बुधवार, 27 मार्च 2024

ज़कात न देने से होता है माल बर्बाद



Varanasi (dil india live). ज़कात देना हर साहिबे नेसाब पर वाजिब है। साहबे नेसाब वो है जिसके पास साढ़े सात तोला सोना या साढ़े बावन तोला चांदी में से कोई एक हो, या फिर बैंक, बीमा, पीएफ या घर में इतने के बराबर साल भर से रकम रखी हो तो उस पर मोमिन को ज़कात देना वाजिब है। ज़कात शरीयत में उसे कहते हैं कि अल्लाह के लिए माल के एक हिस्से को जो शरीयत ने मुकर्रर किया है मुसलमान फक़़ीर को मालिक बना दे। ज़कात की नीयत से किसी फक़़ीर को खाना खिला दिया तो ज़कात अदा न होगी, क्योंकि यह मालिक बनाना न हुआ। हां अगर खाना दे दे कि चाहे खाये या ले जाये तो अदा हो गई। यूं ही ज़कात की नियत से कपड़ा दे दिया तो अदा हो गई। ज़कात वाजिब के लिए चंद शर्ते है : मुसलमान होना, बालिग होना, आकि़ल होना, आज़ाद होना, मालिके नेसाब होना, पूरे तौर पर मालिक होना, नेसाब का दैन से फारिग होना, नेसाब का हाजते असलिया से फारिग होना, माल का नामी होना व साल गुज़रना। आदतन दैन महर का मोतालबा नहीं होता लेहाज़ा शौहर के जिम्मे कितना दैन महर हो जब वह मालिके नेसाब है तो ज़कात वाजिब है। ज़कात देने के लिए यह जरूरत नहीं है कि फक़़ीर को कह कर दे बल्कि ज़कात की नीयत ही काफी है।

फलाह पाते हैं जो ज़कात देते है

नबी-ए-करीम ने फरमाया जो माल बर्बाद होता है वह ज़कात न देने से बर्बाद होता है और फरमाया कि ज़कात देकर अपने मालों को मज़बूत किलों में कर लो और अपने बीमारों को इलाज सदक़ा से करो और बला नाज़िल होने पर दुआ करो। रब फरमाता है कि फलाह पाते हैं वो लोग जो ज़कात अदा करते है। जो कुछ रोज़ेदार खर्च करेंगे अल्लाह ताला उसकी जगह और दौलत देगा, अल्लाह बेहतर रोज़ी देने वाला है। आज हम और आप रोज़ी तो मांगते है रब से मगर खाने कि, इफ्तार कि खूब बर्बादी करके गुनाह भी बटौरते है, इससे हम सबको बाज़ आना चाहिए।

उन्हे दर्दनाक अज़ाब की खुशखबरी सुना दो

अल्लाह रब्बुल इज्जत फरमाता है जो लोग सोना, चांदी जमा करते हैं और उसे अल्लाह की राह में खर्च नहीं करते उन्हें दर्दनाक अज़ाब की खुशखबरी सुना दो। जिस दिन जहन्नुम की आग में वो तपाये जायेंगे और इनसे उनकी पेशानियां, करवटें और पीठें दागी जायेगी और उनसे कहा जायेगा यह वो दौलत हैं जो तुमने अपने नफ्स के लिए जमा किया था। ऐ अल्लाह तू अपने हबीब के सदके में हम सबको रोज़ा रखने और ज़कात देने की तौफीक दे..आमीन

मौलाना शमशुद्दीन साहब
{इमाम, जामा मस्जिद कम्मू खान, डिठोरी महाल, वाराणसी}


मंगलवार, 26 मार्च 2024

आज इमाम हसन की यौमे पैदाइश मना रहा है सारा जहाँ, जगह जगह हो रही है इमाम की फातेहा

Varanasi (dil india live). आज इमाम हसन की यौमे पैदाइश मना रहा है सारा जहाँ ‌‌-जगह जगह हो रही है इमाम की फातेहा वाराणसी। 15 रमज़ान 3 हिजरी को यानी आज से 1442 साल पहले नबी के नवासे हज़रत इमाम ह़सन की पैदाइश मदीना शरीफ़ में हुई थी। जो ह़ज़रते अ़ली के बड़े बेटे, और ह़ज़रते इमाम ह़ुसैन के बड़े भाई हैं। वालिदा का नाम ज़नाबे फ़ातिमा हैं। आज इमाम हसन की यौमे पैदाइश मनाई जा रही है, जगह जगह इमाम हसन की फातेहा हो रही है। हमारे नबी (स.) ह़ज़रत इमाम ह़सन से बहुत ही मोह़ब्बत करते थे। कभी आपको अपने कंधों पर घुमाते थे। तो कभी जब ह़ज़रते ह़सन नमाज़ की ह़ालत में प्यारे नबी के कंधों पर बैठ जाते तो नबी (स.) सज्दे से सर नहीं उठाते थे। कि कहीं आपको चोट ना लग जाए। कभी आपको देखकर फ़रमाते कि जन्नत के नौजवानों का सरदार आ रहा है। ह़ज़रते ह़सन बहुत ही ज़्यादा अदब वाले थे। कभी अपनी मां ह़ज़रते फ़ातिमा के साथ खाना नहीं खाया। इस डर की वजह से कहीं ऐसा ना हो की मां को कोई चीज़ खाते वक़्त पसंद आए और उनसे पहले मेरा लुक़्मा उस चीज़ की तरफ़ बढ़ जाए। आप अपने वालिद के दौरे ख़िलाफ़त में कूफ़ा गए थे और वालिद के इंतक़ाल के बाद बाकी दिन मदीना शरीफ़ आकर गुजा़रे। आप को ज़हर देकर शहीद कर दिया गया था। आपकी उम्र 48 साल हुई। मदीना शरीफ़ के क़ब्रिस्तान जन्नतुल बक़ी में आप को दफ़न किया गया। अल्लाह तआ़ला आपके सदके़ हमें दुनिया और आख़िरत में कामयाबी अता फ़रमाए। (आमीन)

जानिए रमज़ान में किस बातों का रखा जाता है खास ख्याल



Varanasi (dil india live).
 रमजान हिजरी कलैंडर का 9 वां महीना है। रमजान वो महीना है जिसके आते ही फिज़ा में नूर छा जाता है। चोर चोरी से दूर होता है, बेहया अपनी बेहयाई से रिश्ता तोड़ लेता है, मस्जिदें नमाज़ियों से भर जाती हैं। लोगों के दिलों दिमाग में बस एक ही बात रहती है कि कैसे ज्यादा से ज्यादा इबादत की जाये। फर्ज़ नमाज़ों के साथ ही नफ्ल और तहज्जुद पर भी लोगों का ज़ोर रहता है। अमीर गरीबों का हक़ अदा करते हैं, पास वाले अपने पड़ोसियों का, कोई भूखा न रहे, कोई नंगा न रहे, इस महीने में इस बात का खास ख्याल रखा जाता है। पता ये चला कि हक़ की जिन्दगी जीने की रमज़ान हमे जहां तौफीक देता है। वहीं गरीबो, मिसकीनों, लाचारों, बेवा, और बेसहरा वगैरह की ईद कैसे हो, कैसे उन्हें उनका हक़ और अधिकार मिले यह रमज़ान ने पूरी दुनिया को दिखा दिया, सिखा दिया। यही वजह है कि रमज़ान का आखिरी अशरा आते आते हर साहिबे निसाब अपनी आमदनी की बचत का ढ़ाई फीसदी जक़ात निकालता है। और दो किलों 45 ग्राम वो गेंहू जो वो खाता है उसका फितरा देता है।

सदका-ए-फित्र ईद की नमाज़ से पहले हर हाल में मोमिनीन अदा कर देता है ताकि उसका रोज़ा रब की बारगाह में कुबुल हो जाये, अगर नहीं दिया तो तब तक उसका रोज़ा ज़मीन और आसमान के दरमियान लटका रहेगा जब तक सदका-ए-फित्र अदा नहीं कर देता। रब कहता है कि 11 महीना बंदा अपने तरीक़े से तो गुज़ारता ही हैतो एक महीना माहे रमज़ान को वो मेरे लिए वक्फ कर दे। परवरदिगारे आलम इरशाद फरमाते है कि माहे रमज़ान कितना अज़ीम बरकतों और रहमतो का महीना है इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि इस पाक महीने में कुरान नाज़िल हुआ।इस महीने में बंदा दुनिया की तमाम ख्वाहिशात को मिटा कर अपने रब के लिए पूरे दिन भूखा-प्यासा रहकर रोज़ा रखता है। नमाज़े अदा करता है। के अलावा तहज्जुद, चाश्त, नफ्ल अदा करता है इस महीने में वो मज़हबी टैक्स ज़कात और फितरा देकर गरीबों-मिसकीनों की ईद कराता है।अल्लाह ने हदीस में फरमया है कि सिवाए रोज़े के कि रोज़ा मेरे लिये है इसकी जज़ा मैं खुद दूंगा। बंदा अपनी ख्वाहिश और खाने को सिर्फ मेरी वजह से तर्क करता है। यह महीना नेकी का महीना है इस महीने से इंसान नेकी करके अपनी बुनियाद मजबूत करता है। ऐ मेरे पाक परवर दिगारे आलम, तू अपने हबीब के सदके में हम सबको रोज़ा रखने कि तौफीक अता कर... आमीन।


                 मौलाना हसीन अहमद हबीबी 

( इमाम, शाही मुगलिया मस्जिद, बादशाह बाग, वाराणसी)

बनारस की फिजां में घुली होली की मस्ती, गलियों से लेकर गंगा घाट तक फागुन का उल्लास




Varanasi (dil india live). होलिका दहन के साथ ही बनारस की फिजां में होली की मस्ती घुली हुई नज़र आयी। गलियों से लेकर गंगा घाट तक फागुन का उल्लास हर किसी के सिर चढ़कर बोलता दिखाई दिया। सुबह से ही होली खेलने की शुरुआत हो गई जो दोपहर तक जारी रही उसके बाद शाम में अबीर और गुलाल की होली परमपरानुसार जो शुरु हुई वो लगातार जारी है। भद्रा की समाप्ति के बाद रविवार की मध्य रात्रि के उपरांत मुहूर्त काल में ढोल नगाड़ों की थाप, हर-हर महादेव के जयघोष के बीच होलिका दहन किया गया। घाट पर हुलियारों की टोली और काशीवासियों ने जमकर अबीर-गुलाल उड़ाए। किशोर-युवाओं का हुजुम ‘जोगीरा, सारारारा... गाते- हुए शरारती मूड में आ गया। सुबह से कहीं होरियारों की टोली तो कहीं डीजे की धुन पर थिरकते युवा काशिका जोश के साथ मस्ती में डूबते-उतराते रहे। घरों से शुरू हुआ उत्सव का आनंद दिन चढ़ने के साथ ही सड़कों पर बिखरने लगा। घरों की रसोई पकवान की सुगंध से निहाल हो उठे, तो बच्चों ने भी धमाल मचाने की तैयारियां शुरू कर दीं। किसी ने पिचकारियों में रंग भरे तो किसी ने गुब्बारों में।होली के रंगों में डूबे युवा और बच्चे मस्ती की तरंग में जगह-जगह डीजे की धुन पर पारंपरिक और भोजपुरी होली गीतों पर थिरक रहे थे। जन-जन के मन के बांध तोड़कर होली का उल्लास और उमंग का रंग दिन चढ़ने के साथ और चटख होता गया। घर से गलियों तक फाग के रंग बरसे तो नख से शिख तक रंगों से सराबोर हो उठे। क्या बुजुर्ग क्या बच्चे हर किसी पर होली का रंग ऐसा चढ़ा कि चेहरा तक पहचानना मुश्किल हो गया। बनारस का कोना-कोना रंगों में भीग गया। घरों होली की शुरूआत हुई तो बच्चों ने छत, बॉलकनी और बरामदों से हर आने-जाने वालों पर रंगों की बौछार की। किसी को रंग भरे गुब्बारे से मारा तो किसी पर अबीर उड़ाए। जो भी मिला उसको रंगों से सराबोर किए बिना नहीं छोड़ा। गोदौलिया, सोनारपुरा, गौरीगंज, शिवाला, अस्सी, भदैनी, भेलूपुरा, लंका, सामनेघाट, नरिया, डीरेका, मंडुवाडीह, कमच्छा से लेकर वरुणा पार इलाके में होली के रंग-गुलाल जमकर उड़े। सड़कों और गलियों में डीजे की धुन पर नाचते-गाते युवाओं ने खूब धमाल मचाया। गंगा किनारे रहने वालों ने गंगा किनारे घाट पर होली खेली। हालांकि नावों पर प्रतिबंध के कारण गंगा उस पार नहीं जा सके।होली का रंग बनारसियो ने सुबह से गंगा घाटों पर जमी भीड़ धीरे-धीरे कम होने लगी। डीजे सॉन्ग पर नाच रहे लोगों को भी पुलिस ने हटाना शुरू कर दिया। शाम को होने वाली गंगा आरती के पूर्व दशाश्वमेध सहित विभिन्न घाटों की सफाई के चलते भीड़ को कम कराया गया। लोगों की सुविधा को देखते हुए दोपहर बाद कुछ क्षेत्रों में पेट्रोल पंप भी खोल दिए गए। सोमवार की सुबह से ही बनारसस की विश्व प्रसिद्ध होली खेलने के लिए यहां के लोग तैयार हो गए थे। जैसे-जैसे सूरज आसमान में चढ़ता गया वैसे-वैसे गंगा घाटों पर भीड़ भी बढ़ती गई। सबसे ज्यादा युवाओं की उपस्थिति रही। रंगोत्सव में देसी-विदेशी पर्यटकों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। होली पर हर साल विदेशी पर्यटकों के साथ सेल्फी लेने की होढ़ मची रहती है। इसमें पर्यटकों को भी काफी खुशी मिलती है। अस्सी से लेकर दशाश्वमेध सहित उसके आगे के घाटों पर हर्षोल्लास के साथ होली का त्योहार मनाया गया। डीजे की धुन पर लोगों ने जमकर डांस किया। दोपहर करीब दो बजे के बाद पुलिस भी लोगों को हटाने लगी। घाटों पर भीड़ का दबाव देखते हुए प्रशासन भी दुरुस्त दिखा। जल पुलिस माइक के माध्यम से लोगों को अगाह कर रही थी। गंगा में ज्यादा दूर तक नहीं जाने का निर्देश दिया जा रहा था।

गंगा आरती से पहले घाटों की सफाई

नगर निगम की ओर से घाटों की सफाई के लिए हर बार की तरह उचित व्यवस्था की गई है। देर शाम होने वाली गंगा आरती के लिए दोपहर बाद घाटों की सफाई होने लगी। इससे पूर्व पर्यटकों ने खूब होली खेली। दूसरी तरफ, दशाश्वमेध सहित विभिन्न घाटों पर लोगों ने गंगा स्नान कर दान-पुण्य किया। वाराणसी घूमने आए पर्यटक गंगा आरती के आकर्षण को भी निहारेंगे।

सोमवार, 25 मार्च 2024

नीमा चिकित्सकों ने सामूहिक इफ्तार पार्टी का किया आयोजन

हमें फख्र है के अल्लाह ने हमे Ramadan की नेमत अता की 



Varanasi (dil india live)। नेशनल इंटीग्रेटेड मेडिकल एसोसिएशन (नीमा) वाराणसी के तत्वावधान में शिवपुर स्थित नीमा भवन में सामूहिक रोजा इफ्तार पार्टी का आयोजन किया गया। इसमें बङी संख्या में चिकित्सकों ने हिस्सा लिया। इस अवसर पर डॉक्टर एम अजहर ने कहा कि रोजा मुसलमानों को रब की तरफ से दिया गया बेशकीमती तोहफा है जो गुनाहगारों की बख्शीश का जरिया है। तमाम मुसलमानो को चाहिए के हम सब इसकी दिल से कद्र करें और अपने रब को राजी करें। अल्लाह का इन्सानों पर बहुत एहसानात हैं। हमें फख्र है के अल्लाह ने हमे ये नेमत अता की ताकि हम सब उसकी नेमतो की कद्र करें। डॉक्टर फैसल रहमान ने कहा कि रोजा सिर्फ भूखे प्यासे रहने का नाम नहीं बल्कि जुबान, निगाह, बदकलामी से बचने का भी नाम है। रोज़ा ये एहसास दिलाता है कि हमे सिर्फ अपना पेट नही देखना है बल्कि गैरों की खुशियों को भी अपनी खुशी में शामिल करना है। तमाम मुसलमानो को चाहिए के अपने आस-पास पङोस मे रहने वाले गरीबों और रिश्तेदारों को भी इफ्तार का सामान मुहैया करायें। हमे चाहिए के हम सब बहैसियत एक मुसलमान होने के सबसे पहले एक अच्छा नेक इन्सान बने तथा रब की नेमतों का उठते बैठते शुक्र अदा करते रहें। इस दौरान अजान की सदाएं गूंजते ही सभी रोजेदारों ने एक साथ रोजा इफ्तार किया। इस मौके पर दस्तरख्वान पर तरह तरह के व्यंजन सजे हुए थे और सभी धर्मों के लोग इकट्ठा थे, इससे वहां गंगा जमुनी तहजीब दिखाई दे रही थी। नीमा भवन में ही मगरिब की नमाज़ अदा कर मुल्क में अमन भाईचारा कायम रहने के लिए अल्लाह से दुआ की गई।

          इस अवसर पर डॉक्टर एम अजहर, डॉक्टर मुहम्मद अरशद, डॉक्टर एस आर सिंह, डॉक्टर फैसल रहमान, डॉक्टर अशफाकुल्लाह, डॉक्टर रियाज अहमद, डॉक्टर एहतेशामुल हक, डॉक्टर विनय पाण्डेय, डॉक्टर सगीर अशरफ, डॉक्टर मुबीन अख्तर, डॉक्टर नसीम अख्तर, डॉक्टर अरुण कुमार गुप्ता, डॉक्टर अरुण सिंह, डॉक्टर मुख्तार अहमद, डॉक्टर आर के यादव, डॉक्टर ए के सिंह, डॉक्टर अनिल गुप्ता, डॉक्टर कैलाश त्रिपाठी, डॉक्टर शलीलेश मालवीय, डॉक्टर रौशन अली, डॉक्टर फिरोज अहमद इत्यादि बडी संख्या में चिकित्सकों की उपस्तिथि थी।

moullana मोहम्मद जमील Varanasi के नये शहर काज़ी बनाए गए





Varanasi (dil india live). शहर काज़ी मौलाना गुलाम यासीन साहब के इंतेकाल से बाद काज़ी‌‌-ए-शहर बनारस का पद खाली हो गया था। उस पद पर मोहददीसे कबीर मौलाना जियाउल मुस्तफा रज़वी क़ादरी साहब ने अशफाकनगर निवासी बनारस के मशहूर उलेमा मौलाना मोहम्मद जमील अहमद को शहर काज़ी बनारस बनाए जाने का ऐलान किया है। यह फैसला बरेली शरीफ के प्रमुख अल्लामा मौलाना मुफ्ती असजद रज़ा खां के हवाले से किया गया हैं। मौलाना जमील साहब के नाम के ऐलान के साथ ही यह उम्मीद भी जताई गई है कि वो पूरे बनारस को साथ लेकर चलेंगे और हक पर रहेंगे। इस दौरान अहले सुनन्त वल जमात खासकर बरेलवी उलेमाओ से अपील की गई है की नए शहर काज़ी के फैसले को माने। 

गौरतलब हो कि देश-दुनिया में मशहूर व मारूफ काजी-ए-शहर बनारस मौलाना मुफ्ती गुलाम यासीन साहब का जुमेरात की शाम मगरिब की नमाज के बाद इंतकाल हो गया था। उनके इंतकाल से समूचे पूर्वांचल खासकर बरेलवी मुस्लिमों में अफसोस की लहर दौड़ गई थी। जुमे की नमाज के बाद उन्हें सुपुर्द-ए-खाक किया गया था। शहर काजी तकरीबन 90 साल के थे। यह भी पता हो कि मौलाना जमील अहमद साहब ने ही पूर्व शहर काजी मौलाना गुलाम यासीन साहब के जनाजे की बजरडीहा में नमाज अदा करायी थी। इसके बाद उन्हे सुपुर्दे खाक किया गया था। मौलाना जमील अहमद एक सुलझे हुए नेक उलेमा में शुमार हैं। बरेलवी विचारधारा में शहर काज़ी बरेली शरीफ के खलीफा बरेली शरीफ दरगाह प्रमुख ही नियुक्त करते हैं। इसके लिए उलेमा की दीनी तालीम और सलाहियत देखी जाती है। पूर्व शहर काज़ी मौलाना मुफ्ती गुलाम यासीन साहब को मुफ्ती ए आज़म हिंद के खलीफा ने शहर काज़ी बनाया था। इस पद के लिए तालीम, सलाहियत और तमाम अच्छाईयां देखी जाती है। जानकार बताते हैं कि आजादी के बाद वो बनारस के पहले शहर काज़ी बने थे। मौलाना जमील दूसरे शहर काज़ी हैं। आज़ादी के पहले हजरत अलवी शहीद, याकूब शहीद, लाट्शाशाही बाबा वगैरह भी अपने अपने दौर के शहर काज़ी थे। 

रोजेदारों के लिए समुद्र की मछलियां करती हैं दुआएं

रोजेदार के मुंह की महक अल्लाह को मुश्क से ज्यादा पसंद है


Varanasi (dil india live )। फरमाने रसूल (स.) है कि रमजान अल्लाह का महीना है और उसका बदला भी रब ही देंगा। यही वजह है कि रमजान का रोज़ा बंदा केवल रब की रज़ा के लिए ही रखता है। रोज़ा वो इबादत है जो दिखाई नहीं देती बल्कि उसका पता या तो रब जानता है या फिर रोज़ा रखने वाला। रमजान में जब एक मोमिन रोज़ा रखने की नियत करता है तो वो खुद ब खुद गुनाहों से बचता दिखायी देता हैं। उसे दूसरों की तकलीफ़ का पता भूखे प्यासे रहकर रोज़ा रखने पर कहीं ज्यादा होता है। रमजान का अन्य महीनों पर फजीलत हासिल है। हजरत अबू हुरैरा (रजि.) के अनुसार रसूल अकरम (स.) ने इरशाद फरमाया, कि माहे रमजान में पांच चीजें विशेष तौर पर दी गयी है, जो पहली उम्मतों को नहीं मिली थी। पहला रोजेदार के मुंह की महक अल्लाह को मुश्क से ज्यादा पसंद है। दूसरे रोजेदार के लिए समुद्र की मछलियां भी दुआ करती हैं और इफ्तार के समय तक दुआ में व्यस्त रहती हैं। तीसरे जन्नत हर दिन उनके लिए आरास्ता की जाती है। अल्लाह फरमाता है कि करीब है कि मेरे नेक बंदे दुनिया की तकलीफेंअपने ऊपर से फेंक कर तेरी तरफ आवें। चौथे इस माह में शैतान कैद कर दिये जाते हैं और पांचवें रमजान की आखिरी रात में रोजेदारों के लिए मगफिरत की जाती है। सहाबा ने अर्ज किया कि शबे मगफिरत शबे कद्र है। फरमाया- नहीं, ये दस्तूर है कि मजदूर का काम खत्म होने के वक्त मजदूरी दी जाती है। हजरत इबादा (रजि) कहते हैं कि एक बार अल्लाह के रसूल (स.) ने रमजान उल मुबारक के करीब इरशाद फरमाया कि रमजान का महीना आ गया है, जो बड़ी बरकतवाला है। हक तआला इसमें तुम्हारी तरफ मुतव्ज्जो होते हैं और अपनी रहमते खास नाजिल फरमाते हैं। गलतियों को माफ फरमाते हैं। दुआ को कबूल करते हैं। बदनसीब है वो लोग जो इस माह में भी अल्लाह की रहमत से महरूम रहे, रोज़ा नहीं रखा, तरावीह नहीं पढ़ी, इबादत में रातों को जागे नहीं। ऐ परवरदिगारे आलम तू अपने हबीब के सदके में हम सबको रमज़ान का रोज़ा रखने की तौफीक अता फरमा...आमीन

               मौलाना साकीबुल कादरी
(इंचार्ज मदरसातुन्नुर, मकबूल आलम रोड, वाराणसी)

आधी रात को गूंजा Happy Christmas, merry Christmas..., कटी केक, गूंजा कैरोल गीत

ओहो प्यारी रात, ओहो न्यारी रात, खुशी की रात आयी... काशी से रोम तक मसीही समुदाय ने की प्रभु यीशु के जन्म की अगवानी   मंगलवार की आधी रात को फि...