गुरुवार, 24 अगस्त 2023

mission chandrayaan-3 की सफलता के 'सिकंदर'






मिशन में इन वैज्ञानिकों की दिन-रात की मेहनत शामिल

Varanasi (dil India live). 24.08.2023. भारत चांद पर पहुंच गया है। वो भी वहां, जहां कोई कभी नहीं पहुंचा। जी हां साउथ पोल। 23 अगस्त की शाम 6.4 मिनट पर चांद पर सूरज उगते ही ISRO के चंद्रयान ने लैंडिंग कर इतिहास बनाया।चंद्रयान-3 को चांद तक पहुंचाने का यह इतिहास यूं ही नहीं रचा। इसके पीछे है सैकड़ों वैज्ञानिकों की दिन-रात की मेहनत शामिल है। इस सपने को साकार करने के लिए ISRO टीम के हर सदस्य के पास अपनी एक अलग जिम्मेदारी थी।लखनऊ की बेटी रितु कारिधाल के हाथों में लैंडिंग की कमान थी। वह मिशन की निदेशक थी। इसके अलावा यूपी के 5 वैज्ञानिक भी इस टीम का हिस्सा रहे हैं।

जानिए मिशन चंद्रयान-3

चंद्रयान-3 आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से 14 जुलाई को 3 बजकर 35 मिनट पर लॉन्च हुआ था। इसे चांद की सतह पर लैंडिंग करने में 41 दिन का समय लगा। धरती से चांद की कुल दूरी 3 लाख 84 हजार किलोमीटर है। ISRO के डायरेक्टर एस. सोमनाथ ने कहा था अगले 14 दिन हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। प्रज्ञान रोवर लैंडर से बाहर आ गया है। प्रज्ञान हमें चांद के वातावरण के बारे में जानकारी देगा। हमारे कई मिशन कतार में हैं। जल्दी सूर्य पर आदित्य एल1 भेजा जाएगा। गगनयान पर भी काम जारी है।

UP के ''स्टार्स'' को भी पढ़िए 

मिशन चंद्रयान-3 की सफलता के लिए ISRO के 50 वैज्ञानिकों ने दिन रात एक कर दिया। चंद्रयान लॉन्च होने के पहले इसके कलपुर्जे, टेक्नोलॉजी और ट्रैकिंग डिवाइस आदि पर विस्तार से कार्य किया गया। हर एक टेक्नोलॉजी की जांचा-परख की गई। इनमें UP के पांच वैज्ञानिकों का भी अहम किरदार है।

इस फेहरिस्त में पहला नाम आता है फिरोजाबाद के धर्मेंद्र प्रताप यादव का। दूसरा नाम है गाजीपुर के कमलेश शर्मा, तीसरे प्रतापगढ़ के रवि केसरवानी, चौथे फतेहपुर के सुमित कुमार व मुजफ्फरनगर के अरीब अहमद।

धर्मेंद्र प्रताप यादव अब्दुल कलाम से है प्रेरित 

23 अगस्त की सुबह जिले के टूंडला तहसील में एक छोटे से गांव टीकरी में मीडिया पहुंची। जहां शंभु दयाल ISRO में काम करने वाले वैज्ञानिक धर्मेंद्र प्रताप यादव के पिता हैं। घर में शंभु दयाल की पत्नी भगवान से चंद्रयान-3 की सफलता की कामना के लिए पूजा अर्चना कर रही थीं। बातचीत में शंभू दयाल ने कहा, ''आज का दिन हमारे परिवार के लिए बहुत बड़ा दिन है। आज देश इतिहास रचने वाला है।''

घर के बाहर इंजीनियर डीपी यादव साइंटिस्ट इसरो की नेम प्लेट लगी है। शाम को जैसे ही मिशन सफल हुआ, मिठाइयां बंटने लगीं। धर्मेंद्र यादव के पिता को फूल-माला से लाद दिया गया। भाई राहुल ने मीडिया को बताया, ''धर्मेंद्र भैया, इस मिशन में सक्रिय भूमिका में हैं। वह सिग्नल ट्रैकिंग टीम में हैं। जो चंद्रयान के संपर्क की लगातार मॉनिटरिंग करती है।'' राहुल ने बताया कि काम के चलते भैया और भाभी बेंगलुरु में रहते हैं। अंतिम बार वो फरवरी में गांव आए थे। इसके बाद करीब 15 दिन पहले उनसे फोन पर बात हुई थी। भाभी से बात हुई थी, वो बता रहीं थी चंद्रयान मिशन की सफलता के लिए वो 24 घंटे ऑफिस में रहते हैं।धर्मेंद्र के पिता पेशे से किसान हैं। धर्मेंद्र की सरकारी स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा पूरी हुई। इसके बाद फिरोजाबाद के ब्रजराज सिंह इंटर कॉलेज से 12वीं तक पढ़ाई की। उन्होंने मथुरा के हिन्दुस्तान कॉलेज से बीटेक किया और फिर एमटेक की पढ़ाई जालंधर से की। इसके बाद से वो बेंगलुरु स्थित ISRO में 2011 से वैज्ञानिक के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। परिवार वालों ने बताया कि पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से प्रेरित होकर धर्मेंद्र विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़े।

गाजीपुर के कमलेश शर्मा शिक्षा में रहा टापर

गाजीपुर के रेवतीपुर गांव के तेजमल राय पट्टी के रहने वाले वैज्ञानिक कमलेश शर्मा मिशन चंद्रयान-3 टीम के अहम सदस्य हैं। 2010 से ISRO में कार्यरत कमलेश मंगलयान अभियान में प्राइम कंट्रोलर हैं। कमलेश शर्मा के पिता अधिवक्ता वेद प्रकाश शर्मा ने बताया कि कमलेश चंद्रयान-3 की रिव्यू टीम का हिस्सा हैं। देश के इस बड़े मिशन में बेटे के योगदान को लेकर उन्होंने खुशी जाहिर की। साधारण परिवार में 15 सितंबर 1986 को जन्मे कमलेश की शुरुआती शिक्षा गांव में ही हुई। हाईस्कूल और इंटर की शिक्षा आदर्श इंटर कालेज महुआबाग से ली। 12 वीं में कमलेश ने पूरे जिले में टॉप किया था। इसके बाद की पढ़ाई लखनऊ यूनिवर्सिटी से हुई। साल 2008 में गणित से परास्नातक करने वाले कमलेश ने कुल 10 गोल्ड मेडल हासिल किए। मीडिया कमलेश के घर पहुंची, तो पता चला उनके माता-पिता लखनऊ में हैं। पूरा परिवार चंद्रयान मिशन की कामयाबी के लिए प्रार्थना कर रहा है। पिता वेद प्रकाश ने बताया कि उनकी 15 दिन पहले बेटे से बात हुई थी। कमलेश मिशन चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग को लेकर बेहद बिजी हैं। बेटे ने कहा था कि इस बार मिशन जरूर सफल होगा। और वही हुआ। देश के लिए यह गौरव की बात है।

सैटेलाइट टीम का हिस्सा अरीब अहमद

मुजफ्फरनगर की खतौली कस्बे के मोहल्ले मिट्ठूलाल में जश्न का माहौल है। लोगों में मिठाइयां बांटी जा रही है। उत्सवी माहौल में काजी महताब सबसे ज्यादा खुश दिखाई दिए। खुश हों भी क्यों न, जिस मिशन के लिए देश का नाम विश्वभर में ऊंचा हुआ, उस मिशन की सफलता की पटकथा लिखने में उनके बेटे अरीब अहमद का भी हाथ है।अरीब अहमद ISRO में 2021 से कार्यरत हैं। पिता के मुताबिक, उनका बेटा चंद्रयान-3 की सैटेलाइट टीम का हिस्सा है। अरीब अहमद के पिता काजी मेहताब जिया ने कहा, देश के लिए यह गौरव का पल है। इसरो के वैज्ञानिकों की कमर तोड़ मेहनत ने देश को सफलता दिलाई है। यह कस्बे ही नहीं देश भर के लिए यादगार पल है।

प्रतापगढ़ के रवि का सुझाव रहा 'अनमोल' 

प्रतापगढ़ के कुंडा कस्बे के सरयूनगर में ओम प्रकाश केसरवानी की दुकान है। ओमप्रकाश ISRO वैज्ञानिक रवि केसरवानी के पिता हैं। चंद्रयान की सफलता के बाद घर-परिवार में उत्सव का माहौल है। रवि ने कुंडा में पांचवीं तक की पढ़ाई की। इसके बाद वे पुणे चले गए। वहां से उन्होंने बीटेक किया। इसके बाद 2016 में इसरो से प्रशिक्षण लिया। 2019 में उनकी नियुक्ति साइंटिफिक टेक्निकल ऑफिसर-C के पद पर हुई।

टेक्निकल ऑफिसर के पद पर तैनात रवि की टीम ने चंद्रयान-3 में लगे 'शेप' (SHAPE) का सुझाव दिया था। इसने लैंडिंग में अहम रोल अदा किया। शेप लगने से यान सीधे धरती से जुड़कर प्रकाश ले रहा है। चंद्रयान-2 में ऐसी व्यवस्था नहीं थी। पिता रवि बताते हैं कि चंद्रयान की तैयारी से पहले सभी वैज्ञानिकों ने मीटिंग कर नए उपकरण जोड़ने के संबंध में सुझाव मांगे थे। तब रवि की टीम ने शेप का सुझाव दिया था।

सुमित ने डिजाइन किया कैमरा

फतेहपुर के विजय नगर निवासी सुमित कुमार मिशन चंद्रयान-3 में शामिल हैं। सुमित साल 2008 से इसरो के अहमदाबाद केंद्र में काम कर रहे हैं। वह वर्तमान में स्पेस एप्लीकेशन सेंटर में तैनात हैं। चंद्रयान की कामयाबी के लिए सुमित के भाई सुशील, बहन प्रीति, भांजा कार्तिक ने बताया कि सकुशल लैंडिंग के लिए सुबह से प्रार्थना करते रहे।मिशन चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर में लगे अत्याधुनिक कैमरों को सुमित कुमार और उनकी टीम ने डिजाइन किया। लैंडर और रोवर में लगे पांच कैमरों को अत्याधुनिक तरीके से डिजाइन किया गया है। पेलोड में लगे कैमरों ने लैंडर और रोवर को चांद पर ठहरने की जगह और दिशा दिखाने में मदद की। सुमित अर्जुन सिंह के बेटे हैं।

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