रविवार, 6 जुलाई 2025

खुद शहीद हो गए पर imam Hussain ने नाना के दीने Islam को बचा लिया

तख़्तों ताज के लिए नहीं हुई थी कर्बला की जंग


सब्र और शहादत की मिसाल हैं इमाम हुसैन 

Sarfaraz Ahmad/Mohd Rizwan 

Varanasi (dil India live)। Hazrat imam Hussain (हज़रत इमाम हुसैन रजि.) ने इंसानियत की हिफाजत के लिए अपने 71 साथियों के साथ सन 61 हिजरी को ईराक में कर्बला के मैदान में शहादत दे दी थी। कर्बला की जंग किसी साम्राज्य के विस्तार या तख्तों ताज के लिए नहीं हुई बल्कि नाना हज़रत मुहम्मद (से.) के दीने इस्लाम को जिंदा करने के लिए हुई। सब्र और शहादत की कर्बला से बड़ी मिसाल पूरी दुनिया में कहीं नहीं मिलती।

मुहर्रम की दस तारीख हमें पैगाम देती है कि सब्र का दामन हर दौर में पकड़े रहो, एक दूसरे से भाईचारे और मोहब्बत के साथ रहो। मस्जिद टकटकपुर के इमामे ईदैन मौलाना अजहरुल कादरी कहते हैं कि इस महीने में कर्बला की धरती से मजहबे इस्लाम के गुलशन तथा ईमान व कुरान की हिफाजत के लिए पैगम्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम) के नवासे हजरत इमाम हुसैन ने अपने 72 अजीजों को कुर्बान कर दिया। उन्होंने कहा कि इंसानियत की हिफाजत, लोगों की मदद तथा सब्र का पैगाम कर्बला से हमको मिला है। कर्बला की सरजमीं पर हक और बातिल की जंग हुई जिसमें इमाम आली मकाम ने बातिल के आगे सर को न झुकाया बल्कि हक और इस्लाम को जिंदा रखने के लिए न सिर्फ अपने आपको बल्कि अपने 71 अजीजों के साथ खुद भी शहीद हो गए मगर ज़ालिम यजीद के सामने सिर नहीं झुकाया। यही वजह है कि आज पूरी कायनात में इस्लाम का डंका बज रहा है। 

मौलाना हाफिज शफी अहमद कहते हैं ढोल, नगाड़े, नाच गाने की इस्लाम में कोई जगह नहीं है। आज लोग जुलूस निकाल रहे हैं मगर नमाज नहीं अदा कर रहे हैं। इमाम हुसैन से मोहब्बत करते हो तो सबसे पहले नमाज पढ़ो, तभी तुम सच्चे हुसैनी कहलाओगे। कर्बला की सरजमीं में जंग जारी थी मगर इमाम हुसैन और उनके साथियों ने नमाज नहीं छोड़ी। आज हम छोटी छोटी बातों पर नमाज छोड़ दें रहे हैं। मौलाना अमरुलहोदा कहते हैं इमाम हुसैन तुम्हारी नमाज, तुम्हारे मोहर्रम के रोज़े और इस्लाम के बताए रास्ते पर तुम्हारे चलने से खुश होंगे। तुम इमाम को खुश करना चाहते हो तो बेहयाई, मक्कारी, गीबत, बूरे काम छोड़कर नमाज़ी बन जाओ। 


हाफिज कारी शाहबुद्दीन इस्लाम की रौशनी में कहते हैं कि अपने अजीजों, पड़ोसियों, जरुरतमंदों का ख्याल रखो, उनकी मदद करो, उन्हें नीचा न दिखाओ, उनकी बातों को अनसुनी न करों वरना जिस दिन रब ने जो ताकत दी है दौलत और सेहत दी वो उसे वापस ले लेगा तो तुम किसी काम के नहीं रहोगे। यजीद कर्बला में इमाम हुसैन को शहीद करने के बाद भी जंग हार गया। ऐसे  ही आप समझ लें कि यजीद था और इमाम हुसैन हैं।परवरदिगार हम सभी को नबी के नवासों ने जो कर्बला की जमीं से पैगाम दिया उस पर अमल करने की तौफीक अता फरमाएं (आमीन)।

Varanasi main निकला Dulhe ka जुलूस, फिज़ा में गूंजा Ya Husain...ya Husain

आग के अंगारों पे दौड़ें इमाम हुसैन के दीवाने 


सरफराज/रिजवान 
Varanasi (dil India live). हज़रत कासिम की याद में नौवीं मोहर्रम की मध्यरात्रि विश्व प्रसिद्ध कदीमी (प्राचीन) दूल्हे का जुलूस निकाला गया। यह जुलूस इमामबाड़ा हज़रत कासिम नाल के सदर परवेज कादिर खां कि अगुवाई में निकला। इस दौरान सवारी पढ़ने के बाद जुलूस को दूल्हा कमेटी ने आवाम के हवाले किया जो अपने कदीमी रास्तों में लगी आग पर से होकर आगे बढ़ता रहा। इस दौरान अकीतदमंदों का जनसैलाब शिवाला से लेकर हर अलावा के पास उमड़ा हुआ था। 

लोगों का हुजूम या हुसैन, या हुसैन...की सदाएं बुलंद करते हुए आग के अंगारों पर दौड़ते हुए हज़रत इमाम हुसैन, हज़रत कासिम समेत कर्बला में शहीद हुए 72 हुसैनियों को सलामी पेश करते हुए इमाम चौकों पर बैठायी गई तकरीबन 60 ताजियों को सलामी देने व 72 अलाव से होता हुआ इतवार को वापस लौटा। जुलूस शहर के छह थाना क्षेत्रों से गुजरा। इस दौरान कड़ी सुरक्षा व्यवस्था दिखाई दी।


इससे पहले दूल्हा कमेटी ने एक ओहदेदारान को दूल्हा बनाया जिस पर सवारी पढ़ी गई। डंडे में लगी घोड़े की नाल लिये दूल्हे को पकड़ने की लोगों में होड़ मची हुई थी। पीछे पीछे अकीदतमंदों का जनसैलाब जुलूस में शामिल था। जुलूस विभिन्न मुहल्लों में इमाम चौकों पर बैठे ताजिये को सलामी देता हुआ शिवाला कि गलियों में लगी आग से होकर अस्सी कि ओर बढ़ गया। जुलूस अहातारोहिला, गौरीगंज, भेलूपुर, रेवड़ी तालाब, बाजार सदानंद, राजापुरा, गौदोलिया, नयी सड़क लल्लापुरा, फातमान, पितरकुंडा, दालमंडी, मदनपुरा, सोनारपुरा व हरिश्चंद्र घाट होकर वापस शिवाला के इमामबाड़ा दूल्हा हज़रत कासिम नाल पहुंचा।


जुलूस के साथ विभिन्न थानों की पुलिस के अलावा रिजर्व पुलिस, पीएसी के जवान तैनात थे। कमेटी के अध्यक्ष परवेज कादिर खां ने बताया कि जुलूस इतवार को पुन: शिवाला सिथत इमामबाड़ा दूल्हा कासिम नाल से शाम में उठेगा जो शिवाला घाट पर पहुंच कर ठंडा होगा। दूल्हे का जुलूस निकलने के बाद गश्ती अलम का जुलूस विभिन्न शिया इमामबाडों से निकाला गया जो गश्त करते हुए एक जगह से दूसरे जगह तक जाता दिखाई दिया। 

शनिवार, 5 जुलाई 2025

9 Mahe Muharram: Karbala की जंग पर हिंदू लेखक का खूबसूरत नज़रिया

न्याय के लिए संघर्ष करने वालों की अंतरात्मा में इमाम हुसैन आज भी है ज़िन्दा

ध्रुव गुप्त

Varanasi (dil india live). इस्लामी नववर्ष यानी हिजरी सन्‌ के पहले महीने मुहर्रम की शुरुआत हो चुकी है। मुहर्रम का शुमार इस्लाम के चार पवित्र महीनों में होता है। जिसकी अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद (स.) ने खुसूसियत बयां की है। इस पाक़ माह में रोज़ा रखने की अहमियत बयान करते हुए उन्होंने कहा है कि रमजान के अलावा सबसे अच्छे रोज़े वे होते हैं जो अल्लाह के लिए इस महीने में रखे जाते हैं। मुहर्रम के महीने के दसवे दिन को यौमें आशुरा कहा जाता है। यौमे आशुरा का इस्लाम ही नहीं, मानवता के इतिहास में भी महत्वपूर्ण स्थान है। यह वह दिन है जब सत्य, न्याय, मानवीयता के लिए संघर्षरत हज़रत मोहम्मद (से.) के नवासे हुसैन इब्ने अली की कर्बला के युद्ध में उनके बहत्तर स्वजनों और दोस्तों के साथ शहादत हुई थी। हुसैन विश्व इतिहास की ऐसी कुछ महानतम विभूतियों में हैं जिन्होंने बड़ी सीमित सैन्य क्षमता के बावज़ूद आततायी यजीद की विशाल सेना के आगे आत्मसमर्पण कर देने के बजाय लड़ते हुए अपनी और अपने समूचे कुनबे की क़ुर्बानी देना स्वीकार किया था। कर्बला में इंसानियत के दुश्मन यजीद की अथाह सैन्य शक्ति के विरुद्ध हुसैन और उनके थोड़े-से स्वजनों के प्रतीकात्मक प्रतिरोध और आख़िर में उन सबको भूखा-प्यासा रखकर यजीद की सेना द्वारा उनकी बर्बर हत्या के किस्से और मर्सिया पढ़ और सुनकर मुस्लिमों की ही नहीं,  हर संवेदनशील व्यक्ति की आंखें नम हो जाती हैं - कब था पसंद रसूल को रोना हुसैन का/आग़ोश-ए-फ़ातिमा थी बिछौना हुसैन का / बेगौर ओ बेकफ़न है क़यामत से कम नहीं / सहरा की गर्म रेत पे सोना हुसैन का !

मनुष्यता और न्याय के हित में अपना सब कुछ लुटाकर कर्बला में हुसैन ने जिस अदम्य साहस की रोशनी फैलाई, वह सदियों से न्याय और उच्च जीवन मूल्यों की रक्षा के लिए लड़ रहे लोगों की राह रौशन करती आ रही है। कहा भी जाता है कि 'क़त्ले हुसैन असल में मरगे यज़ीद हैं / इस्लाम ज़िन्दा होता है हर कर्बला के बाद।' इमाम हुसैन का वह बलिदान दुनिया भर के मुसलमानों के लिए ही नहीं, संपूर्ण मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। हुसैन महज़ मुसलमानों के नहीं, हम सबके हैं। यही वज़ह है कि यजीद के साथ जंग में लाहौर के ब्राह्मण रहब दत्त के सात बेटों ने भी शहादत दी थी जिनके वंशज ख़ुद को गर्व से हुसैनी ब्राह्मण कहते हैं। हालांकि कुछ लोग हुसैनी ब्राह्मणों की शहादत की इस कहानी पर यक़ीन नहीं रखते।

इस्लाम के प्रसार के बारे में पूछे गए एक सवाल के ज़वाब में एक बार महात्मा गांधी ने कहा था - मेरा विश्वास है कि इस्लाम का विस्तार उसके अनुयायियों की तलवार के ज़ोर पर नहीं, इमाम हुसैन के सर्वोच्च बलिदान की वज़ह से हुआ। नेल्सन मंडेला ने अपने एक संस्मरण में लिखा है- क़ैद में मैं बीस साल से ज्यादा वक़्त गुज़ार चुका था। एक रात मुझे ख्याल आया कि मैं सरकार की शर्तों को मानकर उसके आगे आत्मसमर्पण कर यातना से मुक्त हो जाऊं, लेकिन तभी मुझे इमाम हुसैन और कर्बला की याद आई। उनकी याद ने मुझे वह रूहानी ताक़त दी कि मैं उन विपरीत परिस्थितियों में भी स्वतंत्रता के अधिकार के लिए खड़ा रह सका।


लोग सही कहते हैं कि न्याय के पक्ष में संघर्ष करने वाले लोगों की अंतरात्मा में इमाम हुसैन आज भी ज़िन्दा हैं, मगर यजीद भी अभी कहां मरा है ? यजीद अब एक व्यक्ति का नहीं, एक अन्यायी और बर्बर सोच और मानसिकता का नाम है। दुनिया में जहां कहीं भी आतंक, अन्याय, बर्बरता, अपराध और हिंसा है, यजीद वहां-वहां मौज़ूद है। यही वज़ह है कि हुसैन हर दौर में प्रासंगिक हैं। मुहर्रम का महीना उनके मातम में अपने हाथों अपना ही खून बहाने का नहीं, उनके बलिदान से प्रेरणा लेते हुए मनुष्यता, समानता,अमन,न्याय और अधिकार के लिए उठ खड़े होने का अवसर भी है और चुनौती भी।

मातमी धुन के साथ निकाले जाएंगे ताज़िए

कर्बला की शहादत इंसाफ़ और सच्चाई की मिसाल: सलीना शेरी

के डी अब्बासी 

Jaipur (dil india live). Rajasthan के Kota शहर में माहे मोहर्रम के मौके पर हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु की शहादत की याद में मातमी जुलूसों का आयोजन किया जाएगा। जानकारी के अनुसार किशोरपुरा, साजी देहड़ा, चंबल गार्डन, आधारशिला और घंटाघर क्षेत्र में पारंपरिक ढंग से मातमी धुनों के साथ ताज़िए निकाले जाएंगे। स्थानीय पार्षद सलीना शेरी ने बताया कि मोहर्रम इस्लामिक वर्ष का पहला महीना है और यह महीना सब्र, बलिदान और इंसानियत की याद दिलाता है। "यह सिर्फ शोक नहीं बल्कि एक पैग़ाम है – ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करने का", 

 पार्षद सलीना शेरी ने मोहर्रम के अवसर पर कहा कि हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु की शहादत हमें इंसाफ़, सच्चाई और ज़ालिम के खिलाफ़ खड़े होने का सबक देती है। मोहर्रम कोई त्योहार नहीं, बल्कि ग़म, सब्र और कुर्बानी का महीना है।

उन्होंने कहा कि ताज़िए निकालना सिर्फ़ एक रस्म नहीं, बल्कि कर्बला की याद को ज़िंदा रखने और हुसैनी सोच को आगे बढ़ाने का प्रतीक है। इमाम हुसैन ने अपनी शहादत देकर दुनिया को यह पैग़ाम दिया कि ज़ुल्म के आगे झुकना नहीं है, और हक़ के लिए जान भी कुर्बान करनी पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिए।पार्षद सलीना शेरी ने बताया कि ताज़िए, मातम और मजलिसें उस ऐतिहासिक संघर्ष की याद हैं, जहाँ 72 जानिसारों ने कर्बला में प्यासे शहीद होकर इस्लामी मूल्यों की हिफ़ाज़त की। उन्होंने नौजवानों से अपील की कि वे इमाम हुसैन की मिसाल से प्रेरणा लेकर अपने समाज में इंसाफ़, अमन और भाईचारे को बढ़ावा दें।


UP K Varanasi Main aaj आग पर दौड़ेगा दूल्हे का जुलूस

अकीदत से बैठेंगी आज शाम इमाम चौक पर ताजिया

मोमिन रखते हैं दो दिन रोज़ा


सरफराज/रिजवान 

Varanasi (dil India live)। 9 वीं मोहर्रम पर शनिवार की शाम मुस्लिम बहुल इलाके 'या हुसैन या हुसैन' की सदाओं से गूंज उठेंगे। शहीदाने कर्बला की याद में इमाम चौकों पर जहां ताजिया मलीदे और शर्बत की फातेहा के बाद बैठा दी जाएंगी और इमाम हुसैन की शहादत को शिद्दत से याद किया जाएगा। वहीं दूल्हे का विश्व प्रसिद्ध जुलूस शिवाला से निकल कर आग के अंगारों पर दौड़ेगा। इस दौरान शहर भर में गश्ती अलम का जुलूस निकलेगा व इमाम चौकों और इमामबाड़ों में ताज़िए की जियारत को देर रात तक हुजुम उमड़ेगा। सुन्नी वर्ग ने शहर के विभिन्न इलाकों और मस्जिदों में जलसे का आयोजन किया है जहां देर रात तक उलेमा कर्बला की शहादत बयां करेंगे। 

दस तारीख के रोज़े की फजीलत

 इस दौरान दो दिन का मोमीनीन रोज़ा भी रखते हैं। कुछ लोग 9 वीं मोहर्रम और 10 वीं मोहर्रम को तो कुछ लोग 10 वीं, 11 वीं मोहर्रम को रोज़ा रहते हैं। मौलाना अजहरुल कादरी कहते हैं मोहर्रम की दस तारीख के रोज़े की बहुत फजिलत है। मौलाना कहते हैं कि कर्बला के मैदान में शहादत देकर इमाम हुसैन ने इंसानियत को बचाया है। अब तमाम दुनिया के इंसानों को चाहिए कि इमाम हुसैन के पैगाम को बचाएं। उनके नाना के दीन की हिफाजत करें। बुराई से बचें और नेकी व हमदर्दी के रास्ते पर चलें।

तैयारियां पूरी, तैयार हो गई खूबसूरत ताजिया

आज सुबह ताज़िए को अंतिम रूप दे दिया गया। ताज़िया को कारीगरी के बेहतरीन नमूनों और कलात्मक डिजाइनों से सजाया गया है। इन ताजियों को देखने के लिए आज शाम से भीड़ देर रात तक जमी रहेगी। खासकर लल्लापुरा स्थित रांगे का ताजिया, बाकराबाद के बुर्राक की ताजिया, बजरडीहा स्थित शीशे का ताजिया, उल्फत बीबी के हाते की ज़री की ताजिया, कोयला बाजार स्थित नगीने का ताजिया, मजीद पहलवान कमेटी की फूलों की ताजिया, दालमंडी स्थित पीतल की ताजिया, गौरीगंज की शीशम की ताजिया, चपरखट की ताजिया, शिवाला की कुम्हार की ताजिया, दोषीपुरा की शाबान की ताजिया, बजरडीहा की कागज की ताजिया के अलावा सैकड़ों मन्नती ताजिया आज मंगलवार की शाम इमाम चौक पर बैठा दी जाएगी इसकी तैयारियां पूरी हो गई है।


निकलेगा दूल्हे का ऐतिहासिक जुलूस:-

मुहर्रम की परंपरा का निर्वाह करते हुए शिवाला स्थित इमामबाड़ा दूल्हा कासिम नाल से देर रात दूल्हे का जुलूस सदर परवेज़ कादिर खां की अगुवाई में निकलेगा। इसमें शामिल जनसैलाब 'या हुसैन या हुसैन' कहते हुए पारंपरिक रास्तों पर लगाएं गये अलावा से होकर दस मोहर्रम की सुबह पुनः शिवाला लौटेगा। इस दौरान दूल्हा 72 अलावा व 60 ताजिया को सलामी देकर  दहकते अंगारों से होकर वापस शिवाला लौटता है।

Bihar के Siwan district में बवाल तलवार के साथ चलीं गोलियां, बाजार बंद

सिवान में बवाल में तीन की मौत कई घायल, पुलिस बल तैनात 


Siwan (dil India live). Siwan district (Bihar) दशकों सांसद शहाबुद्दीन के कारण सुर्खियों में रहे सिवान जिले में एक बार फिर से मचे खूनी संघर्ष से कोहराम मच गया। यहां एक झटके में 3 लोगों की मौत की खबर है। कुछ गंभीर रूप से घायल हैं। तनाव के कारण बाजा बंद हो गया है। घटना के बाद पूरा जिला तनाव में है।  

दरअसल बिहार में शराबबंदी के बाद से शराब कारोबारियों की जानकारी देने पर कई बार हमले हुए हैं, लेकिन बीच सड़क पर इस तरह का खूनी खेल पहली बार दिखा है। इसके पीछे पुराना विवाद भी बताया जा रहा है। इस घटना की भगवानपुर थाना प्रभारी ने पुष्टि करते हुए बताया कि दो पक्षों में गोलीबारी के दौरान तीन लोगों की मौत हुई है। भगवानपुर हाट थाना क्षेत्र के मलमलिया ओवरब्रिज पर दो गुटों के बीच संघर्ष में अब तक 3 मौत हो चुकी है और दो गंभीर रूप से घायल हैं। मृतक की पहचान मुन्ना सिंह, कन्हैया कुमार और रोहित कुमार के रूप में हुई है।

शराब के कारोबार की सूचना पुलिस को देने का आरोप लगाकर एक पक्ष ने तलवार और गोली-बंदूक से दूसरे पक्ष पर हमला किया और बीच-बचाव में दोनों तरफ से खूनी संघर्ष शुरू हो गया। तीन मौतों के बाद इलाके में तनाव का माहौल है।

तनाव के बीच एक बाइक में आग लगा दी गई, जिसके बाद देखते ही देखते बाजार की सभी दुकानें बंद हो गईं। सीवान एसपी मनोज तिवारी और कई थानों की पुलिस टीम घटनास्थल पर पहुंची हुई है। घायलों को सदर अस्पताल भेजा गया है। 

शराब कारोबार की सूचना पर खूनी बवाल

बताया जा रहा है कि घटना की वजह चिमनी संचालक का पुराना पारिवारिक विवाद तो है ही साथ ही शराब की सूचना पुलिस को देने के कारण मामले ने तूल पकड़ लिया। यह वारदात सीवान जिले के बसंतपुर थाना क्षेत्र अंतर्गत मलमलिया-कौड़िया मार्ग पर स्थित पुल के पास हुई है। अज्ञात अपराधियों ने अंधाधुंध फायरिंग करते हुए तलवार भांजनी शुरू कर दी। इस दौरान गोलियां चलाई गई जिससे मौत हो गई है। घटना के बाद स्थानीय लोग उग्र हो गए और घटनास्थल के पास जमकर प्रदर्शन शुरू कर दिया। गोलीबारी करने वाले अब तक अज्ञात हैं, लेकिन बताया जा रहा है कि वह सभी कौड़िया गांव के ही निवासी हैं।


फिलहाल पुलिस पूरे मामले की जांच में जुटी है, लेकिन किसी भी स्तर पर अधिकारिक पुष्टि से बच रही है। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए घटनास्थल पर अतिरिक्त पुलिस बल की तैनाती कर दी गई है और पूरे क्षेत्र में सतर्कता बढ़ा दी गई है।

शुक्रवार, 4 जुलाई 2025

8 Mahe Muharram: UP k Varanasi se निकला आठवीं मोहर्रम का तुर्बत व अलम

...अर्शे बरी हिल गया गिरने से अलम के

आंसुओं का नज़राना सुन उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की याद हुई ताज़ा 



Sarfaraz Ahmad 

Varanasi (dil India live). चाहमाहमा स्थित ख्वाजा नब्बू के इमामबाड़े से कदीम आठवीं मोहर्रम का तुर्बत व अलम का जुलूस अपनी पुरानी परंपराओं के अनुसार कार्यक्रम संयोजक सैयद मुनाज़िर हुसैन 'मंजू' के ज़ेरे एहतमाम उठा। जुलूस उठने से पूर्व मजलिस को खिताब करते हुए अब्बास मूर्तज़ा शम्सी ने मौला अब्बास की शहादत बयान किया।


जुलूस उठने पर लियाकत अली खां व उनके साथियों ने सवारी शुरू की- "जब हाथ कलम हो गए सक्काए हरम के, और अर्शे बरी हिल गया गिरने से अलम के" जुलूस चाहमामा होते हुए दालमंडी स्थित हकीम साहब के अज़ाख़ाने पर पहुँचा जहां से अंजुमन हैदरी चौक बनारस ने नौहाख्वानी शुरू करी - "अब्बास क्या तराई में सोते हो चैन से" जिसमें शराफत हुसैन, लियाकत अली खां, साहब ज़ैदी, शफाअत हुसैन शोफी, मज़ाहिर हुसैन, राजा व शानू ने नौहाख्वानी की। जुलूस दालमंडी, खजुर वाली मस्जिद, नई सड़क, फाटक शेख सलीम, काली महल, पितरकुंड, मुस्लिम स्कुल होते हुए लल्लापूरा स्थित फ़ातमान के लिए देर रात रवाना हुआl 

पूरे रास्ते उस्ताद फतेह अली खां व उनके साथियों ने शहनाई पर आंसुओं का नज़राना पेश किया। फ़ातमान से जुलूस पुनः वापस मुस्लिम स्कुल, लाहंगपूरा , रांगे की ताज़िया, औरंगाबाद, नई सड़क कपड़ा मंडी,कोदई चौकी, सर्राफा बाजार, टेढ़ी नीम, बांस फाटक, कोतवालपूरा, कुंजीगरटोला, चौक,दालमंडी,चाहमामा होते हुए इमामबाङे में समाप्त होगा।

दादा की परंपरा को पौत्र ने रखा कायम 

दादा भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की शहनाई पर आंसुओं का नज़राना पेश करने की परम्परा को पौत्र आफाक हैदर ने कायम रखते हुए शहीदों की याद में शहनाई पर मातमी धुन पेश किया। हर साल मोहर्रम पर चांद की 8 तारीख को रात्रि 2:00 बजे भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान इसी दरगाहे फातमान में अपने जीवन में चांदी की शहनाई से आंसुओं का नजराना पेश करते थे। वो कर्बला के शहीदों के लिए मातमी धुन बजाते थे आज उनकी परंपरा उनके पोते अफाक हैदर दादा की परंपरा को कायम रखते हुए शहीदों की याद में शहनाई पर मातमी धुन पेश किया। इस दौरान,अब्बास क्या तरही में सोते हो अकबर का लाशा नहीं उठ सकेगा हुसैन से..., डूबता जाता है कहीं दिल ऐसा तो नहीं, दस्त गुरबत में नबी का कुनबा तो नहीं...पेश किया । इस दौरान जाकिर हुसैन, नाजिम हुसैन, अददार हुसैन व  शकील अहमद जादूगर हमें काफी लोग मौजूद थे।


अर्दली बाजार से निकला दुलदुल व अलम

सैय्यद जियारत हुसैन के अंर्दली बाजार तार गली स्थित इमामबारगाह से 8 वीं मोहर्रम दुलदुल अंलम, ताबूत का जुलूस शुक्रवार को निकला। संयोजक इरशाद हुसैन "शद्दू" के अनुसार जुलूस अपने कदीमी (पुराने) रास्ते से होकर उल्फत बीबी हाता स्थित स्व.मास्टर जहीर साहब के इमामबाड़े पर समाप्त होगा। जुलूस में अंजुमन इमामिया नौहा व मातम करती चल‌ रही थी। जुलूस में इरशाद हुसैन सद्दू, जफर अब्बास, दिलशाद, जीशान, फिरोज, अयान, अमान, शाद, अरसान, दिलकश, मीसम आदि मौजूद थे।

आठवीं पर घर-घर हाजिरी कि नज़र 

आठ मोहर्रम 1447 हिजरी को देश दुनिया के साथ शहर बनारस में भी हुसैनी लश्कर के अलमदार बहुत सारी दुनिया में वफ़ा की पहचान हजरत अब्बास की याद में मजलिस का आयोजन हुआ। शहर में सैकड़ों मजलिस आयोजित की गई।काली महल और माताकुंड में मजलिस को खिताब करते हुए शिया जामा मस्जिद के प्रवक्ता हाजी फरमान हैदर ने कहा इमाम हसन के भाई मौला अली के बेटे और लश्कर हुसैनी के अलमदार जिनकी वफा का जिक्र आज तक सारी दुनिया में होता है और उनके नाम के साथी जुड़ गया है अब्बास बा वफा उनकी याद में शहर भर में मजलिस हुई और घर-घर हाजिरी की नज़र भी दिलाई गई। लोगों ने एक नारा खास है अब्बास है अब्बास है। और नौहा मातम के जरिए लोगों ने खिराज अकीदत पेश किया। शहर के अर्दली बाजार, पठानी टोला, रामनगर, शिवाला, गौरीगंज, दालमंडी आदि में कई सारे जुलूस उठाए गए। जिसमें शहर के 28 अंजुमन ने अपने-अपने तरीके से नौहा मातम किया व शहनाई पर भी इमाम हुसैन के गम के नौहे सुन कर खिराज अकीकत पेश की गई। कुछ जुलूस दरगाह फातमान और सदर इमामबाड़ा पहुंचे वहीं कुछ जुलूस हसन बाग टेंगरा मोड़। कुछ जुलूस कुमहार के इमामबाड़े और कुछ जुलूस शिवाले घाट जाकर ठंडे हुए। बताया कि 5 जुलाई को शहर भर में इमाम चौक पर ताजिया रख दिया जाएगा कई जगह मजलिस होगी कई जगह गस्ती आलम उठाया जाएगा देश दुनिया के साथ हमारे शहर बनारस में भी या हुसैन की सदा गूंजती रहेगी।