भाषा केवल प्रान्त की धरोहर नहीं होती बल्कि वह हमारी होती है धरोहर
Varanasi (dil India live). वसंत कन्या महाविद्यालय में पं. हरिराम द्विवेदी भोजपुरी साहित्य-शोध अध्ययन पीठ, हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित पंडित हरिराम द्विवेदी जयंती समारोह एवं भोजपुरी कवि सम्मेलन अपरान्ह 2ः00 से 4ः30 के बीच महाविद्यालय के सभागार में हुआ। कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन एवं पुष्पांजलि से हुआ तत्पश्चात् संगीत विभाग की प्रो. सीमा वर्मा के निर्देशन में छात्राओं द्वारा सुमधुर कुलगीत का प्रस्तुत किया गया। इस मौके पर उत्तरीय और पौधा देकर प्रबंधक, प्राचार्या एवं विभागाध्यक्ष द्वारा अतिथियों को सम्मानित किया गया। स्वागत वक्तव्य देते हुए महाविद्यालय की प्राचार्या प्रोफेसर रचना श्रीवास्तव ने कहा कि यहां इस अवसर पर आज हिन्दी के सितारे विभिन्न रूप में उपस्थित हैं। आज के इस कार्यक्रम से निश्चित रूप से भोजपुरी जगत में एक नया अध्याय जुड़ेगा। अपनी संस्कृति एवं सभ्यता को संवारने के लिए मातृभाषा अत्यन्त आवश्यक है।
अध्ययन पीठ को स्थापित करने के उद्देश्य के विषय में हिन्दी विभाग की अध्यक्षा प्रो. आशा यादव ने कहा कि कोई भी भाषा केवल प्रान्त की धरोहर नहीं होती बल्कि वह हमारी धरोहर होती है। भोजपुरी अत्यन्त उदार भाषा है इसमें कोमलता इतनी है कि यह किसी भी भाषा को अपने में समाहित करने की क्षमता रखती है। 12 वीं शताब्दी के उक्ति-व्यक्ति प्रकरण में भोजपुरी की चर्चा आती है। इसके लिखित स्वरूप का ना होना इसकी सबसे बड़ी विडम्बना है। अगर इसको शोध से जोड़ दिया जाये तो इसका महत्व बढ़ सकता है। भोजपुरी भाषा को आगे बढ़ाये जाने के संदर्भ में ही इस पीठ की स्थापना की गई है। आपने बताया कि भोजपुरी के संदर्भ में एक एम.ओ.यू. भी हस्ताक्षरित किया गया है। द्विवेदी लोकजीवन एवं संस्कृति के लिए समर्पित कवि हैं। इन्होंनेे राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भोजपुरी को प्रसारित किया। वे अधिकतर बाबूजी और हरि भैया के नाम से प्रचलित थे।
महाविद्यालय की प्रबन्धक उमा भट्टाचार्या ने कहा कि हिन्दी विभाग, महाविद्यालय का उत्कृष्ट विभाग है। आज हम भोजपुरी के नामित कवि को सम्मानित करने जा रहे हैं। भोजपुरी एक मीठी भाषा है। जिससे हम अपने व्यक्तित्व में निखार ला सकते है।
अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए उदय प्रताप कॉलेज हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. राम सुधार सिंह ने कहा कि द्विवेदी जी पर बात करने के लिए मन और संवेदना की जरूरत है। अधिकांशतः कवि एवं कविता पर साथ बात नहीं की जा सकती है। किन्तु हरिराम द्विवेदी में कवि एवं कविता अलग-अलग नहीं है उनमें बनारस के लोकमन एवं मनुष्यता को परखने की दृष्टि थी। उन्होंने अपने वक्तव्य में हरिराम द्विवेदी की रचना एवं उसकी विशेषता पर भी बात कही।
मुख्य अतिथि वक्ता के रूप में बोलते हुए हिन्दी विभाग काहिविवि के पूर्व अध्यक्ष प्रो. सदानंद शाही ने कहा कि द्विवेदी जी भोजपुरी के हीरामन थे। कवि की खूबियों के साथ कमियों की भी बात की जानी चाहिए। द्विवेदी जी जो समय के पाबंद थे और वह उनके आचरण में भी दिखाई देता है। जीवन में समय की पाबंदी सफलता का मूलमंत्र है। उनके अंदर अभिमान नहीं था। कवि और कविता के लिए लोगों के जुबान पर टिके रहना सबसे बड़ी सफलता है। भोजपुरी की गंभीरता द्विवेदी जी के साहित्य में दिखाई देता है। वे एक स्वप्नद्रष्टा कवि थे जो स्वप्नों को जिंदा रखने की बात करते थे।
प्रो. चन्द्रकला त्रिपाठी ने पं. हरिराम द्विवेदी की स्मृतियों को साझा करते हुए कहा कि हरि भैया सबसे सरलता और नेह से मिलते थे। भोजपुरी में प्रयुक्त मेहना, महीन इत्यादि शब्दों की व्याख्या करते हुए उन्होंने द्विवेदी जी की स्मृतियों को साझा किया। भाषा की देशज टोन को अपने मधुर कंठ से गाकर सुनाया और यह भी बताया कि भोजपुरी का कलेवर पाकर कौशल्या का कलेजा और भी संवेदनशील हो जाता है।
तत्पश्चात् अपना वक्तव्य देते हुए प्रो. आनंद वर्धन शर्मा द्विवेदी जी के बारे में कहते है कि उनके हृदय में सरलता, कोमलता, स्निग्धता स्थायी रूप से विद्यमान था जो न केवल उनके व्यक्तित्व में अपितु रचनाओं में भी समान रूप से दिखाई देता है। द्विवेदी जी ने रोला, दोहा, नवगीत एवं मुक्त छन्द का बहुलता के साथ प्रयोग किया है।
भोजपुरी के जाने-माने कवि और कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि प्रो. प्रकाश उदय ने भोजपुरी के महत्व एवं पं द्विवेदी पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हरि भैया जी का महत्व केवल भोजपुरी के कवि के रूप में ही नहीं अपितु उन्होंने बांवला जी जैसे व्यक्तित्व को भी स्थापित किया है। वे कवि के साथ एक जिंदादिल इंसान भी थे। धुन, राग, साज उनके भीतर चलता रहता था। उनकी कविता में लहर थी। द्विवेदी जी में कजरी का पंाडित्य भरा हुआ था। उनका मानना था कि लोकगीत एवं लोककथा को कंठ में बसाने एवं कहे जाने से ही उसका संरक्षण किया जा सकता है।
ऑल इंडिया रेडियो आकाशवाणी महमूरगंज, वाराणसी के निदेशक राजेश गौतम ने अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि लोकगीत, लोककथा, नौटंकी इत्यादि लोकविधाओं पर द्विवेदी जी की अच्छी पकड़ थी। उनकी स्मृतियां संजोने योग्य है क्योंकि उन्होंने लोकगीत एवं लोकसंगीत में अंतर भी बताया है।
सारस्वत अतिथि के रूप में पूर्व प्राचार्या एवं पीठ की कार्यकारिणी समिति की उपाध्यक्ष प्रो. सविता भारद्वाज ने बताया कि बाबूजी बेटियों को बहुत प्रेम करते थे। वे संत जैसे आचरण एवं चरित्र वाले व्यक्ति थे। साथ ही उन्होंने अध्ययनपीठ को स्थापित करने की परिकल्पना एवं अध्ययनपीठ को अपनी तरफ से पुस्तकें भी भेंट करने की बात कही।
कार्यक्रम के मध्यावसान में पंडित हरिराम द्विवेदी के जीवन पर आधारित लघु फिल्म का प्रदर्शन किया गया। कार्यक्रम के द्वितीय सत्र भोजपुरी कवि-सम्मलेन में महाविद्यालय की प्राचार्या द्वारा अंगवस्त्र एवं पौधा देकर अतिथियों का अभिनन्दन किया गया । तत्पश्चात् अतिथि-कवियों प्रो. रामसुधार सिंह,
प्रो. सदानंद शाही, प्रो. जगदीश पंथी, प्रो. आनंद वर्धन शर्मा, प्रो. प्रकाश उदय, डॉ. रामनारायण तिवारी, श्री नागेश शांडिल्य, प्रो. आशा यादव ने विविध विषयों पर अपने भोजपुरी काव्य-पाठ से कार्यक्रम को जीवन्तता प्रदान की। मंच संचालन हिन्दी विभाग की डॉ. प्रीति विश्वकर्मा ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सपना भूषण ने किया।
कार्यक्रम में महाविद्यालय के शिक्षक-शिक्षिकाएँ, विद्यार्थी एवं अन्य गणमान्य अतिथियों के साथ छपरा से पृथ्वीराज जी, काहिविवि से प्रो. वशिष्ठ नारायण त्रिपाठी एवं महाविद्यालय की पूर्व अध्यापिका डाॅ. कुमुद रंजन भी उपस्थित थीं साथ ही आभासीय माध्यम से महाविद्यालय की पूर्व प्राचार्या डॉ0 कुसुम मिश्रा,
डॉ. माधुरी अग्रवाल, डॉ. अनुराधा बनर्जी, डाॅ. नन्दिनी वर्मा, डाॅ. बीना सिंह एवं प्रो. आशा यादव जुड़ी रहीं । रिपोर्ट लेखन डॉ. शशिकला एवं राजलक्ष्मी ने किया ।
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