शनिवार, 26 दिसंबर 2020

उमराव जान का ये देश प्रेम नहीं तो क्या है?


अंग्रेेजों की महाफिल सजाने से कर दिया था इंकार

ज़माना भूला मगर काशी ने बरसी पर किया याद

वाराणसी(दिल इडिया)। अवध की शान उमराव जान की 83 वीं बरसी के मौके पर शनिवार को वाराणसी के मातमान स्थित उनकी कब्र पर लोगों ने फूल चढ़ा उन्हे खिराजे अकीदत पेश कि और फातिहा पढा। सिगरा के फातमान सिथत कब्रिस्‍तान में कुछ साल पहले ही चुनार के बेशकीमती लाल पत्‍थरों से मकबरा बनने से उमराव जान की कब्र को पहचान मिली है।सामाजिक संस्‍था डर्बीशायर क्‍लब के अध्‍यक्ष शकील अहमद जादूगर की अगुवाई में उमराव जान को श्रद्धांजलि अर्पित करने लोग कब्र पर पहुंचे। कब्र पर गुलाब की पखुंडिया चढा़ई और फातिहा पढ़ा। 

शकील ने उमराव जान ने शोहरत की बुलंदियां छुई, मगर अंग्रेजों की महफिल सजाने से इंकार कर दिया। यही वजह थी कि दुनिया से रुख्सत होने का उमराव जान का सफर अवध की कोठियों से होता हुआ बनारस की तंग गलियों में पूरा हुआ। अंग्रेज उन्हें खोजते रहे मगर देश की मोहब्बत थी कि उमराव काशी में छुप कर रहने लगी और यहीं उन्हें मौत के आगोश में सोने के बाद दो गज जमीन नसीब हुई। 

फातमान कब्रिस्‍तान में एक तरफ शहनाई सम्राट भारतरत्‍न बिस्मिल्‍लाह खां का तो दूसरी तरफ फैजाबाद की मासूम लड़की अमीरन से उमराव बनीं उमराव जान का मकबरा है। दोनों के मकबरे एक जैसे और गंगा-जमुनी तहजीब के प्रतीक हैं। मकबरे में स्‍थापत्‍य कला की जुगलबंदी देखने को मिलती है।

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