चंद्रघंटा ही "काशी" में अपने भक्तों को दिलाती हैं मोक्ष
शेरावाली के जयकारे से गूंज उठी चौक की गलियां
Varanasi (dil India live).17.10.2023. शारदीय नवरात्रि का तीसरे दिन देवी मंदिरों में आस्था का सैलाब दिखाई दिया. इस मौके पर मां चंद्रघंटा के दर्शन-पूजा का विधान होने कि वजह से वाराणसी के चौक स्थित लक्खी चौतरा गली में देवी चंद्रघंटा मंदिर शेरावाली के जयकारों से गूंज उठा है. मंदिर परिसर से लेकर गलियों तक में देश भर से आए भक्तों की भारी भीड़ है. मां चंद्रघंटा का गुड़हल और बेले के फूल से श्रृंगार किया गया है.
मंदिर के वैभव योगेश्वर महंत ने बताया कि देवी चंद्रघंटा का स्वरूप स्वर्ण के समान चमकीला है. उनके मष्तक पर अर्ध चन्द्र सुशोभित है. इनके दशों भुजाओं में अस्त्र-शस्त्र एवं हड्डियां हैं. काशी में मान्यता है कि जब किसी व्यक्ति के प्राण निकलते हैं तो भगवती उनके कंठ में जाकर घंटी बजाती हैं, जिससे मृतक को मोक्ष की प्राप्ति होती है. नवरात्र के तीसरे दिन लोग भगवती की पूजा अर्चना करते हैं. जिसकी जैसी मनोकामनाएं होती है भगवती उसे पूरा करती हैं. उन्होंने आगे मां चंद्रघंटा मंदिर के विषय में बताते हुए कहा कि यह मंदिर प्राचीन है और इस मंदिर का उल्लेख काशी खंड में भी मिलता है.
नवरात्रि के तीसरे दिन दुर्गा माता के तीसरे स्वरूप चंद्रघण्टा देवी की पूजा का विधान है। देवी भागवत पुराण के अनुसार मां दुर्गा का यह रूप शांति और समृद्धि प्रदान करने वाला माना गया है। ऐसी मान्यता है कि चंद्रघण्टा देवी की पूजा करने से आपके तेज और प्रताप में वृद्धि होती है और समाज में आपका प्रभाव बढ़ता है। देवी का यह रूप आत्मविश्वास में वृद्धि प्रदान करने वाला माना गया है। आइए नवरात्रि के तीसरे दिन आपको बताते हैं चंद्रघण्टा देवी की पूजाविधि, पूजा मंत्र और मां का नाम चंद्रघण्टा क्यों पड़ा।
ऐसे पड़ा चंद्रघण्टा नाम
मां दुर्गा का यह स्वरूप अलौकिक तेज वाला और परमशक्तिदायक माना गया है। माता के रूप में उनके मस्तक पर अर्द्धचंद्र के आका का घंटा सुशोभित है, इसलिए देवी का नाम चंद्रघण्टा पड़ा है। मां के इस रूप की पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन सूर्योदय से पहले उठकर करनी चाहिए। मां की पूजा में लाल और पीले फूल का प्रयोग किया जाता है। उनकी पूजा में शंख और घंटों का प्रयोग करने से माता प्रसन्न होकर हर मनोकामना पूर्ण करती हैं।
मां चंद्रघण्टा का रूप
अष्ट भुजाओं वाली मां चंद्रघण्टा का स्वरूप स्वर्ण के समान चमकीला है और उनका वाहन सिंह है। उनकी अष्टभुजाओं में कमल, धनुष, बाण, खड्ग, कमंडल, तलवार, त्रिशूल और गदा आदि जैसे अस्त्र और शस्त्र से सुसज्जित हैं। उनके गले में सफेद फूलों की माला और सिर पर रत्नजड़ित मुकुट शोभायमान है। मां चंद्रघण्टा सदैव युद्ध की मुद्रा में रहती हैं और तंत्र साधना में मणिपुर चक्र को नियंत्रित करती हैं।
मां चंद्रघण्टा का भोग
नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघण्टा की पूजा में केसर की बनी खीर का भोग लगाना सबसे अच्छा माना जाता है। मां के भोग में दूध से बनी मिठाइयों का भोग लगाने की परंपरा है। आप दूध की बर्फी और पेड़े का भी भोग लगा सकते हैं।
लाल रंग का महत्व
मां चंद्रघण्टा की पूजा में लाल रंग के वस्त्र पहनकर पूजा करना सबसे शुभ माना जाता है. लाल रंग शक्ति और वृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इस रंग के वस्त्र धारण करने से आपके धन समृद्धि में वृद्धि होती है और आपके परिवार में संपन्नता आती है.
मां चंद्रघण्टा का पूजा मंत्र
"पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते महयं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।।
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
रंग, गदा, त्रिशूल,चापचर,पदम् कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥"
मां चंद्रघण्टा की पूजाविधि
नवरात्रि के तीसरे दिन ब्रह्म मुहूर्त में सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लें और फिर पूजा के स्थान को गंगाजल छिड़ककर पवित्र कर लें. उसके मां दुर्गा की प्रतिमा को स्थापित करके मां के चंद्रघण्टा स्वरूप का स्मरण करें. घी के 5 दीपक जलाएं और फिर मां को लाल रंग के गुलाब और गुड़हल के फूल अर्पित करें. फूल चढ़ाने के बाद रोली, अक्षत और अन्य पूजन सामिग्री चढ़ाएं और मां का पूजा मंत्र पढ़ें. उसके बाद कपूर और घी के दीपक से माता की आरती उतारे और पूरे घर में शंख और घंटों की ध्वनि करें. पूजा के वक्त शंख और घंटी का प्रयोग करने से माहौल में सकारात्मकता बढ़ती है और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है. पूजा के बाद मां को केसर की खीर का भोग लगाएं और मां से क्षमा प्रार्थना करके पूजा संपन्न करें. पूजा के बाद यदि आप चंद्रघंटा माता की कथा, दुर्गा चालीसा का पाठ करें या फिर दुर्गा सप्तशती का पाठ करें तो आपको संपूर्ण फल की प्राप्ति होती है.