरायन और दक्षिणायन। इस दिन से सूर्य उत्तरायन हो जाता है। उत्तरायन अर्थात इस समय से धरती का उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है, तो उत्तर ही से सूर्य निकलने लगता है। इसे सोम्यायन भी कहते हैं। 6 माह सूर्य उत्तरायन रहता है और 6 माह दक्षिणायन। मकर संक्रांति से लेकर कर्क संक्रांति के बीच के 6 मास के समयांतराल को उत्तरायन कहते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायन का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि उत्तरायन के 6 मास के शुभ काल में जब सूर्यदेव उत्तरायन होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है, तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। यही कारण था कि भीष्म पितामह ने शरीर तब तक नहीं त्यागा था, जब तक कि सूर्य उत्तरायन नहीं हो गया।

फसलें लहलहाने लगती हैं  

इस दिन से वसंत ऋतु की भी शुरुआत होती है और यह पर्व संपूर्ण अखंड भारत में फसलों के आगमन की खुशी के रूप में मनाया जाता है। खरीफ की फसलें कट चुकी होती हैं और खेतों में रबी की फसलें लहलहा रही होती हैं। खेत में सरसों के फूल मनमोहक लगते हैं।

संपूर्ण भारत का पर्व

 मकर संक्रांति के इस पर्व को भारत के अलग-अलग राज्यों में वहां के स्थानीय तरीकों से मनाया जाता है। दक्षिण भारत में इस त्योहार को पोंगल के रूप में मनाया जाता है। उत्तर भारत में इसे लोहड़ी, खिचड़ी पर्व, पतंगोत्सव आदि कहा जाता है। मध्यभारत में इसे संक्रांति कहा जाता है। पूर्वोत्तर भारत में बिहू नाम से इस पर्व को मनाया जाता है।

तिल-गुड़ के लड्डू और पकवान

सर्दी के मौसम में वातावरण का तापमान बहुत कम होने के कारण शरीर में रोग और बीमारियां जल्दी लगती हैं इसलिए इस दिन गुड़ और तिल से बने मिष्ठान्न या पकवान बनाए, खाए और बांटे जाते हैं। इनमें गर्मी पैदा करने वाले तत्वों के साथ ही शरीर के लिए लाभदायक पोषक पदार्थ भी होते हैं। उत्तर भारत में इस दिन खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। गुड़-तिल, रेवड़ी, गजक का प्रसाद बांटा जाता है।

स्नान, दान, पुण्य और पूजा

 माना जाता है कि इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से नाराजगी त्यागकर उनके घर गए थे इसलिए इस दिन पवित्र नदी में स्नान, दान, पूजा आदि करने से पुण्य हजार गुना हो जाता है। इस दिन गंगासागर में मेला भी लगता है। इसी दिन मलमास भी समाप्त होने तथा शुभ माह प्रारंभ होने के कारण लोग दान-पुण्य से अच्छी शुरुआत करते हैं। इस दिन को सुख और समृद्धि का माना जाता है।

पतंग महोत्सव का पर्व

यह पर्व 'पतंग महोत्सव' के नाम से भी जाना जाता है। पतंग उड़ाने के पीछे मुख्य कारण है कुछ घंटे सूर्य के प्रकाश में बिताना। यह समय सर्दी का होता है और इस मौसम में सुबह का सूर्य प्रकाश शरीर के लिए स्वास्थवर्द्धक और त्वचा व हड्डियों के लिए अत्यंत लाभदायक होता है। अत: उत्सव के साथ ही सेहत का भी लाभ मिलता है।

ऐतिहासिक तथ्‍य

 हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति से देवताओं का दिन आरंभ होता है, जो आषाढ़ मास तक रहता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था इसलिए मकर संक्रांति पर गंगासागर में मेला लगता है। इसी दिन सूर्य अपने पुत्र शनि के घर एक महीने के लिए जाते हैं, क्योंकि मकर राशि का स्वामी शनि है। इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत करके युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। उन्होंने सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इसलिए यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।

वार युक्त संक्रांति

 ये बारह संक्रान्तियां सात प्रकार की, सात नामों वाली हैं, जो किसी सप्ताह के दिन या किसी विशिष्ट नक्षत्र के सम्मिलन के आधार पर उल्लिखित हैं; वे ये हैं- मन्दा, मन्दाकिनी, ध्वांक्षी, घोरा, महोदरी, राक्षसी एवं मिश्रिता। घोरा रविवार, मेष या कर्क या मकर संक्रान्ति को, ध्वांक्षी सोमवार को, महोदरी मंगल को, मन्दाकिनी बुध को, मन्दा बृहस्पति को, मिश्रिता शुक्र को एवं राक्षसी शनि को होती है। कोई संक्रान्ति यथा मेष या कर्क आदि क्रम से मन्दा, मन्दाकिनी, ध्वांक्षी, घोरा, महोदरी, राक्षसी, मिश्रित कही जाती है, यदि वह क्रम से ध्रुव, मृदु, क्षिप्र, उग्र, चर, क्रूर या मिश्रित नक्षत्र से युक्त हों।

नक्षत्र युक्त संक्रांति 27 या 28 नक्षत्र को सात भागों में विभाजित हैं- ध्रुव (या स्थिर)- उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपदा, रोहिणी, मृदु- अनुराधा, चित्रा, रेवती, मृगशीर्ष, क्षिप्र (या लघु)- हस्त, अश्विनी, पुष्य, अभिजित, उग्र- पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपदा, भरणी, मघा, चर- पुनर्वसु, श्रवण, धनिष्ठा, स्वाति, शतभिषक क्रूर (या तीक्ष्ण)- मूल, ज्येष्ठा, आर्द्रा, आश्लेषा, मिश्रित (या मृदुतीक्ष्ण या साधारण)- कृत्तिका, विशाखा। उक्त वार या नक्षत्रों से पता चलता है कि इस बार की संक्रांति कैसी रहेगी।

देवताओं का दिन प्रारंभ

 हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति से देवताओं का दिन आरंभ होता है, जो आषाढ़ मास तक रहता है। कर्क संक्रांति से देवताओं की रात प्रारंभ होती है। अर्थात देवताओं के एक दिन और रात को मिलाकर मनुष्‍य का एक वर्ष होता है। मनुष्यों का एक माह पितरों का एक दिन होता है। उनका दिन शुक्ल पक्ष और रात कृष्ण पक्ष होती है।

सौर वर्ष का दिन प्रारंभ

इसी दिन से सौर वर्ष के दिन की शुरुआत मानी जाती है। हालांकि सौर नववर्ष सूर्य के मेष राशि में जाने से प्रारंभ होता है। सूर्य जब एक राशि ने निकल कर दूसरी राशि में प्रवेश करता है तब दूसरा माह प्रारंभ होता है। 12 राशियां सौर मास के 12 माह है। दरअसल, हिन्दू धर्म में कैलेंडर सूर्य, चंद्र और नक्षत्र पर आधारित है। सूर्य पर आधारित को सौरवर्ष, चंद्र पर आधारित को चंद्रवर्ष और नक्षत्र पर आधारिक को नक्षत्र वर्ष कहते हैं। जिस तरह चंद्रवर्ष के माह के दो भाग होते हैं- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष, उसी तरह सौर्यवर्ष के दो भाग होते हैं- उत्तरायण और दक्षिणायन। सौरवर्ष का पहला माह मेष होता है जबकि चंद्रवर्ष का महला माह चैत्र होता है। नक्षत्र वर्ष का पहला माह चित्रा होता है।

गीता में लिखे हैं मकर संक्रांति के 3 रहस्य

सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में संक्रमण करने को संक्रांति कहते हैं। वर्ष में 12 संक्रांतियां होती है जिसमें से 4 संक्रांति मेष, तुला, कर्क और मकर संक्रांति ही प्रमुख मानी गई हैं। मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है इसीलिए इसे मकर संक्रांति कहते हैं। गीता में इसका क्या महत्व है जानिए 3 रहस्य। उत्तरायण में शरीर त्यागने से नहीं होता है पुनर्जन्म* : मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होता है। भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरायन का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि उत्तरायन के 6 मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायन होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है, तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त हैं। इसके विपरीत सूर्य के दक्षिणायण होने पर पृथ्वी अंधकारमय होती है और इस अंधकार में शरीर त्याग करने पर पुनः जन्म लेना पड़ता है। यही कारण था कि भीष्म पितामह ने शरीर तब तक नहीं त्यागा था, जब तक कि सूर्य उत्तरायन नहीं हो गया। माना जाता है कि उत्तरायण में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति को सद्गति मिलती है।

देवताओं का दिन प्रारंभ

हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति से देवताओं का दिन आरंभ होता है, जो आषाढ़ मास तक रहता है। कर्क संक्रांति से देवताओं की रात प्रारंभ होती है। अर्थात देवताओं के एक दिन और रात को मिलाकर मनुष्‍य का एक वर्ष होता है। मनुष्यों का एक माह पितरों का एक दिन होता है। उनका दिन शुक्ल पक्ष और रात कृष्ण पक्ष होती है।


दो मार्ग का वर्णन

जगत में दो मार्ग है शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। देवयान और पितृयान। देवयान में ज्योतिर्मय अग्नि-अभिमानी देवता हैं, दिन का अभिमानी देवता है, शुक्ल पक्ष का अभिमानी देवता है और उत्तरायण के छः महीनों का अभिमानी देवता है, उस मार्ग में मरकर गए हुए ब्रह्मवेत्ता योगीजन उपयुक्त देवताओं द्वारा क्रम से ले जाए जाकर ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। पितृयान में धूमाभिमानी देवता है, रात्रि अभिमानी देवता है तथा कृष्ण पक्ष का अभिमानी देवता है और दक्षिणायन के छः महीनों का अभिमानी देवता है, उस मार्ग में मरकर गया हुआ सकाम कर्म करने वाला योगी उपयुक्त देवताओं द्वारा क्रम से ले गया हुआ चंद्रमा की ज्योत को प्राप्त होकर स्वर्ग में अपने शुभ कर्मों का फल भोगकर वापस आता है।...लेकिन जिनके शुभकर्म नहीं हैं वे उक्त दोनों मार्गों में गमन नहीं करके अधोयोनि में गिर जाते हैं।

शराब बिक्री के खिलाफ बेटियों और महिलाओं ने उठाई आवाज

नुक्कड़ नाटक से बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का दिया संदेश

वाराणसी(दिल इडिया)। आशा ट्रस्ट, लोक समिति व प्रेरणा कला मंच वाराणसी द्वारा बालिकाओं की शिक्षा सुरक्षा के लिये आयोजित जनजागरूकता कार्यक्रम में प्रेरणा कला मंच के कलाकारों ने बुधवार को रोहनियाँ क्षेत्र के चंदापुर,असवारी पयागपुर और हरपुर गाँव में बेटियों की शिक्षा, सुरक्षा व महिला हिंसा, लैंगिक भेदभाव पर नुक्कड़ नाटक किया। महिला हिंसा और लड़कियों की शिक्षा पर आधारित नुक्कड़ नाटक 'बढ़िये और बढाइये व कमला का कमाल' के मंचन में कलाकारों ने जीवंत अभिनय कर दर्शकों के दिलों को भी झकझोर कर रख दिया। कलाकारों ने नुक्कड़ नाटक के माध्यम से कन्या भ्रूण हत्या को रोकने व बेटी बचाओ का संदेश दिया। कलाकारों ने कन्या भ्रूण हत्या को रोकने व महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के प्रति जागरूक किया। इस दौरान गाँव की महिलाओं ने कहा कि महिलाओं की भारतीय समाज में आदिकाल से पूजा होती रही है, लेकिन पुरुष प्रधान सोच होने के कारण महिला को वो सम्मान नहीं मिल पा रहा। उन्होंने कहा कि बेटी ही पढ़-लिखकर दो कुल का नाम रोशन करती हैं और वंश को बढ़ाती है। बेटी के महत्व को तभी समझा जा सकता है, जब एक सास, बहू के साथ मां बनकर खड़ी हो। कहा कि हम नवरात्र में कन्याओं का पूजन करते हैं, इसके बावजूद कन्या भ्रूण हत्या को अंजाम देते हैं। इस सोच को बदलना होगा। बेटियों के मान-सम्मान, स्वास्स्थ्य व सुरक्षा पर बेटों के समान अवसर प्रदान करना चाहिए। 

इस अवसर पर लोक समिति संयोजक नन्दलाल मास्टर ने कहा नाटक का उद्देश्य समाज में कन्या भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक कुरीतियों से लोगों को अवगत कराना व उन्हें समझाना कि बेटी किसी पर बोझ नहीं हैं। वह भी सामाजिक जीवन का आधार है और बेटियों को भी शिक्षा का अधिकार मिलना चाहिए। ताकि वह एक सम्मानपूर्ण जीवन व्यतीत कर सके।। पॉक्सो जैसे मजबूत कानून के रहते हुए भी आज औरतो, लड़कियां, बच्चियों की सुरक्षा और सम्मान की जिम्मेदारी के प्रति सत्ता और प्रशासन की भूमिका में कोई बदलाव नहीं आ रहा है। कार्यक्रम में शामिल गाँव की सैकड़ों महिलाओं और लड़कियों ने प्रधानमंत्री से महिला हिंसा रोकने, प्रदेश में शराबबन्दी तथा लैंगिक भेदभाव को रोकने की अपील किया।

कार्यक्रम में मुख्यरूप से नन्दलाल मास्टर, मैनब बानो, सीमा, शकुंतला, सुनील, राजेश गौंड़, पंचमुखी, अजीत कुमार, रंजीत, संदीप,अजय पाल, गोविंदा, सशांक द्विवेदी, विजय प्रकाश, प्रमोद पटेल, शिवकुमार, सोनू, अमित, रामबचन, सोनी, अनीता,  आशा, सरोज, मुकेश झंझरवाल आदि लोग शामिल थे





लोहड़ी क्या है, जाने लोहड़ी की कहानी



दुल्ला भट्टी वाला हो...गीत पर झूमेगा सारा जहां

नगाड़े की थाप पर होगा, गिददा व भांगड़ा

वाराणसी (दिल इंडिया)। पंजाब समेत देश दुनिया को रोमांचित कर देने वाला पर्व लोहड़ी, आज रात 13 जनवरी को देशभर में धूमधाम से मनाया जाएगा। सिखो और पंजाबियों का यह पर्व दुनिया भर में रहने वाले भारतवंशी धूमधाम के साथ मनाते हैं। यह पर्व गली मुहल्लों से लेकर पंचसितारा होटलों तक में पंजाबी लिवास पहनकर सेलीब्रेट किया जाता है। यही वजह भी है कि लोहड़ी पंजाब में मनाई जाये या देश दुनिया के किसी भी हिस्से में, मगर पूरा नज़ारा पंजाब का ही देखने को मिलता है। लेकिन बहुत सारे लोग हैं जो नहीं जानते हैं कि लोहड़ी क्यों मनाई जाती है। दिल इंडिया आपको यहाँ बताने जा रहा है लोहड़ी की पूरी कहानी, एक रिर्पोट...।

क्या है लोहड़ी

लोहड़ी की कहानी उस दिलदार डाकू दुल्ला से शुरु होती है, जो  दूसरों की मदद करता था। एक बार दुल्ला के कुछ डाकू साथी अमीरों को लूटा और विवाहिता को भी लूट लिया। उन्होंने नव-विवाहिता को उठाकर दुल्ला के सामने पेश भी किया। जिससे दुल्ला डाकू काफी नाराज हुआ और उसे उसके पिता को लौटाने को कहा। लेकिन, लड़की के पिता ने उसे स्वीकार ही नहीं किया। फिर ससुराल वालों को देने गए तो वे भी उसे अपनाने से इतराने लगे। ऐसे में डाकू ने उसी दिन से विवाहिता को अपनी बेटी के रूप में अपना लिया और उसकी शादी धूमधाम से की। उसी दिन नई फसल हुई थी जिसका सभी ने उत्सव मनाया। उसी दिन से लोहड़ी मनाने की परंपरा शुरू हो गयी। एक अन्य मान्यता है कि दुल्ला दुष्ट अमीरों से धन लूट कर गरीब लड़कियों की शादी कराता था, जिससे गरीब गिददा और भांगड़े की खुशी में डूब जाते थे। यही वजह है जिसकी आज नई शादी होती है या जिसके घर बच्चा होता है लोहड़ी उसी की होती है।  

लोहड़ी के ये हैं पारंपरिक गीत

लोहड़ी के अपने पारंपरिक गीत भी हैं, जो आज तक गाया जाता है। जिसके बोल है, सुंदरिए मुंदरिए तेरा कौन विचारा हो, दुल्ला भट्टी वाला हो.....

लोहड़ी पर गुरुद्वारो में सजता है दीवान

लोहड़ी पर गुरुद्वारों में विशेष तौर पर दीवान सजाया जाता है। ऐतिहासिक गुरुद्वारा बड़ी संगत नीचीबाग, वाराणसी के प्रबंधक सरदार महेन्द्रर सिंह ने कहते हैं कि लोहड़ी पर गुरुद्वारो में भी दीवान सजाया जाता है। वाराणसी में इस बार गुरुद्वारा नीचीबाग में लोहड़ी पर धमाल होगा। रात में सिख समाज के लोग अलाव जलाकर इसके चारों ओर भांगड़ा और गिद्दा नृत्य करेंगे। खास बात यह है कि लोग सामुहिक तौर पर गीत गाकर डांस तो करते ही साथ ही साथ आग में रेवड़ी, मूंगफली, मखाना जैसे भोग भी डालते हैं और खुब खुशियां मनाते हैं।

शेख़ अली हजी को दिखता था बनारस का हर बच्चा राम और लक्ष्मण

बरसी पर याद किए गए ईरानी विद्वान शेख़ अली हजी  Varanasi (dil India live)। ईरानी विद्वान व दरगाहे फातमान के संस्थापक शेख मोहम्मद अली हजी ईरान...