रविवार, 7 नवंबर 2021

पटाखों के धुएं ने बढ़ाई दमा रोगियों की तकलीफ

पोस्ट कोविड मरीजों की तकलीफ में भी राहत नहीं




लखनऊ 7 नवंबर (dil india live)। इस बार कोविड काल के बाद दीपावली का पर्व आने से लोगों में जोश और उत्साह ज्यादा था। इसके चलते आतिशबाजी भी खूब हुई। पर्व के उल्लास में लोग जानवरो और मरीजों की तकलीफ भूल गये। पटाखो की आवाज से जानवर जहां दहशत में थे वहीं पटाखों के धुएं से दमा और कोरोना संक्रमित मरीजों की तकलीफ बढ़ गई। 

सांस लेने में तकलीफ, खांसी, गले में खराश और जकड़न की समस्या के 100 से ज्यादा मरीज शनिवार को बलरामपुर, सिविल व लोक बंधु अस्पताल के अलावा रानी लक्ष्मी बाई व भाऊराव देवरस अस्पताल की ओपीडी में पहुंचे। इनमें 40 मरीज कोरोना से उबर चुके व अन्य 60 मरीज सांस की तकलीफ वाले हैं। डॉक्टरों का कहना है कि दमा व पोस्ट कोविड मरीज जरूरी एहतियात बरतें और डॉक्टर की सलाह जरूर लें। चिकित्सकों का कहना था कि पटाखों के शोर और प्रदूषण ने मरीज़ों को खासा परेशान किया। सरकार ने सिर्फ दो घंटे आतिशवाजी का आदेश पारित किया था मगर पूरी रात आतिशबाज़ी ने प्रदूषण के साथ ही मरीजों का जीना दुश्वार कर किया।

शनिवार, 6 नवंबर 2021

नये सरदार, महतो की हुई दस्तारबंदी




शहंशाह सरदार तो खुर्शीद शक्कर तालाब के बने महतो 

वाराणसी 06 नवंबर (dil india live)। शक्कर तालाब ईदगाह में इलाके के सरदार व महतो की दस्तारबंदी की रस्म  अदा की गई। मेहमाने खुसुशी के रूप में मुफ्ती-ए-शहर मौलाना अब्दुल बातिन नोमानी और बाईसी तंजीम के सरदार हाजी इकरामुद्दीन थे। इस दौरान नये सरदार शहंशाह कमाल को और महतो खुर्शीद आलम को अपने हाथो से सर पर पगड़ी बांध कर दोनों नए सरदार महतो की दस्तारबंदी की। इस मौके पर बाईसी तंज़ीम के सरदार हाजी इकरामुद्दीन ने सभी को साथ ले कर चलने की और उस पर अमल की ताकीद की। इस मौके मुफ़्ती बातिन नुमानी ने कहा की मोहल्ला शक्कर तालाब के मरहूम शकूर सरदार की ये पुरानी टाट थी जो खाली थी उसी टाट के नए सरदार शहंशाह कमाल को और महतो खुर्शीद आलम को मोहल्ले के सभी आवाम के रजामंदी से बनाया गया है। हम सब को पूरी उम्मीद है की ये दोनों लोग बिना किसी भेद भाव के सभी के साथ इंसाफ करेंगे। इनको न कोई छोटा देखना है न कोई बड़ा देखना है। न कोई अपना न कोई पराया। सभी को साथ ले कर चलना होगा और जो भी मसला इन लोगो के पास आये उसके साथ इंसाफ करेंगे। ये सरदार और महतो का जो पद है काटो भरा होता है। इसको अपने सोच समझ से अच्छा अंजाम दे कर सभी को साथ ले कर चले और क़ुरान और हदीस के बताये हुए रास्ते पर चले नमाज़ के पाबंद बने। 

इनकी रही खास मौजूदगी


पूर्व विधायक हाजी अब्दुल समद अंसारी, पार्षद हाजी ओकास अंसारी, अब्दुल्ला अंसारी, पूर्व पार्षद डॉ. इंमतीयाजुद्दीन, पार्षद मौलाना रियाजुद्दीन, महताब आलम, फैजु, नसिर, हाजी गफूर, नाजिरुल हसन,  अनीसुर्रहमान, नुरुलहोदा अंसारी, रियाजुल हक़, हाजी बाबू, असगर ।

दरबार ए मुग़लिया की दीवाली

    तमसो मा ज्योतिर्गमय

दीवाली का नया कलेवर मुग़ल काल में ही हुआ निर्मित 




डॉ. मोहम्मद आरिफ

वाराणसी 06 नवंबर (dil india live) दीवाली का जश्न पौराणिक के साथ-साथ भारतीय संस्कृति का प्रतीक है। शास्त्रों में इसे मान्यता भी प्राप्त है और इस त्योहार का मूल तत्व बुराई पर अच्छाई की विजय है। दीवाली प्रेम, भाई-चारा और उल्लास का संदेश पूरी दुनियां को दे रही है और एक ऐसे समाज की कल्पना को साकार करने का प्रयास कर रही है, जहां मनुष्य से मनुष्य के बीच नफरत नहीं बल्कि मोहब्बत हो, पर इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि दीवाली को भव्यता और आधुनिक स्वरूप प्रदान करने में मुग़लों का योगदान उल्लेखनीय रहा है। मुग़ल दरबार में जिस साझी विरासत का जन्म हुआ दीवाली ने उसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वैसे तो सभी भारतीय त्योहारों ने हिंदुस्तान में प्रवेश के समय से ही तुर्कों में गहरी दिलचस्पी पैदा किया परन्तु  कृष्णजन्माष्टमी बसन्त, होली और दीवाली ने उन्हें खास आकर्षित किया और ये पर्व  मुगल दरबार का हिस्सा बन गए। इसे ही अमीर खुसरो ने हिंदुस्तानी तहज़ीब कहा जो हिंदुस्तान को सारी दुनियां से श्रेष्ठ बनाता है। तुर्क और मुग़ल इस तहज़ीब में ऐसे रंगे की उनकी अलग पहचान कर पाना मुश्किल हो गया। इसी मेल-जोल की परम्परा ने हमें पूरी दुनियां पर मकबूलियत प्रदान की।

 भारत में मुस्लिम सुल्तानों के भारतीय त्योहार मनाने के दृष्टांत प्रारम्भ से ही मिलते हैं। 14वीं शताब्दी में मुहम्मद बिन तुग़लक़ दीवाली का त्योहार अपने महल में मनाता था। उस दिन महल को खूबसूरती से सजाया जाता था और सुल्तान अपने दरबारियों को नए-नए वस्त्र प्रदान करता थी। एक शानदार दावत का भी आयोजन किया जाता था। मुग़ल बादशाह बाबर के समय पूरा महल दुलहन की तरह सजा कर पंक्तियों में लाखों दीये जलाए जाते थे और इस अवसर पर शहंशाह गरीबों को नए कपड़े और मिठाइयां बाँटता था। सम्राट हुमांयू ने अपने पिता की विरासत के साथ-साथ महल में लक्ष्मी पूजा की भी शुरूआत किया। पूजा के दौरान एक विशाल मैदान में आतिशबाजी का आयोजन किया जाता था। गरीबों को सोने के सिक्के बांटे जाते थे और तदुपरांत 101 तोपों की सलामी दी जाती थी।

मुगल शहंशाह अकबर के समय में 'जश्न-ए-चिरागा' होता था। इतिहास में अकबर और जहांगीर के समय 'जश्न-ए-चिरागा' मनाए जाने का उल्लेख मिलता है। आगरा किला दीयों की रोशनी में दमक उठता था। अकबर के  दरबारी अबुल फजल ने 'आइन-ए-अकबरी' में लिखा है कि अकबर दीवाली पर अपने राज्य में मुंडेर पर दीपक जलवाता था। महल में पूजा दरबार होता था। ब्राह्मण दो गायों को सजाकर शाही दरबार में आते और शहंशाह को आशीर्वाद देते तो सम्राट उन्हें मूल्यवान उपहार प्रदान करता था। दीवाली के लिए महलों की सफाई और रंग रोगन महीनों पहले से शुरू हो जाता था। अपने कश्मीर प्रवास के दौरान अकबर ने वहां नौकाओं, घरों, झीलों और नदी तट पर दीये जलाने का फरमान जारी किया। अपने शहजादों और शहजादियों को जुए खेलने की भी इजाजत प्रदान किया। अकबर ने गोवर्धन पूजा तथा बड़ी दीवाली के साथ छोटी दीवाली मनाने की भी शुरुआत की।

अकबर ने ही आकाश दीये की भी शुरुआत की जो दीवाली की पूरी रात जलता था। इसमें 100 किलो से ज्यादा रुई और सरसों का तेल लगता था। दीये में रुई की बत्ती और तेल डालने के लिए सीढ़ी का इस्तेमाल किया जाता था। दरबार में फ़ारसी में अनुदित रामायण का पाठ भी होता था। पाठ के उपरांत दरबार में राम के अयोध्या वापसी का नाट्य मंचन होता था फिर आतिशबाजी का दौर शुरू होता था। इस अवसर पर गरीबों को कपड़े, धन और मिठाइयां वितरित की जाती थी। 

मुगल शहंशाह जहांगीर ने अपनी आत्मकथा 'तुजुक-ए-जहांगीरी' में वर्ष 1613 से 1626 तक अजमेर में दीपावली मनाए जाने का जिक्र किया है। जहांगीर दीपक के साथ-साथ मशाल भी जलवाता था और अपने सरदारों को नज़राना देता था। आसमान में 71 तोपें दागी जाती थीं तथा बारूद के पटाखे छोड़े जाते थे। फकीरों को नए कपड़े व मिठाइयां बांटी जातीं. तोप दागने के बाद आतिशबाजी होती थी. मुगलकालीन पेंटिंग्स में भी दीवाली का जश्न बहुतायत से मिलता है।

   शाहजहाँ के समय भी यह त्योहार परंपरागत तरीके से मनाया जाता रहा। दीवाली के दिन शहंशाह को सोने-चांदी से तौला जाता था और इसे गरीब जनता में बांट दिया जाता था। मुग़ल बेगमें और शहजादियाँ आतिशबाजी देखने के लिए कुतुबमीनार जाती थीं। शाहजहाँ राज्य के 56 जगहों से अलग-अलग तरह की मंगा कर 56 तरह का थाल सजवाता था। 40 फिट ऊंची भव्य आतिशबाजी का मनोहारी दृश्य देखने के लिए दूरस्थ इलाकों से लोग आते थे। शाहजहाँ शहजादियों के लिए अलग तथा आम जनता के लिए अलग-अलग भव्य आतिशबाजी का आयोजन करता था.इसके अतिरिक्त सूरजक्रान्त नामक पत्थर पर सूर्य किरण लगाकर उसे पुनः रोशन किया जाता था जो साल भर जलता रहता था। औरंगजेब के समय दीवाली ही नहीं बल्कि मुस्लिम त्योहारों में भी कुछ फीकापन आ गया।

मुहम्मद शाह दीवाली के मौके पर अपनी तस्वीर बनवाता था। उसने अकबर तथा शाहजहाँ से भी अधिक भव्यता इस त्योहार को प्रदान की। सजावट और आतिशबाजी के अलावा शाही रसोई में नाना प्रकार के पकवान बनाये जाते थे जिसे जन-साधारण में बांटा जाता था।

 बहादुर शाह जफर भी दीवाली के दिन लक्ष्मी पूजा के बाद दरबार में आतिशबाजी और मुशायरा का आयोजन करते थे।गले मिलने की परंपरा सम्भवतः मुहम्मद शाह के दौर में शुरू हुई जो इस त्योहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गयी।आज दीवाली मनाने का जो स्वरूप है उसका कलेवर मुग़ल काल में ही निर्मित हुआ।

  आज इस विरासत पर कुछ लोग सवाल उठाते हैं। ये कौन है जो इन मूल्यों को नकार रहे है। हमें इनसे सावधान रहने की जरूरत है।यही मूल्य हमें दुनियां में अलग पहचान देते है और इन्ही पर विश्वास करके हमनें मिल-जुल कर आजादी की लड़ाई लड़ी।इन्हें ही संविधान में जगह दी गई और उसकी प्रस्तावना में यही मूल्य स्वतंत्रता, समता, बंधुता और न्याय बनकर उभरे। आज हमें इनकी हिफाजत करने और इनके पक्ष में खड़ा होने के लिए तैयार रहना होगा अन्यथा इतिहास हमें माफ नहीं करेगा।

(लेखक  इतिहासकार और सामाजिक चिंतक)

शुक्रवार, 5 नवंबर 2021

ग़म में बदली दीवाली की खुशियां

खेत में मिली लाश, मचा कोहराम


वाराणसी 5 नवंबर (dil india live)। रात भर रौशनी, पटाखों की गूंज, हंसी-खुशी उल्लास के बाद सुबह ग़म का इस परिवार पर पहाड़ टूट पड़ा। चीख-पुकार से पूरा माहौल ग़म में बदला नज़र आया।

यह नज़ारा पा रोहनिया थाना क्षेत्र के गंगापुर स्थित सुइचक उसरा हरिजन बस्ती के पीछे अशोक सिंह के खेत का। शुक्रवार की सुबह यहां किशोर का शव मिलने से सनसनी फ़ैल गयी। मृतक की शिनाख्त नगर पंचायत गंगापुर के आजाद नगर वार्ड नंबर 2 के निवासी द्वारका हरिजन के पुत्र दीपक के रूप में हुई। शव मिलने की सूचना पर पहुंची रोहनिया थाने की पुलिस अग्रिम कार्रवाई कर रही है। वहीं घटनास्थल पर पहुंचे परिजनों में कोहराम मच गया। गंगापुर स्थित सुइचक उसरा हरिजन बस्ती के पीछे अशोक सिंह के खेत में शुक्रवार की सुबह किशोर का शव मिलने पर ग्रामीणों ने थाने पर फ़ोन करके सूचना दी। मौके पर शिनाख्त करवाई गयी तो शव नगर पंचायत गंगापुर के आज़ाद नगर के निवासी द्वारिका हरिजन के पुत्र दीपक हरिजन का निकला। पुलिस के अनुसार पिता ने गाँव के ही दो युवकों पर हत्या करने का शक ज़ाहिर किया है।  फिलहाल पुलिस के अनुसार प्रथम दृष्टया किशोर का गला दबाकर हत्या गयी है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद मौत की सही वजह पता चल पायेगी। इस दौरान मौके पर सैंकड़ों ग्रामीण इकट्ठा रहे। परिजनों के करुण क्रंदन से माहौल गमगीन हो गया था।

गुरुवार, 4 नवंबर 2021

दीपावली पर रौशन हुआ सारा जहां

फ़िज़ा में गूंजता रहा हैप्पी दीवाली...

  • दीपों की सुनहरी आभा से दमक उठी काशी
  • घरों से घाट तक रोशन हुए प्यार और आस्था के दीये
  • खुशनुमा माहौल में मनाई जा रही दीपावली



वाराणसी 4 नवंबर(dil india live)। देश-दुनिया में रौशनी का त्योहार दीपावली की धूम मची हुई है। हर तरफ रौशनी, सजावट और आतिशबाजी का दौर चल रहा है। इससे धार्मिक नगरी काशी फिर कैसे बची रह सकती है। यही वजह है कि प्रकाश पर्व पर दीपों की सुनहरी आभा यहां चारों ओर बिखर उठी है। घरों से लेकर गंगा घाट की गलियां जहां दीपों की रौशनी से जगमग हुए, वहीं शहर की इमारतें भी रंगीन झालरों के प्रकाश से नहा उठीं है।



काशी का कोना-कोना प्रकाश पर्व के उल्लास से खिलखिला उठा। घरों से लेकर गंगा घाट की गलियां जहां दीपों की रौशनी से जगमग हुए, वहीं शहर की इमारतें भी रंगीन झालरों के प्रकाश से नहा उठीं। महानिशीथ काल व्यापिनी अमावस्या पर प्रदोष काल के शुभ मुहूर्त में घर-घर गणेश और लक्ष्मी का पूजन हुआ। गुरुवार को धन-धान्य, सुख और समृद्धि की कामना से घर की चौखट से गंगा के तट तक दीपमालिकाएं रौशन की गईं। शाम होते ही पूरा शहर दीयों और रंगबिरंगी झालरों की रौशनी से जगमग हो उठा। 

रंगीले त्योहार की यह छटा शहर भर में देखने को मिली। कहते है कि बनारसी उत्सव का बहाना तलाशते है। आज तो मौका भी था मूड और दस्तूर भी। यही वजह है कि सुबह से ही बनारसी मन उत्सवी मूड में नज़र आ रहा था। इंद्रधनुषी रंगों से चटक रंगोली सजाई गई। वहीं घर की खूब साज-सज्जा हुई। शिव की नगरी काशी में लक्ष्मी और गणेश की घर-घर आराधना हुई। घरों से लेकर व्यापारिक प्रतिष्ठानों में तय मुहूर्तों में महालक्ष्मी का आह्वान किया गया। पूजा की चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियां विराजमान कराई गईं। वरुण के प्रतीक रूप में कलश की  स्थापना  हुई। रिद्धि और सिद्धि के प्रतीक के रूप में दो दीपक जलाए गए। घरों पर की गई सजावट।

दीपावली के दिन उपहार देकर बधाई देने का सिलसिला सुबह से ही शुरू हो गया था। लोग मिठाई एवं उपहार का पैकेट भेंटकर बधाई देने में व्यस्त रहे। मुहूर्त के अनुसार भगवान गणेश और मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना की गई। साथ ही लोगों ने सोशल मीडिया पर भी एक दूसरे को शुभकामनाएं दीं। यह सिलसिला देर रात तक चलता रहा। घरों पर लक्ष्मी पूजन और दीप जलाने के बाद गृहस्थों ने शहर के मंदिरों में भी दीप अर्पित किए। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर से लेकर शहर के सभी मंदिरों में श्रद्धालुओं ने दीप जलाकर भगवान से सुख, समृद्धि और आरोग्य की कामना की।


बुधवार, 3 नवंबर 2021

सयुस ने किसानों की शहादत को किया याद

  • युवजन सभा के राष्ट्रीय सचिव मोहम्मद जुबैर की अगुवाई में जले दीपक
  • सयुस ने 1001 दियों से 'किसान स्मृति दिवस' उकेर अन्नदाताओं को दी श्रद्धांजलि


वाराणसी 3 नवंबर(dil india)। दीपावली की पूर्व संध्या पर जहां काशीवासियों ने अपने घर-आंगन को रौशन किया वहीं समाजवादी युवजन सभा (सयुस) ने लखीमपुर के शहीद किसानों को याद कर नमन किया। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के आहवान पर समाजवादी युवजन सभा के राष्ट्रीय सचिव मोहम्मद जुबैर की अगुवाई में कार्यकर्ताओं ने बुधवार को 1001 दीयों से 'किसान स्मृति दिवस' उकेरा और हर दीये की लौ से अन्नदाताओं की शहादत को सलाम करते हुए अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि दी। बेनियाबाग स्थित सयुस के कैम्प कार्यालय में सदस्य किसानों की शहादत लिखी तख्तियां भी लिए हुए थे। इस दौरान सयुस के राष्ट्रीय सचिव मोहम्मद जुबैर ने कहा कि लखीमपुर में किसानों को बर्बरता से कुचला गया था। किसान अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। किसानों को न्याय चाहिए। मोहम्मद जुबैर ने कहा कि यूपी की जनता यह सब देख और समझ रही है। जनता अपना जवाब अगले साल विधानसभा चुनाव में सत्ता परिवर्तन से देगी। 



किसानों को श्रद्धांजलि देने वालों में मो. ज़ुबैर के साथ कैफ, कामिल, प्रवीण कसेरा, रोबिन कसेरा, इमरान, सुहैल, साहिल, सुमित शाह, नदीम, वाली मोहम्मद, दीपक सिंह, निखिल सिंह, आसिम गनी, अरबाज खान और महमूद अंसारी इत्यादि शामिल रहे।

सियासी मैदान में छोटे दल की ताकत

पूर्वांचल में खेला करने को बेताब दिख रहे उभरते सुरमा

अपना दल, सुभासपा, आप, वीआईपी, एआईएमएआईएम पर सभी की निगाहें  

वाराणसी 3 नवंबर (dil india)। उत्तर प्रदेश में चुनाव अधिसूचना भले ही अभी जारी न हुई हो मगर पूर्वांचल में सियासी पारा चढ़ा हुआ है। चुनाव आचार संहिता लगने से पहले सभी सियासी दल अपनी बातें, अपना मुद्दा, जनता तक पहुंचाने के लिए बेताब है। कोई पेट्रोलियम पदार्थो की महंगाई, बेराज़गारी को मुद्दा बना रहा है तो कोई ईमानदारी, प्रदेश के सम्मान की बात कर रहा है। धर्म, जाति, पक्ष-विपक्ष के हमले शुरू हो गये हैं, जोड़-तोड़ और समीकरण बनाने की जद्दोजेहद जारी है। जनता को लुभाने के लिए रैलियां कर वादो का दौर अपने शबाब पर है। सत्ता बचाने व काबिज होने के लिए कोई भी दल कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहता है। पूवार्चंल की लगभग 160 सीटों पर काबिज होने के लिए सत्ता व विपक्ष के बीच रस्सा कस्सी तेज हो गई है। राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो समीकरण बनाने और बिगाड़ने में इस बार सबसे ज्यादा किरदार छोटे दल अदा करेंगे। वही बनायेंगे और बिगाड़ेंगे सियासी खेल। पूर्वांचल में अपना दल, अपना दल एस, सुभासपा, आप, वीआईपी, एआईएमएआईएम, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी पर सभी की निगाहें है।

जातीगत आधार पर बने छोटे-छोटे दल अपने वजूद को कायम करने के लिए समीकरण बनाने में लग गये है। समाजवादी पार्टी व सुभासपा ने गठबंधन करके पूवार्चंल की सियासत को जहां नया समीकरण का संकेत दिया है वहीं भाजपा की बी टीम का आरोप देश भर में झेल रहे एआईएमएआईएम प्रमुख असदउद्दीन ओवैसी को भी झटका लगा है। प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अगुवा शिवपाल यादव और ओवैसी से लगातार ओमप्रकाश राजभर की बैठकें होना और फिर सपा से ओम प्रकाश राजभर का हाथ मिला लेना सियासत का नया पेंच कहा जा रहा है। सूत्र तो यहां तक कहते हैं कि आने वाले दिन में सपा ओवैसी से भी हाथ मिला सकती है। क्यों कि छोटे-छोटे दल को साथ लेकर ही सपा प्रमुख अपनी सियासी महत्वकांक्षा पूरी करने की फिराक में हैं। ओम प्रकाश राजभर के आने से पूर्वांचल का राजभर वोट सपा के पाले में आ जायेगा और यादव, मुस्लिम वोट बैंक पहले से सपा के पाले में है। ओवैसी सपा के साथ आ जाते हैं तो संभव है कि सपा के पाले से जो थोड़ा बहुत मुस्लिम वोट खिसकने का डर है वो नहीं रहेगा। इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि अगर सपा ओवैसी के साथ जाते हैं तो भाजपा इसे हिन्दू-मुस्लिम का रूप देकर सियासी लाभ उठा सकती है। अखिलेश यह रिस्क संभव है कि न लें। शायद इसी लिए ओम प्रकाश राजभर और सपा में समझौता तो हो गया मगर ओवैसी का चेप्टर अभी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।

भाजपा पर वादाखिलाफी का आरोप

बिहार में एनडीए सरकार का हिस्सा, वीआईपी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुकेश साहनी कहते है कि हमारी केंद्र सरकार से मांग थी कि निषादों को आरक्षण मिले, लेकिन केंद्र की मोदी सरकार नहीं दे सकी। मुकेश कहते हैं कि यूपी के विधानसभा चुनाव में जीतने के लिए नहीं, बल्कि योगी सरकार को हराने के लिए लड़ेंगे। ऐसे ही जातीय आधार पर बनी सुभासपा व निषाद पार्टी बीते 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ थी। सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर विधायक बनने के बाद भाजपा सरकार में मंत्री भी थे मगर वहां सम्मान न मिलने के कारण उन्होंने मंत्री पद को ठोकर मार दिया। 

ज्यादातर सीटों पर भाजपा

 कुछ गिनती की सीटें छोड़ दिया जाये तो पूर्वांचल की ज्यादातर सीटों पर भाजपा का ही कब्जा है। 2017 के चुनाव में तकरीबन सभी छोटे क्षेत्रीय दल भाजपा के साथ थे मगर अब समीकरण उससे इतर है। इस बार अनुप्रिया पटेल के नेतृत्व वाले अपना दल को छोड़ दिया जाये तो तकरीबन सभी छोटे दल या तो सपा के साथ हैं या फिर अलग-थलग पड़े हैं। इस वक्त कृष्णा पटेल के नेतृत्व वाली अपना दल एस और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी अलग-थलग ही है। संभव है कि दोनों दल चुनाव आते-आते अपना रुख स्पष्ट करें।

राजनीतिज्ञ विशेषज्ञ की जाने राय

राजनीति विशेषज्ञ डा. आरिफ कहते हैं कि पूर्वांचल में कही अगडे-पिछडे के आधार पर तो कही धर्म के आधार पर मतदान होता रहा है। अन्य मुद्दे गौड हो जाते है। हालांकि सर्भ दल चाहते है जातीय समीकरण ध्वस्त हो लेकिन चुनाव में प्रत्याशियों को चयन उनकी काबिलियत पर नही जातीगत आधार पर ही होता है। सपा, बसपा ही नहीं कांग्रेस और भाजपा भी जाति आधार पर उम्मीदवारों को मैदान में उतारते हैं। जाति समीकरण के चलते ही पूर्वांचल की सियासत में छोटे-छोटे दलों का उदय हुआ और आज छोटे दल ही समीकरण बनाते है और बिगाड़ते हैं।

मझवा से पहले SP मुखिया अखिलेश यादव का बनारस में जोरदार स्वागत

Varanasi (dil India live). सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव रविवार को बनारस पहुंचे। बनारस के लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट ...