शनिवार, 11 दिसंबर 2021
भारत विकास परिषद सत्यम ने बांटी खिचड़ी
दिलीप कुमार यानी फिल्म जगत का ध्रूव तारा
दमदार अभिनय सदा रही पहचान
सिने प्रेमियों के दिलों में बसे हैं ट्रेजडी किंग
दिलीप कुमार के जन्मदिवस 11 दिसंबर पर खास
वाराणसी11 दिसंबर (dil india live)। बॉलीवुड में दिलीप कुमार ऐसी शख्सियत के तौर पर याद किया जाता है, जिन्होंने दमदार अभिनय और जबरदस्त संवाद अदायगी से सिने प्रेमियों के दिल पर अपनी अमिट छाप छोड़ी।11 दिसंबर 1922 को पेशावर अब पाकिस्तान में जन्में युसूफ खान उर्फ दिलीप कुमार अपनी माता-पिता की 13 संतानों में तीसरी संतान थे।उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पुणे और देवलाली से हासिल की ।इसके बाद वह अपने पिता गुलाम सरवर खान कि फल के व्यापार में हाथ बंटाने लगे। कुछ दिनों के बाद फल के व्यापार में मन नही लगने के कारण दिलीप कुमार ने यह काम छोड़ दिया और पुणे में कैंटीन चलाने लगे।
वर्ष 1943 में उनकी मुलाकात बांबे टॉकीज की व्यवस्थापिका देविका रानी से हुयी जिन्होंने उनकी प्रतिभा को पहचान मुंबई आने का न्यौता दिया।पहले तो दिलीप कुमार ने इस बात को हल्के में लिया लेकिन बाद में कैंटीन व्यापार में भी मन उचट जाने से उन्होंने देविका रानी से मिलने का निश्चय किया। देविका रानी ने युसूफ खान को सुझाव दिया कि यदि वह अपना फिल्मी नाम बदल दे तो वह उन्हें अपनी नई फिल्म.ज्वार भाटा बतौर अभिनेता काम दे सकती है ।देविका रानी ने युसूफ खान को वासुदेव,जहांगीर और दिलीप कुमार में से एक नाम को चुनने को कहा ।वर्ष 1944 में प्रदर्शित फिल्म ज्वार भाटा से बतौर अभिनेता दिलीप कुमार ने अपने सिने करियर की शुरूआत की।
देखिये इन बच्चों का हुनर
नन्हें-मुन्ने बच्चों ने निकाली शिव बारात
वाराणसी10 दिसंबर(dil india live)।"विश्वनाथ कॉरिडोर पखवाड़ा" के तहत कम्पोज़िट विद्यालय खानपुर विकासखंड चिरईगांव के नन्हे-मुन्ने बच्चों ने शिव बारात निकाल कर अपने भीतर छुपे हुनर से लोगों को रुबरू कराया। कार्यक्रम का नेतृत्व विद्यालय की प्रधानाचार्या इंदिरा सिंह ने तथा साज सज्जा नीलिमा प्रभाकर तथा निर्देशन का कार्य विद्यालय की सहायक पूजा तिवारी, मालती यादव ने किया।
अंत मे बच्चो का उत्साहवर्धन उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ (पंजियन 1160) के जिलाध्यक्ष महेंद्र बहादुर सिंह ने करते हुए कहा कि हर बच्चे के भीतर एक कलाकार छुपा होता है। जरूरत केवल बच्यों को प्रोत्साहन का है। अगर प्रोत्साहन मिलें तो वो अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा लेते हैं।
शुक्रवार, 10 दिसंबर 2021
प्लास्टिक कचरा प्रबंधन एवं पर्यावरण समस्या पर कार्यशाला
वाराणसी 10 दिसंबर (dil india live)।“प्लास्टिक कचरा प्रबंधन एवं पर्यावरण समस्या " पर एक दिवसीय कार्यशाला आर्य महिला पीजी कॉलेज इतिहास विभाग में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार एवं उत्तर प्रदेश सरकार, जी.आई.जेड (GIZ) इंडिया एवं लक्ष्य के तत्वाधान में "प्लास्टिक कचरा प्रबंधन एवं पर्यावरण समस्या" विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया ।
मुख्य अतिथि डॉ. केशरी नंदन शर्मा ( विधि संकाय , काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी ) ने प्लास्टिक के सामानों के उपयोग एवं दुरूपयोग की चर्चा करते हुए पर्यावरण की समस्या से अवगत कराया। प्लास्टिक से बने हुए उत्पाद आज पर्यावरण को बहुत ही नुकसान पहुंचा रहे हैं, वर्तमान में गंभीर बीमारियों के प्रभाव जो दिखाई दे रहा है , वह प्लास्टिक कचरा से उत्पन्न प्रदूषण के कारण से ही हो रहा है, इन्होने आज 10 दिसम्बर विश्व मानवाधिकार दिवस के अवसर पर हम सभी को भारत सरकार के द्वारा प्लास्टिक कचरा निस्तारण के प्रावधानों और स्वच्छ वातावरण प्रदान किये जाने के साथ इस स्वच्छ वातावरण में जीने के अधिकारों के बारें में भी अवगत कराया ।
इस कार्यशाला के द्वितीय सत्र के वक्ता डा. तारकेश्वर नाथ तिवारी ( पर्यावरण अध्ययन केंद्र, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी ) ने पर्यावरण के विविध आयामों की चर्चा करते हुए वातावरण को नुकसान पहुंचाने वाले हानिकारक तत्वों के बारे में चर्चा करते हुए प्लास्टिक कचरा के निस्तारण के बारे में बताया कि यदि प्लास्टिक बैग , पानी की बोतल एवं प्लास्टिक के अन्य उत्पाद जिसे दुबारा उपयोग में नहीं लाया जा सकता तो उसके स्थान पर पुनः प्रयोग की जाने वाली वस्तु का उपयोग किया जाना चाहिए । कार्यक्रम संयोजक डॉ. नरेश सिंह ने पर्यावरण की गंभीर समस्याओं से अवगत कराते हुए जीवन के लिए अनुकूल वातावरण के बारे में जानकारी प्रदान की । कार्यक्रम का संचालन डॉ. श्वेता सिंह ने किया एवं डॉ. बृजबाला सिंह (कार्यवाहक प्राचार्या ) ने आज की पीढ़ी के लिए आवश्यक जिम्मेदारी सौंपा की वे अपने घर और पड़ोस का कचरा प्रबंधन के प्रति जागरूक करें, डॉ. पूनम ने कहा की जो प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या अभी तक शहरी केन्द्रों की समझी जाती थी वह अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी देखी जा सकती है अतः प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या को समाधान किया जाना आवश्यक है , डॉ. अनीता सिंह , डॉ. फलीप सम मनोहर लाल , यासमीन , राजेश सरोज , गिरीश गिरी एवं अंगद कुमार द्विवेदी लक्ष्य संस्था के परियोजना अधिकारी एवं छात्राओं की सहभागिता रही I धन्यवाद ज्ञापन सपना यादव ने दिया।
बाप रे चाइल्ड लाइन न होता तो क्या होता?
किशोर-किशोरी की होने जा रही थी शादी
चाइल्ड लाइन हुआ सक्रिय तो रुका बाल विवाह
वाराणसी 10 दिसम्बर(dil india live)। बजरडीहा क्षेत्र में शुक्रवार को एक किशोरी के विवाह के प्रयास को चाइल्ड लाइन ने विफल कर दिया। तीन दिन पूर्व भी इसी इलाके में चाइल्ड ने एक बाल विवाह होने से रोका था। चार माह के भीतर चाइल्ड लाइन ने यह चौथा बाल विवाह रोकवाया है। लोग कहते सुने गए बाप रे, बाप चाइल्ड लाइन न होता तो क्या होता?
दरअसल चाइल्ड लाइन के हेल्पलाइन नम्बर 1098 पर शुक्रवार को सूचना मिली कि बजरडीहा में नाबालिक किशोरी का बाल विवाह हो रहा है। सूचना मिलते ही चाइल्ड लाइन के निदेशक मजू मैथ्यू ने जिला बाल संरक्षण अधिकारी निरूपमा सिंह से संपर्क किया। इसके बाद चाइल्ड लाइन व जिला बाल संरक्षण इकाई की एक टीम बजरडीहा पुलिस चौकी से पुलिस को साथ लेकर वहाँ पहुंची। इस टीम में आज़ाद,संतोष,अंकुर, गोविन्द, दीपचंद के अलावा बाल संरक्षण इकार्इ के राजकुमार शामिल थे। टीम जब पुलिस के साथ वहां पहुंची तब वहां निकाह चल रहा था। मेहमान दावत खा रहे थे। पुलिस टीम को साथ देख वहां अफरा-तफरी मच गयी। किशोरी और उसके होने वाले शौहर के परिजनों को बजरडीहा पुलिस चौकी लाकर पूछताछ की गयी तो पता चला कि किशोरी नाबालिग है। इसके साथ ही निकाह रोक दिया गया। किशोरी को बाल कल्याण समिति के समक्ष प्रस्तुत किया गया। समिति की अध्यक्ष स्नेहा उपाध्याय, सदस्य अखिलेश मौर्या व किशोर चन्द्र समक्ष दोनों पक्षों ने निकाह रोकने का लिखित बांड भरा। इसके बाद उनको बच्ची को घर ले जाने की अनुमति दे दी गयी ।
क्या है बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम
किसी भी बालक का विवाह 21 साल एवं बालिका का 18 साल के होने के बाद ही किया जा सकता है। यदि कोई भी व्यक्ति इस निर्धारित उम्र से काम उम्र में शादी करता है तो उसे बाल विवाह करार दिया जायेगा। भले ही वह सहमति से ही क्यों न किया गया हो। सहमति से किया गया बाल विवाह भी कानूनी रूप से वैध नहीं होता। बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम -2006 के अंतर्गत बाल विवाह होने पर दो वर्ष की सजा अथवा एक लाख का जुर्माना अथवा दोनों का प्राविधान है।
बच्चों का स्वर्णप्राशन कराएं, बुद्धिमान और बलवान बनाएं
अब अन्नप्राशन ही नहीं स्वर्णप्राशन भी जरूरी
- पुष्य-नक्षत्र में हर माह निःशुल्क होता है ‘स्वर्णप्राशन’
- 16 वर्ष तक के बच्चे उठा सकते हैं इसका लाभ
वाराणसी, 9 दिसम्बर। आयुर्वेद का “स्वर्णप्राशन” बच्चों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। यह बच्चों को न केवल बलवान बल्कि बुद्धिमान भी बनाता है। आयुर्वेद महाविद्यालय में बच्चों का “स्वर्णप्राशन” निःशुल्क कराया जाता है। बच्चों की इम्यूनिटी बढ़ाने के साथ-साथ उनकी बौद्धिक क्षमता को बढ़ाने के लिए “स्वर्णप्राशन” जरूर कराना चाहिए। यह कहना है क्षेत्रीय आयुर्वेद एवं यूनानी अधिकारी डा. भावना द्विवेदी का
डा. भावना बताती हैं कि आयुर्वेद से जुड़े हमारे ऋषि मुनियों ने हजारों वर्ष पूर्व वायरस और बैक्टीरिया जनित बीमारियों से लड़ने के लिए एक ऐसा रसायन तैयार किया था जिसे स्वर्णप्राशन कहा जाता है। इसे शुद्ध स्वर्णभस्म के निश्चित अनुपात में गाय के घी व शहद के साथ ड्रॉप के रूप में तैयार किया जाता है। यह बच्चों की मेधा शक्ति बढ़ाने वाला भी होता है।
कश्यप व सुश्रुत संहिता में है उल्लेख-
डॉ. भावना द्विवेदी बताती हैं कि स्वर्णप्राशन संस्कार का उल्लेख कश्यप संहिता और सुश्रुत संहिता में भी है । इसका प्रयोग प्राचीन समय से होता आ रहा है। कर्नाटक विश्वविद्यालय में वर्ष 2012 में हुए शोध से यह साफ हो चुका है कि चिकित्सक की देखरेख में किया गया स्वर्णप्राशन बच्चों के लिए पूरी तरह सुरक्षित है। गोरखपुर में भी देखने को आया कि जिन बच्चों ने स्वर्णप्राशन कराया था उनको इंसेफेलाइटिस का खतरा नहीं था। लिहाजा वाराणसी समेत प्रदेश के आठ आयुर्वेद महाविद्यालयों में एक बार फिर इसका प्रयोग शुरू किया गया है, जिसके सार्थक परिणाम भी आ रहे हैं। वह बताती हैं कि स्वर्ण भस्म शरीर के प्रत्येक कोशिका में प्रवेश कर वहां के असंतुलन या विकृति को सही करता है। यह बच्चों में होने वाली मौसमी बीमरियों से तो रक्षा करता ही है साथ ही उनको बेहतर स्वास्थ्य प्रदान करने में भी अच्छी भूमिका निभाता है।
पुष्य-नक्षत्र में होता है “स्वर्णप्राशन” -
आयुर्वेद महाविद्यालय के बाल रोग विभाग की वरिष्ठ चिकित्सक डा. रुचि तिवारी* बताती हैं कि स्वर्णप्राशन पुष्य-नक्षत्र में करने से चमत्कारी लाभ होते हैं , क्योंकि इस दिन ग्रहों की शक्तियां ज्यादा होती हैं। पुष्य नक्षत्र हर महीने में एक बार आता है, इसलिए प्रत्येक माह उस रोज महाविद्यालय में 16 वर्ष तक के बच्चों को यह सुविधा निःशुल्क प्रदान की जाती है। वह बताती हैं कि वर्ष 2019 से महाविद्यालय में प्रत्येक माह कैम्प लगाया जाता है और अब तक यहां तीन हजार से अधिक बच्चों का स्वर्णप्राशन किया जा चुका है। कोरोना काल में स्वर्णप्राशन की प्रक्रिया थम गयी थी लेकिन अब यह पुनः शुरू कर दी गयी है। आयुर्वेद महाविद्यालय में लगे कैम्प में अपने पांच वर्ष के बेटे आयुष का स्वर्णप्राशन कराने आयी आयी हुकुलगंज की रहने वाली अंकिता ने बताया कि उनका बेटा अक्सर बीमार रहता था। लगभग तीन वर्ष से वह स्वर्णप्राशन कराती हैं। अब उनका बेटा पूरी तरह स्वस्थ है। चौकाघाट की माया ने बताया कि स्वर्णप्राशन कराने से उनकी आठ वर्ष की बेटी को काफी लाभ है।
- स्वर्णप्राशन के लाभ
स्वर्णप्राशन बीमार या विकृत कोशिकाओं को फिर से सक्रिय कर देता है।
- रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
- शरीर से अनेक प्रकार के विषैले पदार्थों को दूर करता है।
- याददाश्त और एकाग्रता को बढ़ाता है, जो अध्ययनरत बच्चों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
-शरीर में ब्लड़ सर्कुलेशन को बढ़ाता है और हृदय को शक्ति देता है ।
ख्याल अपना पुस्तक का हुआ लोकार्पण
शायरी की दुनिया में मील का पत्थर साबित होगी ख्याल अपना - प्रो. चंद्रकलावाराणसी 10 दिसम्बर (dil india live)। डीएवी पीजी कॉलेज एवं मन बंजारा कविता सोसाइटी के संयुक्त तत्वावधान में गुरुवार को पुस्तक ''ख्याल अपना'' का लोकार्पण समारोह आयोजित हुआ। कॉलेज के न्यू ओबीसी बिल्डिंग स्थित सभागार में शायर हशम तुराबी द्वारा लिखित पुस्तक का विमोचन प्रोफेसर अवधेश प्रधान, प्रोफेसर चंद्रकला पाड़िया, डॉ. सत्यदेव सिंह, प्रोफेसर अनुराधा बनर्जी ने किया।
इस अवसर पर आयोजित पुस्तक चर्चा कार्यक्रम में मुख्य अतिथि भूतपूर्व कुलपति प्रोफेसर चंद्रकला पाड़िया ने कहा कि ख्याल अपना पुस्तक आत्मा को स्पर्श करने वाली पुस्तक है। कवि की चेतना जब अपने चर्मोत्कर्ष पर पहुँचती है तब ऐसी कृति समाज के सामने आ पाती है। उन्होंने कहा कि शायरी करने वालो के लिए यह पुस्तक मील का पत्थर साबित होगी। मुख्य वक्ता काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के भूतपूर्व आचार्य प्रोफेसर अवधेश प्रधान ने कहा कि इस पुस्तक की सादगी ही इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। कविता वही है जो व्यक्ति को अंदर से संभालती है, लोकतांत्रिक शायर की लोकतांत्रिक शायरी के रूप में यह पुस्तक समाज मे अपना स्थान बनाएगी। अध्यक्षता करते हुए प्राचार्य डॉ. सत्यदेव सिंह ने कहा कि इंसान को इंसान बनाने वाली पुस्तक है ख्याल अपना, जिसे समाज के आईने के रूप में देखा जा सकता है।
कार्यक्रम में नवगीतकार पण्डित हरिराम द्विवेदी, रामअवतार पाण्डेय, आकाशवाणी के क्षेत्रीय निदेशक राजेश कुमार, कावेरी भादुड़ी, रामानंद तिवारी, अशोक सिंह आदि ने भी विचार व्यक्त किया। संयोजन प्रोफेसर अनुराधा बनर्जी ने किया। स्वागत लेखक हशम तुराबी, डॉ. स्वाति सुचरिता नंदा, डॉ. महिमा सिंह, फिरोज नुसरत ने किया। धन्यवाद ज्ञापन रत्ना मुखर्जी ने दिया। इस अवसर पर मुख्य रूप से डॉ. उषा किरण सिंह, डॉ. शहजाद वारसी, डॉ. मंजरी पाण्डेय, डॉ. कमालुद्दीन शेख, रेहानुलहसन आदि उपस्थित रहें।
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