मंगलवार, 9 अगस्त 2022

Muharram10th: या हुसैन...या हुसैन... की सदाओं संग कर्बला में दफन हो रही ताजिया

कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में निकला ताजिए का जुलूस












Varanasi (dil india live). यौमे आशुरा यानी दसवीं मुहर्रम पर मंगलवार को शहर से लेकर गांव तक या हुसैन,या हुसैन... अलविदा या हुसैन... की सदाएं गूंजती रहीं। तकरीबन एक हजार से अधिक छोटे-बड़े ताजिये इमाम चौक से उठाए गए। इन ताज़िए को जुलूस की शक्ल में दरगाहें फातमान, सदर इमामबाड़ा लाट सरैया, तेलियानाला घाट व शिवाला घाट समेत ग्रामीण इलाकों की कर्बला में पहुंच कर ठंडा करने का दौर समाचार लिखे जाने तक चलता रहा। इस दौरान अलम व ताजिया के साथ फन-ए-सिपहगिरी का मुजाहिरा भी हो रहा था। शिया वर्ग के शहर भर में अर्दली बाजार, दालमंडी, बेनिया, गौरीगंज, शिवाला से निकले जुलूस में मातमी अंजुमनों ने दर्द भरे नौहों संग जोरदार मातम का नज़ारा पेश किया। 

शहर के दालमंडी, नयी सड़क, लल्लापुरा, पीलीकोठी, पठानी टोला, चौहट्टा लाल खां, बड़ी बाजार, दोषीपुरा, कज्जाकपुरा, काजी सादुल्लाहपुरा, अर्दली बाजार, नदेसर, शिवाला, गौरीगंज, बजरडीहा, साकेत नगर, हुकुलगंज आदि से निकले ताजिया के जुलूस में भारी हुजूम उमड़ा हुआ था। इस दौरान चपरखट की ताजिया, रांगे की ताजिया, पीतल की ताजिया, ज़री की ताजिया, नगीने व काठ की ताजिये के साथ लोगों का हुजूम दिखाई दिया। बोल मोहम्मदी, या हुसैन..या हुसैन व नारे तकबीर अल्लाह हो अकबर…. की सदाएं भी बुलंद होती रहीं। कोनिया में हिन्दुओं ने ताजिये को कंधा देकर पास कराया। इससे यहां गंगा जमुनी तहजीब को बल मिलता दिखाई दिया। 

रास्ते भर ताजिया और जुलूस देखने के लिए भी भारी भीड़ उमड़ी रही। अर्दली बाजार, दालमंडी, नई सड़क, मदनपुरा, बजरडीहा आदि इलाकों से ताजिया दरगाहे फातमान की ओर रवाना हुईं। यहां बुर्राक, पीतल, रांगे, शीशम, चपरखट, मोतीवाली, हिंदू लहरा आदि प्रमुख ताजिया लोगों के आकर्षण का केंद्र रहीं। तमाम जायरीन इनकी जियारत करते दिखाई दिए।

शिवाला घाट पर गौरीगंज, शिवाला, बाबा फरीद, छिपपीटोला, नवाबगंज आदि की ताजिया वह भवनिया पहुंच कर ताजिया दफन किया। ऐसे ही हनुमान फाटक, कोयला बाजार, छिततनपुरा, पठानी टोला, कोनिया आदि की ताजिया कज्जाकपुरा, जलालीपुरा होते हुए सरैया स्थित कर्बला में पहुंच कर दफ्न हुई। 

Karbala ki kahani: हर कौम पुकारेगी हमारे हैं हुसैन

...इस्लाम जिंदा होता है कर्बला के बाद


Varanasi (dil india live). 

इंसान को बेदार तो हो लेने दो हर कौम पुकारेगी हमारे हैं हुसैन...।

मजहबे इस्लाम को दुनिया में फैलाने के लिए, पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्ललाहो अलैहि वसल्लम ने जितनी कुर्बानियाँ दीं, उसे उनके नवासे हजरत इमाम हसन, हज़रत इमाम हुसैन ने कभी फीका नहीं पड़ने दिया, बल्कि नाना के दीने इस्लाम को बचाने के लिए अपने साथ अपने कुनबे को भी कर्बला के मैदान में शहीद कर दिया।

इस्लाम की बुनियाद के लगभग 50 साल बाद दुनिया में जुल्म का दौर अपने शबाब पर था। मक्का से दूर सीरिया के गर्वनर य़जीद ने खुद को खलीफा घोषित कर दिया, उसके काम करने का तरीका तानाशाहों जैसा था, जो इस्लाम के बिल्कुल खिलाफ था। उस दौर के तमाम लोग उसके सामने झुक गए, वो चाहता था कि नबी के नवासे हजरत इमाम हुसैन भी उसकी बैयत (अधिनता) करें मगर हजरत इमाम हुसैन ने इस्लाम के खिलाफ काम करने वाले य़जीद को खलीफा मानने से इन्कार कर दिया। इससे नाराज य़जीद ने अपने गर्वनर वलीद विन अतुवा को फरमान लिखा और कहा कि 'तुम हुसैन को बुलाकर मेरे आदेश का पालन करने को कहो, अगर वह नहीं माने तो उनका सिर काटकर मेरे पास भेजो।'

वलीद विन अतुवा ने इमाम हुसैन को य़जीद का फरमान सुनाया तो इमाम हुसैन बोले। 'मैं एक तानाशाह, मजलूम पर जुल्म करने वाले और अल्लाह-रसूल को न मानने वाले य़जीद की बेअत करने से इन्कार करता हूँ।' इसके बाद इमाम हुसैन मक्का शरीफ पहुँचे, जहाँ य़जीद ने अपनी फौज के सिपाहियों को मुसाफिर बनाकर हुसैन का कत्ल करने के लिए भेज दिया। इस बात का पता हजरत इमाम हुसैन को चल गया और खून-खराबे को रोकने के लिए हजरत इमाम हुसैन अपने कुनबे के साथ इराक चले आ गए। मुहर्रम महीने की 2 तरीख 61 हि़जरी को इमाम हुसैन अपने परिवार के साथ कर्बला में थे। 

पानी पर पहरा, फिर भी हुसैन ने ह़क से मुँह न फेरा

वह 2 मुहर्रम का दिन था, जब इमाम हुसैन का काफिला कर्बला के तपते रेगिस्तान में ठहरा था। यहाँ पानी के लिए सिर्फ एक फरात नदी थी, जिस पर य़जीद की फौज ने 6 मुहर्रम से हुसैन के काफिले पर पानी के लिए रोक लगा दी थी। य़जीद की फौज की इमाम हुसैन को झुकाने की हर कोशिश नाकाम होती रही और आखिर में जंग का ऐलान हो गया।

दुश्मन देते थे हुसैन की हिम्मत की गवाही

9 तारीख तक य़जीद की फौज को सही रास्ते पर लाने के लिए मौका देते रहे, लेकिन वह नहीं माना। इसके बाद हजरत इमाम हुसैन ने कहा 'तुम मुझे एक रात की मोहलत दो ताकि मैं अल्लाह की इबादत कर सकूँ' इस रात को ही आशूरा की रात कहा जाता है।

इस्लामिक इतिहास कहता है कि य़जीद की 80 ह़जार की फौज के सामने इमाम हुसैन के 72 जाँनिसारों ने जिस तरह जंग की, उसकी मिसाल खुद दुश्मन फौज के सिपाही एक-दूसरे को देने लगे। इमाम हुसैन ने अपने नाना और वालिद के सिखाए हुए ईमान की मजबूती और अल्लाह से बे-पनाह मोहब्बत में प्यास, दर्द, भूख और अपने 6 माह के बेटे अली असगर के साथ पूरे खानदान को खोने तक के दर्द को जीत लिया। दसवें मुहर्रम के दिन तक हुसैन अपने भाइयों और साथियों की मैयत को दफनाते रहे। लड़ते हुए जब नमाज का वक्त करीब आ गया तो उन्होंने दुश्मन फौज से अस्र की नमाज अदा करने का वक्त माँगा। यही वक्त था जब इमाम हुसैन सजदे में झुके तो दुश्मन ने धोखे से उन पर वार कर उन्हें शहीद कर दिया। मक्का में इमाम हुसैन की शहादत की खबर फैली तो हर तरफ मातम छा गया। दुनिया ने सोचा कर्बला के बाद इस्लाम खत्म हो जाएगा, इमाम हुसैन के नाना के दीन और धर्म का कोई नामोनिशान नहीं होगा मगर हुआ इसका ठीक उल्टा। कर्बला के बाद इस्लाम न सिर्फ जिन्दा हो गया बल्कि समूची दुनिया में फैल गया। आज इमाम हुसैन और शहीदाने कर्बला का नाम लेने वाला पूरी दुनिया में है मगर यजीद का कोई नाम लेवा नहीं है तभी तो कहा गया है, इस्लाम जिंदा होता है कर्बला के बाद...।

सोमवार, 8 अगस्त 2022

Muharram 9th:आग के अंगारों से होकर गुजरा विश्व प्रसिद्ध दूल्हे का जुलूस

दूल्हा घायल लौटा जुलूस, फिर दूसरे दूल्हे संग आग पर कूदा जुलूस



Sarfaraz Ahmad
Varanasi (dil india live). शहीदाने कर्बला हज़रत कासिम की याद में नौवीं मोहर्रम की मध्यरात्रि विश्व प्रसिद्ध कदीमी (परंपरागत) दूल्हे का जुलूस निकाला गया। शिवाला सिथत इमामबाड़ा दूल्हा कासिम नाल से अकीदत एवं एहतराम के साथ उठा यह जुलूस निकलते ही तब उसे वापस इमामबाड़े लौटना पड़ा जब दूल्हे का हाथ उखड़ गया। इस दौरान अकीतदमंदों का जनसैलाब शिवाला में उमड़ा हुआ था। पुनः दूसरे व्यक्ति को दूल्हा बना कर जुलूस निकाला गया। जुलूस या हुसैन, या हुसैन...की सदाएं बुलंद करते हुए आग के अंगारों पर चलकर हज़रत इमाम हुसैन, हज़रत कासिम समेत कर्बला में शहीद हुए 72 हुसैनियों को सलामी पेश करते हुए इमाम चौकों पर बैठायी गई तकरीबन 60 ताजियों को सलामी देने व 72 अलाव से होता हुआ मंगलवार की सुबह वापस लौटेगा। जुलूस शहर के छह थानाक्षेत्रों से गुजरता है। इस दौरान कड़ी सुरक्षा व्यवस्था रही।

इससे पहले दूल्हा कमेटी ने एक ओहदेदारान को दूल्हा बनाया जिस पर सवारी पढ़ी गई। डंडे में लगी घोड़े की नाल लिये दूल्हे को पकड़ने की लोगों में होड़ मची हुई थी। पीछे पीछे अकीदतमंदों का हुजूम जुलूस में शामिल था। जुलूस विभिन्न मुहल्लों में इमाम चौकों पर बैठे ताजिये को सलामी देते बढ़ता गया। इस दौरान या हुसैन की सदाएं बुलंद हो रही थी। इस दौरान विभिन्न थानों की पुलिस के अलावा पीएसी के जवान तैनात थे। कमेटी के सचिव मोहम्मद खालिद ने बताया कि जुलूस मंगलवार को पुन: शिवाला सिथत इमामबाड़ा दूल्हा कासिम नाल पहुंच कर ठंडा होगा। समाचार लिखे जाने तक जुलूस लगातार या हुसैन,या हुसैन...की संस्थाएं बुलंद करता हुआ आगे बढ़ रहा था। 

आकर्षक ताजिये की हुई जियारत

9 वीं मोहर्रम को इमाम चौक पर सभी ताजिया फातेहा करके बैठा दी गईं। शहर भर में इनकी जियारत के लिए भारी भीड़ उमड़ी रही। अर्दली बाजार, दालमंडी, नई सड़क, मदनपुरा, बजरडीहा आदि इलाकों से ताजिया दरगाहे फातमान की ओर कल रवाना होगी।

 बुर्राक की ताजिया, पीतल की ताजिया, रांगे की ताजिया, शीशम की ताजिया, चपरखट की ताजिया, मोतीवाली ताजिया, हिंदू लहरा की ताजिया, जरी की ताजिया, शाबान की आदि प्रमुख ताजिया लोगों के आकर्षण का केंद्र रहीं।









रविवार, 7 अगस्त 2022

Duldul ka julus: दर्द भरे नौहों की बोल पर हुआ मातम

अर्दली बाजार से निकला कदीमी दुलदुल, अलम, ताबूत



Varanasi (dil india live). सैय्यद जियारत हुसैन के अंर्दली बाजार तार गली स्थित इमामबाड़े से 8 वीं मोहर्रम को दुलदुल अंलम, ताबूत का  कदीमी जुलूस रविवार की देर रात निकाला गया। जुलूस अपने कदीमी (पुराने) रास्ते से होकर उल्फत बीबी कम्पाउन्ड स्थित स्व.मास्टर जहीर साहब के  इमामबाड़े पर  पहुंच कर समाप्त समाप्त हुआ। जुलूस में अंजुमन इमामिया ने नौहाखवानी व मातम किया। जुलूस की अगुवाई इरशाद हुसैन "शद्दू"  ने करते हुए बताया कि आठवीं मोहर्रम को रवायत के अनुसार यह जुलूस निकाला गया। जुलूस में रास्ते भर अकीदतमंद दुलदुल की जियारत करने उमड़े हुए थे। 

Muharram 8th:" जब हाथ कलम हो गए सक्काए हरम के "

आठवीं मुहर्रम: निकला तुर्बत व अलम  का कदीमी जुलूस 

ख्वाजा नब्बू के इमामबाड़े से अंजुमन हैदरी ने निकाला जुलूस



Varanasi (dil india live) । आठवीं मुहर्रम का तुर्बत व अलम  जुलूस ख्वाजा नब्बू साहब के चहमामा स्थिति इमामबाडे से सै• मुनाजिर हुसैनी मंजू के जेरे इन्तजाम उठा जुलूस उठने से पूर्व मजलिस को खेताब फरमाते हुए अब्बास मुर्तुजा शम्सी ने बयान किया कि मौला अब्बास अ• स• की शुजाअत और वफा की कोई मिसाल नहीं है। जुलूस उठने पर शराफत अली खां साहब,  लियाकत अली साहब व साथियों ने सवारी शुरू किया - " जब हाथ कलम हो गए सक्काए हरम के " जुलूस धीरे-धीरे पत्थर गलिया चहमामा होते हुए दालमंडी पहुंचा जहाँ से अंजुमन हैदरी चौक ने नौहा ख्वानी व मातम शुरू किया - "करते है मातम हरम अब्बास का हो गया मरना सितम अब्बास का "। जुलूस मेंपूरे रास्ते उस्ताद हसन अली खां साहब व साथियों ने शहनाई पर मातमी धुन पेश किया। जुलूस नई सडक काली महल पितरकुण्डा होते हुए लल्लापुरा स्थित फात्मान पहुंचा जहाँ से पुनः वापस अपने कदीमी रास्तों से होते हुए चहमामा स्थिति इमामबाडे मे आकर इकतेदाम पदीर हुआ।

hand writing से जान सकते है व्यक्ति की मानसिकता: राजेश जौहरी

डीएवी पीजी कॉलेज में कार्यशाला : देश भर से जुटे प्रतिभागी


Varanasi (dil india live)। डीएवी पीजी कॉलेज के मनोविज्ञान विभाग के तत्वावधान मे चल रहे "हस्तलेख निदान : मानसिक स्वास्थ्य एवं व्यक्तित्व का आंकलन" विषयक रास्त्री कार्यशाला के दूसरे दिन रविवार को विषय विशेषज्ञ राजेश जौहरी ने बताया कि लोगों की लिखावट, उनकी मानसिक परिपक्वता, कार्य करने की शैली, लोगों से संबंध, सकारात्मक एवं नकारात्मक सोच, विचार शैली, लक्ष्य प्राप्ति की उत्कंठा एवं मन में उपजे सारे विचारों को जानना ग्राफ़ोलॉजी पद्धति द्वारा संभव है। अलग-अलग प्रकार की राइटिंग भिन्न प्रकार की मानव मस्तिष्क को दर्शाती है । उन्होंने आगे कहा कि छोटे अक्षर लिखने वाले मनुष्य दूरदर्शी, सूक्ष्म, गहन अध्ययन करने वाले अस्पष्ट लिखने वाले दुविधाग्रस्त, अव्यवस्थित लिखने वाले दिशाभ्रमित तथा अन्य कई सारी चीजें एवं व्यवहार लिखावट के द्वारा जानी जा सकती है । उन्होंने कहा कि लोग कलम को कितना दबाकर लिखते हैं, इसका भी अपना अर्थ होता है । जो लोग कम दबाव के साथ लिखते हैं वह परिस्थितियों के साथ तेजी से समायोजन करने वाले, विचारों में अधिक लचीले, जल्दी थक जाने वाले होते हैं । जबकि भारी दबाव के साथ लिखने वाले लोग आक्रमक, अत्यंत कुंठित, अमाशय एवं आंत संबंधी समस्याओं से ग्रसित होते हैं तथा ध्यानाकर्षण चाहने वाले होते हैं।  सामान्य दबाव के साथ लिखने वाले लोग सामान्य, संतुलित, परिश्रमी तथा दायित्व निर्वहन करने वाले होते हैं। उन्होंने अक्षरों के झुकाव की विभिन्न शैलियों तथा उनके अर्थ के साथ साथ हस्तलेखन के परिक्षेत्रों के बारे में जानकारी दी। अक्षर का ऊपरी परिक्षेत्र का भविष्य, मध्यम परिक्षेत्र का वर्तमान तथा निचले परिक्षेत्र का संबंध बीते हुए कल से होता है । 

 कार्यशाला में देश भर से जुड़े प्रतिभागियों एवं अतिथि का स्वागत विभागाध्यक्ष प्रो. ऋचा रानी यादव ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन आयुष्मान ने दिया। कार्यक्रम में प्रो. सत्य गोपाल, डॉ. कल्पना सिंह, डॉ. अखिलेंद्र कुमार सिंह, डॉ. कमालुद्दीन शेख, प्रशांत राज, मनीष कुमार आदि उपस्थित रहे। हाइब्रिड मोड में आयोजित कार्यशाला में देश के विभिन्न भागों के लगभग 60 प्रतिभागी शामिल हो रहे है।

Happy Friendship day : दोस्त के लिए जां निछावर करने की कहानी मित्रता दिवस

दोस्तों को श्रद्धांजलि के लिए शुरू हुआ friendship day

Varanasi (dil india live).आज पूरी दुनिया में friendship day सेलिब्रेट किया जा रहा है। friendship बैंड, friendship कार्ड, गिफ्ट्स का आदान-प्रदान किया जा रहा है। कहीं दोस्तों की पार्टी हो रही है तो कहीं पिकनिक पार्टी का लुत्फ उठाया जा रहा है। इन सबके बीच एक सवाल है कि आखिर फ्रेंडशिप डे का क्या है इतिहास? इसे क्यों और कब मनाया जाता है?

 दरअसल फ्रेंडशिप डे या मित्रता दिवस अगस्त महीने के पहले रविवार को मनाया जाता है। इस दिन को दोस्ती को समर्पित करने के पीछे भी एक रोचक कहानी है। कहानी कुुछ यूं शुरू होती है एक बार अमेरिका की सरकार ने एक बेेेगुनाह व्यक्ति को सजा-ए-मौत दे दिया था। इस व्यक्ति का एक दोस्त था, जिसने अपने दोस्त की मृत्यु के गम में आत्महत्या कर ली। उनकी दोस्ती की गहराई को सम्मान देते हुए 1935 से अमेरिकी आवाम ने इस दिन को दोस्तों के नाम कर दिया। इस तरह अमेरिका में फ्रेंडशिप डे मनाने की शुरुआत हुई। तय हुआ कि अगस्त केे पहलेेेेेे संडे को friendship day मनाया जाएगा। तब से यह ग्लोबल पर्व देश दुनिया में मनाया जाता है।

ऐसा शायद ही कोई व्यक्ति हो जिसका कोई मित्र न हो, जो दोस्ती की अहमियत न जानता हो। हम सभी की जिंदगी में कम या ज्यादा लेकिन दोस्त जरूर होते हैं, दोस्तों के साथ बिताया समय किसे नहीं अच्छा लगता। खासकर बचपन की दोस्ती तो बहुत गहरी होती है जिनकी यादें सदा के लिए मन में बस जाती है। दोस्ती ही एक ऐसा रिश्ता है जिसे व्यक्ति खुद की मर्जी से चुनता है। बचपन में जाने अनजाने ही कई दोस्त बन जाते हैं, जिनमें से कुछ स्कूल, कॉलेज तक ही साथ निभाते हैं तो कुछ आगे तक आपकी लाइफ में बने रहकर अच्छे-बुरे वक्त में दोस्ती निभाते है। हालांकि ऐसे दोस्त कम ही होते है जो ताउम्र सच्ची दोस्ती निभाएं। इसलिए दोस्त बनाते हुए आपको सतर्कता बरती चाहिए।

सदैव अच्छे दोस्त का करें चयन

दोस्त वे होते हैं जिनकी संगत आपके भविष्य को प्रभावित करती है। बुरी आदतों वाले दोस्तों की संगत आपको व आपके भविष्य को बिगाड़ने की क्षमता रखती है, वहीं अच्छी सोच व आदतों वाले दोस्त आपके व्यक्तित्व व जिंदगी को संवारने में सहायक होते है।

तो, यदि आपके जीवन में भी कोई ऐसा सच्चा दोस्त हो, तो फ्रेंडशिप डे के खास मौके पर अपने दोस्त को स्पेशल महसूस कराना न भूलें। वैसे इस दिन को दोस्तों के साथ सेलेब्रेट किया जाता है। कई लोग दोस्तों के साथ सेलिब्रेट करने के विभिन्न प्लान इस दिन के लिए मनाते हैं। पूरा दिन न सही लेकिन इस दिन जितना संभव हो अपनी व्यस्त दिनचर्या में से कुछ पल अपने दोस्तों के लिए जरूर निकालें।

सारनाथ में किसने मौत को लगाया गले जानिए आखिर युवती ने क्यों उठाया सख्त कदम

पुलिस पहुंची तो घर में फंदे से लटक रही थी युवती की लाश Mohd Rizwan  Varanasi (dil India live)। सारनाथ में एक युवती ने मौत को गले लगाकर अपनी ...