बनारस कि गलियों में गूंज रहा ख़्वाजा, मेरे ख़्वाजा...
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का 811वां उर्स
अजमेर में जियारत के लिए उमड़ी अकीदतमंदों की भीड़
काशी में दिखी गंगा जमुनी तहज़ीब
Mohd Rizwan
Varanasi (dil india live) हिंदल वली, सूफी संत, ख्वाजा हज़रत मोइनुद्दीन हसन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह (सरकार गरीब नवाज़) के 811 वें उर्स पर Ajmer Sharif से लेकर Kashi तक आस्था का सैलाब देखने को मिल रहा है। क्या कोई हिंदू, क्या मुस्लिम, क्या गोरा, क्या काला, सभी ख्वाजा की मोहब्बत में सर झुकाएं अजमेर शरीफ दरगाह में उमड़े हुए हैं। जो Ajmer Sharif नहीं जा सका, वो जहां भी है वहां से ख्वाजा साहब को याद कर रहा है। जायरीन की भीड़ में कई देशों के अकीदतमंदों का हुजूम शामिल है। दरगाह में छह रजब पर आज कुल की रस्म अदा की गई। काशी में जहां ख्वाजा के दीवानों ने घरों में फातेहा करायी वहीं जगह जगह कुल शरीफ व लंगर का आयोजन भी किया गया है। इस दौरान सूफियाना कलाम फिजा में गूंज रहा है।
अजमेर शरीफ दरगाह में ख्वाजा गरीब नवाज के सालाना उर्स के मौके पर हाजिरी देने के लिए देश के कोने-कोने से लाखों जायरीन अजमेर आए हुए हैं। ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में अकीदतमंदों का जनसैलाब उमड़ पड़ा। दरगाह परिसर जायरीन से खचाखच भरा रहा। सुबह से ही बड़ी संख्या में जियारत के लिए जायरीन का आना जाना लगा रहा।
कुल शरीफ की रस्म में जुटे जायरीन
रजब के चांद की छह तारीख को ख्वाजा गरीब नवाज की छठी आज अकीदत वह एहतराम के साथ मनाई गई। इस दिन ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स की अहम रवायत (परंपरागत रस्म) निभाई जाती है जिसे छोटे कुल की रस्म कहा जाता है। रविवार को कुल की रस्म अदा की गई। मजार शरीफ को गुसल दिया गया। इसके बाद दरगाह को केवड़े और गुलाब जल से धोया गया। इस अहम रवायत को दरगाह के ख़ादिम आस्ताने में निभा रहे थे। खादिम कुतुबुद्दीन सखी ने बताया कि रजब के चांद की 9 तारीख यानी 1 फरवरी को बड़े कुल की रस्म अदा की जाएगी। मजार शरीफ को गुसल देने के बाद इस दिन पूरी दरगाह को धोया जाएगा।
इससे पहले शनिवार शाम को रोशनी की दुआ के एक घंटे बाद से ही दरगाह को केवड़े और गुलाब जल से धोना शुरू कर दिया गया था। दरगाह की दीवारों पर केवड़े और गुलाब जल का छिड़काव करने के बाद जायरीन दीवारों से टपकते पानी को बोतलों में भरकर साथ ले गए।
दरअसल उर्स के मौके पर जायरीन कई साधनों से अजमेर आते हैं। इनमें बड़ी संख्या में ट्रेन से सफर कर आने वाले होते हैं। ऐसे में उन जायरीन को वापस भी लौटना होता है। जो छठी को छोटे कुल की रस्म तक नहीं रुक पाते हैं। वह एक दिन पहले ही दरगाह को केवड़े और गुलाब जल से धोना शुरू कर देते हैं। देर रात तक यह सिलसिला जारी रहता है।
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