किसान पदयात्रा का काशी में समापन
- चंपारण से गांधी-शास्त्री जयंती पर हुई थी शुरु
वाराणसी 20 अक्टूबर(dil india)। चंपारण से गांधी-शास्त्री जयंती के दिन २ अक्टूबर को शुरू हुई १९ दिनी ४०० किसानों की पदयात्रा २० अक्टूबर को वरुणा नदी किनारे शास्त्री घाट पहुंची। वाराणसी, चंदौली, मऊ, आजमगढ़, बलिया, गाजीपुर और मध्य प्रदेश के किसानों ने वाराणसी के नागरिक संगठनों के साथ मिलकर मुख्य रूप से ओडिशा से आये किसान पदयात्रियों का स्वागत किया।
शास्त्री घाट में अपराह्न १ से ४ बजे तक आयोजित सभा में संयुक्त किसान मोर्चा के राष्ट्रीय समिति के डाक्टर सुनिलम ने कहा कि किसान विरोधी तीनों काले कानूनों का विरोध करते हुए पंजाब के किसान दिल्ली में दो दिन की रैली के लिए आ रहे थे, और हरियाणा के मुख्यमंत्री ने पानी, खाई और चट्टान के पत्थर से रोकने का प्रयास किया, रैली नहीं रुकी, ११ महीनों से लगातार धरना चल रहा है, यह देश के किसानों का त्याग भरा जज्बा है जो सफलता पाए बिना रुकेगा नहीं| कर्नाटक के किसान नेता वी आर पाटील ने कहा की ७ नवम्बर तक कन्याकुमारी से लेकर दिल्ली तक एक बृहद किसान यात्रा शुरू हो रही है जो देश के विभिन्न प्रदेशों का भ्रमण करते हुए किसान आन्दोलन की पहली वर्षगाँठ के दिन २६ नवम्बर को दिल्ली पहुंचेगी और मोदी सरकार को लालाकरेगी | सोशलिस्ट किसान यूनियन के राष्ट्रिय अध्यक्ष डॉ. संदीप पाण्डेय ने कहा कि शायद यह सरकार के कान बंद हैं, यदि यह सरकार किसानों की पुकार नहीं सुन रही है तो २०२२ के उत्तर प्रदेश चुनाव और २०२४ के लोक सभा चुनाव में देश की जनता अन्नदाता के अपमान के बदले में सत्तासीन पार्टी को सबक सिखाएगी | उन्होंने कहा की सरकार के लोग तालिबानियों से वार्ता करने रूस जा रहे है लेकिन ११ महीनों से आंदोलनरत किसानों से बात नहीं कर रहे हैं |
कार्यक्रम की शुरुवात में चंदौली से
कार्यक्रम की शुरुवात में चंदौली जिले के किसान नेता सुरेश यादव के नेतृत्व में भारतीय किसान यूनियन के लोग लखीमपुर में शहीद हुए किसानों का अस्थि कलश ले आये और मौन रखकर उन शहीदों को श्रद्धांजलि दी गयी| पदयात्रा के संयोजक अक्षय कुमार एवं हिमांशु तिवारी, बिहार किसान संघर्ष समिति के नेता दिनेश सिंह, एकता परिषद् बिहार के प्रदीप प्रियदर्शी, नीति भाई, सुनील सहस्रबुद्धे, बलिया के किसान नेता अखिलेश सिंह और राघवेन्द्र सिंह, मोरादाबाद के किसान नेता राकेश रफीक आदि ने भी सभा को संबोधित किया। वाराणसी के वरिष्ठ समाजवादी नेता विजय नारायण ने अध्यक्षता की। फादर आनंद ने पदयात्रा समापन सभा की तरफ से एक ग्यारह-सूत्री प्रस्ताव को पढ़कर सुनाया जिसे सभी लोगों ने ध्वनी मत से पारित किया | कार्यक्रम की शुरुवात में राम जनम ने सभी पदयात्रियों का स्वागत करते हुए कहा कि बनारस कबीर, रैदास, बाबा भोलेनाथ और मुंशी प्रेमचंद की नगरी है, और इसी शहर से किसान विरोधी क़ानून की चुनौती दी जानी चाहिए| पारमीता ने संचालन ने किया। कसभा शुरू होने से पूर्व लोकविद्या जन आंदोलन और प्रेरणा कला मंच के कलाकारों ने जन जागृति के गीत गाये|
कार्यक्रम में मध्य प्रदेश के किसान नेता ईश्वर चंद के नेतृत्व में सतना, कटनी, जबलपुर के ५० किसान महिलायें और ओडिशा के सेशादेव नंदा, उमाकांत भारत, निनई राज, रश्मि रंजन स्वाइन, मुनवर अली, अमृतसर से राष्ट्रीय महिला किसान मोर्चा की दलजीत कौर, सर्व सेवा संघ, वाराणसी के राम धीरज, अनूप श्रमिक, मनीष शर्मा, डॉक्टर मुनीज़ा रफीक खान,डॉ मोहम्मद आरिफ,राजेन्द्र चौधरी, शहजादी, श्रीप्रकाश, बुनकर नेता अहमद, धनंजय त्रिपाठी, सच्चिदानंद ब्रह्मचारी, सतीश सिंह, रमण पन्त, गोकुल दलित, सागर गुप्ता, अधिवक्ता प्रेम प्रकाश यादव, नंदलाल मास्टर, आदि उपस्थित रहे। भारतीय किसान यूनियन, स्वाराज किसान आन्दोलन, कृषिभूमि बचाओ मोर्चा, किसान एकता मंच, जय किसान आंदोलन, किसान मजदूर एकता परिषद, पूर्वांचल किसान यूनियन, जॉइंट एक्शन कमेटी, भगत सिंह छात्र मोर्चा, लोकसमिति, लोकचेतना समिति, कम्युयूनिस्ट फ्रंट, पूर्वांचल बहुजन मोर्चा, रिदम, साझा संस्कृति मंच, खदान मजदूर यूनियन और बुनकर यूनियन के सदस्य लोग उपस्थित रहे|
सभा में पारित प्रस्ताव
गांधीजी के नेतृत्व में किसानों के चंपारण सत्याग्रह के 104 साल बीत जाने के बाद भी भारत के किसानों को खेती - किसानी के सवाल पर आंदोलन करना पड़ रहा है। तब और अब में फर्क सिर्फ इतना आया है कि तब अंग्रेज शासन कर रहे थे और अब भारतीय। उस समय नील की खेती और उसके दाम को ब्रिटिश कंपनियां नियंत्रित कर रही थी । अब दुबारा से खेती को कंपनियों को देनी की साजिश है ।
तीनों काले कानून के विरोध में और एम. एस. पी के गारंटी के कानून के लिए देशभर के किसान पिछले ग्यारह महीनों से दिल्ली के बॉर्डर पर संयुक्त किसान मोर्चा के सामूहिक नेतृत्व में आंदोलित हैं , लेकिन सरकार है कि उसके कानों में जूं तक नहीं रेंग रही।लोगों द्वारा चुनी गयी सरकार का ऐसा रवैया लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं।
ऐसे दौर में हम सब लोगों का कर्तव्य है कि किसान के इस जीवन- मरण प्रश्न को देश भर में जोर - शोर से सत्याग्रह के माध्यम से ले जाया जाए। जनजागरण के लिए सत्याग्रह के तौर पर हम साथियों ने उसी चंपारण से पदयात्रा करने का निर्णय लिया, जहाँ गांधी जी ने किसानों के लिए 1917 में सत्याग्रह किया था । आइए हम सब मिल कर एक साथ एकजुट होकर यह प्रस्ताव देश भर में सवाल के रुप ले जाएं।
लोकनीति सत्याग्रह के प्रधानमंत्री से ग्यारह सवाल-
1.लोकतंत्र में अलोकतांत्रिक निर्णय क्यों? 650 से ज्यादा किसानों के शहादत के बाद भी किसानों से मिलने के लिए आपकी संवेदना क्यों नहीं जगी ?
2. तीनों काले कानून कब वापस होंगे?
3. एम. एस. पी. पर कानूनी गारंटी क्यों नहीं ?
4. नौजवानों के रोजगार पर फैसला कब ? किसानों को सामाजिक सुरक्षा भत्ता क्यों नहीं ?
5. कमर तोड़ महंगाई से राहत कब ?
6.करोना से दिखाई दिए विफल स्वास्थ्य सिस्टम की जिम्मेदारी किसकी ? अस्पतालों की हालत कब सुधरेगा ?
7.पढ़ाई, दवाई, कमाई, महंगाई, उचित मूल्य जैसे जरुरी सवाल सत्ता में आने के इतने साल बाद भी आपके एजेंडे में क्यों नहीं?
8.मजदूरों के पलायन और बढ़ती अमीरी- गरीबी असमानता का जिम्मेदार कौन ?
9. कॉर्पोरेट और विदेशी कंपनियों के हाथ की कठपुतली सरकार कब तक बनी रहेगी?
10.प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंन लूट की छूट कब तक?
11. लखीमपुर के किसानों को न्याय मिले , गृहराज्य मंत्री अजय मिश्रा बर्खास्त हो।
हम हज़ारों किसान बनारस में एकजुट होकर यह प्रस्ताव पारित कर रहें हैं की इन सवालों को देश भर में ले जायेंगे और प्रधानमंत्री जी को जवाब देने के लिए मजबूर करेगे।
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