सोमवार, 25 अप्रैल 2016

#यहाँ जो भी आता है झोली भर के जाता है

गंगा जमुनी तहज़ीब का मरकज़ हज़रत बहादुर शहीद का दर 

यहाँ जो भी आता है झोली भर के जाता है 

दिखती है यहाँ हिंदुस्तान की मिलीजुली संस्कृति  

अमन 

मुस्लिम अगर फातिहा पढ़ते दिखाई देते है तो हिन्दू माथा टेकते। यहाँ सबसे बड़ा मज़हब है इंसानियत का, न कोई हिन्दू न मुस्लिम। जी हा हम बात कर रहे है उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के सदर बाजार मेंतशरीफ़ फरमा हज़रत बहादुर शहीद रहमतुल्लाह अलेह की। आपकी मज़ार हिंदुस्तान की मिलीजुली संस्कृति का हिस्सा है यहाँ हिन्दू मुस्लिम दोनों झोली फैलाए नज़र आते हैयहाँ के गद्दीनशीन समीउल्लाह बाबू कि माने तो हज़रत के दर से कोई खाली हाथ नहीं जाता। यही वजह है की देश के कोने कोने से तमाम मजबूर व परेशान लोग आते है और सुकून पा कर हसीखुशी अपने घर लौट जाते है| यहाँ जिस जगह हज़रत तशरीफ़ फरमा है उस जगह का नाम भी सदभावना पार्क है । हर जुमेरात को यहाँ ज़ायरीन का हुजूम लगता है। 

शेख़ अली हजी को दिखता था बनारस का हर बच्चा राम और लक्ष्मण

बरसी पर याद किए गए ईरानी विद्वान शेख़ अली हजी  Varanasi (dil India live)। ईरानी विद्वान व दरगाहे फातमान के संस्थापक शेख मोहम्मद अली हजी ईरान...