35 वर्षों से इश्तियाक ने संभाल रखी है यह परम्परा
मुस्लिम परिवार तैयार करते हैं हिंदुओं की आस्था का सामान
Varanasi (dil India live)। इश्तियाक मुस्लिम हैं पर वो हिंदूओं की आस्था का सामान 'रावण' का पुतला तैयार कर रहे हैं। यही नहीं इश्तियाक का परिवार आजादी के पहले से लंकेश का पुतला बनाता चला आ रहा है। इश्तियाक पिछले तीन दशक से भी पहले से न सिर्फ यह परम्परा संभाले हुए है बल्कि इसी बहाने इश्तियाक बनारस की गंगा जमुनी तहज़ीब का रंग और सुर्ख करने में जुटे हुए हैं। शांति और सौहार्द के लिए काम करने वाले डा. मोहम्मद आरिफ कहते हैं की हिंदुस्तान ऐसी ही मिली जुली संस्कृति के लिए पूरी दुनिया में जाना पहचाना जाता है। कहीं इसे गंगा जमुनी तहज़ीब तो कहीं हिंदुस्तानी तहजीब के नाम से इसे ख्याति प्राप्त है। मोहर्रम में हिंदू का ताजिया बनाना और होली पर मुसलमानों का रंग खेलना बादशाह अकबर के दौर से भी पहले से कायम है। ईद पर हिंदू-मुस्लिम का गले मिलकर एक दूसरे को मुबारकबाद देना सौहार्द की सुखद तस्वीरें हिंदुस्तानी तहज़ीब की वो मिसालें हैं जो वक्त वक्त पर देश दुनिया के सामने आती रहती है। इसे कहीं गंगा जमुनी तहज़ीब तो कहीं हिंदुस्तानी तहजीब कहकर पहचाना जाता है। बनारस का विजयदशमी पर्व भी इसकी बड़ी नज़ीर है।
जहां इश्तियाक जैसे न जाने कितने मुस्लिम परिवार लंकेश का पुतला हिंदुओं की आस्था को पूरी करने के लिए दिन रात एक किए हुए हैं। लाटभैरव की रामलीला में इकोफ्रेंडली रावण, बरेका में 75 फीट और रामनगर में 60 फीट के रावण का दहन इस बार किया जाएगा। विजय दशमी पर जलने वाले रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले मुस्लिम परिवार ही तैयार कर रहे हैं। असत्य पर सत्य की जीत का महापर्व 12 अक्तूबर को मनाया जाएगा। गंगा-वरुणा संगम किनारे लंका मैदान में दशानन रावण का दहन काफी आकर्षक होगा। 500 साल से भी प्राचीन रामलीला में इकोफ्रेंडली रावण आकर्षण का केंद्र होगा। इस बार 70 फीट के रावण का निर्माण किया जा रहा है। ऐसे ही इस बार लंका दहन की सबसे खास बात है कि लंका के आगे दो द्वारपाल होंगे और उनके बीच हनुमान जी अंदर जाकर पूरी लंका को जलाते हुए सीता मां को लेकर निकलेंगे। ये दृश्य देखने में काफी आकर्षक होगा। वहीं रावण वध के लिए इको फ्रेंडली आतिशबाजी की जाएगी। इससे कम प्रदूषण होगा। अंबिया मंडी के इश्तियाक अहमद इन पुतलों को बनाने का काम कर रहे हैं। वह बताते हैं कि यह उनके खानदानी काम का हिस्सा है। हम तीन पीढ़ियों से इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं। रावण का एक पुतला तैयार करने में लगभग एक सप्ताह का समय लगता है। इसके लिए करीब 15 से 20 हजार रुपये की लागत आती है। रावण के पुतले बनाने के लिए बांस, रंग-बिरंगे कागज, रस्सी, और लकड़ी की स्केल का उपयोग किया जाता है। परिवार की तीन महीने की मेहनत से लगभग दो दर्जन से ज्यादा पुतले तैयार होते हैं, जो वाराणसी के अलावा पूर्वांचल के कई जिलों में भेजे जाते हैं। ऐसे ही विश्वप्रसिद्ध रामनगर की रामलीला में 60 फुट ऊंचे और 30 फीट परिधि का विशालकाय रावण का पुतला आकर्षण का केंद्र होगा। पुतला बनाने में जुटे राजू खान बताते हैं कि उनका यह काम देश आजाद होने से पहले का है। शुरुआत परदादा हाजी अली हुसैन ने की थी। वह परिवार के अन्य सदस्यों के साथ लगभग 20 कारीगरों के साथ रामलीला शुरू होने के एक सप्ताह पहले से ही पुतला बनाने में जुट जाते हैं। उधर बरेका में रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ के विशालकाय पुतलों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। इन पुतलों को बनाने का काम शमशाद का परिवार कर रहा है। ये परिवार चार पीढ़ियों से दशहरे के पुतले तैयार करने की परंपरा को जीवित रखे हुए है। इस बार वे पूर्वांचल का सबसे ऊंचा 75 फीट ऊंचा रावण का पुतला तैयार कर रहे हैं। रावण के साथ कुंभकर्ण और मेघनाथ के पुतले भी बनाए जा रहे हैं। इस कार्य में उनके परिवार के 12 सदस्य दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। शमशाद ने बताया कि इस परंपरा की शुरुआत उनके नाना ने की थी। उनका परिवार आज भी इसे निभा रहा है। डेढ़ महीने पहले से ही परिवार इस काम में जुट जाता है। इसके अलावा शमशाद का परिवार लंका, मलदहिया, और फुलवरिया के पुतले भी तैयार कर रहा है।
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