Varanasi (dil India live)। स्व. त्रिभुवन नाथ मित्र गृहस्थ जीवन में भी संत थे। 21 जून, 2024 को संकट मोचन मन्दिर से दर्शन करने के बाद निकलते समय उनका संकट मोचन पुरानी गली में तबीयत खराब हो गयी और इलाज के दौरान द्वादशी तिथि को निधन हो गया। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के धर्म विज्ञान संकाय में ज्योतिष विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर रहे स्वर्गीय पंडित शारदा प्रसाद मिश्र ज्योतिषाचार्य के बड़े पुत्र स्वर्गीय त्रिभुवन नाथ मिश्र भी अपने पिता की तरह सनातन संस्कृति में रचे बसे रहे और गृहस्थ जीवन में रहकर भी पूरी तरह से संत का जीवन जिए। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद सेंट्रल हिंदू बॉयज स्कूल, कमच्छा एवं सारनाथ स्थित इंटर कॉलेज में कुछ दिनों तक विज्ञान और गणित विषय में अध्यापन किया। वह संस्कृत विद्या के भी ज्ञानी थे उन्होंने शास्त्रीय और आचार्य की शिक्षा प्राप्त भी की थी। प्रातः काल 4:30 बजे उठना गंगा स्नान करना और सीधे श्री संकट मोचन मंदिर पहुंचकर हनुमान जी के चरणों में श्री रामचरितमानस का पाठ, राम नाम संकीर्तन करने के साथ-साथ सनातन संस्कृति को प्रचारित प्रसारित करने में उनका पूरा जीवन समर्पित रहा। घर में भी एक संत की तरह जीवन यापन करना किसी चीज की लालसा नहीं जो मिल जाए उसी में ही संतुष्टि उनकी रहती थी। गाय की सेवा करना भी उनके जीवन का एक लक्ष्य था। साथ ही मन में किसी तरह की मान प्रतिष्ठा सम्मान पाने की इच्छा नहीं। हमेशा भगवत चरणों में उनका मन लगा रहता था। उनके पुत्र रामयश मिश्र बताते हैं कि शास्त्री जी के नाम से प्रसिद्ध हमारे पिताजी बहुत अच्छे तैराक थे। श्री रामचरितमानस का वह प्रतिदिन पाठ किया करते थे और मानस का उनके जीवन में पूरी तरह से प्रभाव था। श्री रामचरितमानस पढ़ते पढ़ते उन्होंने अपना पूरा जीवन ही मानसमय बना लिया। वह कहा भी करते थे की श्री रामचरितमानस को अपने जीवन में उतार लो कभी किसी चीज का कष्ट नहीं होगा हमेशा जीवन सुखी रहेगा। आज हमारे पिताजी हम लोगों के बीच नहीं है लेकिन उनकी हर बातें आज स्मृति में आ रही है और यही लग रहा है कि वह मेरे पिताजी हमारे आसपास ही कहीं है। पिताजी हमारे गृहस्थ जीवन में रहकर भी एक संत थे और संत का गुण उनके जीवन में रचा बसा था।
रविवार, 29 सितंबर 2024
गृहस्थ जीवन में भी संत थे त्रिभुवन नाथ मिश्र
Varanasi (dil India live)। स्व. त्रिभुवन नाथ मित्र गृहस्थ जीवन में भी संत थे। 21 जून, 2024 को संकट मोचन मन्दिर से दर्शन करने के बाद निकलते समय उनका संकट मोचन पुरानी गली में तबीयत खराब हो गयी और इलाज के दौरान द्वादशी तिथि को निधन हो गया। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के धर्म विज्ञान संकाय में ज्योतिष विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर रहे स्वर्गीय पंडित शारदा प्रसाद मिश्र ज्योतिषाचार्य के बड़े पुत्र स्वर्गीय त्रिभुवन नाथ मिश्र भी अपने पिता की तरह सनातन संस्कृति में रचे बसे रहे और गृहस्थ जीवन में रहकर भी पूरी तरह से संत का जीवन जिए। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद सेंट्रल हिंदू बॉयज स्कूल, कमच्छा एवं सारनाथ स्थित इंटर कॉलेज में कुछ दिनों तक विज्ञान और गणित विषय में अध्यापन किया। वह संस्कृत विद्या के भी ज्ञानी थे उन्होंने शास्त्रीय और आचार्य की शिक्षा प्राप्त भी की थी। प्रातः काल 4:30 बजे उठना गंगा स्नान करना और सीधे श्री संकट मोचन मंदिर पहुंचकर हनुमान जी के चरणों में श्री रामचरितमानस का पाठ, राम नाम संकीर्तन करने के साथ-साथ सनातन संस्कृति को प्रचारित प्रसारित करने में उनका पूरा जीवन समर्पित रहा। घर में भी एक संत की तरह जीवन यापन करना किसी चीज की लालसा नहीं जो मिल जाए उसी में ही संतुष्टि उनकी रहती थी। गाय की सेवा करना भी उनके जीवन का एक लक्ष्य था। साथ ही मन में किसी तरह की मान प्रतिष्ठा सम्मान पाने की इच्छा नहीं। हमेशा भगवत चरणों में उनका मन लगा रहता था। उनके पुत्र रामयश मिश्र बताते हैं कि शास्त्री जी के नाम से प्रसिद्ध हमारे पिताजी बहुत अच्छे तैराक थे। श्री रामचरितमानस का वह प्रतिदिन पाठ किया करते थे और मानस का उनके जीवन में पूरी तरह से प्रभाव था। श्री रामचरितमानस पढ़ते पढ़ते उन्होंने अपना पूरा जीवन ही मानसमय बना लिया। वह कहा भी करते थे की श्री रामचरितमानस को अपने जीवन में उतार लो कभी किसी चीज का कष्ट नहीं होगा हमेशा जीवन सुखी रहेगा। आज हमारे पिताजी हम लोगों के बीच नहीं है लेकिन उनकी हर बातें आज स्मृति में आ रही है और यही लग रहा है कि वह मेरे पिताजी हमारे आसपास ही कहीं है। पिताजी हमारे गृहस्थ जीवन में रहकर भी एक संत थे और संत का गुण उनके जीवन में रचा बसा था।
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