मंगलवार, 17 अक्तूबर 2023

नवरात्रि का तीसरा दिन: मां चंद्रघण्‍टा के मंदिरों में आस्था का सैलाब

चंद्रघंटा ही "काशी" में अपने  भक्तों को दिलाती हैं मोक्ष 

शेरावाली के जयकारे से गूंज उठी चौक की गलियां


Varanasi (dil India live).17.10.2023. शारदीय नवरात्रि का तीसरे दिन देवी मंदिरों में आस्था का सैलाब दिखाई दिया. इस मौके पर मां चंद्रघंटा के दर्शन-पूजा का विधान होने कि वजह से वाराणसी के चौक स्थित लक्खी चौतरा गली में देवी चंद्रघंटा मंदिर शेरावाली के जयकारों से गूंज उठा है. मंदिर परिसर से लेकर गलियों तक में देश भर से आए भक्तों की भारी भीड़ है. मां चंद्रघंटा का गुड़हल और बेले के फूल से श्रृंगार किया गया है.

मंदिर के वैभव योगेश्वर महंत ने बताया कि देवी चंद्रघंटा का स्वरूप स्वर्ण के समान चमकीला है. उनके मष्तक पर अर्ध चन्द्र सुशोभित है. इनके दशों भुजाओं में अस्त्र-शस्त्र एवं हड्डियां हैं. काशी में मान्यता है कि जब किसी व्यक्ति के प्राण निकलते हैं तो भगवती उनके कंठ में जाकर घंटी बजाती हैं, जिससे मृतक को मोक्ष की प्राप्ति होती है. नवरात्र के तीसरे दिन लोग भगवती की पूजा अर्चना करते हैं. जिसकी जैसी मनोकामनाएं होती है भगवती उसे पूरा करती हैं. उन्होंने आगे मां चंद्रघंटा मंदिर के विषय में बताते हुए कहा कि यह मंदिर प्राचीन है और इस मंदिर का उल्लेख काशी खंड में भी मिलता है.

नवरात्रि के तीसरे दिन दुर्गा माता के तीसरे स्‍वरूप चंद्रघण्‍टा देवी की पूजा का विधान है। देवी भागवत पुराण के अनुसार मां दुर्गा का यह रूप शांति और समृद्धि प्रदान करने वाला माना गया है। ऐसी मान्‍यता है कि चंद्रघण्‍टा देवी की पूजा करने से आपके तेज और प्रताप में वृद्धि होती है और समाज में आपका प्रभाव बढ़ता है। देवी का यह रूप आत्‍मविश्‍वास में वृद्धि प्रदान करने वाला माना गया है। आइए नवरात्रि के तीसरे दिन आपको बताते हैं चंद्रघण्‍टा देवी की पूजाविधि, पूजा मंत्र और मां का नाम चंद्रघण्‍टा क्‍यों पड़ा।

ऐसे पड़ा चंद्रघण्‍टा नाम

मां दुर्गा का यह स्‍वरूप अलौकिक तेज वाला और परमशक्तिदायक माना गया है। माता के रूप में उनके मस्‍तक पर अर्द्धचंद्र के आका का घंटा सुशोभित है, इसलिए देवी का नाम चंद्रघण्‍टा पड़ा है। मां के इस रूप की पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन सूर्योदय से पहले उठकर करनी चाहिए। मां की पूजा में लाल और पीले फूल का प्रयोग किया जाता है। उनकी पूजा में शंख और घंटों का प्रयोग करने से माता प्रसन्‍न होकर हर मनोकामना पूर्ण करती हैं।

मां चंद्रघण्‍टा का रूप

अष्‍ट भुजाओं वाली मां चंद्रघण्‍टा का स्‍वरूप स्‍वर्ण के समान चमकीला है और उनका वाहन सिंह है। उनकी अष्‍टभुजाओं में कमल, धनुष, बाण, खड्ग, कमंडल, तलवार, त्रिशूल और गदा आदि जैसे अस्त्र और शस्त्र से सुसज्जित हैं। उनके गले में सफेद फूलों की माला और सिर पर रत्‍नजड़ित मुकुट शोभायमान है। मां चंद्रघण्‍टा सदैव युद्ध की मुद्रा में रहती हैं और तंत्र साधना में मणिपुर चक्र को नियंत्रित करती हैं।

मां चंद्रघण्‍टा का भोग

नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघण्‍टा की पूजा में केसर की बनी खीर का भोग लगाना सबसे अच्‍छा माना जाता है। मां के भोग में दूध से बनी मिठाइयों का भोग लगाने की परंपरा है। आप दूध की बर्फी और पेड़े का भी भोग लगा सकते हैं।

लाल रंग का महत्‍व

मां चंद्रघण्‍टा की पूजा में लाल रंग के वस्‍त्र पहनकर पूजा करना सबसे शुभ माना जाता है. लाल रंग शक्ति और वृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इस रंग के व‍स्‍त्र धारण करने से आपके धन समृद्धि में वृद्धि होती है और आपके परिवार में संपन्‍नता आती है.

मां चंद्रघण्‍टा का पूजा मंत्र

"पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।

प्रसादं तनुते महयं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।।

वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।

सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥

मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।

रंग, गदा, त्रिशूल,चापचर,पदम् कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥"

मां चंद्रघण्‍टा की पूजाविधि

नवरात्रि के तीसरे दिन ब्रह्म मुहूर्त में सूर्योदय से पहले उठकर स्‍नान कर लें और फिर पूजा के स्‍थान को गंगाजल छिड़ककर पवित्र कर लें. उसके मां दुर्गा की प्रतिमा को स्‍थापित करके मां के चंद्रघण्‍टा स्‍वरूप का स्‍मरण करें. घी के 5 दीपक जलाएं और फिर मां को लाल रंग के गुलाब और गुड़हल के फूल अर्पित करें. फूल चढ़ाने के बाद रोली, अक्षत और अन्‍य पूजन सामिग्री चढ़ाएं और मां का पूजा मंत्र पढ़ें. उसके बाद कपूर और घी के दीपक से माता की आरती उतारे और पूरे घर में शंख और घंटों की ध्‍वनि करें. पूजा के वक्‍त शंख और घंटी का प्रयोग करने से माहौल में सकारात्‍मकता बढ़ती है और नकारात्‍मक ऊर्जा का नाश होता है. पूजा के बाद मां को केसर की खीर का भोग लगाएं और मां से क्षमा प्रार्थना करके पूजा संपन्‍न करें. पूजा के बाद यदि आप चंद्रघंटा माता की कथा, दुर्गा चालीसा का पाठ करें या फिर दुर्गा सप्‍तशती का पाठ करें तो आपको संपूर्ण फल की प्राप्ति होती है.

सोमवार, 16 अक्तूबर 2023

नवरात्रि के दूसरे दिन देवी मंदिरों में महिलाओं का हुजूम



ब्रह्मचारिणी देवी का दर्शन करने उमड़ा भक्तों का रेला 

Varanasi (dil India live). 16.10.2023. शारदीय नवरात्र के दूसरे दिन वाराणसी समेत पूर्वांचल के देवी मंदिरों में महिलाओं व पुरुषों की भारी भीड़ उमड़ी. पहले दिन जहां मां शैलपुत्री का दर्शन पूजन हुआ था वहीं दूसरी ओर दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी देवी का दर्शन पूजन हुआ.  ब्रह्मचारिणी देवी का दर्शन पूजन करने के लिए श्रद्धालुओं का जन सैलाब उमड़ा. मां ब्रह्मचारिणी का मंदिर काशी के सप्तसागर (कर्णघंटा) क्षेत्र में लोग भोर से ही जुटे हुए थे. दुर्गा पूजा के क्रम में ब्रह्मचारिणी देवी का दर्शन-पूजन बहुत महत्‍वपूर्ण माना गया है. इसलिए सुबह से ही यहां भीड़ लगी हुई थी. काशी के गंगा किनारे बालाजी घाट पर स्थित मां ब्रह्मचारिणी के मंदिर में सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ लगी हुई थी. श्रद्धालु लाइन में लगकर मां का दर्शन प्राप्त करते दिखाई दिए. श्रद्धालु मां के इस रूप का दर्शन करने के लिए नारियल, चुनरी, माला-फूल आदि लेकर श्रद्धा-भक्ति के साथ अपनी बारी आने का इंतजार कर रहे थे.

होती है परब्रह्म की प्राप्ति

ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है. इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बायें हाथ में कमंडल रहता है. जो देवी के इस रूप की आराधना करता है उसे साक्षात परब्रह्म की प्राप्ति होती है. मां के दर्शन मात्र से श्रद्धालु को यश और कीर्ति प्राप्त होती है.

पूरी होगी हर मनोकामना

यहां ना सिर्फ काशी बल्कि अन्य जिलों से भी लोग दर्शन एवं पूजन के लिए आते हैं. नवरात्रि पर तो इस मंदिर में लाखों भक्त मां के दर्शन करने के लिए आते हैं. ऐसी मान्यता है कि मां के इस रूप का दर्शन करने वालों को संतान सुख मिलता है. साथ ही वो भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं।

रविवार, 15 अक्तूबर 2023

नवरात्रि : मां शैलपुत्री के मंदिर में उमड़ा जनसैलाब




Varanasi (dil India live). 15.10.2023. रविवार से पवित्र नवरात्रि शुरू हो गया है. इस दौरान पहले ही दिन देवी मंदिरों में भक्तों का हुजूम सुबह से ही उमड़ा हुआ है. पहले दिन ख़ास कर मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना होती है. इसे देखते हुए मां शैलपुत्री के मंदिरों में जनसैलाब उमड़ा। जलालीपुरा पुराना पुल स्थित माता शैलपुत्री के दरबार में भोर से दर्शन पूजन शुरू हुआ. समाचार लिखे जाने तक एक लाख भक्तों ने यहां दर्शन पूजन कर लिया था.

नवरात्रि भारत में सबसे शुभ और मनाए जाने वाले हिंदू त्योहारों में से एक है. यह नौ दिनों का त्योहार है जो मां के शक्ति स्वरूप की आराधना करते हुए मनाया जाता है. पूरे भारत में नवरात्रि का पहला दिन बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है. शारदीय नवरात्रि या महा नवरात्रि  अश्विन महीने में आती है, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार सितंबर या अक्टूबर के दौरान आती है. यह आश्विन माह की प्रतिपदा (पहले दिन) को शुरू होती  है और आश्विन माह की नवमी को समाप्त होती है. इस वर्ष, शारदीय नवरात्रि 15 अक्तूबर, 2023 को शुरू हुई और 24 अक्तूबर को समाप्त होगी। हिंदू पंचांग के अनुसार दिनांक 15 अक्तूबर को शारदीय नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की जाती है. इस दौरान सर्वप्रथम घटस्थापना की जाती है और फिर  मां दुर्गा का आह्वान, स्थापन और प्राण प्रतिष्ठा की जाती है. तदोपरांत मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. आइए जानते हैं पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा विधि, मंत्र और भोग के बारे में-

पूजा विधि

सबसे पहले मां शैलपुत्री की तस्वीर स्थापित करें और उसके नीचे लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं। इसके ऊपर केशर से 'शं' लिखें और उसके ऊपर मनोकामना पूर्ति गुटिका रखें। तत्पश्चात् हाथ में लाल पुष्प लेकर शैलपुत्री देवी का ध्यान करें.

मंत्र इस प्रकार है

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:.

मंत्र के साथ ही हाथ के पुष्प मनोकामना गुटिका एवं मां के तस्वीर के ऊपर छोड़ दें. इसके बाद प्रसाद अर्पित करें तथा मां शैलपुत्री के मंत्र का जाप करें. इस मंत्र का जप कम से कम 108 करें.

मां शैलपुत्री का स्वरूप 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मां शैलपुत्री हिमालय की पुत्री हैं। इनका जन्म शैल अर्थात पत्थर से हुआ था जिसके कारण इन्हें शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है. मां अपनी भक्तों की प्रार्थना सुनने बैल पर सवार होकर आती हैं और एक हाथ में कमल का पुष्प व दूसरे में त्रिशूल धारण करती हैं.

काशी में है मां शैलपुत्री का मंदिर, दर्शन मात्र से ही कष्टों से मिलती है मुक्ति

शारदीय नवरात्रि की शुरुआत के पहला दिन होने के चलते आज के दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है. शिव नगरी 'काशी' के  जलालीपुरा क्षेत्र में माता शैलपुत्री का मंदिर स्थित है. नवरात्रि के दिनों में माता के दरबार में भक्तों की काफी भीड़ देखी जाती है. कहा जाता है कि नवरात्रि में पहले दिन माता के दर्शन करने से भक्तों को विवाह संबंधी परेशानियों से भी मुक्ति मिलती है और भक्तों की मन्नतें भी पूरी हो जाती है. 

मां शैलपुत्री का इतिहास

इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि जब माता पार्वती ने हिमवान की पुत्री के रुप में जन्म लिया था तो वे शैलपुत्री कहलाई थीं। मंदिर को लेकर एक और किवदंती है कि एक बार माता भगवान शिव से नाराज होकर कैलाश से काशी आ गई थीं और जब भगवान भोलेनाथ उन्हें मनाने के लिए काशी आए तब माता ने कहा कि उन्हें यह स्थान काफी अच्छा लग रहा है और यह कहकर माता यही रूक गई, जो आज तक अपने भक्तों को दर्शन देती आ रही हैं और मुरादें भी पूरी करती आ रही हैं.

माता शैलपुत्री मंदिर का आकर्षण

इस मंदिर में प्रवेश करते ही आपको एक अलग ही अनुभूति होगी, जो शायद आपने कभी ना की हो. माता का मंदिर भी काफी सुंदर है. इस मंदिर में माता की दिन बार आरती की जाती है। इसके साथ ही माता को चढ़ावे के रूप में चुनरी और नारियल चढ़ाया जाता है. माता का वाहन वृषभ होने के कारण मां वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं.

कौन हैं मां शैलपुत्री?

दुर्गाजी पहले स्वरूप में ‘शैलपुत्री’ के नाम से जानी जाती हैं. येे नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं. पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण माता पार्वती को शैलपुत्री भी कहा जाता है. पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा. नवरात्रि के प्रथम दिन योगी अपने मन को ‘मूलाधार’ चक्र में स्थित करते हैं और यहीं से उनकी योग साधना का प्रारंभ होता है.

माता शैलपुत्री की कथा

राजा प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया, जिसमें शंकरजी को निमंत्रित नहीं किया गया था. इस बात की जानकारी सती को हुई, तो उनका मन विकल हो उठा. उन्होंने भगवान शिव को इस बारे में बताया. तब शंकर जी ने कहा कि प्रजापति दक्ष उनसे किसी कारण से नाराज हैं, इसलिए यज्ञ में नहीं बुलाए हैं. बिना निमंत्रण वहां जाना ठीक नहीं है.

सती नहीं मानीं और उस यज्ञ में चली गईं. वहां जाने पर उनको अपनी गलती का एहसास हुआ क्योंकि सभी लोग उनको अनदेखा कर रहे थे, कोई ठीक से बात भी नहीं कर रहा था. मां ने बस प्रेम से उनको गले लगाया. लोगों के इस व्यवहार से सती और दुखी हो गईं.

वहां पर उनका और उनके पति भगवान शंकर का तिरस्कार हो रहा था. दक्ष ने उनको कटु वचन भी बोले. तब सती का मन क्रोध से भर गया. शिव जी के रोकने के बाद भी वह अपने पिता के यज्ञ में शामिल होने आई थीं. क्रोध और ग्लानि के वशीभूत उन्होंने स्वयं को उस यज्ञ की अग्नि में जलाकर भस्म कर दिया.

इससे शंकर जी भी उद्वेलित हो गए और उन्होंने उस यज्ञ को भी तहस नहस कर दिया. फिर वही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लीं. वही ‘शैलपुत्री’ नाम से विख्यात हुईं. उनको पार्वती और हैमवती नाम से भी जाना जाता है.

मां शैलपुत्री की पूजा का महत्व

नवरात्रि की प्रथम देवी मां शैलपुत्री हैं. आज पूरे दिन मां शैलपुत्री का ध्‍यान करने से अनंत फल की प्राप्ति होती है. उनकी कृपा से भय दूर होता है, शांति और उत्साह मिलता है. वे अपने भक्तों का यश, ज्ञान, मोक्ष, सुख, समृद्धि आदि प्रदान करती हैं. उनकी आराधना करने से इच्छाशक्ति प्रबल होती है.

मां शैत्रपुत्री पूजन मंत्र

वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌॥वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌॥

याशिवरूपा वृष वहिनी हिमकन्या शुभंगिनी।पद्म त्रिशूल हस्त धारिणी रत्नयुक्त कल्याणकारीनी.

मां शैलपुत्री पूजा विधि

आज सबसे पहले घटस्थापना और पूजन संकल्प के बाद मां शैलपुत्री की पूजा करें. उनको अक्षत्, सफेद फूल, सिंदूर, धूप, दीप, गंध, फल, मिठाई आदि अर्पित करें. इस दौरान उनके पूजन मंत्र का उच्चारण करें और माता शैत्रपुत्री की कथा पढ़ें. माता शैल.पुत्री को दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं या फिर गाय के घी का भी भोग लगा सकते हैं. इसके बाद घी के दीपक से मां शैत्रपुत्री का आरती करें. पूजा का समापन क्षमा प्रार्थना मंत्र से करें. मां से पूजा में कमियों और गलतियों के लिए माफी मांग लें. उसके बाद मनोकामना पूर्ति के लिए प्रार्थना करें.

नारी सुरक्षा जागरूकता सम्मान रैली निकली

पढ़ी लिखी नारी,घर घर की उजियारी...



Varanasi (dil India live). विकास खंड चिरईगांव के गौराकलां प्राथमिक विद्यालय से मिशन शक्ति के चौथे चरण के अंतर्गत नारी सुरक्षा सम्मान एवं स्वावलंबन के प्रति विद्यालय की बेटियों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता रैली प्रिंसिपल आरती देवी के नेतृत्व में निकाली गई।स्कूल के बच्चे, शिक्षक, अभिभावक जागरूकता रैली को स्कूल से प्रारंभ होकर गांव के विभिन्न रास्तों से होते हुए तख्तियों पर लिखे नारा, पढ़ी लिखी नारी, घर घर की उजियारी...व, नारी का सम्मान करना पुरुषों का काम है, रावण तो कल भी बदनाम था आज भी बदनाम है...। शहर का तब्दील होना शाद रहना और उदास, रौनकें जितनी यहां हैं औरतों के दम से हैं। समानता का अधिकार पाएं, महिलाएं अब आगे आएं। खुशी खुशी लगाते हुए चल रहे थे। रैली स्कूल के प्रांगण में संगोष्ठी में तब्दील हो गई।

         इस अवसर पर अटेवा के ज़िला उपाध्यक्ष डॉ एहतेशामुल हक ने अपना विचार रखते हुए कहा कि महिला जिसे स्त्री नारी औरत वोमेन जैसे अनेक नाम से पुकारा जाता है पहले के समय से तुलना करें तो अब महिलाओं की स्तिथि में काफी सुधार हुआ आज की महिलाएं शिक्षक,चिकित्सक,खिलाड़ी, वैज्ञानिक, लीडर इत्यादि अधिक संख्या में बन रही हैं, इस प्रकार उन्होंने परिवार और समाज में एक प्रतिष्ठित पद के लिए अपना स्थान बना लिया है। प्रिंसिपल आरती देवी ने कहा कि हमारे समाज में महिला सशक्तिकरण के अनेक प्रयास किए जा रहे हैं जो कि महिलाओं की वर्तमान स्थिति को सुधारने के लिए काफी महत्वपूर्ण है,महिलाएं किसी भी कार्य में पुरुषों से पीछे नहीं हैं।उन्हें सिर्फ जागरूक होने की आवश्यकता है। स्त्री ईश्वर की वह सबसे खूबसूरत रचना है जो की प्रकृति को चलाने में अग्रिम भूमिका निभाती है,लेकिन यह भी एक कटु सत्य है कि हमेशा पुरुषों के आगे एक स्त्री को भेदभाव,हिंसा,बुरा बर्ताव का सामना भी करना पड़ता है।

कार्यक्रम के दौरान 1090 वूमेन पावर हेल्पलाइन,181 महिला हेल्पलाइन,112 पुलिस सहायता,102 स्वास्थ्य सेवा,108 एंबुलेंस सेवा आदि के बारे में विस्तार से बताया गया। इस अवसर पर प्रिंसिपल आरती देवी, ग्रामप्रधान राजेश कुमार राजू, अटेवा के ज़िला उपाध्यक्ष डॉ एहतेशामुल हक, वंदना पांडेय, अनीता सिंह, शशिकला, प्रमिला सिंह, ज्योति कुमारी, शक्ति कुमारी, त्रिलोकी सहित अभिभावकगण, छात्र एवं छात्राएं भारी संख्या में उपस्थित थे।

गौरीगंज में इल्म, इंसानियत व नबी की तालीम पर उलेमा ने डाली रौशनी

बज़्म रबीउन नूर व जश्न मुजाहिदे मिल्लत के जलसे में उलेमा की हुई तकरीर



Varanasi (dil India live). अंजुमन तबलीग अहले सुन्नत व दावते नमाज की ओर से गौरीगंज चौराहे पर बज़्म रबी उननूर व जश्ने हुजूर मुजाहिदे मिल्लत का दो दिनी जलसे में उलेमाओं ने जहां नबी की जिंदगी, इल्म और मुल्क में अमन और मिल्लत पर रौशनी डाली वहीं हुजूर मुजाहिदे मिल्लत की दीनी ख़िदमात पर भी तजकरा चला। उलेमा ने कहा कि हुजूर मुजाहिदे मिल्लत ने इल्म और दीन की जो शमां रौशन की थी, उससे तमाम लोग आज न सिर्फ फायदा उठा रहे हैं बल्कि रहती दुनिया तक फायदा उठाते रहेंगे। इस दौरान शायरों ने नातिया कलाम से लोगों को देर रात तक बांधे रखा। जलसे की सदारत शहर काजी मौलाना गुलाम यासीन साहब कर रहे थे। लोगों का स्वागत हाजी गुलाम गौस ने दिया। काली शाहबुद्दीन की नात को लोगों ने पसंद किया.

शनिवार, 14 अक्तूबर 2023

Prayagraj के स्वावलंबन मेले में 'हुनर ए बनारस' की धूम

बनारस की खुशबू से महका प्रयागराज का मेला स्थल 


Prayagraj (dil India live). भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) द्वारा प्रयागराज में आयोजित स्वावलंबन मेला में साई इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल डेवलपमेंट, वाराणसी द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर पर अर्पित फूलों से निर्मित अगरबत्ती, धूप, कोन, हवन कप के साथ साथ दीवाली के गिफ्ट आदि के स्टाल लगाए गए हैं। मेले में हुनर ए बनारस की धूम रही। मेला स्थल बनारस की खुशबू से महक उठा। अगरबत्ती और धूप की सुगंध लोगों को अपनी ओर खींच रही थी।

इससे पहले स्टॉल का शुभारंभ प्रयागराज के मेयर गणेश केशरवानी द्वारा किया गया। उक्त अवसर पर व्यापार मंडल, प्रयागराज के अध्यक्ष सुशील खरबंदा, सिडबी, लखनऊ के सहायक महाप्रबंधक नीरज भल्ला, प्रयागराज सिडबी के मैनेजर शशांक कुमार,  शोभित अग्रवाल आदि लोग उपस्थित रहे।

शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2023

Media की जिम्मेदारी है सामाजिक ताने बाने को बनाये रखना: सुमित अवस्थी

सांस्कृतिक अध्ययन पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी




Varanasi (dil India live). 13.10.2023. वरिष्ठ टीवी पत्रकार सुमित अवस्थी ने शुक्रवार को डीएवी पीजी कॉलेज में आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में कहा कि सामाजिक ताने बाने को बनाये रखने का दायित्व मीडिया का रहा है। धीरे धीरे सोशल मीडिया के बढ़ते दायरे ने उस ताने बाने को बिगाड़ने में ज्यादा भूमिका निभाई। वे डीएवी में अंग्रेजी विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय 'सांस्कृतिक अध्ययन : भाषा, साहित्य एवं मीडिया विषय पर आयोजित संगोष्ठी के समापन सत्र में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। 

उन्होंने कहा की अपने व्यक्तित्व को उठाना है कि तो हमें व्यक्तिवादी सोच से ऊपर उठना होगा। भाषा, साहित्य और मीडिया तीनों एक दूसरे के पूरक है। मीडिया में बदलते दौर के साथ चुनौती और बढ़ गयी है, तकनीक के साथ हमे खुद को बदलना होगा। बदलती तकनीक का उपयोग हमें सकारात्मक रूप में कर समाज के लिए कुछ बेहतर करने की दिशा मे करना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि पत्रकारिता के गिरते मूल्यों को छोटे शहर के पत्रकारों ने अब भी बचा कर रखा है। 

विशिष्ट वक्ता पौलेण्ड, अंग्रेजी भाषा विश्वविद्यालय से आये डॉ. लुकाज बरेंसकी ने कहा कि पोलिश साहित्य के अनुवाद से हमने सांस्कृतिक विभिन्नताओं को जाना और समझा। यह साहित्य और मीडिया का ही लाभ है जिसमें हम उन देशों की संस्कृति और विरासत को समझ पाते है जिनकी भाषा हमसे इतर है। विशिष्ट वक्ता काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर कृष्ण मोहन पाण्डेय ने कहा कि मीडिया के बढ़ते प्रभाव के दौर में विचारों की स्वतंत्रता अत्यंत आवश्यक है। स्वतंत्र विचारों से कुछ भी प्राप्त किया जा सकता है। मीडिया को बंधन में रखना लोकतंत्र के लिए उचित नही है। अध्यक्षता महाविद्यालय के कार्यकारी प्राचार्य प्रो. सत्य गोपाल ने किया। इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत डॉ. इंद्रजीत मिश्रा ने किया। संचालन डॉ. महिमा सिंह ने किया।

वक्ताओं में ये भी रहे शामिल

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रो. अनुराग दवे ने भारतीय सिनेमा में हुए बदलाव पर विस्तार पूर्वक चर्चा की। उनके अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ. वरुण गुलाटी ने भारत के संदर्भ में, मदन मोहन मालवीय तकनीकी विश्वविद्यालय के प्रो. सुधीर नारायण सिंह ने सांस्कृतिक अध्य्यन के प्रारंभिक दौर, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के राहुल चतुर्वेदी ने प्रशंसक संस्कृति पर प्रकाश डाला।

इनकी रही सहभागिता 

संगोष्ठी में देश विदेश के लगभग 150 से अधिक प्रतिनिधियों ने सहभागिता की। नेपाल, रूस, यूक्रेन के अलावा ब्रिटेन के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम में डीएवी कॉलेज के उपाचार्य प्रो. समीर पाठक, डॉ. राहुल, डॉ. विजय नाथ दुबे, डॉ. संगीता जैन, डॉ. वंदना बालचंदनानी, साकेत मिश्रा, संस्कृति पाण्डेय आदि सहित समस्त अध्यापक एवं कर्मचारी उपस्थित रहे।

शेख़ अली हजी को दिखता था बनारस का हर बच्चा राम और लक्ष्मण

बरसी पर याद किए गए ईरानी विद्वान शेख़ अली हजी  Varanasi (dil India live)। ईरानी विद्वान व दरगाहे फातमान के संस्थापक शेख मोहम्मद अली हजी ईरान...