तवाफे जियारत है फर्ज, बिना इसके आपका हज नहीं होगा पूरा
Varanasi (dil India live). ISSRA, वाराणसी, यूपी द्वारा नस्पेशल हज ट्रेनिंग कैम्प का आयोजन इसरा (ISSRA) मुख्यालय उल्फत कंपाउंड, अर्दली बाजार, वाराणसी में किया गया। हज कैंप की सरपरस्ती मौलाना अब्दुल हादी खाँ हबीबी कर रहे थे तो शहर के मायनाज ओलमा की मौजूदगी में कैंप सकुशल सम्पन्न हुआ। मुख्य ओलमा में हाफिज गुलाम रसूल, मौलाना हसीन अहमद हबीबी आदि ने हज यात्रा पर रौशनी डाली। इससे पहले हज कैंप का आगाज़ हाफिज गुलाम रसूल ने पाक कुरान की तिलावत से किया।
इसरा के जनरल सेक्रेटरी हाजी फारुख खां ने कहा कि हिन्दुस्तान से जाने वाले हाजी अमूमन हज्जे तमत्वों करते है। जिसमें तरतीब वाजिब है। सबसे पहले मीना पहुंचकर 10 जिलहिज्ज्जा को बड़े शैतान को कंकरी मारना (रमी) है। फिर उसके बाद कुर्बानी करनी है। कुर्बानी वाजिब है। फिर हलक (सिर मुड़वाये) या तकसीर करवायें। अगर इस तरतीब के खिलाफ किया तो दम वाजिब हो जायेगा। मौलाना हसीन हबीबी साहब ने बताया कि 10 जिलहिज्जा को कंकरी मारने (रमी) कुर्बानी, हलक व तकसीर कराने के बाद आप एहराम का कपडा उतार दें। अब आप एहराम की हालत से बाहर हो गये। मीना अपने खेमे में पहुँचकर गुस्ल करें और नया या पाक-साफ कपड़ा पहनकर इत्र वगैरह लगाकर मिना से मक्का शरीफ जाकर तवाफे जियारत करें। तवाफे जियारत फर्ज है बिना इसके किये आपका हज पूरा नहीं होगा। अगर 10 जिलहिज्जा को आपने तवाफे जियारत न किया हो तो 11 जिलहिज्जा को तीनों शैतानों को कंकरी मारने के बाद तवाफे जियारत मक्का शरीफ जाकर कर लें। आपको याद रहे कि गुरुबे आफताब से पहले मीना में वापस आना। क्यों कि रात में मिना में कयाम वाजिब है। अगर आपने 11 जिलहिज्जा को तवाफे जियास्त न किया हो तो 12 जिलहिज्जा को तीनो शैतानों को कंकरी मारने के बाद मगरिब से पहले मक्का शरीफ जाकर तवाफे जियास्त कर ले और गुरू आफताब से पहले मिना वापस आकर मीना से मक्का शरीफ के लिए रवाना हो और सूरज गुरुब हो गया तो 13 जिलहिज्जा को रुकना वाजिब हो जायेगा और फिर 13 जिलहिज्जा को फिर शैतान को कंकरी मारना होगा।
औरतों में लेडीज ट्रेनर सबीहा खातून, समन खान, अनम फातमा आदि मौजूद थी। लेडीज ट्रेनर सबीहा खातून ने औरतों को तवाफे जियारत के बारे में बताते हुए कहा कि बेवज़ू तवाफे जियारत किया तो दम वाजिब हो जायेगा। नापाक कपड़ों में हर किस्म का तवाफ मकरूह है। अगर आपने तवाफे जियारत नहीं किया तो हज ही नहीं होगा। इसका कोई बदल नहीं है क्योंकि तवाफे जियारत फर्ज है।
इनकी रही खास मौजूदगी
वाराणसी से एकलाख अहमद, मोहम्मद अशरफ, फखरूद्दीन, अली बख्श, रियाज अहमद, नसीर जमाल, मोहम्मद हनीफ, शमीम अहमद, बरूदीन, शमशेर अंसारी, सर्फद्दीन चंदौली से जावेद अली, मसी अहमद खान, नियामतउलाह खान, मंजूर आलम, मो. साजिद बलिया से मुनौवर हुसैन, इम्तियाज अहमद, गाजीपुर से लाल मोहम्मद, मोहम्मद आजम, नसीदुल अमीन, आफताब आलम, जौनपुर से सिददीक जफर, अब्दुल कलाम, अब्दुल वकार, सोनभद्र से मो. आरिफ खान तथा ख़्वातीन में सीमा परवीन, सलमा बेगम, नूरजहां, चांद अफसाना, सुल्ताना, जैतुन निशा, रूखसाना परवीन, खुशबू बानो, मरियम बीबी, दरख्शाह बेगम, निकहत खान, सनम सहित इसरा के सदस्यगण एवं पदाधिकारीगण मौजूद थे।
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