जिन प्रेम कियो तिनही प्रभु पायो...
मैं हूं परम पूरक को दासा देखन आयो जगत तमाशा...
Varanasi 09 जनवरी (dil india live) : सिक्ख धर्म के दसवें पातशाह गुरु गोविंद सिंह की जयंती पूरे श्रद्धा और उल्लास के साथ आस्थापूर्वक देश-दुनिया के साथ ही धर्म की नगरी काशी में भी मनायी गयी। इस अवसर गुरुद्वारा गुरुबाग व गुरुद्वारा नीचीबाग में विशेष आयोजन किये गये। पूरे दिन गुरुद्वारे शबद कीर्तन के बोलों से गूंजते रहे। दोनों गुरुद्वारों में दरबार साहिब को फूलमाला और बिजली के झालरों से सजाया गया था। सुबह से ही दरबार में हाजिरी लगाने वालों का तांता लगा रहा। हालांकि कोविड के चलते रात का दीवान आनलाइन ही सजा, गुरुद्वारों के पट रात 10 बजे बंद कर दिये गये।
इससे पहले सुबह गुरु पर्व का आगाज गुरुद्वारा बड़ी संगत नीचीबाग में गुरु ग्रंथ साहिब के प्रकाश से हुई। फूलों फूलों से सजी पालकी श्री गुरुग्रंथ साहिब की परिक्रमा में बड़ी संख्या में भक्त शामिल हुए। शब्द कीर्तन गायन कर गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश हुआ।इसी के साथ ही पिछले 40 दिनों से निकल रही प्रभातफेरियों एवं श्री अखंड पाठ साहिब जी का लड़ी पाठ का भी समापन हुआ। अरदास एवं प्रसाद वितरण में गुरु भक्तों का हुजुम जुटा हुआ था। शाम को आनलाईन दीवान सजाया गया।
गुरुद्वारा गुरुबाग में हजूरी रागी जत्था भाई नरेंद्र सिंह भाई रकम सिंह भाई रंजीत सिंह ने गुरुवाणी, शबद कीर्तन व कथा से संगत को निहाल किया। सुबह से से रात तक गुरुद्वारे, सच कहूं सुन लेहु सभै, जिन प्रेम कियो तिनही प्रभु पायो...व, मैं हूं परम पूरक को दासा देखन आयो जगत तमाशा...जैसे शबद-कीर्तन के स्वर गूंज रहे थे। घरों से लेकर जश्न का माहौल था पंगत और संगत का उल्लास गुरुदारों में देखते ही बन रहा था।
गुरुबाग में तो गजब की रौनक थी। सुबह से ही श्रद्धालुओं का गुरुद्वारे में पहुंचने का क्रम शुरू हुआ जो अनवरत जारी रहा। पूरे दिन गुरुद्वारों में शबद कीर्तन में लोग जुटे हुए थे। गुरूनानक खालसा बालिका इंटर कालेज एवं गुरुनानक इंग्लिश स्कूल के बच्चों ने भी शबद कीर्तन में भाग लिया। इस अवसर पर विशिष्ट लोगों को सिरोपा देकर सम्मान किया गया। मौजूद संगत ने पंगत में बैठकर गुरु का अटूट लंगर बरता। जिसमें बड़ी संख्या में दूसरे धर्म के भी लोग शामिल हुए और प्रसाद ग्रहण कर खुद को निहाल किया।मुख्य ग्रंथि भाई रंजीत सिंह ने दीवान समाप्ति की अरदास की। इस अवसर पर बलजीत सिंह, महंत सिंह, भाई धरमवीर सिंह, परमवीर सिंह अहलूवालिया आदि मौजूद थे।