गांधी जी की ही देन की भारत सभी को एक साथ ले कर चलने वाला देश-हाजी ओकास अंसारी
Gandhi ji को किया नमन, दी गई श्रद्धांजलि
Varanasi (dil India live). गांधी जयंती पर जलालीपुरा स्थित गांधी पार्क में पूर्व पार्षद वर्तमान पार्षद प्रतिनिधि हाजी ओकास अंसारी के नेतृत्व में गांधी जी के प्रतिमा पर माल्यार्पण कर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी को श्रृद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर हाजी ओकास अंसारी ने कहा की गांधी जी ने अहिंसा की राह पर चल कर अंग्रेजों से देश को आजाद कराया और देश की आजादी के बाद एक सशक्त भारत का निर्माण किया। ये गांधी जी की ही देन है भारत सभी धर्म और जाति को एक साथ ले कर चलने वाला देश बना। उन्ही की सोच और मार्ग दर्शन का ही देन है की भारत का संविधान एक शक्तिशाली संविधान बना जो सभी धर्म और जातियों को एक साथ एक धागे में पिरो कर भारत देश पूरी दुनिया में एक शक्तिशाली देश के रूप में आगे बढ़ रहा है । गांधी जी ने पूरे देश वासियों स्वच्छता के साथ रहने की लोगो को सीख दी। आज पूरा देश में स्वच्छता का अभियान चल रहा है । और गांधी जी की देन है हम सभी भारत वासी जात पात को भूल कर एक दूसरे के साथ मिल जुल रहते हैं । आज इस मौके पर हाजी ओकास अंसारी के साथ मौजूद बिस्मिल्ला अंसारी, मकसूद आलम, बेलाल खान, सरफराज, कमर आलम, वसीम अंसारी, मुस्तकीम, समीम, लड्डू अंसारी, अबरार, जुनैद, हफीजुर्रहमान, ओवैस, साजिद आदि माजूद थे।
- प्रणय सिंह
गांधी जी सर्वोदय की बात करते हैं। व्यक्ति जो समाज के हांसिए पर है।उसे आगे लाने के लिए समाज का सहयोग चाहते हैं। सबके हृदय में एक दूसरे के प्रति अनुराग चाहते हैं।गांधी जी का वह जंतर अनुकरणीय है जिसमें उन्होंने कहा है कि जब आपका अहम आपको परेशान करें तो आप अपने से नीचे की ओर देखें।स्वाभाविक है मनुष्य जब अपने से ऊपर की ओर देखता है तो परेशान होता है। तुलनात्मक अल्पता उसे परेशान करती है। इस जंतर से समाज का बहुत बड़ा वर्ग परेशान नहीं होगा। सामाजिक विषमताएं तमाम तरह के दोष उत्पन्न करती हैं।जिससे समाज में जटिलताएं और भी बढ़ जाती है। जटिलताओं को दूर करने सद्भाव और भाईचारा बनाए रखने के लिए सबका उदय चाहे वह आर्थिक रूप में हो सामाजिक हो वैचारिक हो अति आवश्यक है।
हर एक व्यक्ति को परिश्रम करके ईमानदारी की रोटी खाने का प्रयत्न करना चाहिए। इसीलिए तो गांधी जी ने कहा था कि बिना परिश्रम करके अन्न खाना चोरी का अन्न खाने के बराबर है। उन्होंने मानसिक श्रम से शारीरिक श्रम को श्रेष्ठ बताया।सच बोलना, ईमानदारी बरतना अपरिग्रह का भाव रखना निंदा और चोरी से दूर रहना क्या अप्रासंगिक है या भविष्य में हो जाएंगे। पूरी दुनिया मानवता के सहचर बोध,भाव व व्यवहार से ही चलेगी। साहचर्य का बोध सर्वोदय से ही होगा। जिसमें समाज अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को आगे बढ़ाने के लिए कार्य करेगी। हासियें पर खड़े व्यक्ति के मन में भी धन संपदा संसाधन से परिपूर्ण व्यक्ति के लिए बुराई के भाव नहीं आएंगे। हर एक व्यक्ति,व्यक्ति में ईश्वर का रूप देखेगा।ऐसा होने से ही एक सशक्त,सीमा रेखा, धार्मिक श्रेष्ठता मुक्त मानवीय समाज बन सकेगा। गांधी जी अपने विचार थोपते नहीं। उनका अनुग्रह तो यहां तक है कि यह विचार सनातनी है, मानवीय है।
पत्रकार/लेखक:-प्रणय सिंह |
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