गुरुवार, 25 मई 2023

Hazrat Syed mukhtar अली शाह (लाटशाही) बाबा का उर्स शुरू

लाटशाही बाबा के दर पर अकीदतमंदों ने लगाई हाजिरी 



Varanasi (dil india live). हजरत सैयद मुख्तार अली शाह शहीद, (लाटशाही बाबा) रहमतुल्ला अलैह का तीन दिवसीय सालाना उर्स आज पूरी हकीकत के साथ शुरू हो गया। उर्स में पहले रोज फजिर कि नमाज के बाद सुबह कुरआनख्वानी का एहतमाम किया गया। बाबा के दर पर दूर दराज से पहुंच कर जायरीन ने जहां पाक कुरान कि तेलावत की, वहीं हाजिरी लगाने वाले फातेहा पढ़ते व मन्नतें और मुराद मांगते दिखाई दिए। सुबह से दोपहर और दोपहर से शाम तक बाबा के दर पर अकीदतमंदों का हुजूम उमड़ा हुआ था। हर कोई बाबा के दर पर अकीदत लुटाता नज़र आया। समाचार लिखे जाने तक उर्स अपने शबाब पर था। 

महाराजा बनारस ने बनाया था गवर्नर 

हजरत सैयद मुख्तार अली शाह शहीद (लाटशाही बाबा रह.) का असली नाम काजी मुख्तार अली शाह था। बाबा फतेहपुर से उस दौर में (1742) बनारस आए। बनारस में उन्हें महाराजा बनारस राजा चेतसिंह ने अपना सिपहसालार नियुक्त किया। उनकी दीनी ख़िदमात को देखते हुए उलेमा-ए-बनारस ने लोगों की फरियाद सुनने के लिए उन्हें शिवपुर परगना का काजी-ए-शहर बना दिया। महाराजा बनारस के सिपहसालार होते हुए उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ 1782, 1784 व 1786 में राजा चेतसिंह की ओर जंग लड़ी। इस जंग में जब अंग्रेज हार गए तो उन्होंने अपनी हार मानते हुए संधि की। इसके बाद अंग्रेजों की ओर से दूसरा गवर्नर भेजा गया। 1798 में उसने धोखे से जंग छेड़ दी। इस जंग में महाराजा बनारस राजा चेतसिह का कुनबा जब अंग्रेजों से घिरा हुआ था उस समय लाटशाही बाबा अंग्रेजों से लोहा लेते हुए खुद शहीद हो गए मगर महाराजा बनारस और उनके कुनबे को बचा लिया। 

परेशानहाल लोगों को मिलता है सुकून 

आस्ताने के सूफी जाफर हसनी बताते हैं कि राजा चेतसिंह के दौर में बाबा शहर काजी के साथ ही साथ सिपहसालार व लार्ड गवर्नर भी थे, यही वजह है कि शहीद होने के बाद वो लाटशाही बाबा के नाम से मशहूर हो गए। वो बताते हैं कि बाबा कि दुआओं में इतना असर था कि बाबा के पर्दा करने से पहले ही लोगों कि जमात जुटती थी। बीमार, परेशानहाल लोग बाबा के पास से भले चंगे होकर लौटते थे। यह सिलसिला बाबा के पर्दा करने के बाद भी कायम है 

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