रविवार, 30 अक्टूबर 2022

Dpo बोले: पोषण के पाँच सूत्रों से रुकेगा कुपोषण

स्वस्थ समाज की आधारशिला के लिए व्यवहार परिवर्तन जरूरी 
Varanasi (dil india live). स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए पोषण संबंधी व्यवहार में परिवर्तन और जीवन शैली के बदलाव की बेहद आवश्यकता है । भोजन में पोषक तत्वों की कमी से प्रतिरोधक क्षमता भी कमजोर होती जा रही है । जागरूकता की कमी और समुचित पोषण के अभाव से बच्चों को कई प्रकार की बीमारियां हो रही हैं। इसका सबसे बड़ा दुष्प्रभाव कुपोषण का एक विश्वव्यापी समस्या बनकर उभरना है । आहार के प्रति सही व्यवहार और जागरूकता से ही एक स्वस्थ समाज की परिकल्पना को साकार किया जा सकता है । यह कहना है जिला कार्यक्रम अधिकारी (डीपीओ) डीके सिंह का ।

डीपीओ ने कहा कि स्वस्थ बच्चा - स्वस्थ समाज की आधारशिला को मजबूत बनाने के लिए समुदाय स्तर पर सभी की सहभागिता और जन-जागरूकता बहुत जरूरी है । एक स्वस्थ जीवन के लिए तैयारी गर्भावस्था के दौरान ही शुरू कर देनी चाहिए । स्वस्थ बच्चे के लिए मां का भी स्वस्थ होना उतना ही जरूरी है । इसमें पोषण के पांच सूत्र - पहले सुनहरे 1000 दिन, पौष्टिक आहार, एनीमिया की रोकथाम, डायरिया का प्रबंधन और स्वच्छता व साफ-सफाई स्वस्थ नए जीवन के लिए महामंत्र साबित हो सकते हैं । इस संबंध में उन्होने समस्त बाल विकास परियोजना अधिकारी (सीडीपीओ), यूनीसेफ के मंडलीय समन्वयक व मुख्य सेविकाओं को ‘पोषण के पाँच सूत्रों’ के बारे में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को विस्तार से संवेदीकरण करने के लिए कहा ।

1-पहले सुनहरे 1000 दिन 

प्रथम हजार दिनों में तेजी से बच्चे का शरीरिक एवं मानसिक विकास होता है। इनमें गर्भावस्था के 270 दिन और जन्म के बाद दो साल तक 730 दिन, इस प्रकार एक हजार दिन शामिल होते हैं। इस समय मां और बच्चे को सही पोषण और खास देखभाल की जरूरत होती है। इस समय गर्भवती की कम से कम चार प्रसव पूर्व जांच होनी चाहिए। गर्भवती और धात्री महिला को कैल्शियम और आयरन की गोलियों का सेवन कराया जाना चाहिए। इसके साथ ही संस्थागत प्रसव को प्राथमिकता दी जानी चाहिए जिससे मां और बच्चे का जीवन सुरक्षित हो सके। जन्म के एक घंटे के भीतर बच्चे को मां का पहला पीला गाढ़ा दूध देना बहुत जरूरी है। छह माह से बड़े उम्र के बच्चे को स्तनपान के साथ ऊपरी आहार दिया जाना चाहिए। बच्चे को सूची अनुसार नियमित टीकाकरण और नौ माह होने पर विटामिन ए की खुराक दी जानी चाहिए।

2-सही समय पर ऊपरी आहार 

 छह माह से ऊपर के बच्चे को स्तनपान के साथ पर्याप्त मात्रा में तरह-तरह का अर्ध ठोसाहार अवश्य लेना चाहिए। पौष्टिक आहार में विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ जैसे अनाज, दालें, हरी पत्तेदार सब्जियां और मौसमी फल लेने चाहिए। हरी सब्जियों में पालक, मेथी, चौलाई और सरसों, पीले फल जैसे आम व पका पपीता खाए जा सकते हैं। खाने में दूख, दूध से बने पदार्थ और मेवे आदि शामिल करें। स्थानीय रूप से उत्पादित पौष्टिक खाद्य पदार्थों को भी शामिल करें। यदि मांसाहारी हैं तो, अंडा, मांस और मछली आदि भोजन में लिया जा सकता है। *सेवापुरी की मुख्य सेविका लालिमा पांडे* बताती हैं कि सात माह के बच्चे को लाल मांस, अंडा, मछली प्यूरी बनाकर एक से दो छोटे चम्मच खिलाया जा सकता है। प्रोटीन की मात्र अधिक न हो इस बात का विशेष ख्याल रखना होगा। बढ़ती उम्र के अनुसार इसको धीरे-धीरे बढ़ाया जा सकता है।   

3-एनीमिया की रोकथाम

 स्वस्थ शरीर और तेज दिमाग के लिए एनीमिया (खून की कमी) की रोकथाम करें। सभी उम्र के लोगों में एनीमिया की जांच और पहचान किया जाना महत्वपूर्ण होता है, जिससे व्यक्ति की हीमोग्लोबिन के स्तर के अनुसार उपयुक्त उपचार प्रारंभ किया जा सके। एनीमिया की रोकथाम के लिए आयरन युक्त आहार खाएं। उम्र के अनुसार बच्चे को आईएफ़ए सिरप, किशोर-किशोरियों, गर्भवती और धात्री महिलाओं को आईएफ़ए की गोली और कृमिनाश के लिए कीड़े की दवा (एल्बेण्डाजोल) की निर्धारित खुराक दी जाती है।

4-डायरिया का प्रबंधन 

साफ-सफाई, आहार की स्वच्छता का ध्यान रखें और डायरिया से बचाव के लिए हमेशा स्वच्छ पानी पिलाएं। छह माह तक बच्चे को केवल स्तनपान ही करवाएं। कोई और खाद्य पदार्थ यहां तक पानी भी नही दें, क्योंकि वह भी बच्चे में डायरिया का कारण बन सकता है। डायरिया होने पर भी मां स्तनपान न रोकें बल्कि बार-बार स्तनपान कराएं । डायरिया होने पर तुरंत ओ0आर0एस0 घोल पिलाएं, जब तक डायरिया पूरी तरह से ठीक न हो जाए। डायरिया से पीड़ित बच्चे को डॉक्टर की सलाह पर 14 दिन तक जिंक दें, इस बीच अगर दस्त रूक जाए तो भी यह देना बंद नहीं करें। 

5-स्वच्छता और साफ-सफाई 

स्वास्थ्य और सफाई का हमेशा साथ रहा है। गंदगी कई बीमारियों का खुला निमंत्रण होती है। इसलिए व्यक्तिगत स्वच्छता सुनिश्चित करें। हमेशा खाना बनाने, स्तनपान से पहले, बच्चे को खिलाने से पहले, शौच के बाद और बच्चे के मल के निपटान के बाद साबुन और पानी से हाथ आवश्य धोएं। शौच के लिए हमेशा शौचालय का उपयोग ही करें। किशोरियां और महिलाएं माहवारी के दौरान व्यक्तिगत साफ-सफाई का ध्यान रखें।

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