जुलूस-ए-मोहम्मदी में इस्लामिक झंडे संग लहराया तिरंगा
- कोरोना काल के बाद पहली बार निकला जुलूसे मोहम्मदी
वाराणसी (dil india)। इस्लाम धर्म के पैगंबर हज़रत मोहम्मद (स.) की यौमे पैदाइश (जन्मदिन) की खुशी में मंगलवार को जोश और खुशी के माहौल में मोमिन झूम उठे। कोरोना काल में दो साल तक कोई जुलूस नहीं निकला था। कोविड के बाद निकले इतने बड़े जुलूस में लोगों का उत्साह देखते ही बन रहा था। शहर काज़ी मौलाना गुलाम यासीन साहब की अगुवाई में निकले जुलूस में कई इलाकों से निकला जुलूसे मोहम्मदी भी शामिल हो गया। जुलूस में शामिल लोगों के सिरों पर रंग-बिरंगा साफा और टोपी था तो हाथ में इस्लामी परचम। इस दौरान अमन और मिल्लत के साथ ही कौमी यकज़हती व देश भक्ति भी देखने को मिली। जुलूस में शामिल लोग इस्लामी परचम के साथ ही शान से तिरंगा लहराते चल रहे थे।
सुरक्षा के कड़े इंतजाम
फजर की नमाज के बाद रेवड़ीतालाब से जुलूस उठने का सिलसिला शुरू हुआ। बच्चे, युवा और पुरुष सभी वाहन व पैदल जुलूस लेकर निकले।जुलूस में सुरक्षा के कड़े इंतेज़ाम किये गये थे। इस दौरान शहर के करीब सभी मार्गों पर छोटा-बड़ा जुलूस दिखा। जुलूसों में नबी की शान में नातिया कलाम गूंज रहा था।
वही, सरकार की आमद मरहबा..., आका की आमद मरहबा..., मुस्तफा या मरहबा... आदि सदाएं बुलंद हो रही थीं। मरकजी दावते इस्लामी जुलूसे मुहम्मदी कमेटी एवं मुफ्ती बोर्ड के सदर मौ. अब्दुल हादी खां व जनरल सेके्रटरी मौ. हसीन अहमद हबीबी की निगरानी में जुलूस रेवड़ी तालाब के अजहरी मैदान से उठा।
जिसमें शिवाला, गौरीगंज, बजरडीहा, ककरमत्ता, मदनपुरा, अर्दली बाज़ार आदि मुहल्लों के जुलूस भी शामिल हो गया। जुलूस भेलूपुर, गौरीगंज, रवींद्रपुरी, शिवाला, सोनारपुरा, मदनपुरा, गोदौलिया, चौक, मैदागिन, कबीरचौरा, पियरी होते हुए बेनियाबाग पहुंचा। इस बार बेनियाबाग में जगह न होने की वजह से साइकिल स्टेंड के पास डायस लगाया गया था जिस पर उलेमा ने तकरीर की। आयोजन के दौरान विमिन्न संस्थाओं ने जुलूस का इस्तकबाल किया। बेनिया में हुए जलसे में आल इंडिया काजी बोर्ड के अगुवा मौलाना कौसर रब्बानी, मौलाना अब्दुल हादी खां हबीबी, मौलाना हसीन अहमद हबीबी, मौलाना अंजूम रजा नूरी, मौ. उजैर आलम आदि ने नबी की पैदाइश पर रोशनी डाली। इस दौरान शायरों ने कलाम पेश किया। गोदौलिया, चौक, मैदागिन, लोहटिया आदि स्थानों पर मुस्लिमों के साथ ही हिन्दू संगठनों ने भी जुलूस का स्वागत किया। पानी, फलहार व अन्य खाद्य सामग्री जुलूस में बांटी गयी।
जिसमें शिवाला, गौरीगंज, बजरडीहा, ककरमत्ता, मदनपुरा, अर्दली बाज़ार आदि मुहल्लों के जुलूस भी शामिल हो गया। जुलूस भेलूपुर, गौरीगंज, रवींद्रपुरी, शिवाला, सोनारपुरा, मदनपुरा, गोदौलिया, चौक, मैदागिन, कबीरचौरा, पियरी होते हुए बेनियाबाग पहुंचा। इस बार बेनियाबाग में जगह न होने की वजह से साइकिल स्टेंड के पास डायस लगाया गया था जिस पर उलेमा ने तकरीर की। आयोजन के दौरान विमिन्न संस्थाओं ने जुलूस का इस्तकबाल किया। बेनिया में हुए जलसे में आल इंडिया काजी बोर्ड के अगुवा मौलाना कौसर रब्बानी, मौलाना अब्दुल हादी खां हबीबी, मौलाना हसीन अहमद हबीबी, मौलाना अंजूम रजा नूरी, मौ. उजैर आलम आदि ने नबी की पैदाइश पर रोशनी डाली। इस दौरान शायरों ने कलाम पेश किया। गोदौलिया, चौक, मैदागिन, लोहटिया आदि स्थानों पर मुस्लिमों के साथ ही हिन्दू संगठनों ने भी जुलूस का स्वागत किया। पानी, फलहार व अन्य खाद्य सामग्री जुलूस में बांटी गयी।
अमन, भाईचारगी व सौहार्द नबी की तालीम
उलेमा ने कहा कि पैगम्बर हज़रत मोहम्मद (स.) का जन्म ही ऐसे समय में हुआ था। जब लोग आपस में खून के प्यासे थे, जमीन और दौलत के लिए लड़ रहे थे। कबीले-कबीले से लड़ रहे थे। उस समय अरब के रेगिस्तान में नूर के रुप में हज़रत मोहम्मद (स.) का जन्म हुआ। करीब 15 सौ सालों से उनकी सीरत की रोशनी सबको सराबोर करती चली जा रही है। उन्होंने इंसानियत और भाईचारे का संदेश दिया। हम सबको नबी ने इंसानियत और कुबार्नी सिखाया। ऐसी इंसानियत जिसमें हम सबको अपना भाई समझें और किसी का दिल ना दुखाएं। दूसरों की खुशी के लिए अपनी जो सबसे प्यारी चीज है उसे कुर्बान करने को तैयार रहें। इसलिए हमें हर हाल में जैसी भी स्थिति आए मोहम्मद (स.) की सीरत पर अमल करते हुए अमन, भाईचारगी व सौहार्द के साथ रहना चाहिए। तभी हमारे साथ मुल्क की तरक्की हो पाएगी। मोहम्मद (स.) के दुनिया में आने के बाद तमाम हुमूमते खत्म हो गईं। इंसानियत व अमन का राज कायम हुआ। नबी से जिसने नफरत की, उसे सजा नहीं उन्होंने दुआ दी। ऐसा किरदार हज़रत मोहम्मद (स.) का था जिसे सारी दुनिया मानती है।
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