बुधवार, 16 दिसंबर 2020

सेंट मेरीज़ महागिरजा

देश के शानदार चर्च की कहानी

वाराणसी (दिल इंडिया)। वाराणसी के कैंरोमेंट स्थित सेंट मेरीज़ महागिरजा देश के शानदार चर्चो में शामिल है, इसे महागिरजा यानी कैथड्रल भी कहा जाता है। वाराणसी धर्मप्रांत द्वारा संचालित महागिरजा को सुंदरता और भव्यता 8 अगस्त 1970 को वाराणसी धर्मप्रांत के पहले बिशप बने स्व. पैट्रिक डिसूजा ने अपने कार्यकाल में प्रदान किया था।उनसे पहले बनारस आगरा धर्मप्रांत द्वारा संचालित होता था। मैत्री भवन के निदेशक फादर फिलिप डेनिस बताते हैं कि यूं तो सेंट मेरीज़ चर्च की संगे-बुनियाद एक अस्तबल में 1840 में अंग्रेजी हुकूमत के दौरान रखी गयी थी, मगर इसका लिखित इतिहास 1920 से मिलता है। बाद में पैट्रिक डिसूजा के प्रयास से ही इस चर्च को महागिरजा का दर्जा मिला। महागिरजा को भव्यता प्रदान करने के लिए 1989 में स्व. पैट्रिक डिसूजा ने पुन: निर्माण कार्य शुरू कराया और परिणाम स्वरुप कुशल वास्तुविद् की डिजाइन पर यह कैथड्रल 1993 में तैयार हुआ तो ईसाई ही नहीं बल्कि सभी धर्म के लोगों ने कैथड्रल की सराहना की। यहाँ लम्बे समय तक बिशप राफी मंजली थे वर्ष 2013 में उनका तबादला इलाहाबाद हो गया। इस समय वाराणसी धर्मप्रांत के अगुआ बिशप यूज़ीन जोसेफ है। और महागिरजा के पल्ली पुरोहित फादर विजय शांतिराज।

 बिशप यूज़ीन बताते हैं कि आज सेंट मेरीज़ महागिरजा की गिनती दुनिया के खूबसूरत गिरजाघरों में होती है। महागिरजा वास्तुकला और खूबसूरती के लिहाज़ से देश की शान है। इसके अंडर ग्राउण्ड में बाइबिल प्रदर्शनी की विद्या रची है। पवित्र बाइबिल में वर्णित सृष्टि की शुरुआत से लेकर मानव-मुक्ति योजना में प्रभु ईसा के जन्म, मुक्ति, मृत्यु तथा पुर्नरुत्थान तक की समस्त घटनाएं इस बाइबिल प्रदर्शनी के द्वारा यहा आने वालो को दिखाई जाती है। यीशु माता चर्च शिवपुर के पुरोहित फादर रोज़लीन राजा कहते हैं कि प्रदर्शनी में काष्ठ की मूर्तियों का उपयोग किया गया है। उन्हें रफ्तार देने के लिए इलेक्ट्रानिक मशीन है। मूर्तियों की गति में श्रव्य विद्या का समन्वय किया गया है। इसे देखकर ऐसा लगता है जैसे सभी मूर्तियां सजीव हो उठीं हो। इस महागिरजा की बाहरी दीवारों पर प्रभु ईसा मसीह के जहां संदेश लिखे हैं वही भीतरी दीवार पर श्लोक लिखा है। महा गिरजा के पल्ली पुरोहित फादर विजय शांतिराज कहते है कि गिरजा के पीछे माता मरियम की प्रतिमा है। क्रिसमस पर यहां तीन दिन तक मेला लगता है। मेले के बहाने सभी मज़हब के लोग यहां जुटते हैं। जिससे पूरा माहौल गंगा जमुनी हो जाता है। 

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