शनिवार, 12 दिसंबर 2020

हिन्दू-मुस्लिम एकता और आज़ादी के नायक - मौलाना मोहम्मद अली जौहर



"दौर-ए-हयात आएगा क़ातिल क़ज़ा के बाद, 

है इब्तिदा हमारी तिरी इंतिहा के बाद।"


वाराणसी(शाहिन अंसारी/दिल इंडिया)। मौलाना मोहम्मद अली जौहर को मोहम्मद अली के नाम से भी जाना जाता है जो स्वतंत्रता के भावुक सेनानियों में थे। वह एक बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्ति थे और उन्होंने  ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ प्रयासों में एक बड़ी भूमिका निभाई थी। वह एक भारतीय मुस्लिम नेता, कार्यकर्ता, विद्वान, पत्रकार  कवि /शायर,एक दूरदर्शी राजनीतिज्ञ और एक बेहतरीन वक्ता भी थे ।  रोहिलात्री के यूसुफ ज़ई कबीले से ताल्लुक रखते थे जो पठानों का एक धनी और प्रबुद्ध परिवार था। मौलाना मोहम्मद अली जौहर का जन्म 10 दिसंबर 1878 को रामपुर रियासत में शेख अब्दुल अली खान के घर हुआ। उनकी माता आबादी बानो बेगम को 'बी अम्मा' के नाम से जाना जाता है। पांच भाई-बहनों में वह सबसे छोटे थे।  वह दिग्गज अली बंधुओं में से एक और मोहम्मद अली मौलाना शौकत अली के भाई थे। मोहम्मद अली और मौलाना शौकत अली भारतीय राजनीति में 'अली बन्धुओं' के नाम से मशहूर हैं। जब वह पांच साल के थे तो उनके पिता की मृत्यु हो गयी थी। पिता की मृत्यु के बाद, उनकी दूरदर्शी माता द्वारा किए गए प्रयासों, दृढ़ संकल्प और बलिदान ने उन्हें और उनके भाइयों को अच्छी शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम बनाया। वह एक समझदार महिला थी जिसने अपने बच्चों को बड़े परिश्रम और त्याग से पाला और उन्हें सर्वश्रेष्ठ शिक्षा दी। बी अम्मा ने विशेष रूप से अली बंधुओं (शौकत अली और मोहम्मद अली) समेत राष्ट्रवादी नेताओं की गिरफ्तारी के बाद स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भाग लिया। अपनी बहू अमजदी बेगम और अन्य महिलाओं के साथ, उन्होंने धन इकट्ठा किया, बैठकें आयोजित कीं और भारतीय महिलाओं सेविदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने की अपील की। उन्होंने बिहार में व्यापक रूप से यात्रा की और महिलाओं को स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी की भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित किया।

मोहम्मद अली जौहर की उर्दू और फारसी की शुरुआती पढ़ाई घर पर ही हुई थी। इसके बाद वह मैट्रिक करने के लिए बरेली हाई स्कूल चले गए। बाद में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संबद्ध, अलीगढ़ के ' एंग्लो मोहमडन ओरिएंटल कॉलेज' में पढ़ाई की। जो  बाद में प्रसिद्ध अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बना।

सन 1896 ई. में इन्होंने स्नातक (बी.ए.) की डिग्री इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी और सफल उम्मीदवारों की सूची में प्रथम स्थान पर रहते हुए, उन्होंने खासी प्रशंसा अर्जित की।

1897 में, उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए लिंकन कॉलेज ऑफ ऑक्सफोर्ड भेजा गया, जहाँ उन्होंने 1898 में आधुनिक इतिहास में  स्नातकोत्तर  (M.A.) की सम्मानित  डिग्री हासिल की और खुद को इस्लाम के इतिहास के अध्ययन के लिए समर्पित किया। बाद में इंडियन सिविल सर्विसेज की परीक्षा भी पास की।  जौहर ने 1902 में अमजदी बानो बेगम (1886-1947) से शादी की। बेगम सक्रिय रूप से राष्ट्रीय और खिलाफत आंदोलन में शामिल थीं।

भारत लौटने पर, मोहम्मद अली जौहर ने रामपुर राज्य के शिक्षा निदेशक के रूप में कार्य किया और बाद में बड़ौदा नागरिक सेवा में शामिल हो गए। उसी समय साहित्य और दर्शन का गहन अध्ययन किया।  1910 के अंत तक उन्होंने अपनी बड़ौदा की नौकरी छोड़ दी और पत्रकारिता को अपना कैरियर बना लिया। एक लेखक के रूप में वह लंदन टाइम्स, द मैनचेस्टर, गार्डियन और द ऑब्जर्वर जैसे प्रमुख समाचार पत्रों में लेख लिखते रहते थे। उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया, बॉम्बे में  भी समकालीन मुद्दों पर लिखा। फिर वह कलकत्ता आ गए। जहां इन्होंने साप्ताहिक  'कॉमरेड' का प्रकाशन प्रारम्भ किया। कॉमरेड का पहला अंक 1911 में प्रकाशित हुआ था। एक साल के भीतर, कॉमरेड अपनी भाषा और शैली के कारण लोकप्रिय हो गया। कलकत्ता में उनके रहने से उनके काम की गति तेज हो गई। 

19111 में दिल्ली भारत की राजधानी बनी, सबसे महत्वपूर्ण कार्यालय कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित हो गए। जौहर भी दिसंबर 1912 में दिल्ली आ गए। 1913 में उन्होंने उर्दू दैनिक 'हमदर्द' प्रकाशित किया। 40 घंटे के लगातार काम के बाद उन्होंने लंदन टाइम्स में प्रकाशित एक लेख के जवाब में तुर्कों के समर्थन में एक लेख लिखा। मशहूर लेख, "च्वाइस ऑफ द टर्क्स", कॉमरेड में प्रकाशित हुआ था और इसका उर्दू अनुवाद एक साथ 'हमदर्द' में किया गया था जो ब्रिटिश सरकार द्वारा पसंद नहीं किया गया था।  ब्रिटिश सरकार द्वारा कागजात की सभी प्रतियां जब्त कर ली गईं और 15 मई 1915 को मोहम्मद अली जौहर को नजरबंद कर दिया गया। उनके विरोध और ब्रिटिश विरोधी प्रदर्शनों के लिए, उन्हें राजद्रोह के आरोप में चार साल  लिये क़ैद कर लिया गया था।

 मोहम्मद अली जौहर ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत 1906 में मुस्लिम लीग के सदस्य के रूप में की। 1917 में उन्हें सर्वसम्मति से मुस्लिम लीग का अध्यक्ष चुना गया, जबकि उस समय वह नजरबंद थे। 

1919 के अंत मे  जेल से मोहम्मद अली जौहर सीधे अमृतसर गए जहां कांग्रेस और मुस्लिम लीग अपनी वार्षिक बैठकें कर रहे थे। वह 1919 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। 1920 में खिलाफत आंदोलन के लिए उन्होंने लंदन में एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया। दिसंबर 1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में जौहर ने असहयोग का प्रस्ताव पारित किया। 1923 में, उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के काकीनाडा सत्र का अध्यक्ष चुना गया। असहयोग के माध्यम से उन्होंने भारत को 'जामिया मिलिया इस्लामिया' दिया। उनके बड़े भाई शौकत अली भी खिलाफत आंदोलन के नेता थे। मोहम्मद अली जौहर ब्रिटिश हुकूमत के कट्टर आलोचक और गांधी जी के समर्थक थे। उन्होंने ख़िलाफ़त आंदोलन में अहम भूमिका निभाई और गांधीजी का समर्थन जीता।  उन्होंने अंग्रेज़ों से लड़ने और हिन्दू-मुस्लिम एकता क़ायम करने के लिए रातों की नींद और दिन का चैन न्योछावर कर दिया था, अंग्रेज़ शासकों के ज़ुल्म सहे , जीवन का एक बड़ा हिस्सा जेलों में गुज़ारा । वह भारत की स्वतंत्रता के कट्टर समर्थक और खिलाफत आंदोलन के मशाल वाहक थे।


मौलाना मुहम्मद अली जौहर का मानना था :- जहां तक ख़ुदा के एहकाम का तआल्लुक़ है, मैं पहले मुसलमान हूं, बाद में मुसलमान हूं, आख़िर में मुसलमान हूं – लेकिन जब हिंदुस्तान की आज़ादी का मसला आता है, तो मैं पहले हिंदुस्तानी हूं, बाद में हिंदुस्तानी हूँ, आख़िर में हिंदुस्तानी हुँ। इसके अलावा कुछ नही।

1920 में इंगलैंड से लौटने के बाद  मोहम्मद अली जौहर ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का विस्तार करने के लिए कड़ी मेहनत की, जिसे  'मोहमडन एंग्लो-ओरिएंटल' कॉलेज' के नाम से जाना जाता था। उन्होंने अलीगढ़ में एक नई 'नेशनल मुस्लिम यूनीवर्सिटी'  'जामिया मिलिया इस्लामिया' की स्थापना की, जिसे बाद में दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया और अब यह एक  केंद्रीय विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा का प्रमुख संस्थान है। जामिया मिलिया इस्लामिया के सह-संस्थापक मोहम्मद अली जौहर ने 1920 से 1923 तक इसके कुलपति के रूप में कार्य किया। 

मोहम्मद अली जौहर उन दिग्गजों में से हैं, जिन्होंने विभिन्न मोर्चों पर आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ जोरदार लड़ाई लड़ी। वह बहुत बड़े शायर थे।  उनकी शायरी भी लोगों को काफी पसंद आती थी। मोहम्मद अली जौहर ने अपनी शायरी के ज़रिये ब्रिटिश सरकार पर  कई बार निशाना साधा। क्रांति भरे अपने अल्फ़ाज़ और जज़्बात को उन्होंने कभी खामोश होने नही दिया । भारत मे स्वतंत्रता की घोषणा मौलाना मोहम्मद अली जौहर ने की थी। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि यह मोहम्मद अली थे जिन्होंने देश के सबसे बड़े नेताओं में से एक, सी.आर. दास को आंदोलन में शामिल होने के लिए राजी किया था। इसलिए, उनके जीवन और योगदान को समझने के लिए इससे बेहतर कोई उदाहरण नही हो सकता। मोहम्मद अली न केवल प्रतिष्ठित ऐतिहासिक संस्थान के संस्थापकों में से एक, बल्कि एक मशहूर स्वतंत्रता सेनानी, एक बेहतरीन और 'करिश्माई' पत्रकार के रूप में, और कई खूबियों के साथ, महान गुणों का उपहार थे। मोहम्मद अली ने अपने अखबार कामरेड और हमदर्द के ज़रिये पत्रकारिता को जिस ऊँचे मक़ाम  पर पहुंचाया था आज भी उसी गुणवत्ता को बहाल करने की जरूरत है।




1930 में मोहम्मद अली जौहर ने अपने ख़राब स्वास्थ्य के बावजूद गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया। गोलमेज सम्मेलन में उनका भाषण, जो मरते हुए आदमी की आख़री  इच्छा महसूस हुई। उन्होंने कहा कि, "मेरी स्वतन्त्रता मेरे हाथ मे दो, मैं अपने देश वापस जाना चाहता हूं,' नही तो मैं एक गुलाम देश में वापस नहीं जाऊंगा। मैं एक विदेशी देश में मरना पसंद करूंगा, क्योंकि यह एक आजाद देश है, और अगर आप मुझे भारत में आजादी नहीं देते हैं तो आपको मुझे यहां एक कब्र देनी होगी। ' मोहम्मद अली, मधुमेह के पुराने रोगी थे। उनके ये शब्द सही साबित  हुए, 4 जनवरी,1931 को लंदन में सम्मेलन के तुरंत बाद उनका निधन हो गया। उनके नश्वर अवशेषों को बैतुल-मुक़द्दस ले जाया गया और 23 जनवरी 1931 को वहाँ दफनाया गया।  वर्तमान में 'मौलाना मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय' की स्थापना उनके पैतृक शहर रामपुर के इस महान पुत्र को विनम्र श्रद्धांजलि है। 


मौलाना मोहम्मद अली ने देश की आजादी के लिए अपने साथ सभी वर्ग के लोगों को लेकर चले थे। उनकी मां आबादी बेगम ने उनमें देशभक्ति की ललक पैदा की थी। अंग्रेजों के खिलाफ अपने अखबार में हमेशा लिखते रहै। ऐसे स्वतंत्रता सेनानी की वजह से आज हमें आजादी मिली है और खुली हवा में सांस ले रहे हैं। जौहर सच्चे देशभक्त थे।

देश को स्वतंत्र कराने में मोहम्मद अली जौहर के बलिदान को हमेशा  याद किया जाएगा। जिस तरह उन्हें हिंदू-मुस्लिम एकता बहुत प्रिय थी। आज भी  हमे उसी एकता की बहुत जरूरत है। हमें उनके शैक्षिक सिद्धांतों को भी आगे बढ़ाना होगा। उनके लिए ये ही हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

केंद्रीय संचार राज्य मंत्री संजय धोत्रे का वाराणसी में स्वागत

श्री काशी विश्वनाथ का प्रसाद पाकर हुए धन्य


वाराणसी (दिल इंडिया)। भारत सरकार के संचार, शिक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री श्री संजय धोत्रे के वाराणसी आगमन पर लाल बहादुर शास्त्री इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर डाक विभाग, टेलीकॉम एवं बीएसएनएल के अधिकारियों द्वारा स्वागत किया गया।  इस दौरान राज्य मंत्री श्री धोत्रे ने वाराणसी में चल रही विभिन्न योजनाओं का जायजा भी लिया और यहाँ से प्रयागराज के लिए रवाना हो गए। वाराणसी परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने संचार राज्य मंत्री को इस अवसर पर श्री काशी विश्वनाथ प्रसाद भी भेंट किया। गौरतलब है कि डाक विभाग, वाराणसी द्वारा स्पीड पोस्ट के माध्यम से पूरे देश भर में कहीं भी श्री काशी विश्वनाथ का प्रसाद भेजने की सुविधा है। इस अवसर पर पोस्ट मास्टर जनरल इलाहाबाद श्री सुवेन्दु स्वाइन, जीएम बीएसएनएल श्री केपी सिंह, प्रवर डाक अधीक्षक श्री सुमित कुमार गात सहित तमाम अधिकारी उपस्थित रहे।

गुरुवार, 10 दिसंबर 2020

कांग्रेस ने संगगठन मजबूती पर दिया ज़ोर


हसन मेहंदी तीसरी बार प्रदेश महासचिव बने

बनारस के ही हिफाजत हुसैन को प्रदेश कोऑर्डिनेटर, हाजी वकास अंसारी को वाइस चेयरमैन एवं हाजी तौफीक कुरैशी को प्रदेश सचिव की जिम्मेदारी सौंपी गई 

वाराणसी (दिल इंडिया)। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी अल्पसंख्यक विभाग के अध्यक्ष नदीम जावेद उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी अल्पसंख्यक विभाग के अध्यक्ष शहनवाज आलम की संस्तुति पर कांग्रेस नेतृत्व ने वाराणसी के हसन मेहंदी कब्बन को लगातार तीसरी बार उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी अल्पसंख्यक विभाग का प्रदेश महासचिव (कोऑर्डिनेटर) मनोनीत किया है। हसन मेंहदी के साथ ही बनारस के ही हिफाजत हुसैन को प्रदेश कोऑर्डिनेटर, हाजी वकास अंसारी को वाइस चेयरमैन एवं हाजी तौफीक कुरैशी को प्रदेश सचिव की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इन सभी के मनोनयन पर पूर्व मंत्री अजय राय, प्रदेश कांग्रेस सेवादल के अध्यक्ष प्रमोद पांडेय, जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष राजेश्वर सिंह पटेल, महानगर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष राघवेंद्र चौबे, यूपी बार काउंसिल के चेयरमैन हरिशंकर सिंह, पूर्व प्रदेश महासचिव सतीश चौबे, पूर्व जिला अध्यक्ष प्रजानाथ शर्मा, पूर्व महानगर अध्यक्ष सीताराम केशरी, उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी की प्रदेश सचिव सरिता पटेल, महानगर कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष (प्रशासनिक) फसाहत हुसैन बाबू, शहाबुद्दीन लोदी, मनीष चौबे युवा कांग्रेस के मयंक चौबे, चंचल शर्मा विनीत चौबे सहित तमाम कांग्रेस के नेताओं ने बधाई दी है। इस मनोनयन पर नवनियुक्त प्रदेश महासचिव हसन मेंहदी ने शीर्ष नेतृत्व का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि पार्टी शीर्ष नेतृत्व ने मेरे ऊपर विश्वास करते हुए लगातार तीसरी बार मुझे यह जिम्मेदारी सौंपी है तो मैं अपनी जिम्मेदारी का पूरी तरह से निर्वाह करते हुए पार्टी को मजबूत करने में कोई कोर कसर नहीं छोडूंगा बल्कि अल्पसंख्यकों को कांग्रेस के साथ मजबूती से जोड़ने का हर संभव प्रयास करूंगा।

बुधवार, 9 दिसंबर 2020

किसान बिल का विरोध


बनारस में पदयात्रा निकाल रहे सपाई गिरफ्तार

वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र भारत बंद के दूसरे दिन भी गर्म रहा। लाख पुलिसिया इंतिजाम के बावजूद सैकड़ों सपाईयों ने सयुस जिलाध्यक्ष किशन दीक्षित के नेतृत्व में भैंसासुर घाट से किसानों के समर्थन में पदयात्रा निकाली। हाथों में तख्तियां लिए सपाई केंद्र सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए आगे बढ़ रहे थे। 

वहीं अचानक सैकड़ों सपाईयों का जत्था सड़क पर निकलते ही प्रशासन सक्रिय हो गया। पदयात्रा मछोदरी पार्क तक आया ही था कि कोतवाली पुलिस सक्रिय हो गई और दर्जनों सपाईयों को नोंक-झोंक के बाद हिरासत में लेकर कोतवाली थाने लाया


गया।गिरफ्तार होने में महानगर अध्यक्ष विष्णु शर्मा, सयुस जिलाध्यक्ष किशन दीक्षित, पूजा यादव, ईशान श्रीवास्तव, शानू सिन्हा आदि शामिल थे।

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राम प्रकाश शाह का जाना

सबको रुला गया राम प्रकाश शाह का जाना



वाराणसी (दिल इंडिया)। देश की आज़ादी के लिए हुकुमते बरतानिया की नींद उड़ा देने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राम प्रकाश शाह के निधन की खबर जिसने भी सुनी सभी दुखी हो गये। लोगों की आंखों गम और अफसोस साफ दिखाई दे रहा था। उन्हें राजकीय सम्मान के साथ गाड आफ आनर संग अंतिम विदाई दी गई।  उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डा. ब्रज मेाहन सिंह निडर स्मृति सेवा सामिति ने गहरा शोक व्यक्त किया। इस मौके जिलाध्यक्ष महेन्द्र बहादुर सिंह ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राम प्रकाश शाह के निधन से हम सभी दुखी है। वो बेहद सरल और निडर इंसान थे उन्होने हमेशा बुराई का विरोध किया, अंग्रेजों के खिलाफ आवाज़ बुलंद की और जेल गये। उनका जाना देश की बड़ी क्षति है।

मंगलवार, 8 दिसंबर 2020

ठंड से बचाव के लिए बांटा गया कम्बल

दिव्यांग भी कर रहे बड़ा काम



वाराणसी (दिल इंडिया)। क्रिसमस के पूर्व दिव्यांग बच्चों में कम्बल बांट कर ठंड से बचने का इंतज़ाम ASSI संगठन की ओर से किया गया। इस दौरान रोमा फिलिप्स, बाबू शिवपुरी आदि ने बच्चो को सम्बोधित किया। इस दौरान दीपक डेविड ने कहा कि विकलांगता आज कोई अभिशाप नहीं रहा, आज दिव्यांग बड़े से बड़ा काम करके सबको आश्चर्यचकित कर दे रहे हैं, इसलिए मेहनत और लग्न से मंजिल हासिल करें। यह कम्बल वितरण राहुल राज एडवोकेट के सौजन्य से किया गया। अंत में धन्यवाद रोमा ने दिया।

डा. अंबेडकर संविधान निर्माता

वंचितों के हित रक्षक थे डा.अम्बेडकर : डॉ. मोहम्मद आरिफ

वाराणसी (दिल इंडिया)। डॉ अम्बेडकर विभिन्न विषयों के ज्ञाता, आधुनिक लोकतंत्र के निर्माता, मानवतावादी व वंचितों के हितों के रक्षक थे। जिसका स्पष्ट रूप उनके व्दारा लिखित संविधान में दिखाई देता है। अपने एक महत्वपूर्ण भाषण में डॉ.अम्बेडकर बड़ी ही बेवाकी से कहते है कि संविधान कितना भी अच्छा हो अगर उसे लागू करने वाले अच्छे नही होंगे तो वह अपना मूल्य खो देगा। इससे यह स्पष्ट होती है कि हमें योग्य लोगों का चयन करके संसद, विधान सभाओं में भेजना चाहिए। ये बातें डॉ. अम्बेडकर प्रबुध्द मंच, के तत्वावधान में ग्राम सभा हिनौली, मुग़लसराय में डॉ. अम्बेडकर के 565 वें परिनिर्वाण दिवस पर आयोजित विचारगोष्ठी व सम्यक सम्मान समारोह में श्री डी. आर. महिला डिग्री कालेज, वाराणसी के प्राचार्य डॉ. मोहम्मद आरिफ ने कहीं।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए वरिष्ठ राजभाषा अधिकारी डीडीयू रेल मंडल दिनेश चंद्रा ने कहा कि डॉ अम्बेडकर न केवल एक विधिवेत्ता थे बल्कि वे एक सफल अर्थशास्त्री, समाज सुधारक, योग्य शिक्षक, राजनीतिशास्त्री, समाज वैज्ञानिक, भी थे। उनकी प्रतिभा बहुमुखी थी। जिस पर हमे गर्व होना चाहिए। आज हमारा समाज जिस प्रकार से गलत चीजों में लिप्त है जैसे नशाखोरी, कामचोरी, आपसी वैमनस्य आदि, बाबा साहब के विचारों से सीख लेकर सही रास्ते पर चलते हुए जीवन को सार्थक बनाने की पहल कारना चाहिए। विशेष रूप से युवाओं को इस काम में आगे आना होगा।

इनका हुआ सम्मान

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में लगभग 50 युवाओं को सम्यक सम्मान 2020 से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम के प्रारंभ में मंच के जिला अध्यक्ष व युवा नेता गोविन्द लाल ‘पंकज’ ने अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम का प्रारंभ त्रिशरण व पंचशील से हुआ।

इस अवसर पर विशेष रूप से हरिओम आनन्द, श्यामलाल शास्त्री, डॉ मनोज त्यागी, राजेश राज, अभिषेक इंजीनियर, महेंद्र प्रताप, घनश्यामदास भारती, जियाउद्दीन अंसारी, अविनाश लखन रनित भारती, नरेंद्र गुरु




आदि लोग उपस्थित रहे। अध्यक्षता श्यामलाल शास्त्री, धन्यवाद अभषेक इंजीनियर व संचालन सुरेश कुमार अकेला ने किया।

शेख़ अली हजी को दिखता था बनारस का हर बच्चा राम और लक्ष्मण

बरसी पर याद किए गए ईरानी विद्वान शेख़ अली हजी  Varanasi (dil India live)। ईरानी विद्वान व दरगाहे फातमान के संस्थापक शेख मोहम्मद अली हजी ईरान...