रविवार, 7 अगस्त 2022

Katha:कथा सिर्फ हरि की, बाकी सब व्यथा

करपात्र प्राकट्योत्सव में बोले मुरलीधर महाराज जीवन के सब रस रामकथा में समाहित




Varanasi (dil india live)। कथा तो सिर्फ हरि की है बाकी सब वृथा और व्यथा है। जीवन के सब रस रामकथा में समाहित है बस आवश्यकता है उसमें भक्ति भाव से गोते लगाने की। उक्त उदगार प्रख्यात मानस मर्मज्ञ संत मुरलीधर जी महाराज ने 115 वें करपात्र प्राकट्योत्सव के अवसर पर दुर्गाकुण्ड स्थित मणि मंदिर, धर्मसंघ प्रांगण में चल रहे 27 दिवसीय श्रीराम कथा के 22 वे दिन शनिवार को व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि भगवान राम के चरित्र को हर व्यक्ति अपने जीवन में उतार ले तो स्वतः ही राम राज्य स्थापित हो जाएगा, इसके लिए किसी क्रांति की आवश्यकता नही।  

गुरु की महिमा का बखान करते हुए कहा कि गुरु के चरण नहीं वरन आचरण वंदनीय व अनुकरणीय होता है।

दूसरों का वंदन व सम्मान करने से स्वयं की सकारात्मक शक्ति में विकास होता है।

मुरलीधर जी महाराज ने कहा कि किसी स्थान पर जाने से हमारे मन में शान्ति तथा सकारात्मक शक्ति आए, इसका मतलब उस स्थान पर किसी साधु या संत ने रहकर भगवान का भजन किया होगा। भले ही दुनिया के कई स्थान अपने आप में स्वर्ग कहलाते होंगे लेकिन उस भारत भूमि पर सैकड़ों स्वर्ग भी न्यौछावर है जहाँ संतो, ऋषियों ने जन्म लिया और अपनी तपस्या साधना से इसे स्वर्ग बना दिया। हम बहुत सौभाग्यशाली है जो भारतभूमि में जन्म प्राप्त कर सके।

 कथा के अंत मे धर्मसंघ पीठाधीश्वर स्वामी शंकरदेव चैतन्य ब्रह्मचारी जी महाराज ने भी श्रद्धालुओं को आशीर्वचन दिया।

इससे पूर्व कथा का शुभारंभ व्यासपीठ का पूजन कर हुआ।पंडित जगजीतन पाण्डेय, रामस्वरूप शर्मा, राम गोपालानंद जी महाराज ने श्री राम चरित मानस व व्यास पीठ का पूजन किया। इस अवसर पर मनोज अग्रवाल, रतन लाल गुप्ता, शशि अग्रवाल, विजय मोदी, राजमंगल पाण्डेय, सुमित सराफ आदि शामिल रहे

Sajhi virasat:देश मुश्किल दौर में, इसे बचाना वक़्त की जरूरत: शमा परवीन

हमें वंचितों की आवाज़ बनना होगा: शारदा देवी



Varanasi (dil india live). बदलते दौर में साझी विरासत तथा संवैधानिक एवं धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को कैसे सुरक्षित रखा जाए,  बहुत ही चुनौती एवं जोखिमपूर्ण कार्य है। इस पर बातचीत के लिए स्थानीय समुदाय के साथ एक परिचर्चा का आयोजन राजघाट, वाराणसी में राइज एण्ड एक्ट के तहत किया गया। वक्ताओं ने कहा कि आज देश मुश्किल दौर से गुजर रहा है।भारत मे विभिन्न धर्म और समुदाय के लोग सदियों से आपस में मेल-जोल से रहते आये है पर आज इस परम्परा को नकारने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।हमें यदि इस परंपरा को बचाये रखना है तो गरीबों-मज़लूमों के रोजी-रोटी के सवालों के साथ खड़े होना होगा क्योंकि सही मायने में इन्ही लोगों ने इसे बचाये रखा है।

            शमा परवीन ने कहा कि आज देश में सामाजिक और लोकतांत्रिक मूल्यों का क्षरण हो रहा है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के सपनों के अनुरूप समाज निर्माण नहीं हो रहा है। ऐसे मे सँवैधानिक मूल्यों पर आधारित समाज व साझी विरासत बचाना वक्त की भारी जरूरत है।

              मालती देवी ने कहा कि विकास के नाम पर तमाम लोग उजाड़ दिए गए है और उनका पुनर्वासन भी नहीं किया गया है।सरकार असंवेदनशील है और हमारे पास संघर्ष के अलावा कोई रास्ता नही बचा है। इससे तब ही निपटा जा सकता है जब हममें एकजुटता हो।

             शारदा देवी ने अपने सम्बोधन में कहा कि आज लोगों को रोजगार की जरूरत है पर इसपर सरकारी मशीनरी मौन है ।जो लोग स्मार्ट सिटी के नाम पर उजाड़ दिए गए हैं उनमें से ज्यादातर लोग दर-बदर मारे-मारे फिर रहे हैं।उनका कोई पुरसाहाल नहीं हैं।हमें उनकी आवाज़ बनना होगा।ये तभी सम्भव है जब जाति-धर्म के झगड़े से हम बाहर निकलेंगे।

 कार्यक्रम में आसपास की बस्तियों के तमाम लोग मौजूद रहे, संचालन शमा परवीन और धन्यवाद ज्ञापन इक़बाल अहमद ने किया।

शनिवार, 6 अगस्त 2022

Moharram 8th: अंर्दली बाजार में दुलदुल, अलम, ताबूत का जुलूस कल

Varanasi (dil India live). 8th moharram के मौके पर सैय्यद जियारत हुसैन के अंर्दली बाजार तार गली स्थित आवास से रविवार को दुलदुल अंलम, ताबूत का जुलूस 7 अगस्त को रात्रि 9 बजे उठेगा। जुलूस अपने कदीमी (पुराने) रास्ते से होकर उल्फत बीबी कम्पाउन्ड स्थित स्व.मास्टर जहीर साहब के  इमामबाड़े पर समाप्त होगा। जुलूस में अंजुमन  इमामिया नौहाखवानी व मातम करेंगी। यह जानकारी इरशाद हुसैन "शद्दू"  ने दी है।

Ganga jamuni tahzeeb: मंदिर जैसा इमामबाड़ा

तब हिंदू कुम्हार ने बनाई थी इमाम हुसैन की ताजिया


Varanasi (dil india live). है इमामबाड़ा मगर बनावट मंदिर जैसी है। देखने वाला देखता और सोचता ही रह जाता है कि यह क्या अजूबा है, आखिर मंदिर जैसा इमामबाड़ा क्यों बनाया गया? दरअसल बनारस कि आबो हवा ही कुछ ऐसी है कि कोई मुस्लिम नूर फातेमा शिव का मंदिर बनवाती हैं, तो हिंदू कुम्हार इमाम हुसैन कि आस्था और अकीदत में इमामबाड़ा।

वाराणसी के हरिश्चंद्र घाट स्थित इस अनोखे इमामबाड़े की बुनियाद की कहानी एक हिंदू कुम्हार की अकीदत से जुड़ी हुई है। कर्बला में शहीद हुए इमाम हुसैन से कुम्हार को अकीदत थी। इस मोहब्बत के कारण ही इस इमामबाड़े का नाम कुम्हार का इमामबाड़ा पड़ा। इसमें एक ओर जहां शिया मुस्लिम मजलिस करते हैं तो वहीं हिंदू हाथ जोड़कर अकीदत से फूल चढ़ाते हैं। शहर ही नहीं बल्कि दुनिया का लगभग हर इमामबाड़ा गुंबदनुमा होता है, जो मस्जिद या मकबरे की सूरत में नजर आता है। वहीं हरिश्चंद्र घाट के कुम्हार का इमामबाड़ा मंदिर की तरह दिखता है। मुहर्रम आते ही यहां के हिंदू इसकी साफ-सफाई और रंग-रोगन का काम कराते हैं।

इमामबाड़े का क्या है इतिहास

हरिश्चंद्र घाट स्थित कुम्हार का इमामबाड़ा लगभग डेढ़ सौ साल कदीमी है। इसकी देखरेख एक हिंदू कुम्हार परिवार कर रहा है, तो वहीं सरपरस्ती शिया वर्ग के हाथ में है। इमामबाड़े के मुतवल्ली सैयद आलिम हुसैन रिजवी इमामबारगाह का इतिहास बताते हैं, तकरीबन डेढ़ सौ साल पहले हरिश्चंद्र घाट के पास एक हिंदू कुम्हार परिवार रहता था। कुम्हार का एक बेटा था, जो हर वर्ष मुहर्रम पर मिट्टी की ताजिया बनाया करता था। पिता ने पहले तो बच्चे को ताजिया बनाने से मना किया। जब वह नहीं माना तो उसकी खूब पिटाई की। पिटाई के बाद बच्चा इतना बीमार हुआ कि वैद्य, हकीम भी काम न आए। बेटे को लेकर पिता की चिंता बढ़ने लगी। मंदिर, मस्जिद, मजार पर उसने हाजिरी लगाई, लेकिन कोई फायदा न हुआ। फिर एक दिन कुम्हार ने सपने में देखा कि एक बुजुर्ग उसके सामने खड़े हैं। वह कह रहे हैं कि तेरा बेटा मुझसे अकीदत रखता है। तुमने उसे ताजिया बनाने से रोक दिया, तो वह बीमार पड़ गया है। अगर तुम्हें उससे मोहब्बत नहीं है तो मैं उसे अपने पास बुला लेता हूं। कुम्हार ने स्वप्न में ही अपनी गलती मानते हुए कहा कि बस एक बार आप मुझे माफ करके मेरे बच्चे को ठीक कर दें। इस पर बुजुर्ग ने कहा कि नींद से उठकर देख, तेरा बच्चा खेल रहा है। सैयद आलिम हुसैन अपने बड़े-बुजुर्गो की जुबानी बातों को याद करते हुए बताते हैं कि नींद से जगकर कुम्हार ने देखा कि जो बच्चा गंभीर रूप से बीमार था, वह न केवल पूरी तरह स्वस्थ था, बल्कि बच्चों के साथ खेल भी रहा था। यह नजारा देखकर कुम्हार ने सिर्फ खुश हुआ बल्कि उसकी इमाम हुसैन और कर्बला के शहीदों से अकीदत बढ़ गई।

बना दिया मंदिर जैसा इमामबाड़ा

हिंदू कुम्हार की आस्था के कारण ही इमामबाड़े के निर्माण के समय इसको मंदिर जैसा रूप दिया गया और नाम भी कुम्हार का इमामबाड़ा रखा गया। उसी समय से आस-पास के हिंदू भाइयों की आस्था इमामबाड़े से जुड़ गई। मुहर्रम में जब भी इमामबाड़ा खुलता है, वहां दोनों मजहब के लोग जुटते हैं। इसके अलावा 9 वीं व 10 वीं मुहर्रम का विश्व प्रसिद्ध दूल्हे का जुलूस यहां सात बार सलामी भी देता है। आलिम हुसैन बताते हैं कि उन दिनों अवध के नवाब शहादत हुसैन अपने पिता से नाराज होकर बनारस आ गए थे। उन्हीं की वंशज बाराती बेगम ने कुम्हार के बेटे का इमाम हुसैन के प्रति लगाव देख यह इमामबाड़ा बनवाया। इसकी देख रेख युद्ध-कौशल की शिक्षा देने वाले सैयद मीर हसन के परिवार को सौंपी गई। सैयद आलिम हुसैन और उनका परिवार उन्हीं का वंशज हैं। यह कुनबा डेढ़ सौ साल से कुम्हार के इमामबाड़े की देख रेख कर रहा है।

शुक्रवार, 5 अगस्त 2022

Medical treatment:ब्रेस्ट में गांठ है तो न घबरायें, जांच करायें

‘सम्पूर्णा क्लिनिक’ साबित हो रहा वरदान



Varanasi (dil india live). अध्यापिका स्वाति (40 वर्ष) उस रात नहीं सो पाईं जब उन्हें अपने स्तन पर उभरी गांठ का अहसास हुआ। उन्हें लगा कि कहीं यह स्तन कैंसर तो नहीं। सुबह होते ही वह ‘सम्पूर्णा क्लीनिक’ पहुंची। जांच के बाद डॉक्टर ने जब उन्हें बताया कि यह एक सामान्य गांठ है। कुछ ही दिन में ठीक हो जाएंगी। इसी तरह ममता (38 वर्ष ) को दो वर्ष से ब्रेस्ट में गांठ थी। गांठ में कभी दर्द नहीं हुआ, इस वजह से उन्होंने उसे कभी गंभीरता से भी नहीं लिया। अचानक उनके निप्पल से श्राव होने लगा। उपचार के लिए वह सम्पूर्णा क्लिनिक पहुंची। जांच में जब पता चला कि यह स्तन कैंसर के लक्षण हैं। वह रोने लगी। उन्हें अफसोस हुआ कि उन्होंने ब्रेस्ट में हुई गांठ के प्रति लापरवाही क्यों बरती। समय रहते यदि उपचार कराया होता तो यह दिन आज न देखना होता।

पं. दीनदयाल चिकित्सालय में स्थिति ‘सम्पूर्णा क्लिनिक’ में ऐसे मामले अक्सर देखने को मिलते हैं। इसको लेकर महिलाओं को सावधान एवं सतर्क रहने की आवश्यकता है। सम्पूर्णा क्लिनिक ’की प्रभारी व वरिष्ठ चिकित्सक डा. जाह्नवी सिंह कहती हैं स्तन में बनी कोई भी गांठ को नजरअंदाज करना एक बड़ी मुसीबत को आमंत्रण देने जैसा है। हालांकि हर गांठ से कैंसर नहीं होता है। फिर भी सतर्क रहना चाहिए।


डा. जाह्नवीं कहती है “स्तन कैंसर का प्रमुख लक्षण स्तन में गांठ को माना जाता है, लिहाजा स्तन में गांठ का पता चलते ही आम तौर पर महिलाएं घबरा जाती हैं, जबकि उन्हें घबराना नहीं चाहिए।“ वह बताती है कि आम तौर पर ब्रेस्ट में होने वाले बदलाव पीरियड्स के दौरान, पीरियड्स बंद होने के दौरान अथवा गर्भावस्था के दौरान होते है। दरअसल महिलाओं मे हार्मोन्स के बदलाव व ब्रेस्ट टिशूज में फैट बढ़ने के कारण भी गांठ बन जाती है। कुछ महिलाओं के स्तन में कई छोटी-छोटी गांठ हो जाती है। कुछ में सिर्फ एक बड़ी गांठ बन जाती है। उन्हें चिकित्सक की सलाह पर अपनी जांच करानी चाहिए। 

 छोटी गांठ से हो सकती कैंसर की शुरूआत

 डा. जाह्नवी बताती हैं कि स्तन कैंसर की शुरुआत ब्रेस्ट में छोटी गांठ से भी हो सकती है। शुरूआती स्थिति में चिकित्सक की सलाह पर गांठ की जांच कराकर कैंसर का निदान किया जा सकता है लेकिन इसमें बरती गयी लापरवाही ही बाद में मरीज के लिए बड़ी मुसीबत बन जाती है। "

स्तन की नियमित रूप से खुद करें जांच

डा. जाह्नवी बताती है कि स्तन कैंसर महिलाओं में सर्वाधिक पाया जाने वाला कैंसर है। पहले 40 से 45 वर्ष की महिलाओं के स्तन कैंसर से पीड़ित होने की संभावना सबसे अधिक रहती थी पर अब 30 से 40 वर्ष की महिलाओं में भी इसकी संख्या तेजी से बढ़ रही है। इस संकट से बचने के लिए महिलाओं को इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि उनके स्तन में कहीं कोई गांठ तो नहीं उभर रही। इसके लिए 30 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं को अपने स्तन की जांच हर माह स्वयं करनी चाहिए और वर्ष में एक बार चिकित्सक से उसका परीक्षण कराना चाहिए। गांठ का पता चलते ही फौरन चिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिए ताकि इसका परीक्षण हो सके कि गांठ कैंसर युक्त है या कैंसर मुक्त। स्तन की जांच स्वयं कैसे करें? इस बारे में जानकारी के लिए किसी चिकित्सक अथवा पं. दीन दयाल उपाध्याय चिकित्सालय में स्थित ‘सम्पूर्णा क्लिनिक ’में सम्पर्क किया जा सकता है। 

 यह है खतरे की घंटी

स्तन में किसी तरह की गांठ

निप्पल से किसी तरह का श्राव

निप्पल का अंदर की ओर धंसना

स्तन की स्किन संतरे के छिलके की तरह होना

किसी एक स्तन के आकार में परिवर्तन

Moharram 5th: पांचवीं मोहर्रम पर पेश हुआ आंसुओं का नजराना

मारा गया हैं तीर से बच्चा रबाब का, बच्चा भी वो था जो दिल था रबाब का...


Varanasi (dil india live). कहती थी ये शीरी खुले सर हाय ए हुसैना, किस शान से मेहमां मेरे घर आये हुसैना....व, मारा गया हैं तीर से बच्चा रबाब का, बच्चा भी वो था जो दिल था रबाब का...। यह दर्द भरा नौहा जब दरगाहें फातमान में शहनाई की धुनों पर गूंजा तो बरबस ही लोगों के ज़ेहन में भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की याद ताजा हो गई।

दरअसल पांचवीं मोहर्रम को भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां शहनाई के जरिए कर्बला के शहीदों को आंसुओं का नजराना पेश करते थे। पांचवीं मोहर्रम को यह रवायत एक बार फिर अदा की गई। इस दौरान उस्ताद के परिवार के आफाक हैदर खाँ, ज़ाकिर हुसैन, उस्ताद नाज़िम हुसैन, नासिर अब्बास, अखलाक हुसैन आदि ने शहनाई के जारिए आंसुओं का नजराना पेश किया। यहां कार्यक्रम का संचालन शकील अहमद जादूगर ने किया।

इससे पूर्व वक्फ मस्जिद व इमामबाड़ा मौलाना मीर इमाम अली, छत्तातला, गोविंदपुरा से अलम का जुलूस उठया मुनाजिर हुसैन मंजू की अगुवाई में उठाया गया। जुलूस से पूर्व मुजफ्फरपुर के मर्सिया ख्वां वज्जन खां के बेटे ने सवारी पढी। इसके अलावा जुलूस में भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के परिजनों ने शहनाई पर मातमी धुन पेश किया। जुलूस विभिन्न क्षेत्रों से होता हुआ दरगाहें फातमान पहुंच कर सम्पन्न हुआ।

गुरुवार, 4 अगस्त 2022

Moharram 4rt: जैदी दरें हुसैन पर झुकती है कायनात...

दर्द भरे नौहों संग निकली कुम्हार की ताजिया, हुआ मातम

Varanasi (dil india live). जैदी दरे हुसैन पर झुकती है कायनात... नासिर हुसैन जैदी के इस दर्द भरे नौहे के साथ चार मोहर्रम को कुम्हार के ताजिये का जुलूस शिवाला में आलीम हुसैन रिजवी के इमामबाड़े से उठा। जुलूस गौरीगंज स्थित काजिम रिजवी के इमामबाड़े पर पहुंच कर समाप्त हुआ। जुलूस में रास्ते भर अंजुमनों ने नौहाखवानी व मातम का नजराना पेश किया। जुलूस की अगुवाई सैयद आलिम हुसैन रिजवी कर रहे थे।

चार मोहर्रम को ही चौहट्टा में इम्तेयाज हुसैन के मकान से दिन में जुलूस उठकर इमामबाड़ा तक गया। चौथी मुहर्रम को ही तीसरा जुलूस अलम व दुलदुल का चौहट्टा लाल खाँ इमामबाड़ा से रात में उठकर अपने कदीमी रास्तों से होता हुआ सदर इमामबाड़ा पहुंचकर समाप्त हुआ।

पांचवीं मोहर्रम को वक्फ मस्जिद व इमामबाड़ा मौलाना मीर इमाम अली, छत्तातला, गोविंदपुरा से अलम का जुलूस उठया जाएगा, जिसमें मुजफ्फरपुर के मर्सिया ख्वां वज्जन खां के बेटे सवारी पढ़ेंगे। इसके अलावा जुलूस में भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के परिजन शहनाई पर मातमी धुन पेश करेंगे। ऐ से ही छठवीं मोहर्रम को विश्व प्रसिद्द 40 घंटे तक चलने वाले दुलदुल का जुलूस कच्ची सराय (दालमंडी) इमामबाड़े से शाम 5 बजे उठेगा। इस जुलूस में हाथी, घोड़ा, ऊंट के साथ कई मश्शूर बैंड भी मौजूद रहते हैं जो मातमी धुन बजाते हैं। यह जुलूस कच्चीसराय से उठकर लल्लापुरा स्थित दरगाह फातमान जाता है। उसके बाद वापस आकर चौक होता हुआ मुकीमगंज, प्रह्लादघाट, कोयला बाजार, चौहट्टा होते हुए लाट सरैया जाता है और फिर वहां से 8 मोहर्रम की सुबह वापस आकर कच्ची सराय के इमामबाड़े में ही समाप्त होता है। यह जुलूस लगातार 6 से 8 मोहर्रम तक चलता रहता है।

सारनाथ में किसने मौत को लगाया गले जानिए आखिर युवती ने क्यों उठाया सख्त कदम

पुलिस पहुंची तो घर में फंदे से लटक रही थी युवती की लाश Mohd Rizwan  Varanasi (dil India live)। सारनाथ में एक युवती ने मौत को गले लगाकर अपनी ...