'माँ मुझे टैगोर बना दो' का मंचन देख भर आयी आँखे
Varanasi (dil india live)। माँ मैं कविताएं अच्छी लिखने लगा हूं, टीचर कहते है मैं आगे जाकर टैगोर जैसा कवि बन सकता हूँ, मुझे टैगोर बनना है माँ, मुझे और पढ़ना है। बेटा... आगे पढ़ना है तो अपने पापा से पूछ, मुझसे नही और टैगोर बनने से पेट नही भरता है। उक्त भावपूर्ण दृश्य शनिवार को जीवन्त रहा डीएवी पीजी कॉलेज के हिन्दी विभाग एवं सांस्कृतिक समिति के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एकल नाट्य "माँ मुझे टैगोर बना दे" की प्रस्तुति के अवसर पर। जम्मू से आये प्रख्यात रंगकर्मी लक्की गुप्ता ने पंजाब के मशहूर कथाकार मोहन भंडारी द्वारा रचित नाटक की भावपूर्ण प्रस्तुति दी, जिसे देख हॉल में उपस्थित सभी की आँखे भर आयी। नाटक में एक बच्चे की कहानी को बड़े ही मार्मिक अंदाज में प्रस्तुत किया गया है जिसके शिक्षक उसकी प्रतिभा देख उसे टैगोर जैसा कवि बनने की उम्मीद करते है। बच्चा भी मुफलिसी में जीने के बावजूद किसी तरह दसवीं पास कर लेता है लेकिन 12 वीं की पढ़ाई के लिए उसे आगे दूसरे शहर जाना है और उसके लिए उसके परिवार की माली हालत साथ नही देती। फिर भी पिता किसी तरह उसके पढ़ाई का इंतजाम करता है लेकिन दुर्भाग्य वश पढ़ाई के दौरान ही उसके पिता की मजदूरी करते वक़्त हादसे में मौत हो जाती है और बच्चे की पढ़ाई अधूरी रह जाती है, क्योंकि अब उसे पढ़ाई नही करनी अब उसे घर चलाने के लिए काम करना होगा।
एकल नाटक में रंगकर्मी लक्की गुप्ता के भाव और संवाद ने लोगों को द्रवित कर दिया तो खूब तालियां भी बटोरी। पिछले दस वर्षों से देश के विभिन्न राज्यों में नाटक की प्रस्तुति दे रहे लक्की गुप्ता की यह 1096 वीं प्रस्तुति थी।
इस अवसर पर हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर राकेश कुमार राम एवं सांस्कृतिक समिति के समन्वयक प्रोफेसर अनूप कुमार मिश्रा ने लक्की गुप्ता को स्मृति चिन्ह एवं अंगवस्त्र प्रदान कर उनका स्वागत किया। संयोजन प्रोफेसर समीर कुमार पाठक एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. राकेश कुमार द्विवेदी ने दिया। कार्यक्रम में मुख्य रूप से प्रोफेसर मिश्री लाल, प्रोफेसर ऋचारानी यादव, डॉ. हबीबुल्लाह, डॉ. संजय कुमार सिंह, प्रोफेसर पूनम सिंह, डॉ. संगीता जैन, डॉ. मीनू लाकड़ा, डॉ. हसन बनो, डॉ. अस्मिता तिवारी, डॉ. प्रतिभा मिश्रा, डॉ. सुषमा मिश्रा सहित बड़ी संख्या में अध्यापक एवं छात्र छात्राएं उपस्थित रहे।
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