बसपा के लिए चुनौती बना मिशन फतह 2022 !
-बेस वोट रहा नहीं, नेता कोई बचा नहीं
वाराणसी(dil india)। कभी तिलक तराजू और तलवार...का नारा देकर सियासत में सिफर से शिखर तक पहुंचने वाली बहुजन समाज पार्टी इस बार कठिन दौर से गुज़र रही है। बसपा का बेस वोट भाजपा में शिफ्ट हो जाने से बसपा प्रमुख मायावती चिंतित है। कभी बसपा ने नारा दिया था यूपी हुई हमारी है, अब दिल्ली की बारी है मगर हुआ उल्टा, यूपी भी गयी और दिल्ली तो पहले से ही दूर है। अगर संगठन का जायजा लिया जाये तो मायावती और सतीश चन्द्र मिश्रा के बाद पार्टी में दूर-दूर तक कोई सूरमा नज़र नहीं आ रहा है जो कोई करिश्मा करता दिखाई दे। बसपा से बाहर जाने वालों की लम्बी फेहरिस्त है। हाल के महीनों में नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने कांग्रेस से हाथ मिला लिया। इससे बसपा मुस्लिम वोट बैंक को भी लेकर परेशानियों में घिर गयी। अब पार्टी महासचिव के कंधे पर बसपा से ब्राहम्णों को जोड़ने का भार है मगर सतीश चन्द्र मिश्रा इसमें कितना सफल होंगे ये तो वक्त ही बतायेगा। फिलहाल बसपा दुविधा और परेशानियों के दौर से गुज़र रही है। एक रिपोर्ट...
बहुजन समाज पार्टी किस कदर कठिन दौर से गुज़र रही है इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि अन्य दलों से अलग चलने वाली बहुजन समाज पार्टी भी अब दूसरे सियासी दलों की राह पर है। बसपा 31 साल के इतिहास पर अगर नज़र डालें तो सब कुछ बदला-बदला सा नज़र आ रहा है। इस चुनाव में वोटरों को लुभाने के लिए बहुजन समाज पार्टी लोक लुभावने वायदे कर रही है। बसपा अब बहुजन समाज के बजाय सर्वसमाज की बाते करती दिखाई दे रही है। प्रबुद्ध वर्ग गोष्ठियां पिछले दिनों की गयी। भाजपा की तरह सत्ता में आने पर धार्मिक एजेंडे को भी धार देने की बात कर रही है। इसको देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि बसपा अपना मूल रंग-ढंग बदल चुकी है।
प्रबुद्ध वर्ग गोष्ठी से नैया होगी पार!
बसपा अमूमन घोषणा पत्र नहीं जारी करती है और न ही यह बताती है कि वह सत्ता में आने पर क्या करेगी, लेकिन इस बार मायावती ने यह साफ कर दिया हैं कि वह सत्ता में आने पर क्या-क्या करने वाली हैं। प्रबुद्ध वर्ग विचार गोष्ठी के समापन पर सभी संस्कृत स्कूलों को सरकारी सुविधाएं देने, वित्तविहीन शिक्षकों के लिए आयोग बनाने और तीनों कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगाने का वादा तो मायावती ने किया ही साथ में यह भी साफ कर दिया कि अब वो सत्ता में आने पर स्मारक, पार्क व संग्रहालय नहीं बनवाएंगी यह भी साफ कर दिया कि अयोध्या, काशी व मथुरा का विकास कराएंगी। वो सभी वर्गों को ध्यान में रख कर चुनावी वायदे कर रही हैं। इस बार उनकी नज़र सभी वर्ग के वोट पर है। वो युवाओं को रोजगार देने की बात कर रही हैं तो कर्मियों की मांगों को पूरा करने के लिए आयोग बनाने की बात कर रही हैं। किसानों के हितों की बात कर रही हैं, तो सिखों को भी खुश करने के लिए वायदे कर रही हैं। ब्राह्मण, मुस्लिम, महिला, मजदूरों के लिए उनके चुनावी एजेंडे में बहुत कुछ है।
मुख्तार अंसारी को कभी वक्त का सताया हुआ इंसान बताने वाली मायावती ने टिकट न देने का पहले ही ऐलान करके सभी को चौका दिया। मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफज़ाल अंसारी गाज़ीपुर से बसपा के सांसद हैं मगर उनके भी दूसरे दलों में जाने की अटकलें लगातार आ रही है सच्चाई क्या है यह तो आने वाला समय बतायेगा मगर मुख्तार के सबसे बड़े भाई शिबगतुल्लाह अंसारी सपा की साइकिल पर सवार हो चुके हैं। ऐसे में बहुत हद तक अफज़ाल और मुख्तार के भी सपा में जाने के संकेत मिल रहे हैं। इसके चलते भी बसपा को आंशिक नुकसान होना तय है। क्यों कि कहा जाता है कि अंसारी परिवार पूर्वांचल की गाजीपुर, मऊ समेत कई सीटों पर अपना प्रभाव रखता है वो भले जीते या न जीते समीकरण उनके ही इशारों पर बनते रहे हैं। सपा प्रमुख जब तक मुलायम सिंह यादव थे तब उन्होंने अंसारी बंधुओं और अतीक सरीखे नेताओं को अपने साथ रखा था मगर जब कमान अखिलेश यादव के हाथ में आयी तो उन्होंने अंसारी परिवार से दूरी बना ली थी।
माया का ट्वीट वार
अमूमन मीडिया खासकर सोशल मीडिया से दूरी बनाए रखने वाली मायावती। समय-समय पर मीडिया को कोसने वाली बसपा अब सोशल मीडिया का सहारा ले रही है। मायावती को हर मुद्दे अब ट्वीट करने में मज़ा आ रहा है। सतीश चंद्र मिश्र बकायदे पीआर एजेंसी लगाए हुए हैं। यानी अब बसपा समझ गयी है कि सभी को साथ लेकर चलना होगा और सोशल मीडिया आज का बहुत ज़रूरी हथियार है।
दूसरे दलो में गए बसपा के ये चेहरे
कांशी राम के खास सहयोगी राज बहादुर कभी बसपा के खास चेहरे हुआ करते थे। सबसे पहले बसपा से बाहर हुए, उनके अलावा आरके चौधरी, डॉक्टर मसूद, शाकिर अली, राशिद अल्वी, जंग बहादुर पटेल, बरखू राम वर्मा, सोने लाल पटेल, राम लखन वर्मा, भागवत पाल, राजाराम पाल, राम खेलावन पासी, कालीचरण सोनकर, रामवीर चौधरी, बाबूराम कुशवाहा, स्वामी प्रसाद मौर्य, नसीमुद्दीन सिद्दीकी और अब उदय लाल मौर्य आदि अनेक ऐसे नेता हैं जो बसपा में थे। इनमें आरके चौधरी, काली चरण सोनकर व सोने लाल पटेल ने अपनी पार्टी बना ली थी। इसमें से कई तो अब इस दुनिया में भी नहीं हैं।
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